Samadhan Episode – 00088 Youth Problems
CONTENTS :
रुपेश जी….. नमस्कार !! आदाब! “सत श्री अकाल”! मित्रों समाधान में पुनः एक बार आप सभी का
हार्दिक स्वागत हैI चर्चा यद्यपि आप की सभी समस्याओं की हम करते आ रहे थेI लेकिन एक बहुत
ही महत्वपूर्ण बात की शुरुवात हुई ……. की क्या समस्याओं के निदान में परमात्मा के साथ का
सानिध्य का मदद लिया जा सकता है? क्या उन्हें भी अपने जीवन में शामिल किया जा सकता है?
और ये बात मुझे लगता है की जितनी प्रिय मुझे लगी है उतनी ही प्रिय आप को भी अवश्य ही लगी
होगीI क्योंकि मुझे लगता है की हम रोज़ जिसे याद करते हैंI जिसे हर समस्या में याद करते हुए हम
नमाज़ पढ़ते हैं, चर्चों में हम जाते हैं, जिस की रोज़ पूजा- अर्चना करते हैं I यदि वो हमारे साथ हो
ले, यदि हम उसे जन लें, पहचान ले तो, मुझे लगता है व्यक्तिगत रूप से, की, इससे अच्छा और
कुछ नहीं हो सकताI हमारे जीवन में ये हमारे जीवन की सबसे बड़ी सौगात हो सकती हैI इसलिय
इस चर्चा को में पुनः चाहुंगा ….. आप सब की और से भ्राताजी से आगे जारी रखनाI आईये स्वागत
करते हैं आदरणीय भ्राताजी काI भ्राताजी आप का बहुत बहुत स्वागत हैI
बी.के. भ्राता सूर्याजी…… थैंक यू I
रुपेश जी….. भ्राताजी एक चर्चा जो हम करते आ रहे थे वो ये थी की केसे परमात्मा हमारे जीवन में
आयें I और सचमुच वो अब इस संसार में आ करके अपना कर्तव्य कर रहें हैंI एक प्रश्न मेरे मन में
उठा था भ्राताजी तब भी……. शास्त्रों में ये कहा गया है की कलियुग अभी ४० हज़ार वर्ष अभी और
बाकि हैI ऐसे में क्या परमात्मा के आने का यही वास्तव में समय है, या हमे इंतजार करना पड़ेगा
४० हज़ार वर्षI
बी.के. भ्राता सूर्या जी…… ४० हज़ार क्या कलियुग की आयु तो शास्त्रों में ४,३२,००० कही गयी हैI
और ५००० ही पुरे हुए हैंI ४,२७,००० बाकि हैं….
रुपेश जी….. ओह्ह्ह !!! बोहोत बाकी हैI
बी.के.भ्राता सूर्या जी….. हूं…… तो शायद लिखनेवालों को ये पता नहीं होगा के एसा घोर कलियुग
पहले ही आ जायेगा I ५००० साल में ही आ जायेगाI १० साल में युग बदल चूका है, अगले १० साल
में तो अ जाने क्या हल हो जायेगाI एटम बोम्ब्स बना लिए हैI मिसाइल्स तैयार कर दिए हैं भिन्न
देशों ने, तो वो रखने के लिए तो नहीं होंगेI म्यूजियम में तो नहीं रखे जायेंगे! वो छुटेंगे और संसार
विनाश के गर्त में समा जायेगाI लेकिन एक नवयुग का प्रारंभ होगा I संसार जीरो पे नहीं आ जाताI
बिलकुल नॉन एक्स्शिस्तेंसहो जाये, संसार एक्स्शिस्त करता हैI
रुपेशजी………. जेसे की महा प्रलय की बात हम कभी कभी सुनते हैं?
