Samadhan Episode – 000115 Youth Problems
CONTENTS :
1. गलत मान्यता कि ‘क्रोध आवश्यक हैं’।
2. क्रोध से पछतावा, बड़ी गलतियाँ और मानसिक शक्तियों का नाश।
3. बिना क्रोध के कार्य में सफलता।
4. क्रोध मुक्त जीवन जीने की विधि।
5. आध्यात्म और राजयोग के प्रयोग कर क्रोध से विदाई।
रुपेश जी: नमस्कार! आदाब ! “सत् श्री अकाल”! मित्रो स्वागत हैं आप सब का समाधान कार्यक्रम में। ये
जो आपका कार्यक्रम हैं, आपका पसंदिदार कार्यक्रम हैं जिसके रोज़ लिए साढ़े नो बजे टेलीविज़न
(television) के सामने बैठ जाते हैं। हम बहुत आभारी हैं कि आप इस प्रकार अपना प्यार हम पर बरसा
रहे हैं। मित्रो पहली बार हम चर्चा कर रहे थे क्रोध पर कि गीता में भगवान् के महावाक्य हैं कि काम,
क्रोध, लोभ नर्क के द्वार हैं। इसे हम पढ़ तो लेते हैं पर लेकिन कभी भी इस पर हम विचार नहीं करते
काम, क्रोध और लोभ किस प्रकार नर्क का द्वार हैं? किस प्रकार ये हमारे जीवन में अशांति पैदा करते
हैं। पिछली बार इसलिए हमने बहुत विस्तार से चर्चा की थी। इस चर्चा को आज भी हम आदरणीय सूर्य
भाईजी के साथ आगे बढ़ाएंगे। आईये उनका स्वागत करते हैं। भ्राताजी आपका बहुत बहुत स्वागत हैं।
सूर्य भाईजी: शुक्रिया (Thank You) !
रुपेश जी: भ्राताजी, ये जो महावाक्य हैं परमत्मा का कि काम, क्रोध और लोभ नर्क का द्वार हैं, किस
प्रकार ये नर्क का द्वार हैं?
सूर्य भाईजी: वास्तव में आज बहुत सारे उदाहरण हैं। एक लेते हैं। बहुत सारे केसेस (cases) भी कोर्ट
(court) में जा रहे हैं, बहुत सारे लोग जैल्स (jails) में बंद हैं, वो काम वासना और क्रोध के कारण हैं। तो
काम वासना और क्रोध ने और लोभ ने पैदा किया जैसे गलत तरीके से धन इक्ट्ठा करना तो ऐसे लोग
जेल (jail) भोग रहे हैं। जो जीवन सुख भोगने के लिए था वो जैसे नर्क में जी रहे हैं। दूसरा, ये तीनो ही
विकार मनुष्य की मानसिक शक्ति को नष्ट करते हैं, अशुद्धि को बढ़ाते हैं, बुद्धि को मलीन कर देते हैं
इसलिए मनुष्य के जीवन में गिरावट ही आ रही हैं। अशांति जीवन में आती रही हैं, पाप बढ़ रहे हैं तो
ये नर्क की ओर ले जा रहे हैं। मृत्यु के बाद नर्क नहीं, यही नर्क हैं। अगर मनुष्य के जीवन में दुःख,
अशांति हैं, परेशानी हैं, विचार अशुद्ध हैं तो ये नर्क ही हैं।
रुपेश जी: भ्राताजी हम क्रोध की चर्चा कर रहे थे पिछली बार कि क्रोध वास्तव में किस तरह से हर एक
व्यक्ति तक पहुँच गया हैं, हर एक के अन्दर समा गया हैं और एक विशेष बात तो ये कि बहुत ज्यादा
लोग या कहूँ कि 90% से भी ज्यादा लोग ये मान बैठे हैं कि क्रोध के बिना काम नहीं चलता ये हमेशा
एक नेचुरल इमोशन (natural emotion) हैं। इस विषय में आप क्या कहेंगे?
