Samadhan  Episode – 000118 Youth Problems

CONTENTS :

1. जीवन – चलने का नाम ।

2. बेरियेर्स, समस्यायों का समाधान संभव ।

3. भगवान द्वारा समाधान धैर्यतापुर्वक स्वीकार करें ।

4. स्पिरिचुअल प्रैक्टिस से, संकल्प शक्ति से,शुभ भावनाओं से लक्ष्य प्राप्ति ।

5. प्रैक्टिकल राजयोग की तकनीक ।

रूपेश जी — — — नमस्कार! आदाब ! “सत् श्री अकाल” ! दोस्तों , स्वागत है आपका समाधान कार्यकर्म मे।

कहा जाता हैं: दी सेकंड बेस्ट मोटिवेटर इन योर लाइफ आफ्टर योर पेरेंट्स ईज दी बस कंडक्टर, ऑलवेज

मोटिवेटिंग यू बाईं सेयिंग “चलिए चलिए आगे बढ़िये” । (The second best motivator in your life after

your parents is the bus conductor, always motivating you by saying “चलिए चलिए आगे बढ़िये”) ।

कितनी सुन्दर बात हैं न। जीवन खड़े होने के लिए नहीं हैं, जीवन बैठने के लिए नहीं हैं, लेकिन निरंतर आगे बढ़ने

का नाम ही जीवन हैं लेकिन यदा – कदा समस्याए हमें रोक देती हैं, हमारी गति को अवरुद्ध कर देती हैं इसलिए

तो समाधान लेकर रोज़ – रोज़ हम आपके घर में, आपके दर में चले आते हैं ताकि आप बैठिये नहीं,

रुकिए नहीं लेकिन चलते रहिये और जीवन का सम्पूर्ण आनंद लीजिये और इस आनंद में हमारे साथ होते

हैं हमेशा आदरणीय राजयोगी सूर्य भाईजी। आईये, स्वागत करते हैं उनका। भ्राताजी, आपका बहुत बहुत

स्वागत हैं।

सूर्य भाईजी — — – शुक्रिया (Thanks) ।

रूपेश जी — — — भ्राताजी, सुन्दर बात हैं चलते रहो, चलते रहो। जैसे पानी एक अविरल धारा बहती रहती

हैं वैसे ही जीवन यदि सदा चलता ही रहे, हम बैठे नहीं, रुके नहीं तो कितना आनंद हैं।

सूर्य भाईजी — — — – बिल्कुल। “चलती का नाम ही गाड़ी हैं”, ऐसा लोग कहते हैं और चलने का नाम ही

जीवन हैं। जो रुक गया वो जीवन नहीं, वो तो मृत सामान हैं। इसलिए जीवन में जो कुछ भी आता हैं –

बेरिएर्स (barriers) तो आते हैं लेकिन उनको पार करते हुए हम इस बाधा दौड़ में आगे निकलते जाए तो

ऐसी कोई बात नहीं कि एक दिन ऐसा नही आएगा कि समस्याए समाप्त नहीं होगी, मैंने ऐसा देखा हैं।

किसी ने बहुत अच्छा कहा हैं कि कोई भी समस्या जब आती हैं अपना समाधान भी साथ लाती हैं तो

बहुत केसेस (cases) देखने के बाद ऐसा महसूस हुआ कि ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका समाधान संभव

न हो लेकिन कभी – कभी यह होता हैं कि मनुष्य एक्सपेक्टेशन (expectation) रखता हैं कि समाधान

ऐसा ही हो जबकि शायद नियती को वो मंजूर नहीं होता हैं। इसलिए हमें अपने को नियती के भी पैरेलल

(parallel) करना होगा। हम समाधान करें, भगवान् को भी अर्पित करें और अपने ज्ञान से जो भी हम

समाधान का तरीका जानते हैं उसमे भी हमे एक्सपर्ट (expert) होना चाहिए और समाधान का जो भी

स्वरुप हमारे सामने आये उसे हम स्वीकार करें। कभी – कभी ऐसा होता हैं कि किसी विशेष समस्या के