बी.के. भ्राता सूर्याजी…. वेसा कुछ नहीं होगाI वास्तव में भगवान ने स्वयं आकर ये बताया– – के तुम
कहाँ अंधकार में सोये हुए होI दिन निकल रहा हैI निकलने वाला हैI अब जागोI उन्होंने स्वयं आकर
चेतना दी की कलयुग का अंत आ गया हैI और हमने क्योंकि भगवान को इन आँखों से देख लिया,
उसकी वाणी इन कानों से सुनली और उसकी सत्यता में विश्वास हो गयाI उस की वाणी में पॉवर ही
इतनी थी, हम विश्वास करने के अलावा रह नहीं सकते थेI भगवान की वाणी है, आखिर तो उसने
आकर बताया है की ४०,००० साल या लाखों साल नहीं एंड और खुद कहा — – “ मैं आ गया हूँI” “ मैं
महाकाल हूँI” “ तुम सब आत्माओं को वापस ले जाने आया हूँI अपने धाम – मुक्तिधाम में, ये मेरा
परम कर्तव्य हैI तो, जब उसकी बात सुनी और संसार का गिरता हुआ, हर चीज़ का स्तर गिरता हुआ
दिखाई दिया तो बिलकुल ये बात सहज समझने योग्य है, की ये संसार ज्यादा समय नहीं चलेगाI
देखिये– — – मैं तो इन समस्याओं की बात जो हम कर रहे हैं, इन को देख कर ही सोचता हूँI बोहोत
सरे युवकों के फ़ोन कॉल मुझे आते हैंI युवक बोहोत सेंसिटिव हो गए हैंI बस कामवासना की तरफ
बहे चले जा रहे हैंI माँ बाप की कोई चिंता नहीं करतेI पढ़ाई को भी पीछे कर देते हैं, बोहोत सेंसिटिव
हो गए हैंI तो दिखाई देता है की अगले २० सालों में क्या हो जायेगाI ये तो इन की वासनाओं की
अग्नि इन्हें जला के इसे ही नष्ट कर डालेगीI तो विनाश का समय आ गया हैI यही परम सत्य हैI
इसको अब रोका नहीं जा सकेगाI
रुपेश्जी…… तो हर चीज़ का स्तर वेसे भी भ्राताजी, हम गिरता हुआ देख ही रहे हैंI मन में ये आता
तो अवश्य है की, जरुर कुछ परिवर्तन होना हैI और साइंटिस्ट्स भी भ्राताजी ये कह रहे हैं की नार्थ
पोल हो या साउथ पोल हो वहाँ पे भी ग्लासिएर्स पिघलते चले जा रहे हैंI या फिर ये कहें की हमारे
यहाँ ग्रीन हाउस इफ़ेक्ट है, तेजी से बढ़ता चला जा रहा हैI तो ये देख करके कई बार विचार तो
अवश्य आता था की वास्तव में संसार का होगा क्या?
बी.के. भ्राता सूर्याजी…..हाँ….देखिये ग्लासिएर्स पिघल जाएँI धरती इम्बलांस हो जाएगी, पोल्स बदल
जायेंगे I लोकातिओंस बदल जाएँगीI मै तो इससे भी ज्यादा एक बात को देखकर सोचता हूँ…. हमारे
देश की राजनीती को आप देखियेI जिधर वो जा रही है, दिशाहीन राजनीती हो गयी हैI विवेकहीन
राजनीती हो गयी हैI नेतिकता का तो जहाँ नाम ही नहीं रहा ईएसआई राजनीती हो गयी हैI तो जरुर
हर बुद्धिमान व्यक्ति सोचेगा ना की इसमें भी चंगे आनी चाहिएI तब देश का कल्याण होगा I अब
इसे लोग राजनीती में ऊपर जा रहे हैं, जिनके पास कुछ नहीं हैI मैं यही कहूँगा– – देश को देने के
लिए उनके पास कुछ नहीं हैI केवल सत्ता की भूख हैI तो इस राजनीती का जो ढांचा है, इसमें भी
निश्चित रूप से परिवर्तन होना चाहिएI तो हम परिवर्तन की प्रक्रिया से गुज़र रहे हैंI प्रकृति में
परिवर्तन होगाI पोल्स में, ध्रुव में परिवर्तन होगाI मौसम बदलेंगे और मनुष्य तो बदलेगा हीI
रुपेश्जी…….. बिल्कुल I तो मतलब एक बहोत बड़े परिवर्तन की और हम चल रहे हैंI हम इसे माने
या न मानेI इस के लिए ही शायद हम सब को मानसिक रूप से तैयार होने की आवश्यकता हैI जो
ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय राजयोग सिखा कर के या सत्य ज्ञान दे करके कर रहा हैI
बी.के.भ्राता सूर्याजी… लेकिन इस में एक बात जानने की हैI जेसे पीछे लोगों ने शोर किया था ना २१
दिसंबर २०१२….
