Samadhan Episode – 0002 General Problems
CONTENTS :
रुपेश जी….. नमस्कार !! आदाब! “सत श्री अकाल”! मित्रों समाधान में
पुनः एक बार आप सभी का हार्दिक स्वागत है I चर्चा यद्यपि आप की
सभी समस्याओं की हम करते आ रहे थे I लेकिन एक बहोत ही महत्वपूर्ण
बात की शुरुवात हुई ……. की क्या समस्याओं के निदान में परमात्मा के साथ
का सानिध्य का मदद लिया जा सकता है? क्या उन्हें भी अपने जीवन में शामिल
किया जा सकता है? और ये बात मुझे लगता है की जितनी प्रिय मुझे लगी है
उतनी ही प्रिय आप को भी अवश्य ही लगी होगी I क्यों की मुझे लगता है की हम
रोज़ जिसे याद करते हैं I जिसे हर समस्या में यद् करते याद करते हुए हम नमाज़
पढ़ते हैं, चर्चों में हम जाते हैं घंटियाँ हैं, जिस की रोज़ पूजा- अर्चना करते हैं, पाँच
बार जिसे बजाते हैं, जिसे यद् करते हुए I यदि वो हमारे साथ हो ले I यदि हम
उसे जन लें, पहचान ले तो, मुझे लगता है व्यक्तिगत रूप से, की, इससे अच्छा
और कुछ नहीं हो सकता I हमारे जीवन में ये हमारे जीवन की सबसे बड़ी सौगात
हो सकती है I इसलिय इस चर्चा को में पुनः चाहुंगा ….. आप सब की और से
भ्राताजी से आगे जारी रखना I आईये स्वागत करते हैं आदरणीय भ्राताजी काI
भ्राताजी आप का बोहोत बोहोत स्वागत है I
बी.के. भ्राता सूर्याजी…… थैंक यू I
रुपेश जी….. भ्राताजी एक चर्चा जो हम करते आ रहे थे वो ये थी की केसे
परमात्मा हमारे जीवन में आयें I और सचमुच वो अब इस संसार में आ करके
अपना कर्तव्य कर रहें हैं I एक प्रश्न मेरे मन में उठा था भ्राताजी तब भी…….
शाश्त्रों में ये कहा गया है की कलियुग अभी ४० हज़ार वर्ष अभी और बाकि है I
ऐसे में क्या परमात्मा के आने का यही वास्तव में समय है, या हमे इंतजार करना
पड़ेगा ४० हज़ार वर्ष I
बी.के. भ्राता सूर्या जी…… ४० हज़ार क्या कलियुग की
आयु तो शास्त्रों में ४,३२,००० कही गयी है I और ५००० ही पुरे हुए हैंI
४,२७,००० बाकि हैं….
रुपेश जी….. ओह्ह्ह !!! बोहोत बाकी है I
बी.के.भ्राता सूर्या जी….. हु…… तो शायद लिखनेवालों को ये पता नहीं होगा के
एसा घोर कलियुग पहले ही आ जायेगाI ५००० साल में ही आ जायेगाI १० साल में
युग बदल चूका है, अगले १० साल में तो अ जाने क्या हल हो जायेगा I एटम बोम्ब्स
बना लिए है I मिसाइल्स तैयार कर दिए हैं भिन्न देशों ने, तो वो रखने के लिए तो नहीं
होंगे I म्यूजियम में तो नहीं रखे जायेंगे ! वो चुतेंगे और संसार विनाश के गर्त में समा
जायेगा I लेकिन एक नवयुग का प्रारंभ होगा I संसार जीरो पे नहीं आ जाता I बिलकुल
नॉन एक्स्शिस्तेंसहो जाये, संसार एक्स्शिस्त करता है I
रुपेशजी………. जेसे की महा प्रलय की बात हम कभी कभी सुनते हैं?
