Samadhan Episode – 000120 Self Confidence
CONTENTS :
1. सहन शक्ति और क्षमा दान |
2. भोग लगाने की विधी और उसका लाभ |
3. आत्म-विश्वास और सफलता |
4. योग लगाने की विधी |
5. एकग्रता और अभ्यास |
रुपेश जी — — — — — नमस्कार! आदाब! सत् श्री अकाल! मित्रों! समाधान कार्यक्रम में
एक बार पुनः आप सभी का स्वागत है | पिछली बार हम चर्चा कर रहे थे की यदि
कोई तकलीफ देता है तो उसके लिए मन में बहुत नेगेटिव फीलिंग्स (negative
feelings) आ जाती है और परेशानियाँ बढ़ जाती है | जब इसकी चर्चा कर रहे थे
तो मुझे एक बहुत ही प्रेरक कहानी याद आ रही थी की एक सन्यासी गंगा में
स्नान कर रहे थे उन्होंने देखा की एक बिच्छु बहता हुआ जा रहा हैं उन्होंने बिच्छु
को उठाया अपने हाथ में और बहार की और ले जाने लगे ताकि बिच्छु के प्राण
बच सके, बिच्छु ने डंक मारा और फिर से पानी में कूद गया | सन्यासी ने फिर से
उस बिच्छु को उठाया और किनारे की और चलने लगे फिर से बिच्छु ने डंक मारा
पानी में कूद गया, ये घटना बार बार जारी रहा | किनारे कोई खड़ा हुआ था उसने
कहा महाराज छोड़िये ने बिच्छु को मर जाने दीजिये | सन्यासी जी ने एक बहुत
सुन्दर बात कही उन्होंने कहा की देखो “यदि दुष्ट अपनी दुष्टता नहीं छोड़ रहा हैं
तो सज्जन को अपनी सज्जनता भी तो नहीं छोडनी चाहिए !” बिच्छु का काम है
डंक मारना है लेकिन एक सज्जन व्यक्ति का काम है किसी के प्राण बचाना |
वास्तव में कितनी महान विचार हैं और यदि ऐसे ही महान विचार हमारे जीवन में
होते है तो छोटी मोटी घटनायें हमारे लिए सहेज हो जाती है और छोटी मोटी न
भी हो बहुत बड़ी भी हो तो भी हमारा जीवन सरल, सहज, सुखमय और शांतिमय
हो जाता हैं | आएये इन सुन्दर विचारों के साथ आज के इस एपिसोड (episode)
की शुरुवात करते है आदरणीय भ्राताजी के साथ | भ्राताजी आपका बहुत बहुत
बहुत स्वागत है ( भ्राताजी – थैंक्स (thanks!) ) भ्राताजी पिछली बार जो हम चर्चा
कर रहे थे एक फ़ोन कॉल (phone call) आया और उन्होंने भी यही बात कही की
सचमुच क्षमा कर देना यदि जीवन में बहुत बड़ी बड़ी बातें किसी व्यक्ति ने हमारे
लिए की हो और उसे हम अभी भी झेल रहे हो और ऐसा लग रहा हैं की पूरे
जीवन झेलना पड़ेगा तो उस व्यक्ति को क्षमा करना बहुत दूभर हो जाता है,
कठिन हो जाता है |
बी के भ्राता सूर्या जी — — — — — बिल्कुल! यही बात जो आपने कही जो महाराज ने
कही, महात्मा ने कही (रुपेश जी — — जी !) की दुष्ट यदि अपनी दुष्टता नहीं
छोड़ता तो हम अपनी सज्जनता को महानताओं को क्यों छोड़े | हमारा काम सुख
देना है उनका काम कष्ट देना है आखिर एक दिन आएगा उनको भी जो वो दूसरों
को कष्ट दे रहे हैं उसका रिटर्न (return) प्राप्त हो जायेगा | हम जो दूसरों को
सुख दे रहे हैं हमे उसका रिटर्न (return) प्राप्त हो जायेगा | लेकिन ये इस
महानता को अपने अन्दर लाने के लिए मनुष्यों को अपना स्पिरिचुअल लेवल
(spiritual level) बहुत ऊँचा उठाना पड़ता है नहीं तो टिट फॉर टेट (tit for tat),
जैसे को तैसा, यहीं मनुष्य का स्वाभाव बन गया है आजकल और इससे बहुत
नुकसान हो रहे हैं | जो आपसी मतभेद है, जो तनाव हैं, जो कटुता हैं वो रुक नहीं
पा रही है इन चीजों के लिए | लेकिन अगर एक झुक जाये, एक का मन
सद्भावनाओं से भर जाये तो वास्तव में ये समस्या हल हो जाती हैं | हम इस
समय बहुत अधिक अनुभव से देखते है महात्मा बुद्ध का जीवन चरित्र की उनको
कष्ट दिया जा रहा था उसके अपने ही चचेरे भाई की और से सबसे ज्यादा और
भी थे लेकिन उनके ओर से सबसे ज्यादा | लेकिन उनकी सहनशीलता, उनकी
सदभावनाएँ ये तो सचमुच प्रशंसनीय हैं ही और आखिर जीत उनकी, नाम उनका
हैं, आज गायन उनका हैं, महिमा और धर्म उनका हैं, करोड़ो लोग संसार के उनके
अनुयायि हैं और देवदूत को नहीं पहचानता | तो एक ऐसा व्यक्ति जो क्रूर हो,