रुपेश्जी…….उस पूरी रात हम सोये नहीं थे भ्राताजी ……
बी.के.भ्राता सूर्याजी……… हम तो खूब सोये थेI क्योंकि हमे पता था कुछ होनेवाला नहीं हैI क्योंकी,
विनाश के साथ साथ परिवर्तन की प्रक्रिया भी चालू रहेगीI तो ये काम एक डेट पर नहीं हो जायेगाI
इस में कम से कम १० – १२ साल लग जायेंगेI ये धीरे धीरे गति से…… इस की भी एक गति होगीI
प्रकृति में परिवर्तन होगाI आकाश बदलेगाI चाँद-तारे बदलेंगेI सब बदल जायेगI सब के लोकेशन सब
की स्थिति बदलेगीI तो इट विल टेक टाइमI तो ऐसा नहीं है की एक डेट दे दी जाये और हम से कोई
पूछे, हाँ भई कब होगा? हाँ, इस डेट पे होगा? तो वो नहीं होगाI वो धीरे धीरे अपनी गति से होगाI
रुपेश्जी……. तो एक बोहोत बड़े परिवर्तन की और हम बढ़ रहे हैंI चाहे वो वैज्ञानिक भी इस चीज़ को
स्वीकार कर रहे हैं और लोग भी इस चीज़ को स्वीकार कर रहे हैंI
बी. के. भ्राता सूर्याजी……. हमे इस चीज़ को स्वीकार भी करना चाहिए और अपने को इस परिवर्तन
के लिए तैयार भी रखना चाहिएI होता क्या है की, मनुष्य कभी कभी एक अच्छे परिवर्तन के लिए
स्वयं को तैयार नहीं करताI वो जिस गति से चलता आ रहा है, चाहे वो गिर ही रहा हो, उसी गति से
गिरना चाहता हैI उसे कोई कहे की तुम्हे वहाँ फेंक दिया जाये जहाँ तुम्हे जाना है, तो नहींI तो एक
सुंदर परिवर्तन होगाI एक दूसरा ही सिस्टम संसार का होगाI और ये बात किसी अमेरिका के प्रेसिडेंट
के हाथ में नहीं हैI ये रस्सियन प्रेसिडेंट के हाथ में नहीं हैI ये तो जो सृष्टि का मालिक है उस की
प्लानिंग है, अब युग बदलने कीI
रुपेश्जी…….बिल्कुलI तो भ्राताजी ये सारी चीज़े बदलेंगी? हम कई बार ऐसा सोचते हैं की जो लोग
अभी हैंI एडजस्ट कर रहे हैं क्या उन्हें ही ठीक नहीं किया जा सकताI भले, चलिए पॉलिटिक्स की
आप ने बात कहीI या अन्य लोगों के अन्दर विकृतियाँ हैं, बुराईयाँ हैंI यदि इन्हें ही ठीक कर देंI तो,
ये जो एक विनाश की बात जब ब्रह्माकुमरिज करती है की, पूरी स्रष्टि का विनाश होगाI नवयुग
बोहोत अच्छी बात है, वो आयेगाI लेकिन विनाश से कहीं मन में एक डर सा पैदा होता हैI
बी.के.ब्रह भ्राता सूर्याजी…….. आपने बोहोत अच्छी बात कहीI और पहले काम तो यही किया जा रहा
है की इन सब को ठीक किया जायेI लेकिन ठीक करने का भी एक समय है और एक सीमा हैI जब
भगवान भी देखता है की सब अब ज्ञान से, समझदारी से अपने को ठीक नहीं कर रहेI तो वो
समाप्ति करा देता हैI की अब तो एक ही से परिवर्तित हो चुके हैंI जो वास्तव में रियल मनुष्य बन
चुके होंगेI उनसे नवयुग का प्रारंभ हो जायेगाI लेकिन परमात्मा का भी पहले प्रायोरिटी भी इसी में है
की, वो मनुष्य को बदलेI और वो बदल रहा हैI
रुपेश्जी……. बिल्कुलI तो परमात्मा को हम किस नाम से पुकारें भ्राताजीI अलग अलग नामों से लोग
पुकारता हैं उन्हेंI कोई गॉड कह रहा हैI कोई अल्लाह कह रहा हैI कोई भगवान कह रहा हैI
बी.के. भ्राता सूर्याजी…… देखिये, ये तो भाषाओँ की बात हैI जहाँ जहाँ जिस भाषा का प्रचलन था, उस
भाषा में उसको नाम दिया गयाI और हर नाम मिनिग्फुल हैI हर नाम का कुछ अर्थ है और बोहोत
अच्छा है जिसने भी जो नाम दियाI लेकिन परमात्मा वास्तव में निराकार हैI वो कोई देहधारी नहीं हैI
पहली बात तो ये सबको जानना जरुरी हैI भारत में क्या हो गया है की हमारे बोहोत सारे देवी- देवता
हैI जो निश्चित रूप से मान्य है और पूजा हैI उसमे कोई संदेह नहींI हमारी भारत की सारी जनता
