Samadhan Episode – 00010 Children Problems
CONTENTS :
रूपेश जी — — – नमस्कार ! स्वागत है एक बार पुनः समाधान
में आप सभी का! चर्चा पुनः विद्यार्थियों पर! पिछली बार हम
मूल्यों की चर्चा कर रहे थे कि मूल्य ही वास्तव में विद्यार्थी को
मूल्यवान बनाते हैं! लेकिन आज कहीं न कहीं मूल्यों की चर्चा
बहुत कम हो गई है! जो चीज हमें मूल्यवान बनाने वाली है, जो
हमें सफलता की ओर ले चलनेवाली है, जिसपे देश का भविष्य
केन्द्रित है, आधारित है उस पर तो चर्चा अवश्य होनी चाहिए! ये
चर्चा हुई थी कि किस प्रकार से एज्युकेशन सिस्टम में इस चीज
को शामिल किया जाए! लेकिन जब तक ये बात एज्युकेशन
सिस्टम में नहीं आ रही है, तब तक व्यक्तिगत रूप से तो जरुर
हम मूल्यों पर ध्यान दे! और पेरेन्ट्स इस बात पर अवश्य
ध्यान दे कि अपने बच्चों के अंदर मूल्यों का बीजारोपण बचपन
से शुरू करे! ये चर्चा हमारी चल रही थी! बहुत सुन्दर चर्चा है,
क्योंकि इस पर ही विद्यार्थियों का भी भविष्य और देश का
भविष्य भी आधारित है! और इसी बात को लेकर के किसी भी
देश का भविष्य निश्चित रूप से सुनहरा हो सकता है! तो आज
पुनः हम इस चर्चा को भ्राता जी के साथ बढ़ायेंगे! हमारे साथ
स्टूडियो में विराजमान है आदरणीय राजयोगी सुर्य भाईजी!
भ्राता जी आपका बहुत बहुत स्वागत है! (भाई जी — धन्यवाद)
भ्राता जी जैसे हम चर्चा कर रहे थे पिछली बार भी मूल्यों की,
कि मूल्यों की आजकल चर्चा नहीं हो रही है! जितनी आवश्कता
इसकी आज के दौर में हो गई है उस कम्पेरिज़न में उसकी
चर्चायें भी नहीं है और साथ ही लोग इसके प्रति अवेर भी नहीं
है! तो क्या लगता है कि कैसे विद्यार्थीवर्ग इन चीजों की ओर
ध्यान दें! या किन किन मूल्यों की ओर ध्यान दें, ताकि उसका
जीवन सफलता की ओर आगे बढे!
बी के भ्राता सूर्या जी — — — हाँ बिल्कुल, विद्यालयो में भी
ऐसा वातावरण सभी को क्रिएट करना ही चाहिए और घरो में
भी! घर का वातावरण भी ऐसा हो जो खुशहाली से भरपूर हो!
हल्कापन भी हो वहाँ! वातावरण में टेन्शन न हो, प्रेशर न हो!
और इसके लिए जिम्मेदार है बड़े लोग! चाहे मात-पिता या उनके
मात-पिता या ओर बड़े लोग! कि वो किसी भी छोटी छोटी बातों
को तोल देकर वातावरण को हेवी न कर दे घर में! तो इससे
बच्चों में जो सिखने की ईच्छा है, सिखने की जो उनकी बुद्धि
की केपेबिलिटी है, वो कायम रहेगी! क्योंकि अगर एक प्रेशर
रहता है ना सदा ही, तो उनकी बुद्धि जैसे दबी-दबी, कुछ ओर
सिखने के लिए अब तैयार नहीं! उसमें विचार ही नहीं आयेंगे
कुछ भी! तो शुरुआत करे! चलो, विद्यालयो में न हो रही हो
क्योंकि… मैं कहना चाहूँगा है तो ख़राब बात कि सब कुछ
कमर्शियल हो गया है! कोई भी अगर स्कूल-कोलेज खोल रहा है
तो पहला उसका लक्ष्य है की कमाई कितनी होगी? तो लेकिन
बच्चों को एज्युकेट करना है, उन्हें विद्वान बनाना है, उन्हें
महान पुरुष बनाना है, उन्हें चरित्रवान बनाना है, क्योंकि किसी
भी देश की असली सम्पति उसके देशवासियों का चरित्र ही है!
