Samadhan Episode – 000161 Moral Problems
CONTENTS :
1. आध्यात्मिकता और भोतिकता का संतुलन |
2. मूल्यों से आधारित जीवन |
3. पवित्र धन |
4. आत्म-विश्वास और सफलता |
रुपेश जी — — — — नमस्कार! आदाब! सत् श्री अकाल! मित्रों! स्वागत है आप सभी का
समाधान कार्यक्रम में | मित्रों एक सज्जन व्यक्ति ने अपने पुरे जीवन कड़ी मेहनत
कर के एक करोड़ रूपये इकटठे किये | और जब ये रकम उसके पास इकटठे हो
गये तब उसने सोचा कि अब मैं जीवन का भरपूर आनंद लूँगा, अपने सारे शौक पुरे
करूँगा वो ये सोच ही रहे थे की तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई | जब वो बहार
निकले तो देखा की यमदूत खड़े हुए है, यमदूत ने कहा की – महोदय आपका समय
पूरा हो गया है और अब आपको मेरे साथ चलना है | इस व्यक्ति के पैरों के नीचे
से ज़मीन खिसक गई | उसे लगा की मैंने पुरे जीवन इतने परिश्रम कर के ये
रकम इकटठे की है अब मैं सोच ही रहा था मैं कैसे जीवन का आनंद लूँ और अब
मेरी जाने की बारी आ गयी | उन्होंने बहुत मिन्नत की यमदूत से की उसे कुछ
वक्त दे दे, लेकिन यमदूत नहीं माने उन्होंने कहा की चलो मेरे एक करोड़ में से
पचास लाख रुपया आप ले लो मुझे एक वर्ष का समय दे दो, यमदूत नहीं माने |
उन्होंने कहा की चलो ७५ लाख ले लो मुझे 1 घंटे का वक्त दे दो फिर भी वो नहीं
माने | उन्होंने कहा की चलो अच्छा मेरी सारी दौलत ले लो मुझे कुछ लम्हे तो दे
दो, यमदूत फिर भी नहीं माने | जब यमदूत को नहीं मानता उन्होंने देखा तो वो
फुट-फुट कर रोने लगे, यमदूत को रहम आ गया उन्होंने कहा की चलो मैं तुम्हे
बहुत ज्यादा वक्त तो नहीं दे पाऊंगा लेकिन एक पल मैं तुम्हे देता हूँ, इस एक
पल में तुम जो चाहो वो कर लो | उस एक पल में उस सज्जन व्यक्ति ने एक
पत्र लिखा, एक सन्देश दिया और वो पत्र वो सन्देश आज मेरे हाथ में है | जो
बहुत ही प्रेरक है हम सब के लिए और मैं चाहूँगा की आप सब के साथ मैं उस
पत्र को शेयर (share) करूँ | मित्रों उन्होंने लिखा है – “की जिस किसी को भी यह
सन्देश मिले उससे मैं सिर्फ इतना कहूँगा की वह जीवन भर सिर्फ संपत्ति जोड़ने के
फ़िराक में न रहे, जीवन का एक- एक पल अनमोल है इसे पूरी तरह जीये | मेरे
एक करोड़ भी मेरे लिए कुछ पल नहीं खरीद सके | इसलिए दोस्तों केवल धन के
पीछे भाग कर अपनी जीवन को नष्ट मत कीजिये | मैं इस संसार में क्यों आया
हूँ ? और कैसे में अपने जीवन को सार्थक कर सकता हूँ इस पर जरुर विचार करे
| मेरे विचार से तभी आपको सच्चा सुख और संतोष प्राप्त होगा, आपका शुभ
चिंतक |” सचमुच कितना मार्मिक सन्देश इन्होने हमे दिया है और ये बताया है
की सच्चा सुख , सच्चा संतोष शायद धन में नहीं है लेकिन स्वयं को जानने में है,
सच्चा संतोष जो है वो शायद आत्मबल में है, सच्चा संतोष शायद कही और है
जिसकी ओर हम जीवन भर नहीं देखते है, पैसा ही सब कुछ नहीं है (money is
not everything) शायद ये सन्देश हमे यही कहता है | आएये इस सुन्दर सन्देश के
साथ आज के इस कड़ी की शुरुवात करते है और अभिनन्दन करते है आदरणीय
भ्राताजी का, भ्राताजी आपका बहुत बहुत बहुत स्वागत है ( भ्राता जी — धन्यवाद!