उनमें विश्वास रखती हैI उनसे उनको अनुभूति भी होती हैI मदद भी मिलती हैI पहला स्थान आता
है ब्रह्मा–विष्णु-शंकर काI महादेव के बोहोत पुजारी हैI विष्णु के, श्री कृष्णा के, श्री राम के तो बोहोत
ज्यादा हैI फिर देवियों के, शक्तियों के हैं और अब बोहोत सारे गुरु भी हो गए जिन की पूजा होने
लगी हैI लेकिन परमात्मा, ब्रह्मा- विष्णु-शंकर के भी ऊपर हैI कही भी अगर तिन मेनेजर हों – तो एक
जनरल मेनेजर तो रखना ही पड़ता हैनाI ब्रह्मा का काम स्थापना I विष्णु का काम पलना और
महादेवजी का काम विनाश है I तो तीनों को करानेवाला भी तो कोई चाहिए, इनके ऊपरI और वो है
निराकार महाज्योतिI निराकार उसे इस लिए कहते हैं क्योंकि वो आँखों से नहीं दीखता और उस को
देह नहीं हैI निराकार का अर्थ लोग कहीं ये समझ लेते कोई आकार नहीं हैI लेकिन इसका अर्थ की
मानवीय आकार नहीं हैI देवताओं जेसा आकार नहीं हैI फिर और बोहोत सारे देवता है भारत में ३३
करोड़ देवता मने जाते हैंI चलो ३३ करोड़ न भी हों बोहोत सारे देवी देवताओं की यहाँ मान्यता हैI तो
ये देवी-देवता, ब्रह्मा-विष्णु- शंकर इन देवी-देवताओं के भी हेड जेसे सृष्टि का संचालन करनेवाले I और
उसके भी जो ऊपर है, तीनों के वो हैं परमपिता जिस का नाम शिव दिया है- कल्याणकारीI शिव का
अर्थ है कल्याणकारी I जो सब का कल्याण करता हैI अब शिव के जो मंदिरों में यादगार है, वो
शिवलिंग है और शिव के हजारों नाम गिनाएं जाते हैं I ये उसके गुणवाचक और कर्ताव्यवाचक नाम हैI
माना मिनिग्फुल नाम हैI जेसे उसने कार्य किया है वैसा उसको भक्तों ने नाम दे दिया हैI तो
परमात्मा सबसे ऊपर, देह रहित, बोडिलेस और निराकार उसको केहते हैंI नाम उसका शिवI
रूपेशजी……. बिल्कुल I लेकिन, भ्राताजी आपने जैसे कहा की परमात्मा को हम शिव नाम से पुकारते
हैंI लेकिन जब हम शिव कहते हैं, भले आपने इसका अर्थ बताया के इस का अर्थ कल्याणकारी हैI
लेकिन जब दुसरे धर्म वाले हैं, तो वो ये ही सोचेंगे की ये तो हिन्दुओं का धर्म है और वो फिर ब्रह्मा
कुमरिज में नहीं आएंगे I तो क्या परमात्मा का कोई ऐसा नाम नहीं होना चाहिए जो सर्व मान्य हों
और सभी उस चीज़ को स्वीकार करें I
बी.के. भ्राता सूर्याजी……देखिये, एक नाम तो कोई हो नहीं सकता I गुणवाचक नाम है I और भाषाएँ
अलग अलग है ना? अलग अलग भाषा में अलग अलग नाम लोगों ने दिए हुए है I लेकिन ये एक के
ही अलग अलग नाम है I सब यहाँ आ रहे हैं और आते हैं क्यों की यहाँ धर्म की बात नहीं
स्पिरिचुअलिटी की बात है Iआत्मा की बात है I परमात्मा की बात है I पूजा पाठ की यहाँ कोई चर्चा
नहीं है I इसको मानो इसको न मानो ये यहाँ चर्चा नहीं है I यहाँ तो आत्म शुद्धि की बात है I यहाँ
तो कर्मेन्द्रियों को जितने की बात है I मन को पावरफुल बनाने की बात है I इसलिए यहाँ सभी धर्मों
के लोग इसमें, नाम से कोई अंतर नहीं पड़ता I नाम तो वेसे भी उर्दू में एक चीज़ का दूसरा नाम
होगा I तो इंग्लिश में और होगा I तो मराठी में, गुजरती में अलग अलग होंगे I नाम से वास्तु तो
परिवर्तित नहीं होती ना, तो भगवान तो एक है I नाम चाहे उसके किसी भाषा में कुछ भी दिए जाये I
रुपेश्जी……. तो क्या भ्राताजी अलग अलग जो धर्म को माननेवाले हैं I जेसे हमारे मुस्लिम भई-बहन
है, या क्रिस्चियन है, या सिख है, या अन्य जो सम्प्रदायों को माननेवाले हैं क्या ऐसे लोग भी ब्रह्मा
कुमरिज में आते हैं?