समाधान को प्राप्त करने के लिए हमें कुछ खोना भी पड़ता हैं, उसके लिए भी हमें तैयार रहना चाहिए।

पर जो अच्छी से अच्छी प्राप्ति हो सकती हैं, उसे स्वीकार कर लेना चाहिए।

रुपेश भाई — — — – बिल्कुल। आपने बहुत सुन्दर बात कही भ्राताजी। कई बार हमारे मन में यह कामना

होती हैं कि यदि यह ऐसी बात हैं तो इसका ऐसा ही हल होना चाहिए, इतने समय में ही हल होना

चाहिए और किसी ने बहुत सुन्दर बात कही हैं कि भगवन सही समय पर और अपने तरीके से हमें

समाधान देता हैं। हमें उस चीज़ को एक्सेप्ट (accept) करना चाहिए जिसे हम नियती भी कहते हैं।

सूर्य भाईजी — — — – भगवान् को हमें मदद करने का तरीका अलग हैं। हम तो बहुत छोटी बुद्धि रखते हैं

न, हमारी आकांक्षाये भी सीमित हैं। हम तो चाहते हैं कि भूख लगी हैं अभी खाना मिल जाए लेकिन हो

सकता हैं कि भगवान् चाह रहा हो कि इसकी भूख चार घंटे और चलती रहे और इसको इतना भोजन

मिलता रहे जो चार मॉस खाता रहे तो उसका तरीका अलग हैं, उसके सोचने का तरीका अलग हैं और

क्योंकि वो तीनो लोकों का, तीनो कालों को जानता हैं – हमारे आदि, मध्य, अंत की उसे सम्पूर्ण

जानकारी हैं। हमारे क्या कर्म हुए हैं उसका भी उसे पता हैं। उसको ध्यान में रखते हुए वो हमारे विकर्म

भी नष्ट करा देता हैं और हमारा समाधान भी करा देता हैं। इसमें कभी – कभी समय लगा करता हैं,

हमें इस सत्य को स्वीकार करना ही चाहिए।

रुपेश भाईजी — — — – बिल्कुल। यह सुन्दर बात हैं भ्राताजी कि यदि हम इतनी धैर्यता अपने अन्दर रखे –

कहते हैं न :

“सब्र एक ऐसी सवारी हैं जो कभी भी अपने सवार को गिरने नहीं देती, न तो किसी के कदमो में, न ही

किसी की नजरों में”, इसलिए सब्र रूपी फल जो हैं उस चीज़ को जरुर हम अपने साथ रख के चलें।

भ्राताजी, मैं आपको मेल्स (Mails) की तरफ लिए चलता हूँ – यह पहला मेल (mail) हमारे पास आया हैं

कुमुद सिंह जी का। ये कहते हैं :

रेस्पेक्टेड (respected) भाईजी, ॐ शान्ति। मैं ज्ञान में ६ साल से चल रही हूँ। मेरी समस्या ये हैं कि मेरी

बहु बारह साल से सरकारी नौकरी के लिए अप्लाई (apply) करती हैं पर उसका नाम नहीं आता। वह

2002 में एक सरकारी स्कूल में सेलेक्ट (select) हो गयी थी परन्तु किसी कारण वश उसपे स्टे (stay) लग

गया। उसके बाद वो कोशिश (try) कर रही हैं लेकिन उसका नाम कही भी नहीं आता तो इसका क्या

समाधान हो सकता हैं। कृपया कुछ प्रकाश दे।

सूर्य भाईजी — — — – हाँ देखिये कुमुद, बात ऐसी हैं एक तो उसकी क्वालिफिकेशन (qualification) क्या हैं?