(thank you) ) भ्राताजी ये जो आज सन्देश हम लोगों के पास आया है इस विषय
पर आपकी प्रतिक्रिया चाहूँगा |
बी.के. भ्राता सूर्या जी — — — — — हाँ ! आज संसार में क्योंकि भोतिकता का बोल-
बाला हो गया है तो हर व्यक्ति ये मान बैठा है की पैसा ही सब कुछ है
(money is everything) | धन से सब कुछ खरीदा जा सकता है सुख साधन घर में
जो भी आवश्क चीज़े है,धन से मनुष्य मौज कर सकता है परन्तु आज हम देख
रहे है जैसा हम प्राय लोगों के पत्रों से और मेसेज (message) से देखते है की घर-घर
में समस्या बढ़ती ही जा रही है, संबंधो में कटुता बढ़ती ही जा रही है, बीमारियाँ
बढ़ती ही जा रही है और टेंशन (tension) तो इतनी हो रही है की धनवान व्यक्ति
सो ही नहीं पा रहा ,है खुश नहीं है लोग | तो देखिये जैसा इन्होने लिखा किन धन
से सब कुछ ख़रीदा नहीं जा सकता एक पल वो नहीं खरीद सका, धन से मनुष्य
ख़ुशी नहीं खरीद सकता, धन से शांति नहीं खरीद सकता, वो परिवारों में प्रेम पैदा
नहीं कर सकता धन से | हमने अनेक धनवान देखे अपने बच्चों की ,पति-पत्नी
की, माँ- बाप की सब इच्छाएं पूरी कर देते है धन के बल से लेकिन कोई भी
संतुष्ट नहीं होता है | तो वास्तव में जो मुष्य धन के पीछे भाग रहे है जो
भोतिकता को सर्वस्व मान कर उसमे बहते चले जा रहे है वो बहुत बड़ी गलती कर
रहे है | वो अज्ञान के सागर में डूबते हुए जा रहे है | तो मनुष्यों को हम इस
सन्देश के माध्यम से हम यही चाहेंगे की वो अपने बारे में भी कुछ विचार करे,
जीवन कुछ और भी है | मैं देखता हूँ बहुत लोग धन कमाने में इतने लगे हुए है,
कईयों को तो धन की आवश्यकता होती है बिचारों को परिवर की पालना करनी
पड़ती | महानगरों में लोग जल्दी काम पर चल जाते है १२-१२ घंटे काम करते है,
आने जाने में टाइम (time) जाता है तो उनका जीवन तो कुछ रहता ही नहीं | तो
टेंशन होना ,परिवार की चिंता होना, बच्चों की फिकर होना बड़ा लाजमी सी बात
होती है | मेरे पास आई एक माता मैं उस अनुभव को सब को सुनाना चाहता हूँ,
अभी तीन दिन पहले कि मैने अपने बच्चे की मजदूरी कर के पालना की उसको
B.tech कराया वो अच्छा इंजिनियर (engineer) बन गया | मैंने अपना कुछ नहीं
देखा सम्पूर्ण त्याग किया मैं भूखी रही उसके लिए मेहनत की, रात-दिन काम
किया उसकी शादी करायी | बहु जो घर में आई तो पहला ही उसने जो
कल्याणकारी काम किया मुझे घर से बहार निकाल दिया | बिचारी के आँखों में
आसूं आ गए रोने लगी ,मैंने कहा तुम्हारे बच्चे ने कुछ नहीं कहा ,नहीं वो तो नारी
का गुलाम हो गया है उसने मुझे कहा भी नहीं की एक बार आओ तो सही, कभी
फ़ोन (phone) भी नहीं करता है | मैंने उसे पूछा तुम कहा रहती हो कहा मैं बाबा
के आश्रमों में रहती हूँ, बहने मुझे बहुत प्यार करती है | मैं उसे हँसाया की तुम्हारी
बहु ने तुम्हारा कल्याण का काम कर दिया तुम्हे भगवान के पास भेज दिया चिंता
न करो, तब हंसी और खुश हुई मैंने उसको उमंग दिलाई | तो देखिये मनी
(money) ही सब कुछ नहीं है अब वो भी जब बड़े होंगे धन कमायेंगे तो उन्हें सुख
कहा मिलेगा | जिन्होंने अपनी माँ को ही निकाल दिया, जिन्होंने उसके उस उपकार
का बदला ही नहीं चुकाया, बिचारी को आंसूं दे दिए जीवन भर के लिए उनको क्या
मिलेगा | तो मैं ये कहूँगा की धन के पीछे नहीं अपने लिए भी कुछ समय मनुष्य
को देना चाहिए, आध्यात्मिक उन्नति, आत्मिक उत्थान यही सबके लिए
कल्याणकारी होगा |
रुपेश जी — — — — बिलकुल और वैसे भी हम बचपन में भी पढ़ा करते थे भ्राताजी
की धन से आप अच्छा बिस्तर तो खरीद सकते है लेकिन नींद नहीं खरीद सकते (
भ्राताजी — — नींद नहीं खरीद सकते |) | आप धन से अच्छा दवा तो खरीद सकते
है लेकिन अच्छा स्वास्थ नहीं खरीद सकते है | इसलिए धन के पीछे भाग के इन्हें
हमे नष्ट नहीं करना चाहिए |