बी.के.भ्राता सूर्याजी…… देखिये, में एक अनुभव ही आप को शेयर करना चाहुंगा I कुछ साल पहले
भारत की ही एक सिटी से ५० मुस्लिम्स का ग्रुप हमारे पास आया, ज्ञान सरोवर हमारी अकादमी है,
बोहोत सुन्दर Iऔर ये सभी ५० के ५० लोग इंडसट्रियालिस्ट थे और बिज़नस मैन थे बड़े-बड़े I जो
उनको लाये थे वो समझा बुझा के तो लाये थे I पर उन्होंने कहा तुम कहाँ हमे हिन्दुओं के इसमें ले
आये हो? यहाँ हमे क्या करना है? हम थोड़ा ही कहीं फुल चढ़ाएंगे I उन्हें कहा आप कुछ ना करो,
आप केवल दो दिन रहो ना यहाँ I हम थोड़े ही कुछ करने को कह रहे हैं I उनकी फिर क्लास्सेस हुई I
और क्लास्सेस हो के जो तिन दिन वो यहाँ रहे फिर तो जाने का नाम नहीं लेते थे I फिर तो कहते
थे जो हमारी कुरान शरीफ में कहा गया है, वो ही यहाँ तो सब कुछ है I तो, देखिये ये भाषा, वेद वहाँ
समाप्त हो गया I उनमें से दो-चार के अनुभव हमारी क्लास्सेस में सुनवाये गए I वो आये उन्होंने
कहा हम सब आये तो क्या सोचते थे I और अब कहेंगे ये तो जन्नत है I बहिस्त है I ये तो स्वर्ग
की आप स्थापना यहाँ कर रहे हो I और हम तो आप के पुरे साथ हैं I ये भेदभाव तो मनुष्यों ने बना
दिया है I ये तो आउटर चीज़ है I बाह्य फ्रेम है I वास्तव में हम सब तो रूहें हैं, आत्माएं हैं I और
सब का रूहानी बाप एक है I ये बात उनकी समझ में आई I और आज वो हमारे इस कार्य में बोहोत
सहयोगी हैं I
रुपेश्जी…….. बोहोत सुंदर ! मतलब सभी लोग यहाँ पे आ रहे हैं और जेसे आप हमेशा कहते भी हैं
भ्राताजी, की १३० से भी ज्यादा देशों में शाखाएं हैं I तो निश्चित रूप से विदेशी भाई-बहने भी यहाँ आ
करके इससे लाभान्वित हो रहे हैं I कोई एसा अनुभव भ्राताजी जो अलग धर्मों के भी जो लोग आयें हैं
यहाँ पे और उन्होंने उस परम शक्ति का अनुभव किया हो? और साथ ही जा करके उन्होंने अन्य इस
बात को अपने लोगों तक पहुचाया हो I
बी. के. भ्राता सूर्याजी…..देखिये हमारे यहाँ मुस्लिम धर्म के लोग बोहोत आये I आते हैं और हम तो
मुस्लिम्स को अपना भई समझते हैं I सब आत्माएं हैं, एक ही है ना I हम तो वेसे भी यु.पी. से हैं I
हम तो वेसे भी यु.पी. में जन्मे और वहां तो हर गाँव में, हर सिटी में आधे हिन्दू, आधे मुस्लिम्स I
हम तो बचपन से उनके साथ रहे I हमने तो कोई भेदभाव देखा नहीं था कभी I ये तो बाद में आके
सुना के नेताओं के कारण कुछ गड़बड़ हो गयी I वोट के कारण कुछ गड़बड़ हो रही I यहाँ तो सभी
लोग बोहोत प्यार से ही रहते हैं I तो बोहोत सरे लोग आये I और मुस्लिम्स कई है हमारे में Iमें नाम
नहीं लूँगा I पर अफ्रीका से एक बोहोत अच्छे मुस्लिम जो बोहोत बड़ी पोस्ट पर भी हैं, हमारे यहाँ
आये I उन्हें ज्योति का साक्षात्कार हुआ I बोहोत अच्छा और बस वो इसमें जेसे समर्पित हो गए I
उन्हें बिलकुल आभास हो गया के जो हमारे मुस्लिम धर्म में कहा गया है वो सब यहीं है I प्रैक्टिकल
है I वहां केवल वो ग्रंथों में है और यहाँ जीवन में है I तो उन्होंने अपना पूरा जीवन इस कार्य में लगा
दिया I और हमारे मुस्लिम कन्ट्रीज में वो बोहोत कम कर रहे हैं I और सब को बताते हैं की , ये
धर्मों के जो भेदभाव हैं, ये तो बाहरी चीजें हैं I बाहरी आवरण है I इससे अलग हट जाओ और जो
रियल स्पिरिचुअलिटी है उस को अपना लो I
रुपेश्जी…… कई बार भ्राताजी कईयों को एसा भी तो लगता होगा, की यदि हम मान लीजिये हम
मुस्लिम धर्म में हैं, या हम क्रिस्चियन हैं, हम सिख है I और जब हम ब्रह्माकुमरिज के पास जायेंगे
तो शायद ये हमे कन्वर्ट कर देंगे I तो क्या यहाँ भी कन्वर्ट किया जाता है?