तत्कालीन तो अपने को अच्छा महसूस करता है और ये भी सोचता है मेरी विजय
हो रही है लेकिन वो सदा के लिए हार जाता हैं |
रुपेश जी — — — — — जी जी ये बहुत सुन्दर बात है भ्राताजी जो आपने कही की यदि
पूरा इतिहस खंगाला जाये तो सचमुच ऐसे लोगों की ही स्तुति की जाती है, महिमा
की जाती है उन्हें आदर्श माना जाता हैं | जिन्होंने सत्य का राह अपनाया, जिन्होंने
सहा सत्य के लिए और जिन्होंने कष्ट दिया शायद मैं समझता हूँ कही भी न
उनकी प्रतिमा है और न ही उनकी कही जीत है ( भ्राताजी — – अगर प्रतिमा बना
भी दी जाये तो उस पर कवे ही बैठते है ) बिल्कुल ! ( भ्राताजी — – वो तो धुल
लग कर…. ) और यदि बनाते भी है भ्राताजी रावण की प्रतिमा तो उसे जला भी
देते है (भ्राताजी — – जला भी देते है ) क्योंकि वो बुराई का प्रतिक है ( भ्राताजी — –
बिल्कुल ऐसी ही बात है | ) |
रुपेश जी — — — — — भ्राताजी मैं आपको आज के प्रश्न की और ले चलता हूँ ये
हमारे पास स्वाति दुबे जी का डालटनगंज से आया है | ये कहती है की हम ज्ञान
में नए नए जुड़े है और हमने सुना है की भोग लगाने से, भोगनायें समाप्त हो
जाती हैं, सभी समस्या नष्ट हो जाती हैं | कृपया बताये की भगवान को भोग
लगाने की विधि क्या हैं और ये आगे भी पूछती है की भगवान हमे दिखाई नहीं
देते ही हम उन्हें कैसे देख सकते है ?
बी के भ्राता सूर्या जी — — — — — भगवान को देखना भी हैं और जो अभोगता है जो
खाता नहीं हैं | (रुपेश जी — – उसे भोग भी लगाना है, बहुत सुन्दर और यूनिक
(unique) बात है | ) यही स्पिरिचुअलिटी (spirituality) की अपनी सुन्दरता हैं,
ईश्वरीय ज्ञान और योग की यही ब्यूटी (beauty) है की जो दिखता नहीं हमे उसे
देखना हैं और जो खाता नहीं उसे खिलाना है तो हमारी एक बहन तो इस पर
अच्छा लेक्चर भी देती हैं, “भोग लगाओ और भोगनायें मिटाओ” | देखिये हम
मनुष्यों को खिलाते रहे, परिवार को खिलाते रहे, लोग अपने गुरुओं को भी भोग
लगाते हैं, हाला की गुरुओं से कुछ मिलता जूलता नहीं हैं धोखा ही मिलता हैं |
लोग देवी देवताओं को भोग लगते है लेकिन अपने परमपिता को भोग लगाना ये
सचमुच एक बहुत बड़ी प्यार का प्रतीक हैं, हम अपने प्यार को अर्पित करते हैं
उसको भोजन तो वो नहीं खाता लेकिन हमारे प्यार और भावनाओं को वो स्वीकार
कर लेता हैं | तो देखिये एक आम मान्यता भी हैं भगवान हमे खिला रहा हैं | तो
पहले हम खिलाने वाले को ऑफर (offer) कर दे तो इसके दो तरीके होंगे एक तो
जो भोजन रोज़ हम खाए उसको भी परमात्म समर्पित कर के ( रुपेश जी — – जो
भी हमारे सामने आये थाली में | ) जो भी हमारे सामने आये फिर हम भोजन करे
की तुमने हमे ये भोजन दिया हैं, प्रकृति को भी धन्यवाद दे और परमपिता को भी
धन्यवाद दे तुमने हमे ये पालना के लिए भोजन दिया हैं | अगर ये प्रकृति यदि
हमें भोजन न देती तो कैसा होता कुछ भी न चलता, संसार ही न चलता | दोनों
को थैंक्स (thanks) देके अर्पित कर देंगे पहले तुम स्वीकार करो हाला की वो नहीं
खाता लेकिन स्वीकार अवश्य करता हैं | और दूसरी चीज़ के जो ग्रहणी हैं उनको
चाहिए रोज़ न कर सके तो हफ्ते में एक दिन अवश्य अपने घर को साफ़ सुतरा
करे, अपने किचन (kitchen) को बिल्कुल अच्छा करे और उसी की याद में बहुत
अच्छा भोजन बनाये उससे बात करते हुए – हम आज तुम्हारे लिए भोग बना रहे
हैं, तुम तो प्यार का सागर हो तुमने हमे 84 जन्म खिलाया हैं अब हमारी बारी हैं
हम तुम्हें स्वादिष्ट भोजन खिलायेंगे, तुम तो हमारे परमपिता हो, सच्चे मित्र हो,
मेरे प्रियतम भी हो और ये अभ्यास करते हुए की “मैं परम पवित्र हूँ” भोजन बनाये
बहुत प्यार से | प्यार और श्रेष्ठ फीलिंग्स (feelings), पवित्रता के वाइब्रेशन
(vibration) इस तरह भोजन में भरेंगे क्योंकि ऐसे भोजन को ही भगवान स्वीकार