बी.के. भ्राता सूर्या जी — — — — — हाँ ! बस मनुष्य यही सोचता है आज वो यही
देखता ही की धनवानों का ही मान है | जो शहर में बड़ा बदमाश व्यक्ति भी था
आज वो धनवान बन गया तो उसको प्रेसिडेंट (president) बना दिया गया | जहाँ
लोग उससे डरते थे उसका मुह नहीं देखना चाहते थे आज उसको प्रेसिडेंट
(president) बना दिया | तो लोगों को इन बातों से एक सन्देश जाता है की धन ही
सब कुछ है जिसके पास धन नहीं है वो बेकार है संसार में | तो इस मान्यता ने
भी मनुष्यों को धन के पीछे भगा दिया है | लेकिन मैं एक सुन्दर सी बात कहूँगा
मैं एक अपने आश्रम में गया वहां एक बहुत अच्छा बोर्ड (board) लगा हुआ था
उसमे सुन्दर स्लोगन (slogan) लिखा हुआ था मैं अपने दर्शकों को सुनाना चाहता हूँ
वो स्लोगन (slogan) था – की धन तुम्हारा गुलाम है, तुम ने ही तो कमाया है न
धन, लेकिन यदि तुम धन के अधीन हो गए, धन को तुमने अपना मालिक बना
दिया तो धन तुम्हे सम्पुर्न्ताया नष्ट कर डालेगा | मुझे बहुत प्रिय लगा, धन तो
हमारा गुलाम है ( रुपेश जी — — बिलकुल ! वैसे भी हम उसे हाथ का मैल ही कहते
है न| ) हम उसके गुलाम हो जाये धन ही धन, धन धनाधन तो मज़ा नहीं आएगा
जीवन में | जीवन में बहुत कुछ चाहिए मनुष्य को रिलैक्सेशन (relaxation) भी
चाहिए अगर उसको सुख भरी नींद ही नहीं आ रही ( रुपेश जी — — तो धन का
काम ही क्या ) मेरे पास आते है तो, ऐसे लोग आज ही सवेरे सवेरे एक माता ८
साल से सोयी ही नहीं चेहरा उसका देखने वाला था | एक दूसरा व्यक्ति जिसके
पास बहुत धन है मुंबई का मैंने उसको कहा क्या हो गया चेहरे पर भई सिकुड़न
क्यों है चमक ही नहीं थी जरा भी बताई अपनी कहानी ऐसे ऐसे हो गयी नींद ही
नहीं आ रही मुझे | तो देखिये मनुष्यों को अगर सुख भरी नींद नहीं आये तो
उसके करोड़ो की संपत्ति उसे ऐसे लगती है जैसे सब बेकार हो गया | तो सचमुच
हमे धन के ओर नहीं अपने स्पिरिचूऐलिटी (spirituality) की ओर आत्म उत्थान की
ओर, जन कल्याण की और, कुछ परोपकार के कार्य करने के लिए, कुछ असहय
मनुष्यों को सहयता देने के कार्यों में भी हमे लगना चाहिए | उससे जो हमे आनंद
आएगा वो शायद धन से बिलकुल नहीं आएगा |
रुपेश जी — — — — बिलकुल और भ्राताजी ये जो आज धन की बात है, धन के पीछे
जो भागने की बात है और साथ ही यें केन प्रकारेण जिस भी प्रकार से धन मिल
सकता है और ये जो धन अर्जित करो ये जो मानसिकता बन गई है | आपको क्या
लगता है कही न कही न कही ये भी एक रिसन (reason) बन रहा है क्या की
लोगों को नींद नहीं आ रही है ?
बी.के. भ्राता सूर्या जी — — — — — क्योंकि धन ईमानदारी से नहीं कमाया जा रहा है
लोगों की ये मान्यता हो गयी है की ईमानदारी से तो धन कमाया ही नहीं जा
सकता ( रुपेश जी — — धन कमाया ही नहीं जा सकता | )| तुम भूखे मरोगे ,
दुकान है अगर तुम ईमानदारी से चलाओगे तो तो तुम भूखे रहोगे | गवर्नमेंट
(government) के इंस्पेक्टर (inspector) आते है उनको देना पड़ता है और टैक्स
(sales tax) वाले आयेंगे सेल्स टैक्स, इनकम टैक्स (sales tax, income tax सबको)
पेट भरना पड़ता है | तो लोगों की ये मान्यता हो गयी है की भई ईमानदारी से तो
तुम खा भी नहीं सकोगे ,परिवार को भोजन भी नहीं दे सकोगे | तो क्या हो रहा है
की धन कमाने की पीछे गलत नीति अपनायी जा रही है | कही न कही पाप हो
रहा है मनुष्य बुरा सोच रहा है | और देखिये मनुष्य बुरा सोचेगा नेगेटिव (negative)
सोचेगा, बुरा सोचेगा, पाप का सोचेगा तो उसके रिवर्स डबल (reverse double) हो
कर उसके अन्दर आ जायेगा जो उसके सुख चैन को छिनेगा और इसी के कारण
मनुष्य को नींद की प्रॉब्लम (problem) आ रही है |
रुपेश जी — — — — लेकिन भ्राताजी एक बात है की यदि पूरी सिस्टम (system) में