बी.के. भ्राता सूर्याजी…. वेसा कुछ नहीं होगा I वास्तव में भगवान ने स्वयं आकर ये
बताया— के तुम कहाँ अंधकार में सोये हुए हो I दिन निकल रहा है I निकलनेवाला
है I अब जागोI उन्होंने स्वयं आकर चेतना दी की कलयुग का अंत आ गया है I
और हमने क्योंकि भगवान को इन आँखों से देख लिया, उसकी वाणी इन कानों से
सुनली और उसकी सत्यता में विश्वास हो गयाI उस की वाणी में पॉवर ही इतनी
थी, हम विश्वास करने के अलावा रह नहीं सकते थे I भगवान की वाणी है, आखिर
तो उसने आकर बताया है की ४०,००० साल या लाखों साल नहीं एंड और खुद
कहा — “ मैं आ गया हूँI” “ मैं महाकाल हूँ I” “ तुम सब आत्माओं को वापस ले
जाने आया हूँ I अपने धाम – मुक्तिधाम में, ये मेरा परम कर्तव्य है I तो, जब
उसकी बात सुनी और संसार का गिरता हुआ, हर चीज़ का स्तर गिरता हुआ
दिखाई दिया तो बिलकुल ये बात सहज समझने योग्य है, की ये संसार ज्यादा
समय नहीं चलेगाI देखिये—– मैं तो इन समस्याओं की बात जो हम कर रहे हैं,
इन को देख कर ही सोचता हूँ I बोहोत सरे युवकों के फ़ोन कॉल मुझे आते हैं I
युवक बोहोत सेंसिटिव हो गए हैं I बस कामवासना की तरफ बहे चले जा रहे
हैं I माँ बाप की कोई चिंता नहीं करते I पढाई को भी पीछे कर देते हैं, बोहोत
सेंसिटिव हो गए हैं I तो दिखाई देता है की अगले २० सालों में क्या हो जायेगाI
ये तो इन की वासनाओं की अग्नि इन्हें जला के इसे ही नष्ट कर डालेगी I तो
विनाश का समय आ गया है I यही परम सत्य है I इसको अब रोका
नहीं जा सकेगा I
रुपेश्जी…… तो हर चीज़ का स्तर वेसे भी भ्राताजी, हम गिरता हुआ देख ही
रहे हैं I मन में ये आता तो अवश्य है की, जरुर कुछ परिवर्तन होना है I और
साइंटिस्ट्स भी भ्राताजी ये कह रहे हैं की नार्थ पोल हो या साउथ पोल हो
वहाँ पे भी ग्लासिएर्स पिघलते चले जा रहे हैं I या फिर ये कहें की हमारे
यहाँ ग्रीन हाउस इफ़ेक्ट है, तेजी से बढ़ता चला जा रहा है I तो ये देख
करके कई बार विचार तो अवश्य आता था की वास्तवमे संसार का होगा क्या?
बी.के. भ्राता सूर्याजी….. हाँ…. देखिये ग्लासिएर्स पिघल जाएँ I धरती इम्बलांस
हो जाएगी, पोल्स बदल जायेंगे I लोकातिओंस बदल जाएँगी I मै तो इससे भी
ज्यादा एक बात को देखकर सोचता हूँ…. हमारे देश की राजनीती को आप
देखिये I जिधर वो जा रही है, दिशाहीन राजनीती हो गयी है I विवेकहीन
राजनीती हो गयी है I नेतिकता का तो जहाँ नाम ही नहीं रहा ईएसआई
राजनीती हो गयी है I तो जरुर हर बुद्धिमान व्यक्ति सोचेगा ना की इसमें
भी चंगे आनी चाहिए I तब देश का कल्याण होगाI अब इसे लोग राजनीती
में ऊपर जा रहे हैं, जिनके पास कुछ नहीं है I मैं यही कहूँगा— देश को
देने के लिए उनके पास कुछ नहीं है I केवल सत्ता की भूख है I तो इस
राजनीती का जो ढांचा है, इसमें भी निश्च्चित रूप से परिवर्तन होना
चाहिए I तो हम परिवर्तन की प्रक्रिया से गुज़र रहे हैं I प्रकृति में
परिवर्तन होगा I पोल्स में, ध्रुव में परिवर्तन होगा I मौसम बदलेंगे
और मनुष्य तो बदलेगा ही I
रुपेश्जी…….. बिलकुल I तो मतलब एक बहोत बड़े परिवर्तन की
और हम चल रहे हैं I हम इसे माने या न माने I इस के लिए ही शायद
हम सब को मानसिक रूप से तैयार होने की आवश्यकता है I जो
ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय राजयोग सिखा कर के या
सत्य ज्ञान दे करके कर रहा है I
बी.के.भ्राता सूर्याजी… लेकिन इस में एक बात जानने की है I जेसे
पीछे लोगों ने शोर किया था ना २१ दिसंबर २०१२….