जैसे हम भारतमाता के नारे लगाते है, भारत की महानताओं के
गीत गाते है! बहुत सारे गीत बने है लेकिन वो गीत भारत की
धरती के थोड़े ही है, भारतवासीयों के है!
(रुपेश जी — — — तो जितने चरित्रवान, निर्भिक, बुद्धिमान,
आज्ञाकारी, पवित्र द्रष्टिकोण रखने वाले, सरलचित्त, हर समस्या
को सहन करनेवाले – इन मूल्यों को जितना बच्चे लेकर चलेंगे,
तो यह भविष्य की नींव बनेंगे! और इनके आधारित उनकी
जीवन की ईमारत सचमुच ईतनी सुद्रढ़ होगी! मेरा यह भी लक्ष्य
होता है कहने का – कि जब वो एज्युकेशन पूरी करके एक
कर्मक्षेत्र पर पहुचेंगे, किसी भी जॉब पर जायेंगे, वो अच्छे
इंजीनियर बनेंगे या मेडिकल फिल्ड में जायेंगे या एडमिनिस्ट्रेटिव
सर्विसिस उनकी जिम्मेदारी होगी, वो लोगो के काम करेंगे तो
उस समय ये जो उनकी वैल्युज है, ये चाहे मै कहूँ उनकी
प्रसिद्धि का आधार बनेंगी, उनकी प्रमोशन का आधार बनेंगी!
इसी कारण से वो सम्मान अर्जित करेंगे!
रुपेश जी — — — मतलब वो केवल विद्यार्जन न करे लेकिन एक
अच्छे इन्सान बने! तो विद्यार्थीकाल केवल पढ़ने लिखने के लिए
ही नहीं है, केवल इन्फोर्मेशन के लिए नहीं है लेकिन एक अच्छा
इन्सान बने और अच्छा इन्सान बनायेंगे ये मूल्य! जिसकी चर्चा
पहले भी भ्राता जी हम लोग कर आये है की केवल
Qualification नहीं लेकिन Qualities भी डेवलप हो! केवल
शिक्षित ही न हो लेकिन वो दीक्षित भी हो! तो इन मूल्यों की
कहीं कहीं आवश्यता है! लेकिन बात भ्राता जी कई बार आ जाती
है यह कि कहते हैं हिंदी में की अकेला चना क्या भार फोड़
लेगा? तो यदि एक मैं ही सुधर जाता हूँ, या एक मैं ही अपने
अंदर मूल्यों को ले आता हूँ लेकिन बाकी सब ऐसे हैं! तो यह
बात कहीं न कहीं मूल्यों को धारण करने मैं विद्यार्थीयों को भी
कहीं पीछे रख देती है और बड़ो को भी पीछे रख देती है! तो
इस धारणा को कैसे दूर की जाए?
बी के भ्राता सूर्या जी — — — देखो जहाँ तक अकेले चने की बात
है – आसमान में सूरज भी तो अकेला है, सारे संसार के तम को
हर लेता है! रात्रि में पूर्णिमा का चन्द्रमाँ भी तो अकेला होता है
क्या सबके मन को आकर्षित करता है! महात्मा गांधी भी तो
अकेले थे! अकेला व्यक्ति ही संगठन तैयार करता है! क्या
स्वामी विवेकानंद ने सोचा था वो अकेला है वो क्या करेगा? देश
की स्थिति बहुत दयनीय थी! मैं तो समझता हूँ, जानता हूँ – न
एज्युकेशन थी, गरीबी बहुत ज्यादा हो गई थी! एडमिनिस्ट्रेशन
जो अंग्रेजो का था वो आफताई जैसा था, टॉर्चर कर रहे थे,
किसी को एज्युकेट नहीं करने देते थे, किसी को आगे नहीं बढ़ने
देते थे, उसने ये दुर्दशा सबकी देखी थी! तो अकेला ही व्यक्ति
चला ना! अकेला व्यक्ति चलता है तो उसके पीछे चलनेवाले ढेरों
आ जाते है!