जैसे आपने कहा की भई फलाना आएगा मुझे उसे भी देना है, फलाना आएगा उसे
भी मुझे देना है, जब सबको देना ही पड़ रहा है तो फिर जब सिस्टम (system) में
ही ये बात आ गयी तो ऐसे में फिर ईमानदारी से धन अर्जित करना ये तो बहुत
कठिन काम हो जाता है |
बी.के. भ्राता सूर्या जी — — — — — बिलकुल कठिन काम होगा मुझे दुकान वाले,
बिज़नस (business) वाले मिलते है बात करते है बिचारे खुल के की हम चाहते है
ईमानदारी से हम काम करे पर आज ही हमारे पास इंस्पेक्टर आया कहा मेरी
लड़की की शादी है दस हजार देना पड़ेगा आपको | अब क्या करे एक लड़की की
शादी सोचते है मदद भी करे और फिर वो सेल्स टैक्स इंस्पेक्टर (sales tax
inspector) है और वो हमारी दुकान पर कुछ भी गड़बड़ कर सकता है | तो हमने
चुपचाप दे दिए बिचारे को | कहा ऐसा बहुत होता रहता है अब दस हजार कमाने
में शायद हमे शायद पांच दिन लगे | तो मनुष्य ये जो हमारा सिस्टम (system)
बिगड़ गया है न टोटल एक ऐसी चीज़ बन गयी है मनुष्य के सामने की उसमे
नेतिकता और धर्म ईमान ये सब बहुत जो पीछे जो छुट गए है | इसमें कही न
कही धन के प्रति मनुष्य का लोभ जरुर बढ़ाया है जिम्मेदार बहुत सारी चीज़े है |
मनुष्य की केवल मानसिकता ही नहीं उसकी ये सब जो रेस्पोंसिबिल्टी
(responsilbilty) हो गयी इनको रेस्पोंसिबिल्टी (responsilbilty) कहे या जो उसे
परवश करना पड़ता है उसके लिए भी उसे धन के पीछे भागना पड़ रहा है | लेकिन
मैं इसमें जोडूंगा अगर हम अपनी स्पिरिचुअल पॉवर (spiritual power) को बढ़ा ले
तो ये बहुत सारी चीजों को सामना हमे करना नहीं पड़ेगा सहेज भाव से हमारा
जीवन चलेगा | और जहाँ एक इंस्पेक्टर (inspector) दस हजार मांग रहा है प्यार
से और अपने स्वमान के प्रभाव से जब हम उसे बात करेंगे तो वो दो हजार में ही
सन्तुष्ट हो जायेगा और हमे कही न कही रिलैक्सेशन (relaxation) मिल जाएगी |
रुपेश जी — — — — तो मतलब हमे देना है ?
बी.के. भ्राता सूर्या जी — — — — — देखिये अब क्या करे संसार देने का ही हो गया है
हम भी तो कहते है न दो सबको दाता बन जाओ ( रुपेश जी — — लेकिन अच्छे
ढंग से देना, भ्राताजी ये तो बुरे ढंग से देना हो गया ) अगर बिलकुल नहीं देंगे तो
उन्हें कष्ट बहुत होगा | अब देखिये ओफ्फिसस (offices) में लोग चक्कर काटते
रहते है अपने किसी काम के लिए, अब तीन मास वो चक्कर काट रहे है | अब
उन्हें देना था वहां दो हज़ार लेकिन तीन मास चक्कर काटे एक हज़ार तो उनका
आने जाने में ही खर्च हो गया और जो टाइम (time) लगा उसकी किमत तो शायद
लाखों रूपये हो | देखिये मनुष्य सोचता है दे कर ही काम करो न क्यों इस झंझट
में जा रहे हो | तो ये सब जो हमारी सरकारी नीतियां बन गयी है और एक जो
सिस्टम (system) बन गया है इसका कही न कही दोष है और ठीक तो होगा ही
एक न एक दिन |
रुपेश जी — — — — मतलब इतना ज्यादा मूल्यों से युक्त बनाऊ की मैं एक शुरुवात
करूँ क्योंकि हमेशा शुरुवात की हम बात करते आये है की एक व्यक्ति से होती है
और फिर परिवर्तन आना शुरू होता है |
बी.के. भ्राता सूर्या जी — — — — — हमारे यहाँ कई लोग है ऐसे आने वाले जिन्होंने
अपना ऐसा नियम बनाया की न हम किसी को देंगे न किसी से लेंगे | पहला
उन्होंने किया हम किसी से लेंगे नहीं तो उनमे एक मोरल पॉवर (moral power)
आ गई है | फिर जो देने की बात है वो सहेज हो गया काम | और उन्होंने अपनी
इस मोरालिटी (morality) से अपनी नेतिकता से समझोता नहीं किया, कष्ट तो ऐसे
लोगों को होता है क्योंकि भिन्न-भिन्न डिपार्टमेंट (department) में जो बिच – बिच
में ऑफिसर्स (officers) होते है कोई भी तो टॉप (top) का नहीं होगा बीच के ही
होंगे सब तब उन्हें ऊपर वाले भी कष्ट देंगे नीचे वाले भी कष्ट देंगे |
रुपेश जी — — — — लेकिन भ्राताजी आहुति तो किसी न किसी को तो देने ही होगी |