रुपेश्जी……. उस पूरी रात हम सोये नहीं the भ्राताजी ……
बी.के.भ्राता सूर्याजी……… हम तो खूब सोये थे I क्योंकि हमे पता था कुछ
होनेवाला नहीं है I क्योंकी, विनाश के साथ साथ परिवर्तन की प्रक्रिया भी
चालू रहेगी I तो ये काम एक डेट पर नहीं हो जायेगाI इस में कम से
कम १० – १२ साल लग जायेंगे I ये धीरे धीरे गति से…… इस की भी एक
गति होगीI प्रकृति में परिवर्तन होगा I आकाश बदलेगा I चाँद-तारे बदलेंगे I
सब बदल जायेगI सब के लोकेसंस सब की स्थिति बदलेगी I तो इट विल
टेक टाइमI तो एसा नहीं है की एक डेट दे दी जाये और हम से कोई पूछे,
हाँ भई कब होगा? हाँ, इस डेट पे होगा? तो वो नहीं होगा I वो धीरे धीरे
अपनी गति से होगा I
रुपेश्जी……. तो एक बोहोत बड़े परिवर्तन की और हम बढ़ रहे हैं I चाहे
वो वैज्ञानिक भी इस चीज़ को स्वीकार कर रहे हैं और लोग भी इस चीज़
को स्वीकार कर रहे हैं I
बी. के. भ्राता सूर्याजी……. हमे इस चीज़ को स्वीकार भी करना चाहिए
और अपने को इस परिवर्तन के लिए तैयार भी रखना चाहिए I होता क्या है
की, मनुष्य कभी कभी एक अच्छे परिवर्तन के लिए स्वयं को तैयार नहीं करता I
वो जिस गति से चलता आ रहा है, चाहे वो गिर ही रहा हो, उसी गति से
गिरना चाहता है I उसे कोई कहे की तुम्हे वहाँ फेंक दिया जय जहाँ
तुम्हे जाना है, तो नहींI तो एक सुंदर परिवर्तन होगा I एक दूसरा ही
सिस्टम संसार का होगा I और ये बात किसी अमेरिका के प्रेसिडेंट के
हाथ में नहीं है I ये रस्सियन प्रेसिडेंट के हाथ में नहीं है I ये तो जो सृष्टि
का मालिक है उस की प्लानिंग है, अब युग बदलने की I
रुपेश्जी……. बिलकुलI तो भ्राताजी ये सारी चीज़े बदलेंगी? हम कई
बार एसा सोचते हैं की जो लोग अभी हैं I एडजस्ट कर रहे हैं क्या उन्हें
ही ठीक नहीं किया जा सकताI भले, चलिए पॉलिटिक्स की आप ने बात
कही I या अन्य लोगों के अन्दर विकृतियाँ हैं, बुराईयाँ हैं I यदि इन्हें ही
ठीक कर देंI तो, ये जो एक विनाश की बात जब ब्रह्मा कुमरिस करती
है की, पूरी श्रृष्टि का विनाश होगाI नवयुग बोहोत अची बात है, वो आयेगाI
लेकिन विनाश से कहीं मन में एक डर सा पैदा होता है I
बी.के. भ्राता सूर्याजी…….. आपने बोहोत अच्छी बात कही I और पहले
काम तो यही किया जा रहा है की इन सब को ठीक किया जायेI लेकिन
ठीक करने का भी एक समय है और एक सीमा है I जब भगवान भी
देखता है की सब अब ज्ञान से, समझदारी से अपने को ठीक नहीं कर
रहे I तो वो समाप्ति करा देता है I की अब तो एक ही से परिवर्तित हो
चुके हैं I जो वास्तव में रियल मनुष्य बन चुके होंगे I उनसे नवयुग का
प्रारंभ हो जायेगाI लेकिन परमात्मा का भी पहले प्रायोरिटी भी इसी में है की,
वो मनुष्य को बदलेI और वो बदल रहा है I
रुपेश्जी……. बिलकुलI तो परमात्मा को हम किस नाम से पुकारें भ्राताजी I
अलग अलग नामों से लोग पुकारता हैं उन्हेंI कोई गॉड कह रहा है I कोई
अल्लाह कह रहा हैI कोई भगवान कह रहा है I
बी.के. भ्राता सूर्याजी…… देखिये, ये तो भाषाओँ की बात है I जहाँ जहाँ जिस
भाषा का प्रचलन था, उस भाषा में उसको नाम दिया गयाI और हर नाम मिनिग्फुल
हैI हर नाम का कुछ अर्थ है और बोहोत अच्छा है जिसने भी जो नाम दियाI लेकिन
परमात्मा वास्तवमे निराकार है I वो कोई देहधारी नहीं है I पहली बात तो ये सबको
जानना जरुरी है I भारत में क्या हो गया है की हमारे बोहोत सरे देवी- देवता है I जो
निश्च्चित रूप से मान्य है और पूजा हैI उसमे कोई संदेह नहींI हमारी भारत की