रुपेश जी — — — कारवां बनता चला जाता है, मतलब हम
शुरुआत तो करे अपनी तरफ से!
बी के भ्राता सूर्या जी — — — इसलिए अगर किसी क्लास में ५०
में से ५ विद्यार्थी भी मूल्यवान बनने का, चरित्रवान बनने का
संकल्प कर ले! भले ही लोग उनकी हँसी मजाक उड़ायेंगे – कहाँ
चले हैं ईमानदार बनने, भूखे मरेंगे! हाँ, उठाई है सत्य की बात,
आज सत्य कहाँ चलता है! झूठ का राज्य है, झूठे जो हैं वही
आगे बढ़ रहे हैं, तुम तो पीछे रह जाओगे! कमेंट्स होंगे! अच्छी
बातों पे कमेंट्स होते हैं लेकिन अगर मनुष्य पाप करने से नहीं
डर रहा है तो वह अच्छे कार्य करने से, अच्छे गुण जीवन में
धारण करने से भी क्यों डरे? तो हम इस बात को हटा दें कि
अकेला क्या करेगा? अकेला ही संसार को दिशा दे सकता है!
रुपेश जी — — — बिल्कुल यदि कुछ लोग ये ठान ले विद्यार्थी वर्ग
ही मानले ये ठान ले कि नहीं, हमें अच्छाईयों को जीवन में
लाना ही है! चाहे सामाजिक परिवेश, परिस्थितियां कैसी भी हो!
तो निश्चित रूप से स्थितियां बदलेगी, लेकिन शुरुआत
करनेवालो की आवश्यकता है! और हम ये भी जानते है कि जैसे
आपने कहा कि कोई भी नये कार्य की शुरुआत होती है तो
निश्चित रूप से कुछ लोगो को आगे आना पड़ता है और जब वो
कार्य सफल हो जाते है तो बहुत सारे लोग उसके साथ जुड़ते
चले जाते है! तो मूल्यों को इस रूप में शुरू कर सकते है! भ्राता
जी ये भी देखा जाता है ना जहाँ तक एक नकारात्मकता की
बात आती है वो ये कि जब चारों तरफ जैसे हमने कहा की
भ्रष्टाचार का एक माहौल है, जो आजकल का एक बहुत ही
महत्वपूर्ण मुद्दा है! और इसको स्कुलो में ये पढ़ाया जाता है,
और स्कुलो में ये सुनाया जाता है बच्चो को ये सुनाया जाता है
की हम पढ़ाया करते थे कि "ओनेस्टी इज द बेस्ट पोलिसी!"
लेकिन अब जब ये बात कही जाती है तो बहुत दबी जुबान में
कही जाती है, क्योंकि ये बात जैसे आपने कही कि कौन
ईमानदार है! और ईमानदारी से क्या तुम प्राप्त कर लोगे!
आजकल तो शोर्टकट का मार्ग है तो ये शोर्टकट के माध्यम से
चाहे ऐजुकेशन में हो, चाहे अन्य क्षेत्र में हो वो सफलता प्राप्त
करना चाहता है! तो ये कहाँ तक सही है और यह कहाँ तक
आनंद दे पता है व्यक्ति को?
बी के भ्राता सूर्या जी — — — देखिये यही है कि संसार में पिछले
२० – ३० सालों में एक चीज मनुष्य में बहुत बढ़ गई है और वो
है लोभ! और इसका कारण विज्ञान की प्रगति से भी जुड़ा है!