यदि हम एक नए सिस्टम (system) की शुरुवात करते है एक नए धर्म की शुरुवात
करते है तो बहुत सारे बलिदान देने पड़ते है | लेकिन उसके पश्चात् आने वाली जो
सम्पति होती है वो तो सुखी होती है |
बी.के. भ्राता सूर्या जी — — — — — इसलिए हम अपने अन्दर पहले स्पिरिचुअल पॉवर
(spiritual power) बढ़ाये फिर न लेने का संकल्प करे | तो हम न लेने का संकल्प
करेंगे तो भले ही धन का आभाव महसूस होगा दुसरे लोग साहूकार बन जायेंगे हम
पीछे रह जायेंगे लेकिन जो ईश्वरीय खजाने है सुख शांति के जो खजाने है वो
हमारे पास भरपूर होगा | बच्चे चरित्रवान बनेंगे, सब हेल्थी (healthy) रहेंगे क्योंकि
ऐसा पैसा जब घर में आता है तो उससे हेल्थ (health) बिगड़ती है लोगों की उससे
जो अन्न खायेंगे वो स्वास्थ नहीं रखेगा मनुष्य को वो बीमार करेगा, बच्चे
बुद्धिमान चरित्रवान नहीं बनेंगे वो कष्टदाई बन जायेंगे | तो जब मनुष्य इस चीज़
को रियलाइज़ (realize) कर लेता है और कुछ लोग इस चीज़ को अपना ले आपने
बिलकुल ठीक कहा थोड़े-थोड़े एक परसेंट (percent) भी लोग इसको अपनाने लगे
तो धीरे धीरे ये परसेंट (percent) बढ़ जाएगी | और ये लेने और देने का और ये
जो गलत तरीके से धन कमाने का केवल लेने की बात नहीं हर फील्ड (field) में
चाहए बिज़नस (business) हों, इंडस्ट्री (industry) हो कोई छोटा मोटा भी काम भी
हो एक व्यक्ति गेट पर भी खड़ा है वो भी लेता है अन्दर जाने वालों से, ट्रक
(truck) गुज़र रहे है वो भी लेता है | भाई सभी ही ले रहे है तो हम भी क्यों न
बहेती गंगा में हाथ धो ले ( रुपेश जी — — – वही बात है भ्राताजी ऊपर से लेकर
नीचे तक पुरे सिस्टम (system) में यही बात आगई ) लेकिन एक परसेंट (percent)
लोग भी इसको अवॉयड (avoid) करेंगे तो धीरे धीरे ये अच्छी चीज़ बढ़ती जाएगी |
रुपेश जी — — — — बिलकुल हमारी ये कामना है भ्राताजी मुझे नहीं लगता कोई भी
व्यक्ति देने या लेने से खुश होता है | जो दे रहा है बिचारा दुखी हो कर के दे रहा
है अच्छा जो ले रहा है उसे भी कही न कही देना है | तो जब आप दुखी हो रहे है
तो क्यों न इस सिस्टम (system) में थोड़ा सा परिवर्तन लाया जाये |
बी.के. भ्राता सूर्या जी — — — — — हाँ नहीं जो ले भी रहा है वो वास्तव में आंतरिक
रूप से’ खुश नहीं है ( रुपेश जी — — – उसे अन्दर डर रहेगा की मैं कही पकड़ा न
जाऊं | ) उसे कही डर है और कही चीज़े क्योंकि आत्मा की जो रियल कान्शस्निस
(real consciousness) है वो तो अलाउ (allow) नहीं कर रही है न तो एक संघर्ष
उसके मन भी हो रहा है जरुर अब इसका प्रभाव टोटल (total) जहाँ वो युस (use)
करेगा उस पर आएगा | इसलिए मनुष्यों को ये सोचना ही चाहिए की हमे अच्छे
ढंग से धन कमाना है और जिनके पास मोरल वैल्यूज (moral values) है जिनके
पास स्पिरिचुअल पॉवर (spiritual power) है उन्हें धन की कभी भी कमी भी नहीं
पड़ती क्योंकि वो डायरेक्ट (direct) भगवान से जुड़ जाते है उसके केयर (care) में
आ जाते है उनका भाग्य भी उदय हो जाता है और थोड़े में उन्हें बहुत कुछ मिलने
लगता है ये स्पिरिचुअल (spiritual) पहलु है तो इससे सहेज सब काम होता है कोई
कठिनाई नहीं होती है |
रुपेश जी — — — और वैसे मुझे गुरु नानक जी का एक प्रसंग याद आ रहा है
भ्राताजी की वो कही गए किसी गाँव में एक बहुत बड़े साहूकार ने भी उन्हें
आमंत्रित किया और एक गरीब ने भी आमंत्रित किया | तो वो गरीब के घर में गए
जब साहूकार आया की आप मेरे घर में क्यों नहीं आये तो उन्होंने उनके घर पर
भी रोटी ली और गरीब के घर से भी रोटी ली | और कहा जाता है जब उन्होंने
गरीब के घर से जो रोटी तोड़ी तो उसमे से दूध निकला अमीर के घर की रोटी
उन्होंने तोड़ी तो उसमे से खून निकला | तो बात वही है जो चीज़ खींच के किसी