वो पर्याप्त हैं या नहीं। जहाँ वो अप्लाई (apply) करती हैं इसपे भी बहुत डिपेंड (depend) करता हैं। दूसरा,

आज कल जमाना थोड़ा लेन – देन का भी हैं, उसपे बहुत कुछ डिपेंड (depend) करता हैं। इमानदारी का

युग तो बीत चूका हैं। कोई कहे कि इमानदारी से सब कुछ होता रहे, वो तो संभव नहीं होता लेकिन

स्पिरिचुअल पॉवर (spiritual power) के आगे बहुत कुछ सहज भी होता हैं। मेरे सामने अभी बुद्धि में दो

ऐसे केस (case) आ रहे हैं जिनको नौकरियाँ मिली लेकिन पैसा एक भी नहीं देना पड़ा। केवल स्पिरिचुअल

प्रैक्टिसेज (Spiritual Practices) की, संकल्प की शक्ति का बहुत अच्छा प्रयोग किया, शुभ भावनाओं का

दान दिया, अपने में बहुत अच्छा विश्वास रखा तो इन्हें अब कोशिश (try) तो करनी चाहिए। अच्छी बात

हैं, एक अच्छी सर्विस के लिए कौन व्यक्ति नहीं चाहता।

रुपेश भाई — — — और वैसे एक लम्बा समय भी हो गया हैं भ्राता जी। बारह साल से प्रयास कर रहे हैं।

सूर्य भाईजी — — — – बारह साल का इनके पास अनुभव भी हो गया। इनको उसका फ़ायदा उठाना चाहिए।

यह सोचने की बजाय, बारह साल बीत गए मुझे अच्छी नौकरी नहीं मिली लेकिन कहीं तो ये कार्यरत हैं

ही न तो इनको एक अनुभव हो गया। उस अनुभव का इन्हें बेनिफिट (benefit) मिलेगा। तो एक तो सवेरे

उठकर इनको अभ्यास करना हैं लेकिन ये अभ्यास बहुत विश्वास के साथ करने हैं। “मैं भगवान् की

संतान मास्टर सर्व्शाक्तिवान हूँ”, 7 बार, और जहाँ भी ये अप्लाई (apply) करें उसके लिए मन में एक

बहुत कांफिदेंटेली (confidently) उमंग – उत्साह का एक संकल्प रखे कि यहाँ मेरा सिलेक्शन (selection)

निश्चित हैं जैसे उसको अभी से एन्जॉय (enjoy) करना शुरू कर दे तो इनके एंजोयमेंट (enjoyment) के

वाइब्रेशन (vibration) जो सिलेक्शन (selection) करने वाले हैं, उन तक पहुँचने लगेंगे और बस इनका

मानसपटल (sub- conscious mind) उनके मानसपटल (sub- conscious mind) से जुड़ेगा और इनका काम हो

जाएगा। सवेरे उठते ही यह बहुत अच्छा काम इन्हें करना हैं और कुमुद को यह करना हैं – ये राजयोग

सीखती होंगी अवश्य तो इनके मार्ग में जो विघ्न आ रहा हैं – सर्विस नहीं मिल रही हैं, ये इस विघ्न को

हटाने के लिए 21 दिन की योग भट्ठी करें। इस राजयोग के प्रोग्राम (program) को हम राजयोग भट्ठी

का नाम देते हैं। एक घंटा रोज़ – दिन में किसी भी टाइम कर ले, शाम को कर ले, जब इनका योग

बहुत अच्छा लगे, जब इनकी बुद्धि बहुत अच्छी एकाग्र रहे, बिल्कुल लग जाए उसमे। मन इधर उधर ना

भटके। उसमे दो अच्छे संकल्प स्वमान के यह याद करेंगी पांच बार :

“मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ, विघ्न – विनाशक हूँ”, और फिर एक घंटा योग करने के बाद संकल्प करें:

“इस योग की शक्ति से इस आत्मा के मार्ग में जो भी विघ्न हैं नष्ट हो जाए”, क्योंकि ये योग दूसरी

आत्मा के लिए कर रही हैं। 21 दिन विदाउट मिस्सिंग ए डे (without missing a day) । ऐसा नहीं एक दिन

छोड़ दिया, ‘आज मैं बहुत व्यस्त (busy) थी, कल कर लुंगी’, नहीं। एक भी दिन मिस (miss) नहीं करना