विज्ञान ने इतनी चीजे बाजार में ला दी है की हर व्यक्ति को
पैसे की अत्यधिक आवश्यकता है! अब पैसा वो कैसे कमाये ये
वो सोचता नहीं है! मनी इज एवरीथिंग ओन एनी कोस्ट ही हेज
टु मेक मनी! तो इसके लिए वो सभी मूल्यों को ताक पे रख
देता है! वो देखता है फलाना व्यक्ति भी धनवान बना, तो
समाज में उसकी वैल्यु हो गई! है वो भ्रष्ट, है वो पापी, उसमें
दुर्गुणों की बोरियां भरी हुई है! लेकिन धनवान है, इसलिए
प्रेजीडेंट बना दिया गया! फलानी आर्गेनाइजेशन का उसको
अध्यक्ष बना दिया गया! सेक्रेटरी बना दिया गया! अरे भाई पैसे
की वैल्यु है! तो यह जो एक जो समाज ने एक रुख अख्त्यार
किया है! कि जिसके पास धन है वही वी.आई.पी है! जो
बुद्धिमान है जो बहुत शिक्षित है! बिचारे गरीब है उनकी कहीं
पूछ नहीं है इन चीजों ने भी कहीं ना कहीं मनुष्य के मन में
मूल्यों की आकर्षण को समाप्त कर दिया है! लेकिन अगर हम
करप्शन की ओर धन की बढ़ोतरी ही देखें तो ये देखने में आ
रहा है करप्ट लोग तो थोड़े ही होते है! मान लो नेताओं की चर्चा
हुई तो दो-चार नेताओं की बात हुई बदनाम हो गये सारे के सारे!
और एक लहर ऐसी फ़ैल गई की यही सब कुछ चलता है! कौन
बिल्ली को घंटी कौन बांधे बिल्ली के गले में! तो सब उसमें रम
गये!
लेकिन देखिये वो लोग सब जेल में गये, समाज में उनकी
बदनामी हो गई! और फिर सृष्टि का एक सुन्दर सा सिद्धांत है
कि गलत तरीको से कमाया गया धन कभी भी सुखदाई नहीं
होता! जब मै यह बात लोगों को बताता हूँ, प्रेक्टिकल बात
सुनाऊँ तो – कोई मात-पिता मेरे पास आये और कहा हमारे
बच्चे बिल्कुल मानते नहीं बिगड़ते जा रहे हैं! तो मैंने उनसे
बहुत सारी बात की, फिर मैंने उनको ये सिद्धांत बताया कि –
देखो बुरा न मानना, पर अब विचार जरुर करना इस बात का
कि बुरे ढंग से अगर धन कमाया जाता है उस धन से जिन
बच्चों की पालना होगी वो न चरित्रवान होंगे, न आपको सुख
देंगे! तो ये बात सुनके दोनों ही शांत हो गये! मैंने कहा शांत
क्यों हो गये? की बस यही बात हुई है हमारा धन पवित्र धन
नहीं है! हमने जिस ढंग से उसे कमाया है उसका परिणाम ये जो
बच्चों की जो स्थिति है, अब वो हमें टेन्शन दे रहें हैं! हमें
उनकी बहुत चिंता हो रही है! वो अपनी चिंता बिल्कुल नहीं कर
रहें है! उनको हमारी कोई केर नहीं है की हम भी कुछ परेशान
हो रहे है! तो उन्हें कुछ सुधरना चाहिए! तो इस बात, इस सत्य
सिद्धांत को भी हमारे विद्यार्थियों को अपने अंतर्मन में अभी से
समा लेना चाहिए की ईमानदारी से जो धन कमाया जायेगा, वो
धन जीवन को बहुत सुख देगा! उससे हमारी प्रोग्रेस बहुत होगी,
उससे जीवन में संतुष्टि बहुत होगी और हमारा धन शारीरिक
बिमारियों पर खर्च नहीं होगा!
रुपेश जी — — — बहुत ही सूक्ष्म बात कही है भ्राता जी आपने! न
केवल ये विद्यार्थियों के लिए है लेकिन सभी के लिए है की यदि
हम धन जिस प्रकार से कमा रहे है, यदि उसका तरीका गलत है
तो कहीं न कहीं उसका प्रभाव हमारे बच्चों पर भी दिखाई देगा,
हमारे परिवार पर भी दिखाई देगा, हमारे भविष्य पे दिखाई देगा
और साथ ही गलत तरीके से ही वो धन बाहर ही चला जायेगा!