का खून चूस के कमाया जा रहा है वो तो हमे सुख देगा ही नहीं न आज दे रहा है
न कल देगा |
बी.के. भ्राता सूर्या जी — — — — — मैं तो ये सोचता हूँ की हमारे देश का कोई सर्वोच्च
नेता ऐसा आ जाये अच्छा जो अपने नेताओं को मोरल एजुकेशन (moral
education) उन्हें दे एक चरित्र का पार्ट पढ़ाये, आध्यत्म का पार्ट पढ़ाया और ऊपर
के लेवल (level) के एक हज़ार लोग ज्यादा नहीं अगर इस बात को पक्का कर ले
तो नीचे वाले बहुत जल्दी एक-दो साल में वैसे ही ढल जायेंगे | बस जरुरत है
सिर्सेत जो लोग है उनमे से हम कामना कर रहे है अब आगे आने वाले समय में
कुछ अच्छे लोगों ऊपर आ जाये और फिर वो इस सिस्टम (system) को बदल दे
तो हमारे देश में खुशहाली छा जाएगी | क्योंकि ये अनेतिक धन की वृद्धि अशांति
पैदा कर रही है, वायलेंस (violence) पैदा कर रही है, उग्रता ला रही है इससे कोर्ट
केस बढ़ते जा रहे है, शांति नहीं, टेंशन नहीं अनेक समस्याएं इतनी बढ़ती जा रही
है तो देश का विकास रुका हुआ है | देखिये हर मनुष्य स्वास्थ हो, हर मनुष्य के
सुन्दर विचार हो, वो सवेरे जब काम पर जाये बहुत अच्छे मूड (mood) से जाये |
तो देश बहुत तेजी से प्रगति करेगा न |
रुपेश जी — — — — – बिलकुल बिलकुल और चीज़ की ओर शायद ध्यान नहीं है |
चलिए हम कामना भ्राताजी जो आपने कहा की ऊपर के लोग अपने जीवन में
धारणाओं को यदि ले आते है बहुत जल्दी देश में परिवर्तन आएगा | भ्राताजी हमारे
जो दर्शक देख रहे है उनसे तो जरुर हम ये अपील (appeal) कर सकते है की वो
अपाने जीवन में इन धारणाओं को अवश्य शामिल करे | क्या ऐसा नहीं हो सकता
की छोटा व्यक्ति बड़ों को सिखा जाये अपने चरित्र से ?
बी.के. भ्राता सूर्या जी — — — — — बिलकुल ऐसा बहुत जगह होता ही अगर छोटे भी
कोई अच्छी शुरुवात करे तो उनसे भी बड़ो को प्रेरणा अवश्य मिलेगी | मैं तो
कहूँगा पहले ये शुरुवात माताओं को करनी चाहिए | कई जगह किया है की अगर
पति गलत ढंग से पैसा घर में लाया है तो माता कहती है ये हमे स्वीकार नहीं है
इससे हम बच्चों की पालना नहीं करेंगे | तो वहां उस व्यक्ति को भी कुछ
जागरूकता आती है की ये बात ठीक है | लेकिन आजकल मातायें जो धन को
स्वीकार कर रही है इस तरह उनकी आवश्यकतायें बहुत बढ़ गई है | उनको घरों
में बहुत सारी चीज़े चाहिए एक सुन्दर सी कार (car) भी चाहिए, बाइक (bike) भी
चाहिए तो घर में सुन्दर सी सुन्दर टीवी भी चाहिए तो बहुत लैपटॉप (laptop) भी
चाहिए आजकल का मेहेंगे से महंगा मोबाइल भी चाहिए | तो ये जो नारी जाती की
इच्छाएं बहुत बढ़ गयी है इसमें कही न कही पुरूष को इस ओर जरुर लगा दिया है
| इनकी डिमांड (demand) ज्यादा तो अब पुरूष क्या करेगा नहीं तो घर में संघर्ष
होता | लेकिन मैं कहूँगा मात्र शक्ति अगर थोड़ी सी त्याग वृत्ति अपना ले तो ये
काम बिलकुल अच्छा हो सकता है | बाबा ने इसीलिए मात्र शक्ति को चुना की
मात्र शक्ति को बदलने से संसार बदल जायेगा | ये भगवान की जो मान्यता है
उसका ये जो कन्सेप्शन (conception) है वो बिलकुल सम्पूर्ण रूप से सत्य है और
इन्ही को शुरुवात करनी चाहिए इस तरह के |
रुपेश जी — — — — बिलकुल मतलब मात्र शक्ति ज्यादा डिमांड (demand) न रखे
पुरूषओं के सामने | अगर वो ज्यादा डिमांड (demand) रखते है तो शायद बिचारा
वो सोचता है की मैं कहाँ से धन लाऊँ और हो सकता है वो कुछ अनेतिक कार्य में
लिप्त हो जाते है | लेकिन भ्राताजी यहाँ भी एक बात याद आती है बाल्मीकि जी
की | बाल्मीकि से जब ये पूछा उन्होंने संतों को बांध दिया सब लूट खसोट के जब
जा रहे थे तो उन्होंने पूछा की ये जो पाप कर्म तुम कर रहे हो इसमें कौन कौन
हिस्सेदार है ? कहा सब हिस्सेदार है जिनके लिए मैं कमा रहा हूँ मेरे पत्नी