हैं। अगर मिस (miss) होता हैं तो फिर वहां से 21 दिन शुरू करने हैं तो दोनों चीज़े इनको मदद करने

लगेंगी – इनकी अपनी शक्तियां, सब – कोन्शिअस माइंड (sub-conscious mind) की पॉवर (power) और

यह योग की शक्ति, जो मार्ग के विघ्नों को नष्ट करेगी और हमे पूरा विश्वास हैं ये अपने लक्ष्य में

सफल हो जायेगी।

रुपेश भाई — — — – बिल्कुल, हम भी उम्मीद करते हैं कि जल्द ही हमें शुभ समाचार मिलेगा कि कुमुद जी

की बहु को सर्विस मिल गयी हैं और हम चाहेंगे कुमुद जी कि जब कभी भी ऐसा हो इन अभ्यासों को

करने के पश्चात निश्चित रूप से आप अपने अनुभव हमारे साथ अवश्य शेयर (share) कीजियेगा। हमारी

बहुत सारी शुभ कामनाये।

सूर्य भाईजी — — — – और मिठाईयां भी बाँट देना।

रुपेश भाई — — — – वहां पे भी और यहाँ पे भी मिठाईयां अवश्य भेज देना समाधान परिवार के लिए।

भ्राताजी, हमारे पास एस. एम. एस (SMS) आया हैं गुलिस्तां जी का। ये कहती हैं “ॐ शांति मैं सूरज

भाईजी से निवेदन करती हूँ कि वो मैडिटेशन (meditation) के कुछ प्रैक्टिकल (practical) पहलू को भी

शामिल करें। इससे मेरे बहुत सारे मरीजों और अन्य व्यक्तियों को भी इतने वरिष्ट शिक्षक से

इसकी तकनीक सीखने में मदद मिलेगी। शुक्रिया। आप कृपया इतना अच्छा कार्य करते रहे। आपका

प्रोग्राम (program) बहुत बहुत ज्ञानवर्धक और बहुत सरल हैं।” गुलिस्तां जी चाहती हैं भ्राताजी कि राजयोग

का, जो एक प्रैक्टिकल (practical) राजयोग हैं वो भी दर्शको के सामने हम जरुर रखे जो अपने – अपने

घरो में बैठे हुए हैं, वो भी इस राजयोग का सुन्दर अभ्यास कर सकें।

सूर्य भाईजी — — — – देखिये, राजयोग परमात्मा मिलन का नाम हैं। योग का अर्थ हैं आत्मा और परमात्मा

को जोड़ देना। दो चीजों को जोड़ना योग कहलाता हैं। यहाँ स्पिरिचुअल सेंस (spiritual sense) में आत्मा

को परमात्मा से जोड़ना। आत्माए हम हैं। कई लोग जब ये शब्द सुनते हैं न ‘आत्मा’ तो समझते हैं

आत्मा तो भूतों को कहते हैं। ऐसा नहीं। आत्माए हम सब हैं, यह हमारा देह हैं। मैं आत्मा यहाँ हूँ ब्रेन

(brain) के मध्य में निवास करती हूँ। इस देह की मालिक हूँ। तो पहले हमें इस जागरूकता (awareness)

की बहुत जरुरत हैं कि मैं यह देह नहीं हूँ, मैं आत्मा हूँ। क्योंकि मनुष्य ने अपने को हज़ारो साल से देह

माना, उसका देहभान (body – consciousness) बढ़ता गया। इससे भौतिकता की तरफ आकर्षण उसका

हुआ। अब जरुरत इस चीज़ की हैं कि हम अपने वास्तविक (real) स्वरुप को जाने। ‘मैं आत्मा हूँ’ और

उसके स्वरुप में स्थित हो जाए तो हमारा आकर्षण इन मनो विकारों से, इन भौतिक इच्छाओ से हट कर

सुख – शान्ति की अनुभूति में स्थित हो जाएगा। तो पहला अभ्यास हमे राजयोग में यह करना होता हैं:

मैं आत्मा यहाँ हूँ, यह देह अलग हैं। फिर आत्मा के कुछ गुणों का चिंतन करें। दो शक्तियां हैं – मन

और बुद्धि। मैं बहुत सरल विधि अपने दर्शको के सामने रख रहा हूँ। मन और बुद्धि दो चीज़े हैं हमारे

पास। तो आत्मा के ज्योति स्वरुप को बुद्धि के द्वारा देखेंगे। बुद्धि थर्ड ऑय ऑफ़ विजडम (third eye

of wisdom) हैं, तीसरा नेत्र हैं। बुद्धि आत्मा के स्वरुप को देखेगी और मन उसका चिंतन करेगा।

उदाहरण मैं आत्मा शांत (peaceful) हूँ, यहाँ हूँ, अब अपना स्वरुप देखें। मुझसे शान्ति की किरणे फैल रही

हैं। फिर संकल्प कर ले – मैं आत्मा शांत स्वरुप हूँ, मुझसे शान्ति की किरणे फैल रही हैं। फिर इस

संकल्प को चेंज (change) कर दे:-

“मैं पवित्र हूँ।” मुझसे चारो ओर पवित्र किरणे फैल रही हैं, मैं पवित्र हूँ। फिर संकल्प चेंज कर दे:-

“मैं शक्तिशाली हूँ।” इस तरह से आत्मा को विसुअलाईज (visualize) करें। आत्मा के स्वरुप को देखे और

महसूस करें यह देह अलग मैं अलग। मैं इस तन में आ गयी हूँ यहाँ। ऐसी देह मैंने अनेक ली हैं और

छोड़ी हैं, यह फीलिंग (feeling) अपने को दे। अब अंतिम समय आ गया हैं और मुझे इस अंतिम देह को

छोड़ वापस परमधाम जाना हैं। अब परमपिता के पास जाना हैं। अब उसके स्वरुप को देंखे। वो

महाज्योति ब्रह्मलोक का वासी हैं। हम अपनी बुद्धि को ले चलें सूर्य, चाँद, तारो के परे बहुत दूर

ब्रह्मलोक में और महसूस करें, देखें, विजुअलायिज़ (visualize) करें वहां ज्योति हैं, हमारे परमपिता हैं,

निराकार जो अजन्मा हैं, अकर्ता हैं, अभोक्ता हैं, जो मुक्ति और जीवन – मुक्ति के दाता हैं, उनकी

महिमा अपरमपार हैं लेकिन वो हमारे हैं। तो यह फीलिंग (feeling) दें ‘भगवान हमारा हैं’, ‘भाग्य विधाता

मेरा हैं ‘, ‘जो बिगड़ी को बनाने वाला हैं वो मेरा हैं’, ‘जो सर्वशक्तिमान हैं वो मेरा हैं’, मेरापन बढ़ाये

उससे तो यह और मेरे – मेरे छुट जायेंगे। यह योग का पहला स्वरुप होगा यानी उससे रिश्ता

(relationship) जोड़ना। वो केवल भगवान नहीं जिसको हम याद करेंगे बल्कि वो मेरा हैं।

रुपेश भाई — — — – वैसे भी हम गाते आये हैं “त्वमेव माताश्च पिता त्वमेव।”

सूर्य भाईजी — — — — बिल्कुल, जो हमारा श्लोक हैं, उसी का स्वरुप हमें प्रैक्टिकल (practical) में लाना हैं।

बहुत बड़ी फीलिंग (feeling) हैं यह – भगवान हमारा। इससे बड़ा रिश्ता (relationship) और कोई नहीं हो

सकता। हमें इसकी ख़ुशी हो जाए, इसका नशा हो जाए। अब दूसरी चीज़ हैं कि उसके स्वरुप पर बुद्धि

को स्थिर करें यानी बुद्धि के नेत्र से उसको देखें, महाज्योति – उससे किरणे फ़ैल रही हैं चारो और