यह बहुत सुंदर बात आपने कही! भ्राता जी विद्यार्थी वर्ग की
बात है, तो विद्यार्थी अपने जीवन में किस प्रकार सफल होने के
लिए मूल्यों को अपनाये? और कौन कौन से मूल्यों पर विशेषकर
के वो ध्यान दें?
बी के भ्राता सूर्या जी — — — हाँ, देखिये बहुत अच्छी ये बात है!
और विद्यार्थी जो अपने भविष्य को बहुत गोल्डन बनाना चाहते
है, जो चाहते हैं उनका समाज में भी नाम हो, उनके माँ-बाप भी
उनके परफॉरमेंस को देखकर अपने को गौरवान्वित अनुभव करे!
और देश भी कहीं ना कहीं उन पर गर्व करे! तो सफलता के
मार्ग पर चलने के लिए जैसे हम पहले से सूक्ष्म चर्चा करते आ
रहे है कि हमारी इनर पावर्स का बहुत अच्छा होना आवश्यक है!
उससे जुड़ी हुई है कुछ वैय्लुज! जैसे बहुत संतुष्ट रहकर जीवन
जीना! बहुत सहनशील बनकर जीवन जीना! बहुत एकाग्रचित्त
होकर जीवन जीना! संयमित रहकर जीवन जीना! और किसी हद
तक सत्यता को अपने जीवने में अपनाना! अपने बोल को
विषैला न करना! अपनी वाणी को मधुर रखना! अपने संबंधो में
तीन चीजे – प्यार, सम्मान और सहयोग रखना! ऐसे ही निर्भय
होना बहुत ज्यादा! अपने मनोबल को ऐसा द्रढ़ रखना, अपने
अंदर ऐसी द्रढ़ता लाना ताकि कोई भी समस्या सामने आ जाये
जिसे फेस करना पड़े तो हम नर्वस न हो जायें! हम सबकुछ
भूल न जायें! तो ऐसे ही जीवन को बहुत सरलता पूर्वक जीना,
ईगोलेस होना! अपने क्रोध को बिल्कुल कम करते चलना! कहीं
भी अपने अंदर ईर्ष्या-द्वेष को स्थान ही न देना! घृणा भाव से
सदा मुक्त रखना! सुंदर विचार रखना!
रुपेश जी — — — एक बहुत सुंदर आदर्श आपने रखा है भ्राता जी
कि ऐसा हो विद्यार्थी! और इन इन वैल्युज को अपने जीवन में
लायें! लेकिन इसका सोर्स क्या हो? अब ये होता है जैसे हमारी
चर्चा जहाँ पहुँचती है बार-बार वो ये है कि आस-पास जब चारों
तरफ का वातावरण ऐसा हो कि कहीं यह सोर्स दिखाई दे रहा न
हो! चाहे वो मिडिया की बात अप देख ले, न्यूज पेपर या
टेलीविजन जैसे ही हम ओपन करते हैं – हिंसात्मक बातें,
एक्सीडेंट की बातें, अन्य बातें तो सभी होती है दुन्यावी! लेकिन
ये जो मूल बातें है, मूल्यों की बातें हैं, शिक्षा की बातें हैं वो कहीं
भी दिखाई नहीं देता! तो एक विद्यार्थी से कैसे हम अपेक्षा रखे
कि इन सब चीजों को वो धारण करें! यदि करे तो कहाँ से करें?
बी के भ्राता सूर्या जी — — — कैसे करें! हाँ, यही बातें है और
यही सिखना और सिखाना परम आवश्यक है! क्योंकि जो भी
उपदेश करने वाले या अच्छी बात सिखाने वाले – वो यह तो कह
देंगे क्रोध न करो, क्रोध बहुत बुरा है इससे विवेक शक्ति नष्ट
होती है, गीता में यह कहा, फलाने ने यह कहा लेकिन क्रोध करे
कैसे न? क्रोध तो आता है! सिच्युएशन सामने आ जाती है कि
मनुष्य को क्रोध आता है! ऐसे ही भय भी हो जाता है मनुष्य
को! सत्यता का मार्ग पर भी चलना उसके लिए बहुत कठिन हो
जाता है! वो देखता है सत्य का मार्ग तो काँटों से भरा हुआ है!