करेगा | कोई चाहे हम कुछ भी बना दे कैसे भी बर्तन में बना दे, गन्दे-सन्दे
किचन (kitchen) में बना दे, अपने को भी स्वच्छ न करे के बना दे वो भगवान
तक पहुचता ही नहीं हैं | तो भोजन भोग बनाने वाला है, जो मातायें भोग बनायेंगी
उनको सम्पूर्ण पवित्र होना चाहिए, नहा-धो कर, कपड़े बदल कर भोजन तैयार
करना चाहिए, प्यार और पवित्रता के संकल्पों के साथ जिनकी हमने चर्चा की |
अगर बर्तन भी बिल्कुल अलग रखने है हमे उनके और अगर किसी के घर में ये
व्यवस्था नहीं हो सकती तो बर्तनों को अच्छी तरह से साफ़ कर के फिर भोजन
बनायेंगे | लेकिन ऐसे बर्तनों का प्रयोग बिल्कुल नहीं करेंगे जिनमे नॉन वेज (non-
veg) बनता हो | उस किचन (kitchen) में भी भगवान का भोग नहीं बन सकता
जहाँ नॉन वेज (non-veg) बनता हो | फिर बहुत अच्छी तरह अलग बर्तनों में
भोजन रख कर के, एक फल भी रखे, पानी भी रखे और रख दे बाबा के सामने
और मन से बाबा का आह्वान करें की बाबा आ जाओ इस भोग को स्वीकार कर
लो ये हमने तुम्हारे लिए ही बनाया हैं, ये ब्रह्मा भोजन हैं, हमारा जो भण्डारा है
वो तुम्हारा ही भण्डारा हैं, भोलेनाथ का ये भण्डारा है, ये प्यार से बना हुआ भोजन
स्वीकार करो | और अगर बहुत अच्छा मैडिटेशन (meditation) हैं तो फील (feel)
करे शिव बाबा ब्रह्मा तन में प्रवेश कर के नीचे आ गये हैं और अपने हाथ से उन्हें
भोजन खिलाये, बहुत प्यार से | इससे भगवान तृप्त होते हैं, इससे वो प्रसन्न होते
हैं, इससे वाइब्रेशन (vibrations) घर में बहुत सुन्दर फैलते हैं क्योंकि बनाने वाले
ने बहुत प्यार से और पवित्र वाइब्रेशन (vibrations) में रह कर बनाया हैं और
परमात्मा उपस्थिति का अनुभव भी होता हैं तो अनेक आपदायें इससे समाप्त हो
जाती हैं | ( रुपेश जी — — बिल्कुल ! इसी को कहा जाता है “भोग लगाओ और
भोगनायें मिटाओ” | ) इससे कई समस्याएं समाप्त होती हैं | हमने देखा, हमने भी
ये बहुतों से प्रयोग करवायें है जो बिल्कुल कठिन काम थे, घर में आपदायें विपदाएं
आ रही थी, धन का बहुत आभाव हो रहा था, कष्ट ही कष्ट थे मैंने उन्हें कहा ७
दिन लगातार जरा सा बाबा को भोग लगा दो | जो कुछ भी तुम्हारे पास कम से
कम उसी का भोग लगा दो ड्राई फ्रूट (dry fruit) है तो ५ वो रख दो और कोई
फल है वो रख दो नहीं तो एक सब्जी बनाओ और दो रोटी बनाओ सुन्दर सी वो
रख दो | भगवान को इन सब चीजों का तो कोई मतलब नहीं, महत्व नहीं उसे तो
चाहिए हमारा प्यार और हमारी भावनाएं उससे वो राजी हो कर उस घर पर अपनी
दृष्टि डाल देता हैं, अपने वाइब्रेशन (vibrations) वहाँ दे देता है और समस्याएं
लोप होने लगती हैं |
रुपेश जी — — — — — भ्राताजी एक तो बात हुई की हम भोग विशेष बना कर के
लगाए लेकिन रोज़ जो हम भोजन खा रहे हैं क्या उसे भी इसी रूप में स्वीकार
कराना चाहिए ? (भ्राताजी — इसी रूप में लेकिन वो भोजन बिलकुल पवित्र होना
चाहिए अन्यथा उसको भगवान स्वीकार नहीं करते हैं | और मान लो वो किसी के
भी हाथ से बनाया गया हैं घर में जो पवित्र नहीं है तो उसे दृष्टि देकर ७ बार
संकल्प करना चाहिए “मैं परम पवित्र आत्मा हूँ”, तब उसको परमात्म अर्पण करना
चाहिए उसे हम ऐसे खिला नहीं सकते पर उसको हम अर्पित कर दे की ये तुमको
अर्पित है तुम्हारी और से हम खा रहे है | ) जैसे कई बार ऐसी समस्या आती है
कुछ लोग है जो ट्रेवेलिंग (travelling) करते हैं उन्हें बहार का भी भोजन, मान
लीजिये लम्बे टूर (tour) पर भी गए हैं तो संभव नहीं होता वहां कुछ बनाना तो
भी कुछ भोजन लेना पड़ता हैं, या कुछ लोग जो मिलिट्री (military) में है मेस
(mess) में खा रहे हैं उनके लिए या कुछ बच्चे जो हॉस्टल (hostel) में है उन्हें
वहां पे ये लेना पड़ता हैं तो वहां पे क्या इस भोजन को इस रूप में स्वीकार कर
सकते हैं ?