सूर्य भाईजी: देखिये, 90% लोगों की बात आपने ठीक की। 90% परिवारों में क्रोध की अग्नि जलती हैं। वो
सोच सकते हैं की हमारे घर में क्रोध ही क्रोध हैं, तो क्या ये अच्छा हैं? क्रोध से न प्रेम रहता हैं, एक
दुसरे के प्रति गलत शब्द बोलते जाते हैं, नफरत रहती हैं, घर के वातावरण में अशांति छायी रहती हैं।
एक उद्धारण दूँ में बहुत अच्छा- एक माता मेरे पास आई कि “मेरे पति को बहुत क्रोध आता हैं”। मैंने
पूछा कितना आता हैं? कहा, “अभी अभी की बात हैं मैंने भोजन बनाया और उन्हें कुछ पसंद नहीं आया
होगा तो थोड़ा सा खाया और थाली उठाकर मेरे ऊपर ही फेंक दी। मेरे कपड़े भी खराब हो गए और इतना
गुस्सा किया – क्या भोजन बनाना भी नहीं जानती, हम इतना मेहनत करके आते हैं, ये सुख भी नहीं
मिलता हैं और भूखे ही चले गए। सारा दिन परेशान रहे, शाम को आये, मन उदास था, चहरे पर निराशा
झलकी हुई थी।” देखिये ऐसा दृश्य (scene) इतना क्रोध कि भोजन का भी सम्मान नहीं। कोई चीज़
अच्छी नहीं बनी, रोटी मान लो कच्ची रह गयी, जल गयी तो कहा जा सकता था “ध्यान से बनाओ जरा”
। प्यार में बहुत शक्ति हैं। तो लोगों ने जो मान लिया हैं कि क्रोध के बिना काम नहीं चलेगा, मानना ये
चाहिए कि क्रोध ‘से’ काम नहीं चलेगा। क्रोध काम को बिगाड़ने वाला हैं। क्रोध सब कुछ नष्ट कर देने
वाला हैं। क्रोध ने किसी का घर उजाड़ दिया हैं। क्रोध ने किसी को डाकू बना दिया, किसी को चोर बना
दिया, किसी को भ्रष्ट कर दिया हैं, बहुतो को बीमार कर दिया हैं। तो वास्तव में क्रोध तो मनुष्य का शत्रु
ही हैं और जब तक हम इसे अपना शत्रु नहीं मानेंगे तब तक हम इसे विदाई भी नहीं देंगे, अपने घर में
बैठाए रखेंगे। घर घर में इसके कारण अशांति हो रही हैं तो वास्तव में ये बुरी चीज़ हैं। मनुष्य को अपने
ये संकल्प रख ही लेना चाहिए कि हमें तो अपने घर में प्रेम, शान्ति फैलानी हैं। मुझे ऐसे घर भी मिलते
हैं जहाँ जाकर मैं पूछता हूँ –‘घर में सुख-शान्ति हैं?’ उनके शब्द से ही लगता हैं कि उनके घर में सब
कुछ हैं। तीन बच्चे हैं, स्त्री- पुरुष हैं, बुजुर्ग माँ- बाप भी हैं, सब मिलकर प्यार से रहते हैं जैसे स्वर्ग हैं।
जिस घर में क्रोध की अग्नि जलती हो या मार – पीट होती रहती हो, एक दुसरे पर शोउटिंग (shouting)
चलती हो। देखो, जब क्रोध में वश हुआ व्यक्ति बहार जाएगा या किसी पर क्रोध किया गया वो बुरे वचन
सुनकर बहार गया तो कैसी मनोस्थिति रहती हैं? वो अपने ऑफिस (office) में जाएगा। ऑफिस (office)
में साथी होंगे उसके। उसका मूड ऑफ (mood off) होगा पहले, काम करने को मन नहीं करेगा। बैंक में हैं
वो, ग्राहक आ रहे हैं, उनसे भी बुरा व्यवहार करेगा। तो क्रोध की चैन (chain) ऐसी हैं जो अनेको पर
इसका प्रभाव पड़ता हैं। इसलिए इसको अपना महाशत्रु समझ कर छोड़ना चाहिए नहीं तो भगवान् भला ये
क्यूँ कहते कि ये नर्क के द्वार हैं।
रुपेश जी: भ्राताजी, कई बार जो ये मानसिकता की बात हमलोग कर रहे हैं कि क्रोध के बिना काम नहीं
चलेगा। बड़ा बॉस (boss) हैं और उनके निचे जो भी काम करते हैं उनके ऊपर भी यही दबाव रखते हैं कि
क्रोध किया काम तुरंत ही बन गया, या मालिक का दबाव नौकर के ऊपर तो कई बार ये देखा भी जाता
हैं कि एक बार यदि गुस्सा कर दिया जाता हैं तो सामने वाला व्यक्ति जल्दी काम करता हैं और अगर
हम नहीं करते तो एक प्रकार से वो जैसे लूज (loose) हो जाते हैं। बैलेंस (balance) कैसे रखा जाए कि
मन हमारा शांत भी रहे और काम हमारा बन जाए?