बी.के भ्राता सूर्याजी……. देखए हमारे यहाँ सिख बोहोत लोग आते हैं I पंजाब से भी और भारत के
बोहोत सारे सिटीज से I वो अपना वो ही पोशाक रखते हैं जो उनकी है I अपने गुरूद्वारे में भी जाते
हैं I लेकिन वो खुद महसूस करते हैं के गुरु ग्रन्थ साहेब ने जो कहा है वो सब यहाँ भी कहा जा रहा
है I जब वो बोहोत डीपली नॉलेज की स्टडी करते हैं, तो उन्हें ऐसा नहीं लगता की कहीं और जगह
चले गए I या हम सिख धर्म छोड़ के हम तो हिंदू बन गए I वो वेसे ही रहते हैं I उनका वही नाम
रहता है लेकिन उनके जीवन में वो सब बातें धारण होने लगती हैं I बोहोत प्रसन्न होते हैं की हम ने
तो ५० साल बिता दिए Iगुरुद्वारों में भी सब….. वो भी सुनी उनके ग्रन्थ-पाठ आदि, अरदास आदि
और रोज़ जाते थे हम तो नियमित रुप से I लेकिन यहाँ आने के बाद गुरुग्रंथ साहब हमारे में समा
गया I तो इसलिए राजयोग सिखने में उन्हें कोई भी कठिनाई नहीं होती I
रुपेश्जी…… बिल्कुल I मतलब, मूल बात ये है की धर्म का परिवर्तन नहीं कराया जाता I या आप की
जो भी मान्यताएँ हैं आप उन्हें मानते रहें I लेकीन उन्हें ठीक तरह से आप केसे अपने जीवन में उतार
लें इस बात की प्रेरणा, इस बात की सिख राजयोग के माध्यम से ब्रह्माकुमरिज़ दे रही हैं I बोहोत
सुंदर बातें हैं भ्राताजी, आप ने आज कही है I अब में आप को, जो हमारे मूल प्रश्न है उनकी और ले
चलता हूँ I हमारे पास जो समस्याएँ आई है उनमें से एक फ़ोन कॉल आया हमारे पास लखनऊ से I
और रागिनि जी लिख रही हैं की मेरे पति की कैंसर से मृत्यु हो गयी I मेरे दो बच्चे हैं
एक युएसए में है और एक नॉएडा में I दोनों की शादी हो गयी है I दोनों अपने अपने फॅमिली में है I
वो न तो मुझे फ़ोन करते हैं और न ही मुझसे मिलने आते हैं I इससे में बोहोत अकेलापन महसूस
करती हूँ I बोहोत दुखी और अशांत रहती हूँ I
बी.के. भ्राता सूर्याजी…… जिस का पति भी कैंसर से मर गया हो और जिसने अपने बच्चों की जी
जान लगाकर पालना की हो Iऔर वो बच्चे आज उन्हें पूछते नहीं तो निश्चित रूप से माँ का दिल तो
टूट जाता है I लेकिन ये बच्चों का भी कर्तव्य है, की वो अपनी माँ की भावनाओं को भी समझे I
कम से कम फ़ोन तो करें I ताकि माँ का प्यार जो है वह तृप्त होता रहे I
रुपेश्जी…….. जी I
बी. के भ्राता सूर्याजी…… और उसको भी लगे की ये सारा हमारा परिवार है I बच्चे हमारे हैं वो हमसे
अलग नहीं हुए हैं I मै इस माध्यम से सभी बच्चों को, युवकों को सन्देश देना चाहुंगा —– — के, भले
ही आप कहीं भी चले जाएँ, अमेरिका में चले जायें, माँ का प्यार तो माँ का प्यार ही होता है I उसे यूँ
भुलाया नहीं जाना चाहिए I रही बात रागिनी बहन की इन को डिप्रेशन होना बड़ा नेचुरल है I जिसने
अपना पति को खो दिया हो और बच्चे भी एक तरह से खो ही गए I
रुपेश्जी…… अब उनकी सुध नहीं ले रहे हैं I फ़ोन नहीं करते हैं I
बी.के. भ्राता सूर्याजी….. हाँ, वो उनसे बात ही नहीं करते I फ़ोन नहीं करते I वो हैं भी तो उनको
इसका कोई एहसास नहीं है I कोई फीलिंग नहीं है I
रुपेश्जी…….. जी I
बी.के.भ्राता सूर्याजी…….. तो, इनको मै कहूँगा — — वे राजयोग सीखें, ईश्वरीय ज्ञान लें I इनका चित्त
शान्त होगा I और जब ये राजयोग करेंगी तो इनको लगेगा एक पति इनका मृत्यु हो गया है तो
परमपिता भी वो हमारा प्रियतम भी है I वो पतियों का पति भी है I वो हमे सच्चा प्यार देता है I
उसको भी प्रियतम कहा था I तो सचमुच रागिनी का वो प्रियतम बन जायेगा I और उसे आभास होने