बी के भ्राता सूर्या जी — — — — — बिल्कुल उनके लिए ईश्वरीय आज्ञा यही हैं की वो
भोजन की थाली को लेकर सामने उसे दृष्टि देकर बहुत अच्छी तरह ७ बार संकल्प
करेंगे “मैं परम पवित्र आत्मा हूँ”, फिर उस भोजन को परमात्म अर्पित करे की ये
तुम्हारा भोजन हैं इसे स्वीकार करो तो उस पर भी भगवान की दृष्टि आ जाएगी
शिव बाबा की दृष्टि, जो रही सही इम्पुरिटी (impurity) हैं वो भी खत्म हो जाएगी
फिर उसे खाए |
रुपेश जी — — — बिल्कुल ! तो जो जहाँ पर भी हैं जरुर भोग लगा करके, भोग
स्वीकार कराये पहले परमात्मा को उसके बाद स्वयं ग्रहन करे ताकि वो भोजन
शुद्ध हो जाये पवित्र हो जाये | और विशेष रूप से यदि कोई आपदा हैं जैसे आपने
कहा ७ दिन, ११ दिन या २१ दिन जिस भी प्रकार से हो एक शुद्ध भोजन तैयार
कर के उसके पश्चात परमात्मा को अर्पित करे ताकि कोई भी समस्या है तो वो
समस्या दूर हो जाये |
बी के भ्राता सूर्या जी — — — — — हाँ ! इसके अलावा हम भोजन को बेस्ट मेडिसिन
(best medicine) बना सकते हैं बहुत सुन्दर औषदी | मान लो किसी को
डाइजेशन (digestion) की समस्या हैं भोजन पचता है नहीं या भोजन खाते ही
गैसेस (gases) बनती है, पेट दर्द होता हैं, एसिड (acid) बनता है तो भोजन को
ऐसे ही दृष्टि दे कर 7 बार संकल्प करे की “मैं परम पवित्र आत्मा हूँ”, फिर इस
संकल्प से खाए की ये भोजन मेरे लिए औषदी हैं, ये ठीक से हजम हो जायेगा
इससे मेरे पेट में कोई तकलीफ नहीं होगी, मैं बहुत हेल्दी (healthy) रहूँगा या
रहूंगी ऐसे संकल्पों के साथ | यानी भोजन खाने में भी हम जितना प्यार उसमें
हम भरते है न और उसको बहुत भावना से खाते है उसका इफ़ेक्ट (effect) बहुत
होता हैं | और मान लो भोजन आते ही हमने नाक चड़ाई, ये कैसा भोजन है पता
नहीं इसको खाने से कही तबीयत ख़राब ना हो जाये, मेरे तो पहले ही गैस बनती
है ये खाऊंगा तो और बन जाएगी | तो ये संकल्प भोजन में नेगेटिविटी
(negativity) भरेंगे और उसका नेगेटिव (negative) प्रभाव हमारे हेल्थ (health)
पर आएगा |
रुपेश जी — — — — — इसी लिए शायद हमारे संस्कृति में अन्नपूर्ण माता या अन्न
देवी कहा गया और इसके तिरस्कार को खास वर्जित किया गया की आप इसका
तिरस्कार बिल्कुल न करे |
बी के भ्राता सूर्या जी — — — — — बिल्कुल तिरस्कार नहीं और हमारे यहाँ तो हिन्दू
धर्म में बहुत अच्छी परम्परा रही थी की भोजन आते ही कुछ मंत्र जाप करते थे
और मंत्र जाप यही थे की भगवान को धन्यवाद, प्रकृति को धन्यवाद फिर थोड़ा सा
निकालते थे जीव जन्तुओं के लिए (रुपेश जी — – नीचे रखते थे) फिर खाते थे
(रुपेश जी — – बिल्कुल !) | तो ये मतलब भोजन को सम्मान देने की बात है, जब
हम भोजन को सम्मान दे रहे है तो भोजन भी हमे सम्मान देगा | ( रुपेश जी — –
– सम्मान भी देगा, डाइजेस्ट (digest) भी होगा और कभी अन्न का आभाव भी
नहीं होगा | )
रुपेश जी — — — — — भ्राताजी ये दूसरा जो हमारे पास प्रश्न है पायल है बंगा पंजाब
से है कह रही है की मेरा ग्रेजुएशन (graduation) पूरा हो गया हैं मैं पिछले २
साल से बैंक (bank) का एग्जाम (exam) दे रही हूँ लेकिन हर बार एक-दो नंबर