सूर्य भाईजी: आज कल लोग भी ऐसे हो गए हैं निठ्ठले जैसे, नैतिकता के प्रति जागरूक नहीं रहते कि
आदत पड़ गयी हैं जब तक सुने नहीं तब तक काम नहीं करना। लेकिन इसे चेंज (change) कर सकते हैं
अपने स्पिरिचुअल पावर्स (spiritual powers) से, अगर हमारे अन्दर स्वमान बहुत होगी, अगर हमारे अन्दर
प्यार और अपने पन की शक्ति बहुत होगी। मान लो एक मालिक हैं, उसके साथ दस लोग काम करते
हैं। मालिक का नाता दसो के साथ ऐसा हैं जैसे फैमिली मेम्बर (family member) हैं, सब उसके बच्चे हैं,
वो उनके समस्यायों पर ध्यान रखते हैं, वो उनकी बातें सुनते हैं, उनको गिफ्ट (gift) देते हैं, सैलरी बहुत
अच्छी दे रहे हैं, प्यार करते हैं तो आप देखेंगे कि दस के दस उन्हें भी खुश रखेंगे, अच्छा काम करेंगे।
क्रोध का ऐसा होता हैं कि दबाव में काम तो कर लिया लेकिन फिर बिगाड़ दिया। कुछ क्रोध के वश या
दबाव में रहकर गलत काम भी करेंगे। इसलिए सत्य हैं कि कुछ लोगों की आदत हैं, उन्हें थोड़ा बोल भी
दिया जाये, थोड़ा दिखा भी दिया जाए लेकिन जैसे मैंने कहा कि इस क्रोध की अग्नि को दिल चित्त में न
लिया जाए, यानी ऐसा न हो हमारा क्रोध हमारी शान्ति को हमसे छीन ले कि काम तो हमने करा लिया
लेकिन शान्ति खो कर। वो अच्छा नहीं हैं।
रुपेश जी: बिल्कुल, शान्ति हम बनाए रखे और प्रेमपूर्वक यदि कार्य करने की आदत हम डाल दे ये सबसे
सहज हो जाएगा हमारे लिए। कार्य करना और कराना ताकि हम उस क्रोध कि अग्नि में जलकर अपनी
मानसिक शान्ति को खो न दें।
सूर्य भाईजी: बिल्कुल देखिये अपने कर्म क्षेत्र पर हर मनुष्य को अच्छा माहोल बना देना चाहिए, जैसे
दूसरों को अप्रिसिअट (appreciate) करना, उनको एन्करेज (encourage) करना, उनकी फैमिली प्रॉब्लम
(family problem) हैं तो ज़रा सुनना। कहीं न कहीं मदद करना। तो अपनापन का माहोल अगर कर्म क्षेत्र,
ऑफिस (office), बिज़नस सेंटर (business centre) में बनाया जाए तो बहुत अच्छा होगा। न केवल की
काम लेना हैं, शोउटिंग (shouting) करना हैं, “ये करो, वो करो, कल भी तुमने ये नहीं किया, आज भी
नहीं कर रहे हो” – ये नहीं। हम एन्जॉय (enjoy) करें अपने कर्म क्षेत्र को। तो हम अपने कर्म क्षेत्र को
बहुत खुशनुमा बनाए। ये नहीं कि हमें काम काज ही करना हैं। देखो मैं एक दिन, एक बैंक (bank) में
गया। तो एक व्यक्ति ऐसा ऐसा बोल कर सबको खुश रखता था अपने एम्पलाइज (employees) को। तो
सबके अन्दर एक ख़ुशी की लहर छायी रहती थी। मेनेजर (manager) भी आता था, वो भी उसी की तरह
ख़ुशी की मूड (mood) में रहता था तो मैंने देखा उनको न काम करने से थकान हो रही हैं और प्रसन्नता
का एक माहोल हैं। वही व्यक्ति अगर वहाँ दबाव बनाए रखे तो दबाव में काम ज्यादा नहीं होता, सफलता
ज्यादा नहीं मिलती हैं। इसलिए हमेशा ये लक्ष्य रखना चाहिए कि हमें प्रेम से काम लेना चाहिए। प्रेम की
शक्ति क्रोध से सौगुना ज्यादा हैं।
रुपेश जी: बिल्कुल। और ये जो टारगेट (target) होता हैं वो एम्पलाइज (employees) को बता देना चाहिए
कि भई ये टारगेट (target) हैं, इस टारगेट (target) को हम प्यार से मिलकर पूरा करेंगे। दबाव के साथ
ही टारगेट (target) पूरा किया जाए ये कोई जरुरी नहीं हैं।
सूर्य भाईजी: देखिये और एक अच्छी बात मैंने सुना- एक बार हमारे पास एक आई.ए.एस ऑफिसर (I.A.S
Officer) आये। तो युवक थे और फ्रेंड (friend) जैसे बन गए। मैंने उन्हें पूछा कि आखिर आपको क्या
सीखा दिया जाता हैं कि नो मास, एक साल की ट्रेनिंग (training) चलती हैं, आपको इतना अच्छा
अधिकारी बना दिया जाता हैं। कहा – सारी मनोवेज्ञानिको से जुड़े हुए ट्रेनिंग (training) हमें दी जाती हैं।
मैंने कहाँ मुझे भी सुनाओ। तो कहा देखो एक अच्छी चीज़ सीखाई जाती हैं कि मान लो तुम्हारे साथ दस