सारी जनता उनमे विश्वास रखती है I उनसे उनको अनुभूति भी होती है I मदद भी
मिलती हैI पहला स्थान आता है ब्रह्मा –विष्णु-शंकर काI महादेव के बोहोत पुजारी
है I विष्णु के, श्री कृष्णा के, शेई राम के तो बोहोत ज्यादा है I फिर देवियोंके, शक्तियों
के हैं और अब बोहोत सारे गुरु भी हो गए जिन की पूजा होने लगी है I लेकिन परमात्मा,
ब्रह्मा- विष्णु-शंकर के भी ऊपर है I कही भी अगर तिन मेनेजर हों- तो एक जनरल
मेनेजर तो रखना ही पड़ता हैनाI ब्रहम ब्रह्मा का काम स्थापना I विष्णु का काम पलना
और महादेवजी का काम विनाश है I तो तीनों को करानेवाला भी तो कोई चाहिए,
इनके ऊपरI और वो है निराकार महाज्योति I निराकार उसे इस लिए कहते हैं
क्योंकि वो आँखों से नहीं दीखता और उस को देह नहीं हैI निराकार का अर्थ
लोग कहीं ये समझ लेते कोई आकार नहीं है I लेकिन इसका अर्थ की मानवीय
आकार नहीं है I देवताओं जेसा आकार नहीं हैI फिर और बोहोत सारे देवता है
भारत में ३३ करोड़ देवता मने जाते हैं I चलो ३३ करोड़ न भी हों बोहोत सरे देवी
देवताओं की यहाँ मान्यता है I तो ये देवी-देवता, ब्रह्मा-विष्णु-शंकर इन देवी-देवताओं
के भी हेड जेसे सृष्टि का संचालन करनेवाले I और उसके भी जो ऊपर है, तीनों
के वो हैं परमपिता जिस का नाम शिव दिया है- कल्याणकारी I शिव का अर्थ है
कल्याणकारी I जो सब का कल्याण करता है I अब शिव के जो मंदिरों में यादगार
है, वो शिवलिंग है और शिव के हजारों नाम गिनाएं जाते हैं I ये उसके गुणवाचक
और कर्ताव्यवाचक नाम है I माना मिनिग्फुल नाम है I जेसे उसने कार्य किया है
वैसा उसको भक्तों ने नाम दे दिया है I तो परमात्मा सबसे ऊपर, देह रहित,
बोडिलेस और निराकार उसको केहते हैं I नाम उसका शिव I
रूपेशजी……. बिलकुलI लेकिन, भ्राताजी आपने जैसे कहा की परमात्मा को
हम शिव नाम से पुकारते हैं I लेकिन जब हम शिव कहते हैं, भले आपने इसका
अर्थ बताया के इस का अर्थ कल्याणकारी है I लेकिन जब दुसरे धर्म वाले हैं,
तो वो ये ही सोचेंगे की ये तो हिन्दुओं का धर्म है और वो फिर ब्रह्मा कुमरिस में
नहीं आएंगे I तो क्या परमात्मा का कोई एसा नाम नहीं होना चाहिए जो सर्व मान्य
हों और सभी उस चीज़ को स्वीकार करें I
बी.के. भ्राता सूर्याजी…… देखिये, एक नाम तो कोई हो नहीं सकता I गुणवाचक
नाम है I और भाषाएँ अलग अलग है ना? अलग अलग भाषा में अलग अलग नाम
लोगोने दिए हुए है I लेकिन ये एक के ही अलग अलग नाम है I सब यहाँ आ रहे हैं
और आते हैं क्यों की यहाँ धर्म की बात नहीं स्पिरितुअलिटी की बात है I आत्मा की
बात है I परमात्मा की बात है I पूजा पाठ की यहाँ कोई चर्चा नहीं है I इसको मानो
इसको न मानो ये यहाँ चर्चा नहीं है I यहाँ तो आत्म शुद्धि की बात है I यहाँ तो
कर्मेन्द्रियों को जितने की बात है I मन को पावरफुल बनाने की बात है I इसलिए
यहाँ सभी धर्मों के लोग इसमें, नाम से कोई अंतर नहीं पड़ता I नाम तो वेसे भी
उर्दू में एक चीज़ का दूसरा नाम होगा I तो इंग्लिश में और होगा I तो मराठी में,
गुजरती में अलग अलग होंगे I नाम से वास्तु तो परिवर्तित नहीं होती ना, तो भगवान
तो एक है I नाम चाहे उसके किसी भाषा में कुछ भी दिए जाये I
रुपेश्जी……. तो क्या भ्राताजी अलग अलग जो धर्म को माननेवाले हैं I जेसे हमारे
मुस्लिम भई-बहन है, या क्रिस्चियन है, या सिख है, या अन्य जो सम्प्रदायों को
माननेवाले हैं क्या ऐसे लोग भी ब्रह्मा कुमरिस में आते हैं?