शान्ति की, शक्तियों की, आनंद की, प्रेम की, पवित्रता की। बस उसे जैसे हम देख ही रहे हैं। उसकी

महिमा करते हैं और बुद्धि से देखते रहें। दोनों चीज़ साथ – साथ करनी हैं। अगर हम केवल महिमा

करेंगे, बुद्धि उसपर स्थिर नहीं करेंगे तो भी योग नहीं होगा।

रुपेश भाई — — — – भक्ति में केवल महिमा ही करते रहें।

सूर्य भाईजी — — — – तो हमारा उससे कनेक्शन (connection) नहीं हुआ और अगर हम उसपर केवल ध्यान

लगायेंगे, संकल्प नहीं करेंगे तो भी मन जल्दी ही भटक जाएगा, सुखा हो जाएगा तो संकल्प करें हमारे

परमपिता शिव बाबा शान्ति के सागर हैं। उनसे चारो और शान्ति की किरणे फ़ैल रही हैं। वो पवित्रता के

सागर हैं – पवित्र किरणे फ़ैल रही हैं। थोड़ा – थोड़ा समय देकर। मैं फ़ास्ट (fast) बता रहा हूँ। वो

सर्वशक्तिमान हैं – शक्तियों की किरणे फ़ैल रही हैं और फिर ये किरणे मुझे आ रही हैं। देखिये बहुत

बड़ा सिद्धांत हैं – जिस भी चीज़ को हम विजुअलायिज़ (visualize) करेंगे उसकी किरणे, उसकी वाइब्रेशन

(vibration), उसकी तरंगे हमें आने लगेंगी तो परमात्म किरणे हमें आ रही हैं। प्रोसेस (process) सिंपल

(simple) करें :- उससे निकली हुई किरणें फाउंटेन (fountain) के रूप में मुझ पर आ रही हैं। सामने वो हैं।

अब तो परमधाम भी भूल जाएगा। ब्रह्मलोक बिल्कुल सामने हैं। उसकी किरणे मुझपर पड़ रही हैं। थोड़ी

– थोड़ी देर इसपर एकाग्र (concentrate) करें। यह योग की बहुत अच्छी विधि हैं। योग के कई तरीके हैं।

फिर हम उनसे बात भी करें। बहुत अच्छी बातें अपने परमपिता से की जा सकती हैं :-

हम तो तुम्हें कब से ढूंढते थे। तुम आये तो हमें पता चला कि तुम तो हमारे ही हो। हम तो तुम्हारें बारे

में न जाने क्या – क्या कल्पना करते थे – भगवान् ऐसा होगा, वैसा होगा, डराने वाला होगा, वो तो

महाकाल हैं, वो तो मौत दे देता हैं पर हम तो तम्हारे पास आये, तुम तो प्यार के सागर हो। हमने

तुम्हारे प्यार को अनुभव कर लिया। अब तो हम तुम्हारे हो गए, सदा तुम्हारे ही रहेंगे; तुम्हारी आज्ञाओं

पर चलेंगे; जो तुम कहोगे वो ही हम करेंगे; अब हम और तुम हो; संसार को तो हमने देख लिया; अब

तुम्हे देखने का मौका मिला हैं; अब तो तुम हमारे खुदा दोस्त बन गए हो; अब तो तुम हमारे जीवन में

समा गए हो। बस अब तो समाये ही रहोगे। हम तुम्हे जाने नहीं देंगे।

मुझे एक बहुत अच्छी बात याद रही हैं अपने बचपन के समय में, सूरदास जी एक गड्डे में गिर गए तो

सोचा अब कैसे निकलूं। निकल नहीं सकते थे, आखें थी नहीं तो सोचा गीत गाता हूँ। कोई सुनेगा, आ

जाएगा तो गीत गाना शुरू किया अपना तम्बोला बजा के। कोई आया, उसने सूरदास जी का हाथ पकड़ा

और बहार निकाल दिया और चल दिए, बोले कुछ भी नहीं। अब सूरदास जी को महसूस हुआ यह कोई

और नहीं, यह तो स्वयं श्री कृष्ण आये थे। कवी थे, वो तो महाकवि हुए हैं। फिर से गीत गाया – “बाँह