लोग काम करते हैं तो पहले दो या तीन तो ऐसे होंगे जिनको तुम्हे कुछ सीखाने की जरुरत नहीं। लास्ट
(last) के दो या तीन ऐसे होंगे जिनको कुछ सीखाया नहीं जा सकता। अब बीच के जो चार पांच बचे हैं ये
विकाशशील होंगे जिन्हें बहुत कुछ सीखाया जा सकता हैं तो जो पहले दो तीन हैं उनपे तुम्हे ध्यान देने
की जरुरत नहीं। वो सेल्फ – सफिशियंट (self – sufficient) होंगे। बुद्धिमान हैं, जिम्मेवारी से काम करेंगे।
जो लास्ट (last) के दो तीन हैं उनके पीछे ज्यादा दिमाग खपाने की जरुरत नहीं हैं क्योंकि वो जैसे हैं वैसे
ही रहेंगे। उन्हें स्वीकार कर लो। बाकी जो बीच के बचे हैं, चार – पांच, इन्हें सीखाओ। उनको एन्करेज
(encourage) करो। अप्रिसिअट (appreciate) करो। तो इस प्रकार से बहुत जल्दी ट्रेनिंग (training) दी जाती
हैं। इसलिए हम बहुत हलके रहते हैं। फिर कहा हमें ये सीखा दिया जाता हैं कि तुम्हे बड़े बड़े प्रोजेक्ट्स
(projects) करने होंगे, करोड़ो के , तो हमेशा ये मान कर चलो 5 -7% तो वेस्ट (waste) होता ही हैं। इसमें
तुम्हे परेशान (tensed) होने की कोई जरुरत नहीं हैं। तो हमारे माइंड (mind) को बड़ा ब्रॉड (broad) बना
दिया जाता हैं। हमेशा कर्म क्षेत्र पर हमें ध्यान रखना चाहिए। किसी फैमिली (family) में भी एक व्यक्ति
ऐसा होगा जो गड़बड़ करता होगा। किसी ऑफिस (office) में भी एक दो व्यक्ति ऐसे होंगे जो सबसे मिल
कर नहीं चलेंगे, कहीं न कहीं काम बिगाड़ेंगे, उनको भी साथी- सहयोगी बनाना, प्रेम से उन्हें जीतना,
उनकी योग्यताओं को बढ़ा देना और काम भी उनसे करा लेना। देखो बहुत पहले की बात हैं, मेरे पास
एक लड़का आया। उसके बाप ने मुझे बता दिया कि उसकी बुद्धि थोड़ी कम हैं। इससे काम लेना हैं
तुम्हे। मुझे भी उससे प्यार रहा, भई उसके बाप उसे हमारे पास छोड़कर गया और बेचारे का हम भाग्य
बना दे तो वो भी खुश रहेंगे। हमें भी ये मदद करता हैं। वो बार बार गलती करता था, हम कुछ कहें वो
कुछ और करता था।लेकिन मुझे पता था इसको बुद्धि कम हैं। तो मैं उस पर ज़रा भी इग्नोर (ignore)
नहीं करता था। वही बात दो तीन बार समझाकर जाता था कि ये काम ऐसे करना। तो मैंने देखा कि
उसकी बुद्धि का विकास होता गया। आज वो बहुत अच्छा काम कर रहा हैं। शायद हम गुस्सा करते तो
वो और भी बुद्धू बन जाता। उसकी बुद्धि बिल्कुल नष्ट हो जाती। तो ये एक ऐसी चीज़ हैं जिसमे हमें
अपनी गुड अंडरस्टैंडिंग (good understanding) रखनी चाहिए और इसको फॉलो (follow) करना चाहिए,
क्रोध बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
रुपेश जी: बिल्कुल, ये बात तो सर्वमान्य हैं भ्राताजी। सभी इस चीज़ को स्वीकार करते हैं भई गुस्सा नहीं
करना चाहिए। ये बुरी चीज़ हैं। लेकिन कैसे न करें, ये जो प्रैक्टिकल इम्प्लीमेंटेशन (practical
implementation) की बारी आती हैं वहां व्यक्ति थोड़ा सा ढीला हो जाता हैं। हार खा लेता हैं। क्या किया
जाए? क्या स्पिरिचुअल प्रैक्टिसेज (spiritual practices) हो सकते हैं? गुस्सा आये ही न, आ जाए तो कैसे
इसे कंट्रोल (control) किया जाए कुछ प्रैक्टिसेज (practices) बताईए।
सूर्य भाईजी: हाँ बहुत लोग ये बात कहते हैं, उन्हें अवेयरनेस (awareness) हैं के हम गुस्सा नहीं करेंगे।
उन्हें इसके नुकसानों का पता हैं। वो ये भी जानते हैं कि गुस्सा करने से शब्द कैसे विषेले हो जाते हैं।
फिर वो पच्छ्ताते हैं। रोज़ प्रतिज्ञा करते हैं कि कल हम ये काम नहीं करेंगे, लेकिन फिर फिर हो जाता
हैं। हमने कई सन्यासी महात्मा भी देखें, प्रसिद्ध सन्यासी भी हुए जो बहुत गुस्सा करते थे।
रुपेश जी: दर्वासा ऋषि तो बहुत प्रसिद्ध हैं।
सूर्य भाईजी: अरे, स्वयं विवेकानंद जो युग पुरुष हुए, जब वो नरेन्द्र नाम का बच्चा था उनको बड़ा गुस्सा
आता था। माँ क्या करती थी, एक बाल्टी पानी उनके ऊपर डाल देते थे। तो लोगों को गुस्सा तो आता