जो झूठ का मार्ग है वो साफ है, उसमें हम दौड़ सकते हैं! सत्य
के मार्ग पर तो हम कहीं भी नहीं पहुंचेंगे! तो मेरे पास ऐसे ही
कुछ बहुत अच्छे इसके अनुभव है! जिसके आधार से हम अपने
इन सद्गुणों का, इन वैल्युज का जीवन में समावेश कर सकते
है! देखिये सिम्पुल सी बात है कि यह गुण हमारे अंदर थे! और
अब भी है! चाहे उनकी इन्टेन्सिटी कम हो गई हो! ऐसा नहीं कि
प्रेम आज मनुष्य के पास नहीं है! है, उसकी परसेन्टेज कम हो
गई है! ऐसा भी नहीं है की शांति उसके पास नहीं है, निर्भयता
उसके पास नहीं है, सत्यता उसके पास नहीं है, सहयोग देने की
भावना, सम्मान करने का संस्कार उसके पास नहीं है! यह सब
है, थोड़े रह गये है! लेकिन यह हमारे पास फुल परसेन्टेज में थे!
अभी वह नष्ट हुए हैं, कुछ को हमने दबा दिया है! समाज के
परिवेश ने, लोगो को देखकर, जैसे हम चर्चा कर रहे थे की भाई
इसकी जरुरत नहीं है कौन ऐसा कर रहा है! हमने उस पर
ध्यान नहीं दिया! वो जैसे बीज होता है, उसको धुप ना दो, पानी
न दो, अच्छी मिट्टी में नहीं लगाओ तो विकसित नहीं होगा!
नष्ट हो जायेगा! सड़ जायेगा! तो ये जो सदगुणों के बीज थे
हमारे अंदर, क्योंकि हमने इसका विकास नहीं किया, इनपे कुछ
चिंतन नहीं किया! इनके बारे में समाज में, हमारे गुरुजनों ने
शिक्षको ने किसी तरह का प्रकाश बच्चों को नहीं दिया! तो यह
भी जैसे लोप जैसे हो गये! लेकिन वो हैं! अब हमें उन्हें जगाना
है! तो जगाने के कई तरीके हो सकते है!
१ ) उस उस वैल्यु पर चिंतन करना! जैसे मान लो क्लास ही
चल रही है! तो एक पीरियड दे दिया गया और आज्ञाकारिता पर
जो टीचर आया वो बच्चों को अच्छी तरह उदाहरण दे देकर
समझा रहा है! जैसा हम लोगों ने "टच द लाईट "में किया! तो
देखा कि बच्चे उसको समझ रहे है! और वो रियलाईज कर रहे
है! – हमें आज्ञाकारी होना चाहिए, यह तो बहुत अच्छी बात है!
हम अपने बड़ो की आज्ञा नहीं मानेंगे, तो आगे चल के हमारी
आज्ञा कौन मानेगा? बच्चों को अपील किया कि हम भी तो
चाहते हैं छोटे हमारी बात माने! लेकिन हम ही हमारे बड़ो की
बात नहीं मान रहे तो हमारी कौन मानेगा! तो हमने देखा कि
एक तरीका यह है की जो चीज छुप गई है, जो गुण दब गये है,
जो प्राय: नष्ट होने को है बीज उन्हें फिर से जागृत किया जाये!
उनकी चर्चा की जाये!
रुपेश जी — — — उनकी चर्चा की जाये, बच्चों के अंदर उसकी
अवेरनेस लाई जाए! और साथ ही उन्हें रियालाईज कराया जाए
की कितना इम्पोर्टेन्ट है!
बी के भ्राता सूर्या जी — — — दूसरी एक बहुत अच्छी चीज जो
बहुत लोग नहीं जानते, लेकिन मैं इसकी जानकारी देना चाहूँगा!