बी.के.भ्राता सूर्याजी…… देखिये, में एक अनुभव ही आप को शेयर करना चाहुंगा I
कुछ साल पहले भारत की ही एक सिटी से ५० मुस्लिम्स का ग्रुप हमारे पास आया,
ज्ञान सरोवर हामरी अकादमी है, बोहोत सुन्दर I और ये सभी ५० के ५० लोग इंडसट्रियालिस्ट
the और बिज़नस मैन the बड़े बड़े I जो उनको लाये थे वो समझा बुझा के तो लाये थे I
पर उन्होंने कहा तुम कहाँ हमे हिन्दुओं के इसमें ले आये हो? यहाँ हमे क्या करना है?
हम थोडा ही कही फुल चढ़ाएंगे I उन्हें कहा आप कुछ ना करो, आप केवल दो दिन
रहो ना यहाँ I हम थोड़े ही कुछ करने को केह रहे हैं I उनकी फिर क्लास्सेस हुई I
और क्लास्सेस हो के जो तिन दिन वो यहाँ रहे फिर तो जाने का नाम नहीं लेते थे I
फिर तो कहते थे जो हमारी कुरान शरीफ में कहा गया है, वो ही यहाँ तो सब कुछ है I
तो, देखिये ये भाषा, वेद वहाँ समाप्त हो गया I उनमें से दो-चार के अनुभव हमारी
क्लास्सेस में सुनवाये गए I वो आये उन्होंने कहा हम सब आये तो क्या सोचते थे I
और अब कहेंगे ये तो जन्नत है I बहिस्त है I ये तो स्वर्ग की आप स्थापना यहाँ कर
रहे हो I और हम तो आप के पुरे साथ हैं I ये भेदभाव तो मनुष्यों ने बना दिया है I
ये तो आउटर चीज़ है I बाह्य फ्रेम है I वास्तव में हम सब तो रूहें हैं, आत्माएं हैं I
और सब का रूहानी बाप एक है I ये बात उनकी समझ में आई I और आज वो
हमारे इस कार्य में बोहोत सहयोगी हैं I
रुपेश्जी…….. बोहोत सुंदर ! मतलब सभी लोग यहाँ पे आ रहे हैं और जेसे आप
हमेशा कहते भी हैं भ्राताजी, की १३० से भी ज्यादा देशों में शाखाएं हैं I तो निश्चित
रूप से विदेशी भाई-बहने भी यहाँ आ करके इससे लाभान्वित हो रहे हैं I कोई
एसा अनुभव भ्राताजी जो अलग धर्मों के भी जो लोग आयें हैं यहाँ पे और उन्होंने
उस परम शक्ति का अनुभव किया हो? और साथ ही जा करके उन्होंने अन्य
इस बात को अपने लोगों तक पोहोंचाया हो I
बी. के. भ्राता सूर्याजी….. देखिये हमारे यहाँ मुस्लिम धर्म के लोग बोहोत आये I
आते हैं और हम तो मुस्लिम्स को अपना भई समझते हैं I सब आत्माएं हैं, एक ही है ना I
हम तो वेसे भी यु.पी. से हैं I हम तो वेसे भी यु.पी. में जन्मे और वहां तो हर गाँव में, हर
सिटी में आधे हिन्दू, आधे मुस्लिम्स I हम तो बचपन से उनके साथ रहे I हमने तो कोई
भेदभाव देखा नहीं था कभी I ये तो बाद में आके सुना के नेताओं के कारण कुछ गड़बड़
हो गयी I वोट के कारन कुछ गड़बड़ हो रही I यहाँ तो सभी लोग बोहोत प्यार से ही रहते
हैं I तो बोहोत सरे लोग आये I और मुस्लिम्स कई है हमारे में I में नाम नहीं लूँगा I पर
अफ्रीका से एक बोहोत अच्छे मुस्लिम जो बोहोत बड़ी पोस्ट पर भी हैं, हमारे यहाँ
आये I उन्हें ज्योति का साक्षात्कार हुआ I बोहोत अच्छा और बस वो इसमें जेसे
समर्पित हो गए I उन्हें बिलकुल आभास हो गया के जो हमारे मुस्लिम धर्म में कहा
गया है वो सब यहीं है I प्रैक्टिकल है I वहां केवल वो ग्रंथों में है और यहाँ जीवन में
है I तो उन्होंने अपना पूरा जीवन इस कार्य में लगा दिया I और हमारे मुस्लिम कन्ट्रीज
में वो बोहोत कम कर रहे हैं I और सब को बताते हैं की , ये धर्मों के जो भेदभाव हैं,
ये तो बाहरी चीजें हैं I बाहरी आवरण है I इससे अलग हट जाओ और जो रियल
स्पिरितुअलिटी है उस को अपना लो I
रुपेश्जी…… कई बार भ्राताजी कईयों को एसा भी तो लगता होगा, की यदि हम
मान लीजिये हम मुस्लिम धर्म में हैं, या हम क्रिस्चियन हैं, हम सिख है I और जब
हम ब्रह्मा कुमरिस के पास जायेंगे तो शायद ये हमे कन्वर्ट कर देंगे I तो क्या यहाँ
भी कन्वर्ट किया जाता है?