हैं। वही कामनाये क्रोध को जन्म देती हैं। परन्तु हमने इसमें ये देखा क्योंकि मैंने भी इसपर बहुत अच्छी
प्रैक्टिस (practice) की, कुछ अभ्यास किये जो मैं अपने दर्शको को बताना चाहता हूँ। प्रारंभ में मैं जब
आया समर्पित होकर 45 साल पहले, तो मैंने पाया मुझे गुस्सा बहुत तो नहीं आता था, पर कहीं कहीं
अगर ज़रा सा आ जाए तो लम्बे समय तक एकाग्रता को नष्ट कर देता था। खिन्नता से भर जाता था
और हम योग लगाना चाहे तो एकाग्र नहीं हो पाते थे। दूसरा एक अनुभव, थोड़ा सा भी किसी से कहा
सुनी हो गयी तो मुख से जो गलत शब्द बोलते थे, फिर पच्छाताप होता था। फिर इच्छा होती थी भई
उसको किसी तरह से प्यार दे जाकर। कन्विंस (convince) करें, अपनापन दें, क्षमा मांगे, बहुत बड़ी गलती
हो गयी। तो इन दो चीज़ के कारण मैंने संकल्प किया कि नहीं मुझे क्रोध को पूरी तरह से समाप्त
करना हैं। तो एक चीज़ मैंने नोट (note) की कि मनुष्य को जब क्रोध आता हैं वो बहस करता हैं। उसने
ये कहा, हमने ये कहा, फिर हमने ये कहा उसने ये कहा और सिद्ध करता हैं कि मैंने ठीक किया। तो
मैंने सीखा और जीवन में एक बहुत अच्छा नियम बनाया कि जवाब नहीं देना। किसी ने कुछ कहा नो
प्रॉब्लम (no problem), चाहे हमारी गलती नहीं भी हैं। कई लोग सोचते हैं ये तुम्हारी गलती नहीं हैं और
तुमने येस (yes) कह दिया तो लोग तो तुम्हारे ऊपर हावी रहेंगे। लेकिन मैं देखता था कि सत्य तो सत्य
ही हैं। उस क्षण को अवॉयड (avoid) करने के लिए, पार करने के लिए हमें अपने आप को शांत कर लेना
चाहिए। तो मैं बहस नहीं करता था तो बात ख़त्म हो जाती थी। अपनी सत्य बात कहनी भी हैं तो थोड़ा
बाद में कहना हैं। उन दिनों में मैंने अपने जीवन में बहुत अच्छी प्रैक्टिस (practice) की- मेरा लक्ष्य था
नो रिएक्शन (no reaction) । मनुष्य इम्मिडीयट रियेक्ट (immediate react) करता हैं, इसके कारण उसका
गुस्सा बढ़ जाता हैं। मैंने प्रैक्टिस (practice) किया कि मैं बात को धैर्य से सुनूंगा, दस सेकंड (second) के
बाद उत्तर दूंगा, इम्मिडीयटली (immediately) नहीं। दस सेकंड (second) से फिर आधा मिनट, फिर एक
मिनट। मुझे इसमें बहुत ज्यादा मदद मिल गयी। मैंने अपने क्रोध को जीतने के लिए पांच वर्ष तक बहुत
अच्छा अभ्यास किया। मेरा ये लक्ष्य था कि मन में भी ज़रा क्रोध न आये। एक बार की बात हैं, मैं
अपना सत्य अनुभव शेयर (true experience share) करना चाहूँगा। किसी से मेरा क्रोध हो गया, झगड़ा हो
गया। ज्यादा देर क लिए झगड़ा नहीं था लेकिन मैंने उसे कुछ गलत शब्द बोल दिया। जब मेरे शब्द
उसने सुना, तो वो तो जैसे डेड (dead) हो गया। मुझे फील (feel) हुआ, बहुत बुरी बात हो गयी। वो ऐसा
हो गया कि मतलब आगे कुछ भी बोल नहीं सका। जैसे कोई व्यक्ति बहरा हो जाए बिल्कुल डेड (dead)
हो गया। इतना गहरा असर कर गया। मुझे बहुत फील (feel) हुआ कि भई ये तो बहुत बड़ी गलती हो
गयी। तो थोड़ी देर के बाद मैं उसके पास गया, प्यार किया, उससे माफ़ी मांगी। लेकिन मैंने देखा कि
उसपर जो गहरा असर हुआ था वो निकल नहीं रहा था। रात दस बजे की बात थी। उसे बहुत ज्यादा
गुस्सा आता था और उसके गुस्से का प्रभाव मेरे पर भी आ गया। तो जब बाबा एक दिन आये, मैंने उन्हें
मेरी ये गलती बतायी क्योंकि मेरा मनन खा रहा था, गिल्टी फीलिंग (guilty feeling) हो रही थी। बाबा मेरे
से ये गलती हो गयी। अब मैंने संकल्प तो कर लिया कि मैं आगे से ऐसा नहीं करूँगा, फिर भी मैं अपनी
गलती आप को बता रहा हूँ। आप कुछ बताये मुझे। तो बाबा ने कहा – “देखो आपको बात ही तो कहनी
हैं न, अवश्य कहनी चाहिए। कोई व्यक्ति गलत काम कर रहा हैं उसे बात तो अवश्य कहनी चाहिए।
शिक्षा भी देनी होती हैं, तो देनी चाहिए। पर जो बात डांट से कही गयी वो प्रेम से भी तो कही जा सकती