से चुंक जाती हूँ | इस बार फिर से मैं प्रयास कर रही हूँ कृप्या आशीर्वाद दे की
मेरा सिलेक्शन (selection) हो जाये |
बी के भ्राता सूर्या जी — — — — — हाँ बिलकुल हमारी शुभ भावनाएं तो इनके साथ है
ही | लेकिन मैं ये कहूँगा की जब तक इनका इंटरव्यू (interview) आये और
एग्जाम (exam) की रिजल्ट (result) आये तब तक ये रोज सवेरे उठ कर ७ बार
संकल्प करे “मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ” ,”सफलता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है”
बहुत कॉन्फिडेंस (confidence) के साथ की इस बार मुझे सफलता मिलेगी ही और
बहुत अच्छी भावना बैठा ले की “इस बार मेरा सिलेक्शन (selection) होगा ही” |
एक विज़न (vision) बना ले की मुझे अपॉइंटमेंट लैटर (appointment letter)
दिया जा रहा हैं बस अब जल्दी १५ में दिन या जितना भी दिन हो और उसको
एंजॉय (enjoy) करे की बस अब तो जॉब (job) मुझे मिल ही गयी जैसे | तो
इनके अपने जो सुन्दर वाइब्रेशन (vibration) है वो इनको सफलता दिलाएगी |
रुपेश जी — — — — — बिल्कुल ! हम उम्मीद करते है भ्राताजी, उम्मीद ही नहीं हमे
पूरा विश्वास है की ऐसे सुन्दर अभ्यास से पायल इस बार निश्चित रूप से सेलेक्ट
(select) होंगी और जब आप सेलेक्ट हो जाये पायल तो निश्चित रूप से हमे खुश
खबरी अवश्य दीजियेगा ताकि हम फिर से इसे शेयर (share) करे | भ्राताजी ये
हमारे पास अगला आया है बैतूल से शारदाजी लिख रही है कहती है की मेरा बेटा
पढ़ाई में बहुत अच्छा है लेकिन अब उसे क्रिकेटर (cricketer) बनने का शौक चढ़
गया है | ज्यादातर समय क्रिकेट (cricket) खेलता रहता है लेकिन इस फील्ड
(field) में उसे आगे बढ़ने के सही अवसर नहीं मिल रहे है इससे वो चिड़चिड़ा हो
गया है और देर रात तक उसे नींद भी नहीं आती है, कृप्या बताये क्या करे ?
बी के भ्राता सूर्या जी — — — — — देखिये यही हुआ की वो पढ़ने में बहुत इंटेलीजेंट
(intelligent) है अब वो पढ़ाई छोड़ कर क्रिकेट को समय दे रहा है उसमे उसे
प्रॉपर (proper) सफलता नहीं मिल रही है तो उसमे क्न्फुसन (confusion) हो रहा
है की इससे तो अच्छा है मैं पढूं | लेकिन उसकी रूचि जो की उस तरफ है तो दो
रुचियों में क्लैश (clash) हो रहा हैं | इससे इसको डिप्रेशन (depression) सा हो
रहा है इसलिए इसको नींद नहीं आ रही हैं परन्तु ये तो जीवन के लिए अच्छा नहीं
हैं इस लड़के को मैं डायरेक्ट (direct) कहूँगा की जीवन बहुत इम्पोर्टेन्ट
(important) चीज़ हैं | आगर एक फील्ड (field) में मनुष्य को मन चाही सफलता
ना मिल रही हो तो दो तरीके है या तो उसे छोड़ के दूसरा जो फील्ड है इसका की
भई है ये बहुत इंटेलीजेंट (intelligent) है अपनी स्टडी (study) पर ध्यान दे बहुत
अच्छे मार्क्स (marks) ले और फिर काम्पटिशन (competition) दे बहुत अच्छी
सर्विसेस (services) में जाये | और अगर इसको इच्छा है की नहीं मुझे तो
क्रिकेटर (cricketer) ही बनना है तो ये निराश न हो और पुनः पुनः प्रयास करे
अच्छा खेले ये इसको पता चल जाना चाहिए की उसकी गलती कहाँ हो रही है,