छुड़ाए जात हो निर्बल जान कर मोहे। ह्रदय से जब जाओगे सबल जानूंगा तुम्हे II”

मुझे बड़ा अच्छा लगा – बाँह तो छुड़ा कर जा रहे हो बिना बोले लेकिन मेरे दिल से जा के दिखाओ तब

तुम्हे सर्वशक्तिवान मानूँ। हम भी अपने परम पिता को कह दे तुम तो हमारे दिल में समा गए हो, तुम

निकल नहीं पाओगे। हमने तुम्हे अपने में समां लिया हैं, तुम तो हमारे हो। तुम प्यार के सागर हो। ऐसी

बातें करें उससे तो भगवान से बातें करने का आनंद, इससे बड़ा आनंद संसार में और कोई नहीं हो

सकता। यह हैं सिम्पुल योग की विधि। इसको बढ़ाते चलेंगे, बहुत आनंद आएगा।

रुपेश भाई — — — – भ्राताजी, अभी इतना आनंद आ रहा हैं। लगता हैं कि इस चर्चा को ही आगे बढ़ाये

लेकिन कुछ समस्याएं भी आई हुई हैं। समस्यायों की ओर मैं आपको लिए चलता हूँ। हमारे पास स्वर्ण

जी लिखती हैं कि “मेरी एक सोलह साल की बेटी हैं। मैं उसे हर प्रकार की चीज़ें देती हूँ लेकिन वो कभी

भी संतुष्ट नहीं होती और उसके मन में बहुत ज्यादा नकारात्मकता (negativity) हैं और वो यह कहती हैं

मैं जीना नहीं चाहती मर जाना चाहती हूँ। मैं चाहती हूँ कि मेरी बेटी खुश रहें और उसे मैं तमाम प्रकार

की चीज़ें भी खुश रहने के लिए प्रदान कर रही हूँ लेकिन मैं उसे खुश नहीं रख पा रही हूँ। कैसे मैं उसके

अन्दर से नकारात्मकता (negativity) को निकालू और कैसे उसके श्रेष्ठ भविष्य की ओर उसे आगे बढ़ने के

लिए प्रेरित करूँ?”

सूर्य भाईजी — — — – बहुत ही अच्छी बात हैं यह।

रुपेश भाई — — — – आजकल भ्राताजी, युवाओं (youngsters) में यह एक मेंटालिटी (mentality) नकारात्मकता

(negativity) की या सुसाइडल टेंडनसी (suicidal tendency) की बहुत ज्यादा बढ़ती जा रही हैं और पेरेंट्स

(parents) इससे बहुत ज्यादा परेशान हैं।

सूर्य भाईजी — — — मैं यह सोच रहा था, देखो एक माँ तो अपनी बच्ची को कितना खुश देखना चाहती हैं।

और बच्चे जैसे खुश हैं, उसके बच्चे भी बहुत खुश रहे। इसलिए एक माँ – बाप बच्चे के लिए सब कुछ

करते हैं चाहे क़र्ज़ ले के करें, चाहे बेचारे अपने को अभाव में रख कर करें।

रुपेश भाई — — — इन्होंने भी कहा भ्राताजी चाहे कुछ भी करना पड़े मैं हर प्रकार की चीज़ उसके लिए

करती हूँ ताकि वो खुश रहे।

सूर्य भाईजी — — — – खुश नहीं होती, संतुष्ट नहीं होती। यह देखिये और कोई तो जान नहीं सकता लेकिन

ईश्वरीय ज्ञान से हम जानते हैं – आत्मा पूर्व जन्मों से बहुत कुछ लेकर आई हैं। इसे हो सकता हैं

आपसी संबंधो में, रिश्ते – नातों में भी धोखा मिला हो, कष्ट मिला हो। हो सकता हैं वस्तुओं की