हैं।” बस बाबा का ये मुझे कहना मेरे लिए वरदान बन गया और मुझे याद हैं वो दिन मेरे क्रोध का लास्ट
(last) दिन था। उसके बाद वो विदाई ले गया। बाबा का जैसे आशीर्वाद मिल गया, दुआए भी मिल गयी।
इतनी अच्छी रेअलायिजेशन (realization) मिल गयी कि मुझे लगा, कुछ भी हो जाए, मैं क्रोध नहीं
करूँगा। क्योंकि मुझे ये आभास हुआ कि मेरे मुख से जो वचन निकल गए वो सत्य होंगे और वो तो
उसके लिए बहुत अकल्याणकारी हो जाएगा। और सचमुच मैंने आगे चलकर देखा वो मेरे वचन सत्य हो
गए थे। तब मुझे याद आया कि कितनी बड़ी बात मेरे मुख से निकल गयी थी। मुझे कभी नहीं निकालना
चाहिए था। तो एक रेअलायिजेशन पॉवर (realization power) और अपने से प्रतिज्ञा कर लेना अपने से
मुझे बहुत अच्छी मदद मिली। लेकिन मैं ये जोड़ना चाहूँगा जो प्रश्न था कि भई मनुष्य चाहता तो हैं वो
क्रोध नहीं करें फिर भी वो कर लेता हैं। वो जैसे अपने इमोशंस (emotions) के अधीन हो जाता हैं। तो
इससे जो मैंने पाया था उन दिनों, मैंने सोचा मुझे अपने अन्दर बहुत अच्छा ज्ञान का बल भरना हैं।
यानी सुन्दर विचार। विचारों में बहुत शक्ति हैं न। मैंने बाबा के महावाक्यों की बहुत स्टडी (study) कर
ली और ये लक्ष्य रखा कि मन में व्यर्थ संकल्प न चले। तो मैं पांच बार बाबा के महावाक्य पढ़ता था।
उससे जो सुन्दर बातें मिलती थी उस पर कई घंटो तक इफ़ेक्ट (effect) रहता था। दूसरा, मैंने अपने आप
को बहुत अच्छे संकल्प दिए कि, ‘हे आत्मा तू तो बहुत पीसफुल (peaceful) हैं, क्रोध युक्त नहीं।’ कही भी
ये नहीं कहा गया कि आत्मा क्रोध युक्त हैं। शांत हैं। तो बहुत अच्छा अभ्यास मैं करने लगा – “मैं
आत्मा यहाँ हूँ, मुझसे शान्ति की किरणे निकल रही हैं। मैं तो पीसफुल (peaceful) हूँ।” फिर योग अभ्यास
भी बहुत अच्छा किया और उस पर अटेंशन (attention) बहुत अच्छा रखा। शुरू में ये होता था अन्दर
गुस्सा आता था बहार नहीं। तो बहार वाले पर कंट्रोल (control) हो गया, लेकिन अन्दर तो आता था।
मुझे ये था कि नहीं अन्दर आना भी गलत हैं। उससे भी तो हमारी शक्तियां जल जाती हैं। भले ही हम
उसे दबा दे। बहार वाले लोग देखेंगे इन्हें गुस्सा नहीं आता हैं, लेकिन हमे तो पता हैं कि हमे आता हैं।
तो मैंने उसपर धीरे धीरे बहुत अच्छा अभ्यास किया। अपने को बहुत लाइट (light) किया। दुसरो के लिए
अपने मनन में शुभ भावनाए रखी। दुसरो को अंडरस्टैंड (understand) किया। अंडरस्टैंडिंग
(understanding) की बहुत जरुरत हैं। भई इस व्यक्ति का कार्य करने का स्टाइल (style) यही हैं। इस
व्यक्ति से हमे काम लेना हैं तो इसे हमे तीन बार अच्छी तरह से समझाना पड़ेगा। जैसे एक उद्धारण-
काम होता था, थक कर सो रहा हैं। उसे उठाया तो फिर करवट बदल कर सो गया। तो मैं फिर जाता था
दोबारा प्यार से उठाता था। उसमे से एक दो आ गए, फिर सो गए तो मैं फिर आ जाता था। तो मुझे था
कि क्रोध करने से तो अच्छा हैं इन्हें प्यार से उठाये।
रुपेश जी: और इससे वो ज्यादा महसूस करेंगे कि ये हमारे लिए कितना कर रहे हैं। तो शायद दुसरे दिन,
तीसरे दिन से उनकी ये जो गलती हैं रिअलायिज़ (realize) होगा।
सूर्य भाईजी: यही हुआ, वो आपे ही आने लगे। फिर मैं एक- आध बारी उठता हूँ तो वो भी कभी कभी
और वो दौड़े चले आते थे। तो ये अटेंशन (attention) दिया, शुभ भावनाए रखी। और एक लक्ष्य रखा कि
हमें इन सबको आगे बढ़ाना हैं। इनकी कमियों को नज़रंदाज़ करना हैं। हमें इन्हें सहयोग (co-operation)
देना हैं। हम बड़े हैं, हम महान हैं, तो हमसे ये गुड फीलिंग (good feeling) जाए। हमारे बोल भी इनके
लिए बड़े कल्याणकारी हो। तो तब से मैंने ये सीख लिया था और धीरे धीरे ये जो अन्दर का क्रोध था,
वो भी शांत हो गया। फिर पूरा शांत हो गया।
रुपेश जी: आपने सम्पूर्ण क्रोध को जीतने में भ्राताजी कितना समय लिया?