उसके कंसंट्रेशन (concentration) में गलती हो रही है या वो इमोशनल
(emotional) बहुत है, जल्दीबाज़ी बहुत कर देता हैं क्योंकि क्रिकेट एक ऐसा खेल
है की इसकी सफलता के लिए मानसीक बैलेंस (balance) बहुत जरुरी है, निर्भयता
बहुत जरुरी है ( रुपेश जी — — कंसंट्रेशन (concentration) बहुत जरुरी है) एंजॉय
(enjoy) करे ये न रहे बस गेंद ही दिख रही है ऐसा कंसंट्रेशन (concentration) |
और एंजॉय (enjoy) करे खेल को जल्दीबजी कर देना और मुझे फटाफट रन (run)
बना लेने है, छके-चोके मारने है इससे आउट (out) हो जाते है इससे सफलता नहीं
होती |
रुपेश जी — — — — — दो बातें शायद हो सकती है भ्राताजी जो मेरे भी समझ में आ
रहा है कृपया इस पर प्रकाश डाले | एक बात तो ये है की सम्भव है की बहुत
अच्छा प्लेयर (player) है, बहुत अच्छी प्रैक्टिस (practice) कर रहा है, बहुत
अच्छी मेहनत कर रहा हैं जैसे इनकी माँ बता रही हैं और सम्भव तो हो की वो
अपनी खामियाँ दूर भी कर रहा हो | लेकिन खेलों में भी भ्राताजी आजकल
पालिटिक्स (politics) आ गया है | तो उसमे संभवता इन्हें वो अवसर प्रधान न
किये जा रहा हो जिसके कारण इनके अन्दर चिड़चिड़ापन डिप्रेशन (depression)
आ गया हो ये भी एक प्रॉब्लम (problem) सम्भव है |
बी के भ्राता सूर्या जी — — — — — बिल्कुल ये आजकल प्रॉब्लम (problem) जहाँ तहां
चल ही रही है और इसका कारण भी यही है की उनके लड़के बहुत सारे खेलते है
| वो अपनों को आगे बढ़ाना चाहते है उन्हें देश आदि की तो चिंता नहीं होती है
आजकल के तो नेता ऐसे ही | उनका लड़का आगे जाना चाहिए, वो टीवी (tv) पर
आ जाये, उसका नाम हो जाये | लेकिन मैं इनको कहूँगा ये जैसे ही खेल शुरू
करने जाये तो ये ७ बार ये अभ्यास कर के जाये “मैं मास्टर सर्व शक्तिमान हूँ,
सफलता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है” | और अपनी इस बात को परमपिता पर
अर्पित कर दे की देखिये मैं तो सच्चे मन से खेल रहा हूँ और ये मेरा टारगेट
(target) है आगे तुम संभाल लो, उसे अपना खुदा दोस्त बना ले तो वो भी इनकी
लाइन (line) बहुत अच्छी क्लियर (clear) करेंगे और निशचित रूप से जो
पोलिटिकल डिस्टर्बेंस (political disturbance) है पोलिटिकल (political) न हो
औरों का ही हो ये समाप्त हो जायेगा और इन्हें सफलता अवश्य मिलेगी |
रुपेश जी — — — — — तो अपनी तरफ से अपना प्रयास जारी रखे और आपने बहुत
सुन्दर इन्हें practice भी दे दी है की मैं मास्टर ऑलमाइटी हूँ, सफलता मेरा
जन्म सिद्ध अधिकार है”, निश्चित रूप से इस अभ्यास को कर के जायेंगे तो
सेंचुरी (century) लगा कर आयेंगे और दस के दस विकेट झटक कर आयेंगे ऐसी
हम उन्हें शुभ कामनाएं देते है |
रुपेश जी — — — — — भ्राताजी अगला हमारे पास प्रश्न देहली (delhi) से आया है _
पुनीत जी कहे रहे है की मैं शर्मीले नेचर (nature) का हूँ, इंट्रोवर्ट (introvert) हूँ
ऑफिस (office) में सब लोग इसलिए मेरा मज़ाक उड़ाते है और इसके कारण मैं
कई नौकरी छोड़ चूका हूँ, कृपया बताये की मुझे ऐसे में क्या करना चाहिए?