यह हमारा परम कर्तव्य है! "हमारे सबके अंदर देवत्व विद्यमान
है!" चाहे वो छोटे हो या बड़े हो! कहीं छोटा बच्चा अगर झूठ
बोलता है, झूठ बोलने के बाद वो पता है की उसकी ख़ुशी नष्ट
हो गई! क्योंकि उसकी अंतर्मन, उसकी इनर कोनसीयसनेस
उसको धिक्कार रही है कि "गलत, यु आर रोंग! झूठ क्यों
बोला?" तो कहीं न कहीं प्युरिटी, देवत्व , सारे सदगुण ये मोरल
वैल्युज हमारे अंदर है! तो हम इस चीज को पहचान लें! बहुत
अच्छा एक चिंतन मैं दे रहा हूँ सवेरे के लिए जो हमें करना है!
"हम सभी देवो की संतान है! हम सभी भगवान के बच्चे है! तो
जैसे हमने बात की थी 'शेर का बच्चा शेर'! भगवान के बच्चे
हम हैं तो उसके बहुत सारे गुण, उसकी qualities हमारे अंदर
हैं! अगर हम इस अवेरनेस को रोज़ सवेरे सवेरे अपने को देंगे,
याद दिलायेंगे "तुम तो भगवान के बच्चे हो! वो तो शांति का
सागर है, तुम्हारे पास भी शांति है! वो तो परम सत्य है, तुम्हारे
पास भी सत्य की शक्ति है! वो भगवान होते हुए सम्पूर्ण
निरंहकारी है, तुम अहंकारी क्यों हो? तुम्हारा परमपिता प्यार का
सागर है, तुम्हारे पास भी असीम प्यार समाया हुआ है!" तो ये
अवेरनेस होते होते यह सब सदगुण एक्टिवेट हो जायेंगे! जीवन
में आने लगेंगे!
रुपेश जी — — — तो यह दूसरा तरीका आपने बताया बहुत सुंदर
भ्राता जी कि हम उस परम सत्य की संतान है हमारे अंदर भी
सत्यता है, शांति है, शक्ति है और वो तमाम चीज़े उसके पास
है वो हमारे अंदर भी है! तो सुबह सुबह आपने विशेष
एम्फेसाइज किया और पहले भी आपने सुबह ही कहा था! केवल
सुबह ही या दिन में कभी भी इस चिन्तन को अपने अंदर लाया
जा सकता है!
बी के भ्राता सूर्या जी — — — हाँ, देखिये शुरुआत तो हमें सुबह
से ही करनी चाहिए! क्योंकि सुबह हमारा विवेक शांत होता है,
हमारी बुद्धि शांत होती है! वो नयी चीज ग्रहण करने के लिए
तैयार रहती है! और सारा दिन हमने उसमें बहुत कुछ भर लिया
है! तो उसमें स्पेस भी कम हो गया! और जो चीज हमने देखी,
जो सुनी जो व्यवहार में आई उसका ईफेक्ट भी हमारे अंदर कहीं
न कहीं पड़ता रहता है! तो नई चीजों को कभी कभी हम
बिल्कुल सटील लेवल पर रिजेक्ट भी करते रहते हैं! कि 'नहीं ये
नहीं' बाहरी रूप से हमें पता नहीं चलता! और अंदर ही अंदर
हमारा सबकोंसियस माइंड, हमारी ईनर कोंसियस उसको रिजेक्ट
कर देती है 'नो यह नहीं, यह ठीक नहीं है'!
रुपेश जी — — — तो दूसरी बात जो भ्राता जी आपने कही, सुबह
विशेषकर के इस प्रकार का चिंतन करे! और क्या तरीके अपना
सकते हैं?
बी के भ्राता सूर्या जी — — — और इसी तरह सुबह और भी
चिंतन हमें करना है! देखिये, हमारे भारत में तो हम अपने
पूर्वजो के बारे में तो सुनते ही रहते हैं! हमारे यहाँ ग्रंथ भी है!
धार्मिक ग्रंथ भी है! ऋषि-मुनियों को हमारे पूर्वज माना जाता है!