सूर्य भाईजी: इसलिए मैंने बताया, मैंने पांच साल इस पर बहुत अभ्यास किया था। लेकिन पहले ही दिन
से मुझे विजय होने लगी थी। ये नहीं पांच साल पुरे लगे। दिनों दिन उसकी जो सूक्ष्मता हैं वो समझ में
आती गयी, कहाँ क्रोध आ रहा हैं। मेरा लक्ष्य था, ये ओब्सर्व (observe) करना कि मुझे कहाँ क्रोध आता
हैं। अन्दर में, मन में भी अगर सूक्ष्म रीति से आता हैं, तो किस कारण से आता हैं। मैं उस कारण को
ज्ञान के बल से हटाता था, या रिप्लेस (replace) करता था एक ज्ञान की सुन्दर पॉइंट (point) से। तो इस
तरह धीरे धीरे क्रोध के सूक्ष्म अंश भी समाप्त हो गए।
रुपेश जी: तो हमारे दर्शक भी भ्राता जी यही करे जिनको गुस्सा आ रहा हैं। अच्छी तरह ओब्सर्व
(observe) करें किस कारण से गुस्सा आ रहा हैं, और उसके स्थान पर अच्छे विचार रखें। आपने भ्राताजी
गहन तपस्या भी की, योग भी किया, तो हमारे दर्शको के लिए आप क्या सज्जेस्ट (suggest) करेंगे? क्या
इसके लिए वास्तव में मैडिटेशन (meditation) परम आवश्यक हैं?
सूर्य भाईजी: एक तो यही कि इसको हम एक रिसर्च पॉइंट (research point) बना ले कि भई क्रोध को कैसे
जीता जाए। अपने से शुरू करें कि ये कारण, ये कारण जैसे कोई मुझे बुरा बोलता हैं, कोई मेरी ग्लानी
करता हैं, कही असफलता होती हैं, कही दूसरा व्यक्ति सहयोग (co-operate) नहीं करता हैं। कहाँ क्रोध की
मार्जिन (margin) हैं आने की, उसको ज्ञान की शक्ति से हटायेंगे। लेकिन मैडिटेशन (meditation) बहुत
आवश्यक हैं क्योंकि हम अपने भावनाओं को, इमोशन (emotion) को तब तक कंट्रोल (control) नहीं कर
सकते जब तक हमारे पास ईश्वरीय शक्ति न हो। तो मैं अपने दर्शको को अभ्यास के लिए कहूँगा, ज्यादा
नहीं। आधा – आधा घंटा वो स्पेयर (spare) करें और विशेष योग अभ्यास करें अपने चित्त को शांत करने
के लिए। तो तरीका यही अपनाएंगे, मैं आत्मा शांत स्वरुप हूँ, और शान्ति के सागर बाबा से शांति की
किरणे मुझ पर आ रही हैं। बस ये योग अभ्यास करते चले और मन में शुद्ध संकल्प करें कि मुझे क्रोध
से मुक्त होना हैं। तो क्रोध की जो अग्नि हैं, उसे ये योग की अग्नि शीतल करती हैं।
रुपेश जी: तो ये योग का अभ्यास भ्राताजी दिन में कभी भी किया जा सकता हैं? या आप कोई टाइम
सज्जेस्ट (time suggest) करेंगे?
सूर्य भाईजी: देखिये, अगर सवेरे करें तो बेटर (better) नहीं तो इवनिंग (evening) में कर सकते हैं, छ:,
सात, साढ़े सात, ये समय बहुत सुन्दर हैं। जब सूरज ढलता हैं, प्रकृति शांत होती हैं, तो मनुष्य का चित्त
शांत होता हैं या सूर्योदय से पहले। पर अगर किसी को समय नहीं मिलता तो सात बजे, आठ बजे ये
टाइम भी अच्छा हैं योग करने का। इस टाइम पर अच्छा योग करें और इस लक्ष्य को रख लें कि मुझे
इस क्रोध की अग्नि को शांत करना हैं।
रुपेश जी: भ्राताजी, ये तो बहुत सुन्दर लक्ष्य हो गया लेकिन एक बात और विशेष कर कि जब अचानक
एक बार आवेग आ जाता हैं। कोई ऐसी घटना घट जाती हैं। हमने लक्ष्य तो बहुत अच्छा रखा हुआ हैं
कि हमें ये नहीं करना हैं लेकिन जब कोई ऐसी घटना आ गयी और अचानक ये गुस्सा आ गया, ऐसे में
कैसे और क्या किया जाए?