लगेगा के सांसारिक पति मेरा मृत्यु को प्राप्त हो गया I लेकिन एक पारलोकिक पति मुझे फिर से
प्राप्त हो गया I तो बच्चों के जो इस मिलन का और प्यार का आभाव इसे महसूस हो रहा है I वो
आभाव पूरी तरह से भर जायेगा और इसके जीवन में बोहोत तृप्ति होगी I चित्त शान्त होगा I और
जो इसके मन में एक डिप्रेशन की स्थिति है वो समाप्त हो के जीवन में ख़ुशी आ जाएगी I
रुपेश्जी……… ऐसे बच्चों को भ्राताजी…… जिन बच्चों को बोहोत प्यार से माता-पिता ने पला है I
उनके लिए अपना पूरा जीवन लगाया है I रात-रात भर ना जाने रागिनि जी कितनी रात जगी होंगी
अपने बच्चों के लिए I ऐसे बच्चे जब बड़े हो जाते हैं I अपने माता-पिता को इस प्रकार इग्नोर करते
हैं I ऐसे बच्चों के लिए आप क्या सन्देश देंगे I
बी.के.भ्राता सूर्याजी………. वो भी जब माता-पिता बनेंगे, बन गए होंगे तो जरुर उन्हें अपने माता-पिता
की बच्चों के प्रति क्या फीलिंग्स होती है वो समझ में आएगी I जब तक उनको अपने बच्चे नहीं होते
वो माँ बाप की फीलिंग्स को समझ नहीं पाते I मुझे पूर्ण विश्वास है की ये दोनों जरुर अपनी माँ की
भावनाओं को सम्मान देंगे, समझेंगे I में ये सन्देश देना चाहुंगा के, माँ का बोहोत बच्चों से मोह
रहता है, प्यार रहता है I ठीक है, एजुकेटेड हो गए हैं I आप का अपना संसार हो गया है I आप का
अपना परिवार हो गया है I आप का अपना फील्ड है I लेकिन, उस माँ को आप भूलें नहीं जिसने
आप के लिए कष्ट सहे हैं I जिसने आप को जीवन दान दिया है I और जो आप से कुछ अपेक्षाएं भी
रखती थी I लेकिन, चलो आप उनकी अपेक्षाओं को पूर्ण न भी करें तो….. परन्तु कम से कम उनके
प्यार, उनके भावनाओं का रिस्पांस अवश्य दें I ये मानवता है I इससे संसार में जो एक प्यार है, चाहे
भाई – बहन का हो I भाई – भाई का हो, या माँ-बाप का हो I माँ और बेटों का हो वो कायम रहेगा I
अन्यथा ये प्यार भी कहीं ना कहीं मनुष्य को डिप्रेशन के कगार पर ले जायेगा I
रुपेश्जी……. जी….जी…. तो एक तो रागिनि जी विशेष करके आपने कहा राजयोग का अभ्यास करें,
परमात्मा को अपने प्रियतम के रूप में स्वीकार करें Iऔर बच्चे भी निश्चित रूप से अपनी माँ के लिए
अपने दायित्व का निर्वाह अवश्य करें I क्योंकि ये एक हमारा सिस्टम ही अलग है भ्राताजी I और
आजकल हम देखते हैं की वृधाश्रम बढ़ते चले जा रहे हैं I बच्चे अपने माता-पिता को वहाँ डाल देते हैं
I और खुद अपनी फैमिली में मस्त हो जाते हैं I तो कहीं ना कहीं माता-पिता के अन्दर ये भाव, दुःख
का भाव अवश्य पैदा होता है और मुझे लगता है की ये बोहोत बड़ी समस्या का रूप लेता चला जा
रहा है I
बी.के.भ्राता सूर्याजी……. बिल्कुल I और मैं ऐसे युवकों को ये अवश्य कहूँगा, इस स्रष्टि की ये जो
रचना है इस का एक सिद्धांत बताना चाहुंगा I की अगर वो अपने माँ-बाप को वृद्धाश्रम में छोड़
आये हैं या उनकी सूदबुद नहीं ले रहे हैं, तो उनके बच्चे भी इन को वृधाश्रम में जरुर छोड़ेंगे क्यों
की इन्होने अपने माँ-बाप के साथ जो बर्ताव किया है, वही इनके साथ भी होगा ही I यही इस
क्रिएशन का, इस नियति का नियम है I लेकिन मै रागिनी को कहूँगा अगर वो राजयोग का बहुत
अच्छा अभ्यास करेंगे तो राजयोग में कुछ ऐसे एक्सपेरिमेंट्स हैं की अपने इन बच्चों के मन में अपने
लिए वो भावनाओं को पुनः जागृत कर सकेगी I और बच्चों के मन में आयेगा के, हमारी माँ ने भी
तो हमारे लिए कुछ किया है I कम से कम हमें उससे बात तो करनी चाहिए I और दोनों का मिलन
फिर से पॉसिबल होगा I
रुपेश्जी……….. तो ये अभ्यास कौन सा है भ्राताजी ?