हिस्सेदार है, मेरे बच्चे हिस्सेदार है | उन्होंने ने कहा की जा कर पूछ के तो आओ
की वो हिस्सेदार है की नहीं | घर गए ये उन्होंने पूछा पत्नी से उन्होंने कहा मैं
क्यों ज़िम्मेदार हूँ तुम्हारा काम है कमा के लाना अब तुम कही से भी कमा के
लाओ, बच्चों ने भी कहा की हम भी हिस्सेदार नहीं है आप जो पाप करो आप
भुक्तों | तो शायद यहाँ कही न कही ( बिलकुल – बिलकुल ) पुरुषों को अवारनेस
(awarness) की जरुरत है |
बी.के. भ्राता सूर्या जी — — — — — बिलकुल – बिलकुल ऐसे ही अगर आजकल के
मात्र शक्ति और बच्चे कर दे तो पुरुषों को बदलने के लिए विवश होना ही पड़ेगा
|
रुपेश जी — — — — भ्राताजी मैं जो इस विद्यालय के जो वरिष्ट भाई है भ्राता रमेश
जी उनकी पवित्र धन के बारे में भी बहुत कुछ मैंने पढ़ा है | पवित्र धन क्या चीज़
है इसको स्पष्ट करे |
बी.के. भ्राता सूर्या जी — — — — — ईमानदारी से धन कमाया जाये, ईमानदारी से
उसको खर्च किया जाया ये जो बहुत सारी आवश्यकता होती है उसे छोड़ दिया जाये
| इच्छाएं तो मनुष्य की कभी पूर्ण होती नहीं एक इच्छा खत्म होगी फिर पड़ोसी
को देखेंगे दूसरी इच्छा पैदा हो जाएगी | टीवी दो साल पहले लिया था अब दूसरा
नया निकल गया अब इसको फेंको दूसरा अच्छा लो भले ही वो ५० हज़ार का हो |
तो एक तो धन अच्छे ढंग से कमाया जाये वो ब्लैक मनी (black money) न हो वो
वाइट मनी (white money) ही हो | और इच्छाएं मनुष्य कम करे तो ये पवित्र धन
मनुष्य को पवित्र बनायेगा |
रुपेश जी — — — — भ्राताजी ये मैं पहला प्रश्न ले रहा हूँ आज के लिए ये हमारे पास
अमरावती से आया है राजश्री पटेल जी लिखती है – की मैं CS की तयारी कर रही
हूँ और कुछ ही समय के बाद मेरा एग्जाम (exam) है मैं ऐसा क्या करूँ की मेरी
सफलता निश्चित हो जाये, मैं स्टडी (study) में बहुत अच्छी रही हूँ और कभी भी
असफल नही रही हूँ लेकिन इस बार मन में थोड़ा हलचल है, क्या करूँ ?
बी.के. भ्राता सूर्या जी — — — — — देखिये हलचल तो होनी नहीं चाहिए जब ये बहुत
होशियार स्टूडेंट (student) है तो इन्हें अपने में कॉन्फिडेंस (confidence) लाना
चाहिए | कॉन्फिडेंस (confidence) बहुत बड़ी चीज़ होती है | मैं आज की ही एक
समाचार सुनाऊ मुझे रास्ते में ही किसी ने फ़ोन (phone) किया उसने मुझे कुछ
दिन पहले ही फ़ोन (phone) किया था और पूछा था की दो बार वो किसी एग्जाम
(exam) में फ़ैल (fail) हो गया है बहुत अच्छा कोई एग्जाम (exam) दो बार फ़ैल
(fail) हो चूका है | तो हमने उसको को कुछ स्पिरिचुअल प्रैक्टिस (spiritual
practice) बताई थी | तो आज फ़ोन (phone) आया, आज ही मेरा रिजल्ट (result)
आया है और मेरा क्लियर (clear) हो गया तो धन्यवाद दे रहा था | मैंने कहा
धन्यवाद शिव बाबा को दे दो उसने तुम्हे सफलता दिलाई | इसको मैंने तयार
किया था, कॉन्फिडेंस (confidence) दुबारा सफल हो गए फैल (fail) हो गए इसका
अर्थ ये नहीं की तुम मन में ये निराशा भर लो की शयद मेरा भाग्य ही ख़राब है
मुझे कभी सफलता मिलेगी ही नहीं तीसरी बार न मिली तो क्या होगा मेरा क्योंकि
चौथा तो अवसर मिलता नहीं है | तो बिलकुल ये कॉंफिडेंट (confident) हो गया
इसने बहुत अच्छा मैडिटेशन रोज किया और सवेरे वही अभ्यास किये इस बहन को
भी मैं वही बताना चाहता हूँ की रोज़ सवेरे अभ्यास करे सात बार “मैं मास्टर सर्व
शक्तिमान हूँ, सफलता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है” | बिलकुल इसको गुड
फीलिंग (good feeling) में लाये की “मैं भगवान की संतान हूँ” उसके बहुत सारे गुण
और क्वालिटी (qualities) मेरे अन्दर है | वो सर्व समर्थ है, ऑलमाइटी है तो मेरे
अन्दर भी बहुत ज्यादा शक्तियां है तो इसको हम नाम देते है मास्टर सर्व
शक्तिमान | तो इसको जब हम अभ्यास करेंगे तो हमारी इनर पॉवर एक्टिवेट