सूर्य भाईजी: ये परिस्थिति बहुतों के सामने आती हैं। ये गलत नहीं हैं। होता हैं ऐसा! किसी ने काम ही
ऐसा कर दिया की अच्छे अच्छे मनुष्य को भी गुस्सा आ जाए।
रुपेश जी: अब किसी ने बहुत कड़वा बोल दिया। गांधी जी ने तो कह दिया कि कोई एक गाल में थप्पड़
मारे तो दूसरा गाल भी आगे कर देना चाहिए। लेकिन ये प्रैक्टिकल (practical) नहीं हो पाता।
सूर्य भाईजी: ये कब तक करेंगे गाल आगे? गाल लाल लाल हो जायेगा। मुश्किल हो जायेगी। ऐसे में,
एक तो हमारे लम्बे काल का अभ्यास काम करेगा और अगर ऐसे में क्रोध आ भी जाए, तो हम ये लक्ष्य
रखे कि हम उसे जल्दी से जल्दी कंट्रोल (control) कर लें। ऐसा न हो कि हम आपा खो बैठे और एक
नयी गलती हो जाए। एक ने तो गलती कर दी पर दूसरा व्यक्ति बहुत ज्यादा ही गलत करें। जैसे होता
हैं संसार में। एक व्यक्ति बाहर में आया, बहुत भूखा, उसे भोजन चाहिए। भोजन आने में देर हो रही हैं
और अब उससे सहन नहीं हो रहा हैं। गुस्सा आया। गुस्सा आने पर कुछ भी कर बैठता हैं तो वो बहुत
खतरनाक होता हैं। मैंने पहले भी सुनाई थी एक व्यक्ति जेल (jail) में मिला, रो रहा था। “भई क्या हुआ,
क्यों रो रहे हो? कहा मेरे क्षणिक क्रोध ने मुझे जेल में बंद कर दिया। खेतो से आया था, भूख बहुत लगी
थी, पत्नी को कहा – जल्दी खाना बना दो। वो बना रही थी। फिर मैं गया – बहुत भूख लगी हैं, जल्दी
बनाओ न। उसने भी गुस्से में कुछ बोल दिया। वो भी थकी हुई थी। आखिर में उसने घांस काटने वाला
होता हैं, गंडासा कहते हैं, उठाया और उसके हाथ कांट दिए, दोनों। अब देखो दोनों हाथ उसके कटे, मैं
खाना भी नहीं खा सका और तुरंत जेल (jail) में मुझे आना पड़ा।” पत्नी के दोनों हाथ कटे, न घर का
काम कर सकती न बच्चो को संभाल सकती, न कुछ कर सकती। तो इसलिए ये सुनते ही हमने बहुत
अच्छा एक महावाक्य लिखा और मैं अपने दर्शको को कहूँगा अपने घर में लिख कर रखें या डायरी
(diary) पर। ‘तुम्हारे एक सेकंड (second) का क्रोध, तुम्हारे उज्जवल भविष्य को नष्ट कर सकता हैं। तो
ये जो हमारे इमोशन (emotions) हैं, भावनाए हैं कभी कभी हमे अति क्रोधित कर देती हैं, इसको ऐसी
चीज़े दबायेंगी और हम इतना ज्यादा रियेक्ट (react) भी न कर दें तुरंत, हम कोई ऐसा काम न कर बैठे
कि जीवन भर पछताते रहे और जीवन में हमें जो कुछ अच्छे काम करने थे उसका भी मौका हमें न
मिलें।
रुपेश जी: बिल्कुल। तो हम तुरंत रियेक्ट (react) न करें, थोड़ा समय ले, जिसको कई बार लोग कहते हैं
कि गुस्सा आये तो उलटी गिनती शुरू कर दो या गहरी गहरी श्वास ले लो और आप ने तो बहुत सुन्दर
योग के अभ्यास बताये। यदि हम सभी इन अभ्यासों को करते हैं तो क्रोध पर निश्चित रूप से विजय
प्राप्त कर सकेंगे। भ्राता जी आपको आज के तमाम जानकारी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।
मित्रो, क्रोध को किसी भी तरह से जायज़ नहीं ठहराया जा सकता। काँटा तो काँटा ही हैं। कही पर भी रहे
चुभेगा, तकलीफ देगा, और कष्ट ही प्रदान करेगा, चाहे स्वयं को चाहे दूसरों को। इसलिए क्रोध को जीवन
से दूर करने का संकल्प अवश्य लें। आज बहुत सुन्दर जानकारी भ्राताजी ने हमें दी हैं और हमारे ऋषि
मुनियों ने भी इसके लिए बहुत तप किया हैं। यदि हम गहन तप नहीं भी करना चाहते, कम से कम
आधे घंटे का समय अपने लिए अवश्य निकाले। और जब कभी भी मन में गुस्सा आये, हम उलटी
गिनती गिनना शुरू कर दे या गहरी श्वास ले लें या उस परम सत्ता जो शांति के सागर हैं, उन्हें याद कर
लें। ‘मेरे पिता शान्ति के सागर हैं, मैं भी शांत स्वरुप हूँ।’ तो ये सुन्दर चिंतन मन को शांत करेगा और
गुस्सा दूर होता चला जाएगा। आपका क्रोध दूर हो, आप शांत स्वरुप बने रहे, यही शुभ कामनाओं के
साथ दीजिये इज़ाज़त। नमस्कार !