बी.के.भ्राता सूर्याजी……. इन्हें राजयोग सीखना है I फिर राजयोग ये रोज़ एक घंटा करेंगी और इस
स्वमं के साथ करेंगी I संकल्प के साथ करेंगी, ‘मै भगवान की संतान मास्टर सर्वशाक्तिवान हूँ I’ इस
शब्द की चर्चा हम बार बार करते आ रहे हैं I ये मोस्ट पावरफुल संकल्प है संसार में I ५ -७ बार
इस को याद करके फिर एक घंटा राजयोग मैडिटेशन करेंगी I और मैडिटेशन के अंत में अपने दोनों
बच्चों को आत्मिक रूप में देखेंगी I देह नहीं, चेहरा सामने आयेगा और ये दोनों आत्माएं है I और
उन्हें कुछ मेसेज देंगी माइंड टू माइंड — – ‘मै तुम्हारी माँ हूँ I तुम मेरे बच्चे हो I मै तुम्हे बोहोत प्यार
करती हूँ I आ जाओ I’ बस, उनके अन्दर प्रेम जागृत होने लगेगा I इसे थोड़े ही दिन में अगर ये २१
दिन करेंगी तो हमे पूर्ण विश्वास है, जेसे आज तक बोहोतों के एक्सपेरिमेंट्स से, एक्सपीरियंस से
देखा के, २२ वे दिन ही बच्चों का फोन आ जाता है I
रुपेश्जी……… बिल्कुल I इससे, सुखद बात और कुछ नहीं हो सकेगी रागिनि जी के लिए के उनके
बच्चे उनसे बातें करें I उनसे मिलेजुले I और हम बचपन में ये पढ़ा करते थे भ्राताजी की, एक कोई
बहु थी I तो वो अपने जो सास-ससुर थे उन्हें मिट्टी के बर्तन में भोजन दिया करती थी I तो उनका
जो बेटा था, उन मिटटी के बर्तनों को संभाल संभाल के रखा करता था I एक दिन उनके माता-पिता
ने पूछा, ‘ की तुम क्यों संभाल के रखते हो इसे?’ तो उसने कहा – ‘की जब आप बूढ़े हो जायेंगे तब
में भी इन्ही बर्तन में आप को भोजन दिया करूँगा I उनकी आंखें खुल गयी और उन्होंने अपने सास-
ससुर के साथ अच्छा व्यव्हार करना शुरू किया I तो निश्चित रूप से जेसे आपने कहा है, कर्मों का
एक सिद्धांत है, गति है I जेसे हम दूसरों के साथ करते हैं वेसे हमारे साथ भी अवश्य होता है I
बी.के.भ्राता सूर्याजी…… बिल्कुल I
रुपेश्जी…….. भ्राताजी आज की तमाम चर्चाओं के लिए आप का बोहोत बोहोत शुक्रिया I दोस्तों कहा
जाता है, ऊपर जिस का अंत नहीं उसे माँ कहते है I माँ से बड़ा इस स्रष्टि में और कोई हो ही नहीं
सकता I सबके माता-पिता हैं ही, लेकिन जिन्होंने हमे जन्म दिया है I हमें पाला पोसा है I अपने खून
से सींचा है I मै नहीं समझता के अपनी माँ के ऋण से कभी भी कोई मुक्त हो सकता है I एसी माँ
की आंख में आंसू आये हमारी वजह से, तो इससे बड़ी पीड़ा हमारे लिए और कुछ नहीं हो सकती I
इसलिए जहाँ तक संभव हो दिल से, बोहोत प्यार से, बोहोत सम्मान से अपने माता-पिता की सेवा
करें I क्योंकि जब आप छोटे थे आप की कौन सी उंगुली आपकी पकड़ के माँ ने चलना सिखाया I
अब उसी उंगुली उसी जीवन का आप सम्मान करें I प्यार करें और उन्हें आदरपूर्वक, सम्मान देते हुए
आगे बढ़ें I
नमस्कार……….