बी.के भ्राता सूर्याजी……. देखए हमारे यहाँ सिख बोहोत लोग आते हैं I पंजाब से
भी और भारत के बोहोत सारे सिटीज से I वो अपना वो ही पोशाक रखते हैं जो उनकी है
I अपने गुरूद्वारे में भी जाते हैं I लेकिन वो खुद महसूस करते हैं के गुरु ग्रन्थ साहेब ने
जो कहा है वो सब यहाँ भी कहा जा रहा है I जब वो बोहोत डीपली नॉलेज की स्टडी
करते हैं, तो उन्हें एसा नहीं लगता की कहीं और जगह चले गए I या हम सिख धर्म
छोड़ के हम तो हिंदू बन गए I वो वेसे ही रहते हैं I उनका वही नाम रहता है लेकिन
उनके जीवन में वो सब बातें धारण होने लगती हैं I बोहोत प्रसन्न होते हैं की हम
ने तो ५० साल बिता दिए I गुरुद्वारों में भी सब….. वो भी सुनी उनके ग्रन्थ-पाठ
आदि, अरदास आदि और रोज़ जाते थे हम तो नियमित रुपस से I लेकिन यहाँ
आने के बाद गुरुग्रंथ साहब हमारे में समा गया I तो इसलिए राजयोग सिखने में
उन्हें कोई भी कठिनाई नहीं होती I
रुपेश्जी…… बिलकुल I मतलब, मूल बात ये है की धर्म का परिवर्तन नहीं कराया
जाता I या आप की जो भी मान्यताएँ हैं आप उन्हें मानते रहें I लेकीन उन्हें ठीक
तरह से आप केसे अपने जीवन में उतर लें इस बात की प्रेरणा, इस बात की सिख
राजयोग के माध्यम से ब्रह्मा कुमरिज़ दे रही हैं I बोहोत सुंदर बातें हैं भ्राताजी,
आप ने आज कही है I अब में आप को, मै जो हमारे मूल प्रश्न है उनकी और ले
चलता हूँ I हमारे पास जो समस्याएँ आई है उनमें से एक फ़ोन कॉल आया
हमारे पास लखनऊ से I और रागिनिजी लिख रही हैं की मेरे पति की कैंसर
से मृत्यु हो गयी I मेरे दो बच्चे हैं I एक युएसए में है और एक नॉएडा में I
दोनों की शादी हो गयी है I दोनों अपने अपने फॅमिली में है I वो न तो मुझे
फ़ोन करते हैं और न ही मुझसे मिलने आते हैं I इससे में बोहोत अकेलापन
महसूस करती हूँ I बोहोत दुखी और अशांत रहती हूँ I
बी.के. भ्राता सूर्याजी…… जिस का पति भी कैंसर से मर गया हो और
जिसने अपने बच्चों की जी जान लगाकर पालना की हो I और वो बच्चे आज
उन्हें पूछते नहीं तो निश्चित रूप से माँ का दिल तो टूट जाता है I लेकिन ये
बच्चों का भी कर्तव्य है, के वो अपनी माँ की भावनाओं को भी समझे I कम
से कम फ़ोन तो करें I ताकि माँ का प्यार जो है वह तृप्त होता रहे I
रुपेश्जी…….. जी I
बी. के भ्राता सूर्याजी…… और उसको भी लगे की ये सारा हमारा परिवार है I
बच्चे हमारे हैं वो हमसे अलग नहीं हुए हैं I मै इस माध्यम से सभी बच्चों को, युवकों
को सन्देश देना चाहुंगा ——- के, भले ही आप कहीं भी चले जाएँ, अमेरिका में चले
जायें, माँ का प्यार तो माँ का प्यार ही होता है I उसे यूँ भुलाया नहीं जाना चाहिए I
रही बात रागिनी बहन की इन को डिप्रेशन होना बड़ा नेचुरल है I जिसने अपना
पति को दिया हो और बच्चे भी एक तरह से खो ही गए I
रुपेश्जी…… अब उनकी सुध नहीं ले रहे हैं I फ़ोन नहीं करते हैं I
बी.के. भ्राता सूर्याजी….. हाँ, वो उनसे बात ही नहीं करते I फ़ोन नहीं करते I
वो हैं भी तो उनको इसका कोई एहसास नहीं है I कोई फीलिंग नहीं है I
रुपेश्जी…….. जी I
बी.के.भ्राता सूर्याजी…….. तो, इनको मै कहूँगा —- वे राजयोग सीखें,
ईश्वरीय ज्ञान लें I इनका चित्त शान्त होगा I और जब ये राजयोग करेंगी
तो इनको लगेगा एक पति इनका मृत्यु हो गया है तो परमपिता भी वो हमारा
प्रियतम भी है I वो पतियों का पति भी है I वो हमे सच्चा प्यार देता है I
उसको भी प्रियतम कहा था I तो सचमुच रागिनी का वो प्रियतम बन जायेगा I
और उसे आभास होने लगेगा के सांसारिक पति मेरा मृत्यु को प्राप्त हो गया I