अधिकता इसके पास रही हो लेकिन उससे इसको सुख न मिला हो, कष्ट बहुत पहुंचा हो, इसलिए इसके

मन में असंतोष की भावना सदा सदा के लिए घर कर गयी हैं। उसी स्वरुप में इसकी मृत्यु (death) हुई,

भय कंटिन्यू (continue) रहा इसके जीवन में, तो वास्तव में इसका ईश्वरीय ज्ञान राजयोग के द्वारा ही

अच्छा हल किया जा सकता हैं। मैं इनको एक बहुत अच्छी बात सज्जेस्ट (suggest) करता हूँ कि रोज़

सवेरे उठ कर ये दस मिनट अपनी इस बच्ची को गुड (good) वाइब्रेशन (vibrations) देंगे, और गुड (good)

वाइब्रेशन (vibrations) देने का तरीका ये अपनाएंगे :-

मैं मास्टर ऑलमाइटी हूँ और ऑलमाइटी के गुड (good) वाइब्रेशन (vibrations) मुझे आ रहे हैं और फिर

मुझ आत्मा से उस बच्ची को जा रहे हैं और वो बहुत खुश हो रही हैं (and she is becoming very happy) ।

एक तो यह अभ्यास दस मिनट रोज़ करेंगे क्योंकि इन्हें अध्यात्मिक (spiritual) मदद उन्हें करनी हैं।

स्थूल में तो इन्होंने सब कुछ कर के देख लिया कुछ परिणाम नहीं निकला। दूसरा सवेरे उठकर वहीं 5

बजे जब यह बच्ची सोयी हो, ये उसे बहुत अच्छे विचार देंगे, वाइब्रेशन (vibrations) देंगे :

तुम बहुत अच्छी आत्मा हो, बहुत खुश हो, तुम जैसी खुशनसीब इस संसार में कोई नहीं। तूने तो बहुत

अच्छे कर्म किये हैं। अब तुम सदा खुश रहा करो। तीसरी चीज़, ये विज़न (vision) देखेंगी – अपनी बच्ची

को देखेंगी कि बच्ची मुस्कुरा रही हैं, बहुत आनंदित हो रही हैं, बहुत खुश हैं। अब हमारे घर में आनंद

का, ख़ुशी का माहोल हो गया हैं। यह विज़न (vision) भी देखेंगे कि अब से एक मास के बाद यह स्थिति

लौट आई हैं तो यह तीन चीज़ यदि ये अपनाएंगी तो निश्चित रूप से बच्ची घर लौट आएगी।

रुपेश भाई — — — बहुत – बहुत शुक्रिया भ्राताजी। स्वर्ण जी के लिए मुझे लगता हैं कि ये बिल्कुल प्राण

वायु कि तरह कार्य करेंगी। जो आपने अभ्यास बताये हैं और यदि सिंसियरली (sincerely) इन अभ्यास को

करती हैं तो बिल्कुल ही परिवार का जो माहोल हैं खुशनुमा हो जाएगा। आपका बहुत – बहुत धन्यवाद।

मित्रो, यदि जीवन में कोई समस्या हैं तो निश्चित रूप से उसका समाधान भी हैं। हम कई बार कह चुके

हैं कि संसार में कोई भी ऐसा ताला नहीं हैं जो बिना चाभी के बना हो। अगर ताला हैं तो उसकी चाभी

भी अवश्य हैं। यदि समस्या हैं तो उसका समाधान भी अवश्य हैं। यदि आपके पास कोई समस्या आ

गयी हैं तो आप हमें लिख कर के भेज सकते हैं; एस.एम.एस. (SMS) कर सकते हैं; फ़ोन (phone) कर

सकते हैं। हम यह चाहते हैं कि आपका जीवन समस्यायों से मुक्त हो, समाधान युक्त हो। आप हमेशा

हँसते रहे, मुस्कुराते रहें और जीवन का सम्पूर्ण आनंद प्राप्त करें। समाधान में आज के लिए इतना ही।

दीजिये इज़ाज़त। नमस्कार।

Categories: Youth Problems

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