बी के भ्राता सूर्या जी — — — — — देखिये नौकरी छोड़नी की तो बात नहीं जब वो
मज़ाक उड़ाये तो ये भी मुस्कुरा दिया करे इसका अच्छा तरीका ये है | जब वो
मज़ाक उड़ाते है ये चिड़चिड़ा हो जाता है उनकी तरफ जरा घूरता होगा तो उनको
और मज़ा आता है (रुपेश जी — — और मज़ा आता है| ) वो और करेंगे और ये
होगा परेशान | प्रैक्टिकल (practical) तरीका इस चीज़ को लाइटली (lightly) ले
और मुस्कुरा के आगे बढ़े अपना काम चालू रखे तो वो समझ जायेंगे भई हमारी
जोक्स (jokes) असर नहीं पड़ते (रुपेश जी — — दाल नहीं गलने वाली है| ) इसको
छोड़ दो | ये ठीक है अपने काम में मस्त रहता है | ये साइकोलजी (pshycology)
का प्रयोग इन्हें अवश्य करना चाहिए | लेकिन इनकी जो शर्मीली नेचर (nature) है
बहुत जो ये इंट्रोवर्ट (introvert) है किसी से मिलते-झूलते, घुलते-मिलते नहीं इसको
दूर करने के लिए इन्हें कुछ प्रैक्टिस (practice) अवश्य कर लेनी चाहिए और
उसकी प्रैक्टिस (practice) हमारे ईश्वरीय ज्ञान में है स्वमान की प्रैक्टिस
(practice) | स्वमान से हम खुल जाते है हमे अपनी विशेषताओं का आभास होता
है, हमे अपनी शक्तियों का आभास होता है वो जागृत होने लगती है और ये जो
शर्मीली नेचर (nature) है समाप्त होने लगती है | हमारे यहाँ सेवाओं के बहुत
अच्छे-अच्छे प्रोग्राम्स चलते है जिसमे हम एक्सबिशन (exhibition) लगाते है गाँव-
गाँव में जा कर | ये हर सेंटर (centers) हर सेवाकेन्द्र की और से प्रोग्राम्स चलते
ही रहते हैं | स्कूलों में भी हमारे प्रोग्राम्स चलते है बच्चों को बहुत कुछ सीखाने के
और भी बहुत सारे प्रोग्राम्स चलते है | ये उनमे हिस्सा लेने तो चित्रों पर ये जब
समझायेंगे तो इनमे जो शर्मीली शर्मीलापन है न वो थोड़ा खुलने लगेगा (रुपेश जी
— — वो शायद मिक्स उप (mix up) नहीं होते होंगे किसी के साथ| ) हाँ ! वही
वहां खुलने लगेगा और वहां प्रदर्शनी में और भी भाई-बहन बहुत आते है तो
निश्चित रूप से वो कब तक किसी से बात नहीं करेगा उसको तो करनी ही होती है
वहां | ये हमने बहुतों के केस (case) देखे की जो इस तरह के नेचर (nature)
वाले होते है जब वो इस तरह एक्सबिशन (exhibition) समझाने लगते है तो वो
बहुत खुल जाते है और फिर ये उनकी शर्मीली नेचर (nature) नष्ट हो जाती है
और वो अपनी field (फील्ड) में सफल होने लगते है |
रुपेश जी — — — — — बिल्कुल तो अच्छे स्वमान की प्रैक्टिस (practice) करे और
थोड़े से खुलें बहार आये और यदि कोई टान्टिंग (taunting) करे, कमेंट्स
(comments) कर रहा है तो उतना ज्यादा उसे तवज्जो न दे ताकि करते करते
खुद ही थक जाये |
बी के भ्राता सूर्या जी — — — — — हाँ! अपने साथियों से भी इन्हें बात-चित करते
रहना चाहिए अभी क्योंकि इनको ऑफिसज़ (offices) में काम करना है बदलेंगे
कब तक कभी नौकरी मिलेगी कभी नहीं मिलेगीं और बात ये होगी जहां जायेंगे
वही ये समस्या होगी क्योंकि समस्या दुसरे नहीं हैं समस्या इनकी ही अपनी नेचर
(nature) है | इसलिए नौकरी बदलने से तो काम नहीं चलेगा, बदलने तो पड़ेगी
इन्हें अपनी नेचर (nature) | बस ये थोड़ा-थोड़ा सा घुलने-मिलने लगे, लोगों से
और अपने यहाँ जो सेवा के कार्य चलते है उनमें हिस्सा लेने तो इस नेचर
(nature) से ये बहार आ जायेंगे पावरफुल (powerful) भी बन जायेंगे, निर्भय भी
हो जायेंगे, मुस्कुराना भी सीख लेंगे और दूसरों से बात करने में इन्हें हिचक भी
नहीं होगी |
रुपेश जी — — — — — बिल्कुल! भ्राताजी ये रजनी जी है चंबा से कहती है की मैं कुछ
समय से में ब्रह्माकुमारिज़ विद्यालय में जा रही हूँ, योग में मेरी रूचि है लेकिन
योग लगता नहीं और एकाग्रता भी नहीं होती है, कैसे योग लगे ?