लेकिन एक पारलोकिक पति मुझे फिर से प्राप्त हो गया I तो बच्चों के जो इस
मिलन का और प्यार का आभाव इसे महसूस हो रहा है I वो आभाव पूरी तरह
से भर जायेगा और इसके जीवन में बोहोत तृप्ति होगी I चित्त शान्त होगा I
और जो इसके मन में एक डिप्रेशन की स्थिति है वो समाप्त हो के जीवन
में ख़ुशी आ जाएगी I
रुपेश्जी……… ऐसे बच्चों को भ्राताजी…… जिन बच्चों को बोहोत प्यार से
माता-पिता ने पला है I उनके लिए अपना पूरा जीवन लगाया है I रात रात
भर ना जाने रागिनिजी कितनी रात जगी होंगी अपने बच्चों के लिए I ऐसे बच्चे
जब बड़े हो जाते हैं I अपने माता-पिता को इस प्रकार इग्नोर करते हैं I ऐसे
बच्चों के लिए आप क्या सन्देश देंगे I
बी.के.भ्राता सूर्याजी………. वो भी जब माता-पिता बनेंगे, बन गए होंगे तो
जरुर उन्हें अपने माता-पिता की बच्चों के प्रति क्या फीलिंग्स होती है वो समझ
में आएगी I जब तक उनको अपने बच्चे नहीं होते वो माँ बाप की फीलिंग्स को
समझ नहीं पाते I मुझे पूरण विश्वास है की ये दोनों जरुर अपनी माँ की भावनाओं
को सम्मान देंगे, समझेंगे I में ये सन्देश देना चाहुंगा के, माँ का बोहोत बच्चों से
मोह रहता है, प्यार रहता है I ठीक है, एजुकेटेड हो गए हैं I आप का अपना संसार
हो गया है I आप का अपना परिवार हो गया है I आप का अपना फील्ड है I लेकिन
, उस माँ को आप भूलें नहीं जिसने आप के लिए कष्ट सहे हैं I जिसने आप को
जीवन दान दिया है I और जो आप से कुछ अपेक्षाएं भी रखती थी I लेकिन, चलो
आप उनकी अपेक्षाओं को पूर्ण न भी करें तो….. परन्तु कम से कम उनके प्यार,
उनके भावनाओं का रिस्पांस अवश्य दें I ये मानवता है I इससे संसार में जो एक
प्यार है, चाहे भाई – बहन का हो I भाई – भाई का हो, या माँ-बाप का हो I माँ
और बेटों का हो वो कायम रहेगा I अन्यथा ये प्यार भी कहीं ना कहीं मनुष्य को
डिप्रेशन के कगार पर ले जायेगा I
रुपेश्जी……. जी….जी…. तो एक तो रागिनिजी विशेष करके आपने कहा राजयोग
का अभ्यास करें, परमात्मा को अपने प्रियतम के रूप में स्वीकार करें I और बच्चे
भी निश्चित रूप से अपनी माँ के लिए अपने दायित्व का निर्वाह अवश्य करें I क्योंकि
ये एक हमारा सिस्टम ही अलग है भ्राताजी I और आजकल हम देखते हैं की
वृधाश्रम बढ़ते चले जा रहे हैं I बच्चे अपने माता-पिता को वहाँ डाल देते हैं I और
खुद अपनी फॅमिली में मस्त हो जाते हैं I तो कहीं ना कहीं माता-पिता के अन्दर
ये भाव, दुःख का भाव अवश्य पैदा होता है और मुझे लगता है की ये बोहोत बड़ी
समस्या का रूप लेता चला जा रहा है I
बी.के.भ्राता सूर्याजी……. बिलकुल I और मैं ऐसे युवकों को ये अवश्य कहूँगा, इस
श्रुष्टि की ये जो रचना है इस का एक सिद्धांत बताना चाहुंगा I की अगर वो अपने
माँ-बाप को वृद्धाश्रम में छोड़ आये हैं या उनकी सूदबुद नहीं ले रहे हैं, तो उनके
बच्चे भी इन को वृधाश्रम में जरुर छोड़ेंगे क्यों की इन्होने अपने माँ-बाप के साथ
जो बर्ताव किया है, वही इनके साथ भी होगा ही I यही इस क्रिएशन का, इस नियति
का नियम है I लेकिन मै रागिनी को कहूँगा अगर वो राजयोग का बहुत अच्छा
अभ्यास करेंगे तो राजयोग में कुछ ऐसे एक्सपेरिमेंट्स हैं की अपने इन बच्चों के
मन में अपने लिए वो भावनाओं को पुनः जागृत कर सकेगी I और बच्चों के मन
में आयेगा के, हमारी माँ ने भी तो हमारे लिए कुछ किया है I कम से कम हमे उ
ससे बात तो करनी चाहिए I और दोनों का मिलन फिर से पॉसिबल होगा I
रुपेश्जी……….. तो ये अभ्यास कौन सा है भ्राताजी ?