(inner power activate) हो जाएँगी | और जब हम अभ्यास करेंगे दूसरा “सफलता
मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है” तो सब शक्तियां हमे सफलता दिलाने में कार्यरत हो
जाएँगी | तो ये अभ्यास सात बार रोज सवेरे उठते ही करे और सोते समय में भी
कर ले जब तक इनका एग्जाम (exam) हो और बहुत इम्पोर्टेन्ट (important) बात
यही है की ये घबराये बिलकुल भी नहीं |
रुपेश जी — — — — ये हलचल मन में घबराहट पैदा होने लगती है |
बी.के. भ्राता सूर्या जी — — — — — आज भी एक और स्टूडेंट (student) का फ़ोन
(phone) था की सात दिन रह गए मेरे भी उसका भी कुछ ऐसे ही जैसे इनका CS
है उनका CA का था सात दिन रह गए है अब मेरी ८० % तो तयारी है २०% नहीं
है लेकिन मुझे बहुत कन्फ्यूश़न (confusion) हो रही है घबराहट हो रही है होगी या
नहीं होगी | तो उन्हें मैंने ये बताये की देखो सात दिन तो है न, सात दिन में
तुम्हारी २०% पूरी हो जाएगी बिलकुल शांत मन से, कान्फिडन्ट्ली (confidently)
आप अपनी प्रैक्टिस (practice) करो और फिर विज़न (vision) बनाओ रोज सवेरे
अपनी सफ़लता का | अगर आपको मार्कशीट (markhsheet) मिलनी है तो मार्कशीट
(markhsheet) देखो अगर आपके नेट (net) पर ग्रेड आना है रिजल्ट आना है तो
वो देखो मेरा नाम आ गया है तो एक विज़न (vision) बनाओ और शांत मन से
बहुत अच्छी तयारी करो | एक और चीज़ हम जो सभी स्टूडेंट (student) को
सिखाते है और सिखाना चाहते है इनको मैं बता देता हूँ “मैं स्वराज्य अधिकारी हूँ”
, आत्मा मालिक हूँ मन बुद्धि की मालिक हूँ, ये बहुत अच्छी फीलिंग (feeling) करे
की मन बुद्धि मेरे अन्दर है | देखिये मन बुद्धि का ही तो खेल है पढ़ाई में तो ये
मेरे शक्तियां है मेरी है तो अपनी बुद्धि को जस्ट कमान देंगे रोज सवेरे की – “हे
मेरी बुद्धि जो मैं आज सारा दिन पढूं तू उसे याद कर लेना और फिर एग्जाम
(exam) के समय उसे इमर्ज (emerge) कर देना” | दिन में भी दो चार बार ये
अभ्यास करे | तो इनकी बुद्धि उसी तरह से ग्रहन करने लगेगी सब कुछ | लेकिन
परम आवश्यक है की ये भय और कन्फ्यूश़न (confusion)को निकाल दे बिलकुल
एंजॉय (enjoy) करे मेरा सिलेक्शन होना ही है, मुझे इतने मार्क्स (marks) मिलने
ही है | अगर confusion होता है तो ब्रेन (brain) की पॉवर (power) जरा डाउन
(down) हो जाती है | और अगर हम एंजॉय (enjoy) करते है बहुत ख़ुशी में की
बस ये दिन आया और रिजल्ट आया और हमारा सिलेक्शन हुआ, हुआ ही है
निश्चित होने वाला है तो ब्रेन (brain) की शक्तियां बढ़ जाएगी |
रुपेश जी — — — — हम भी चाहेंगे भ्राताजी पुरे समाधान परिवार के तरफ से राजश्री
जी को हमारी शुभ कामनाएं है की ये भी सफल हो | आज के इस सुन्दर
जानकारीयों के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया |
मित्रों ! बचपन में जब मैं अपने दादीजी के घर गया था तो वहां मैंने एक चीज़
देखि एक चींटी बार बार एक दीवार पर चढ़ रही थी और गिर रही थी, चढ़ रही थी
और गिर रही थी ठीक वैसे ही जैसे भ्राताजी ने अभी चर्चा कियां है की दो बार
असफल होने के बाद भी तीसरी बार भी एक व्यक्ति सफल हुआ | कई बार
असफलता हमे तोड़ देती है और बार बार की असफलता निराशा तो पैदा कर ही
देती है | लेकिन इस चींटी को मैंने देखा कम से कम ३० -३५ -४० बार तो अवश्य
गिरी होगी वो लेकिन तब तक चढ़ती रही तब तक अपना प्रयास करती रही जब
तक उसने सफलता अर्जित नहीं कर ली | जब एक नन्ही सी चींटी ऐसा कर सकती
है तो हम क्यों नहीं कर सकते है | आवश्यकता है अपने आत्म- विश्वास को
बनाये रखने की उसे टूटने न देने की और सतत परिश्रम करने की तो संसार की
कोई भी शक्ति हम सफलता से दूर नहीं कर सकती | आप सब सफल हो जीवन
का सम्पूर्ण आनंद ले यही शुभ कामनाओं के साथ नमस्कार !