बी के भ्राता सूर्या जी — — — — — ये कुछ आने वालों की समस्या रहती है देखिये
कोई व्यक्ति तो ऐसा है बचपन से ही उसका स्वाभाव बहुत अच्छा, उसकी नेचर
(nature) बहुत अच्छी, खुश रहने की नेचर (nature), सरल स्वाभाव है, एकाग्रता
बहुत अच्छी है ऐसे लोग तो राजयोग के पथ पर आते ही तुरंत सफल होने लगते
है | लेकिन ऐसे भी कुछ है जो बहुत कुछ अपने साथ लाये है नेगेटिवीटी
(negativity), जिनका बचपन से ले कर और पढ़ने तक का और युवा काल किसी
बुरे संग में बीत गया है, उन्होंने अपने मन को बहुत भटका दिया है, कुछ गलत
काम भी कर लिए हैं | कई लोग तो ऐसे हमारे पास आते है जिन्होंने जीवन भर
शराब पी है एकाग्रता बिलकुल नहीं होती है हमसे पूछते है पता चलता है बहुत
शराब पी है | तो शराबी का ब्रेन (brain) एकाग्र नहीं हो सकता वो तो विचलित
होता रहेगा | तो ऐसे जो लोग आते है और इनकी भी ये बात ठीक है की इनका
योग नहीं लगता, इनको आनंद भी नहीं आता तो पहला ध्यान तो इन्हें देना
चाहिए सवेरे उठने पर, ये सवेरे अवश्य उठे क्योंकि सवेरे प्रकृति का जो सौन्दर्य है
(रुपेश जी — — सवेरे का भाव क्या है भ्राताजी ?) सवेरे का भाव है 4 बजे उठना
सूर्योदय से बहुत पहले उठना और तब दूसरी बात ये होती है की परमात्म शक्तियां
हमे बहुत मिलती है, यानी हमारा परमपिता हमें बहुत कुछ देने के लिए तत्पर
रहता है, सारा दिन नहीं, सारा दिन तो हम भी अपने में बिजी (busy) है हमे
उसकी ओर देखने का कम मौका मिलता है | लेकिन सवेरे हम भी उसकी और
देखते है और वो भी बहुत सारे वरदान, बहुत सारे सिद्धियाँ, बहुत सारी शक्तियां
हमे देने के लिए तत्पर रहता है उसका फायदा हमे मिलेगा | तो एक तो इन्हें
जल्दी उठना है इनका योग न लगे ये ईश्वरीय महावाक्यों का अध्यन कर ले या
एक दूसरा काम कर ले उठते ही ये शांत में बैठ कर लिखे “मैं मास्टर
सर्वशक्तिमान हूँ”, १०८ बार | लिखते-लिखते इनकी ब्रेन (brain) को बहुत अच्छी
एनर्जी (energy) जाएगी और २-४ दिन में इन्हें फील (feel) होने लगेगा की मन
एकाग्र होने लगा | आपे ही योगयुक्त हो जायेगा योग करने को मन करेगा |
इनकी ये एक परेशानी है की योग में उनको रूचि नहीं हो रही है, इंटरेस्ट
(interest) जैसा नहीं आ रहा है ऐसा नहीं लगता की जैसे कोई सुख मिलता है |
तो ऐसा लिखने से इनको एक सुख का आभास होने लगेगा और बहुत अच्छी
फीलिंग (feeling) इन्हें योग में मदद करेगी | फिर ये सुने रोज़ ईश्वरीय
महावाक्य, ईश्वरीय महावाक्यों में बहुत अच्छी-अच्छी चीज़े आती है सुन्दर विचार
हमे मिलते है कई-कई तो ऐसे विचार मिलते है जो हमारी बुद्धि की गाँठों को
खोल दे | उसको सुनने से इनको सुख भी मिलेगा, आनंद भी आयेगा | बाकि ये
ऐसा करे की पांच-पांच, दस-दस मिनट अपने घर में बैठ कर, तीन बार योग की
प्रैक्टिस (practice) करे, कमेंटरी की सीडी (cd) ले ले उनको सुने उनके अनुसार
चिंतन करे, विसुलाइजेशन (visualisation) करे | इस तरह धीरे धीरे प्रैक्टिस
(practice) करने से, लम्बा समय इनको नहीं बैठना | ये सोचे मैं भी घंटो बैठ कर
योग करूँ वो नहीं दस-दस मिनट तीन बार या पांच बार ये ऐसी प्रैक्टिस
(practice) डालेंगे तो सब कुछ सहज होता जायेगा |
रुपेश जी — — — — — बिल्कुल वैसे भी योग के मार्ग में या किसी भी मार्ग में पहला
कदम रखते है तो वो मार्ग कठिन प्रतीत होता ही है, असहज महसूस होता है
लेकिन जैसे जैसे अभ्यास करते जाते है सब कुछ सहज होता जाता है | भ्राताजी
आपका बहुत बहुत धन्यवाद !
मित्रों! कहा जाता है अभ्यास एक व्यक्ति को उत्तम बनाता है (practice makes
a person perfect) जितना ज्यादा हम अभ्यास करते है उतना ही कोई भी सहज
और सरल होता चला जाता है | हिन्दी में भी कहा जाता है की “करत-करत
अभ्यास के जड़मति होत सुजान” कोई भी चीज़ सहज तब बन जाती है जब हम
लगातार अभ्यास करते रहते है | इसलिए योग के मार्ग में यदि आपने शुरुवात की
है, आप हमारे नए-नए दर्शक है या फिर आप योग करना प्रारम्भ कर रहे है
ब्रह्माकुमारिज़ केन्द्र में जा कर तो आप लगातार अभ्यास करते रहे आप पायेंगे की
कुछ दिन के बाद योग बहुत ही सरल और सहज हो गया है | हमारी ढेर सारी शुभ
कामनायें है की आप योग मार्ग में बहुत आगे बढ़े और जीवन की तमाम
समस्याओं को सहज रूप से, सरल रूप से मुक्त होते जाये समस्याओं से इन्ही
शुभ कामनाओं के साथ आज के लिए दीजिये इजाज़त, नमस्कार !