बी.के.भ्राता सूर्याजी……. इन्हें राजयोग सीखना है I फिर राजयोग ये रोज़ ए
क घंटा करेंगी और इस स्वमं के साथ करेंगी I संकल्प के साथ करेंगी,
‘मै भगवान की संतान मास्टर सर्वशाक्तिवान हूँ I’ इस शब्द की चर्चा हम बार
बार करते आ रहे हैं I ये मोस्ट पावरफुल संकल्प है संसार में I ५ -७ बार इस
को याद करके फिर एक घंटा राजयोग मैडिटेशन करेंगी I और मैडिटेशन के
अंत में अपने दोनों बच्चों को आत्मिक रूप में देखेंगी I देह नहीं, चेहरा सामने
आयेगा और ये दोनों आत्माएं है I और उन्हें कुछ मेसेज देंगी माइंड टू माइंड
— ‘मै तुम्हारी माँ हूँ I तुम मेरे बच्चे हो I मै तुम्हे बोहोत प्यार करती हूँ I आ जाओ I
’ बस, उनके अन्दर प्रेम जागृत होने लगेगा I इसे थोड़े ही दिन में अगर ये २१ दिन
करेंगी तो हमे पूर्ण विश्वास है, जेसे आज तक बोहोतों के एक्सपेरिमेंट्स से, एक्सपीरियंस
से देखा के, २२ वे दिन ही बच्चों का फोन आ जाता है I
रुपेश्जी……… बिलकुल I इससे, इससे सुखद बात और कुछ नहीं हो
सकेगी रागिनिजी के लिए के उनके बच्चे उनसे बातें करें I उनसे मिलेजुले I
और हम बचपन में ये पढ़ा करते थे भ्राताजी की, एक कोई बहु थी I तो वो
अपने जो सास-ससुर थे उन्हें मिटटी के बर्तन में भोजन दिया करती थी I तो
उनका जो बेटा था, उन मिटटी के बर्तनों को संभाल संभाल के रखा करता
था I एक दिन उनके माता-पिता ने पूछा, ‘ की तुम क्यों संभाल के रखते हो
इसे?’ तो उसने कहा – ‘की जब आप बूढ़े हो जायेंगे तब में भी इन्ही बर्तन
में आप को भोजन दिया करूँगा I उनकी आंखें खुल गयी और उन्होंने
अपने सास-ससुर के साथ अच्छा व्यव्हार करना शुरू किया I तो निश्चित
रूप से जेसे आपने कहा है, कर्मों का एक सिद्धांत है, गति है I जेसे हम
दूसरों के साथ करते हैं वेसे हमारे साथ भी अवश्य होता है I
बी.के.भ्राता सूर्याजी…… बिलकुल I
रुपेश्जी…….. भ्राताजी आज की तमाम चर्चाओं के लिए आप का
बोहोत बोहोत शुक्रिया I दोस्तों कहा जाता है, ऊपर जिस का अंत
नहीं उसे माँ कहते है I माँ से बड़ा इस श्रुष्टि में और कोई हो ही नहीं
सकता I सबके माता- पिता हैं ही, लेकिन जिन्होंने हमे जन्म दिया है I
हमें पाला पोसा है I अपने खून से सींचा है I मै नहीं समझता के अपनी
माँ के ऋण से कभी भी कोई मुक्त हो सकता है I एसी माँ की आंख में
आंसू आये हमारी वजह से, तो इससे बड़ी पीड़ा हमारे लिए और कुछ
नहीं हो सकती I इसलिए जहाँ तक संभव हो दिल से, बोहोत प्यार से,
बोहोत सम्मान से अपने माता-पिता की सेवा करें I क्योंकि जब आप
छोटे थे आप की कौन सी उंगुली आपकी पकडके माँ ने चलना सिखाया I
अब उसी उंगुली उसी जीवन का आप सम्मान करें I प्यार करें और उन्हें
आदरपूर्वक, सम्मान देते हुए आगे बढ़ें I