लेकिन हम उससे भी आगे चले! उससे पीछे लोटे थोड़ा कि हमारे
पूर्वज तो वास्तव में देवता थे! हम देवो की संतान भी है! भारत
में तो ३३ करोड़ देवी-देवताओं की चर्चा है ही! तो कहाँ गये
आज? वो सब एक्चुअली यहीं है! उनका जो लेवल है वो नीचे
उतर आया है! तो अगर हम सवेरे उठके ये भी याद करेंगे! कि
हम मंदिरों में जेक देवी-देवताओं के आगे हाथ तो जोड़ रहे है!
नमन तो कर रहें है! अपना सम्मान और श्रद्धा तो उन पर
अर्पित तो कर रहें है, लेकिन हम तो उनके वंशज है! वो और
हम जुड़े हुए है! उनके भी वो देवत्व के गुण, वो हमारे अंदर है!
इसको याद करने से वो फिर से एक्टिव होने लगेंगे! ईमर्ज होने
लगेंगे! तो मैं यही कहूँगा कि एक सुंदर चिंतन अगर सवेरे
उठकर हम कर लें! और बच्चों के पास अगर सवेरे समय न
बचता हो, तैयार हो, जल्दी जल्दी करे स्कूल जाना है, तो वो
दिन में भी चिंतन कर सकते हैं! रात को सोने से पहले भी कर
सकते हैं!
रुपेश जी — — — क्योंकि भ्राता जी ये चिंतन तो ऐसा है जो कहीं
न कहीं प्रभाव अवश्य डालेगा! क्योंकि विचारों में यदि श्रेष्ठता है,
विचार यदि सुंदर है, तो निश्चित रूप से उसकी वाणी में भी
और उसके कर्म में भी इसका प्रभाव तो दिखाई तो देगा ही देगा!
बी के भ्राता सूर्या जी — — — बिल्कुल विचार जितने सुंदर होंगे,
जीवन उतना ही सुंदर होगा! इसलिए विद्यार्थीयों को विशेष रूप
से यह ट्रेनिंग दी जाए, यह टीचिंग दी जाए! की उनके यह
विचार गलत है, उनके यह विचार होने चाहिए! दोनों की
अवेरनेस जरुरी है, क्योंकि बच्चे होने के कारण उन्हें यह पता
भी नहीं चलता की वह गलत सोच क्या रहें हैं! तो उसकी भी
अवेरनेस हो, तुम जो यह सोच रहे हो इसका परिणाम भविष्य
पर आयेगा! जैसा हम पहले से चर्चा कर रहे हैं और मैं चाहता हूँ
वह बात हम बार-बार अपने श्रोताओं को, दर्शको को कहें कि
हमरा जो चिंतन है, वो हमारे भविष्य पर सीधा प्रभाव डालता है!
इसलिए यह रख ले की जितना हम पोजिटिव होंगे, जितने हमारे
विचार मोस्ट एलिवेटेड होंगे, उच्च विचार होंगे, हमारा भविष्य
सुंदर होगा! एन्जॉय करेंगे अपनी लाईफ को! लाईफ इज अ
स्ट्रगल नहीं होगा जो लोग कहा देते हैं लाईफ इज अ स्ट्रगल!
स्ट्रगल नहीं लाईफ विल बिकम एन एन्जॉयमेंट!
रुपेश जी — — — बहुत सुंदर! एक सुंदर बात कही आपने भ्राता
जी! कि कहीं न कहीं हमारे मूल्यों के साथ हमारे विचार भी जुड़े
हुए हैं और इसकी चर्चा विद्यालयों में भी होनी चाहिए, परिवार
में भी होनी चाहिए ताकि इसकी अवेरनेस बच्चों में आये और
इसके मूल्य को वो समजे! दूसरा जो आपने बहुत सुंदर अभ्यास
आपने बताया कि हम परम शक्ति की संतान है और साथ ही
देवत्व हमारे अंदर रहा है और हम देवों के वंशज हैं! तो यह
कहीं न कहीं हमारे अंदर गुण है – यह चिंतन उनके अंदर इन
चीजों को विकसित करेगा! और यह जो एक मूल्यहीनता दिखाई
दे रही है वह दूर होती चली जाएगी!
बी के भ्राता सूर्या जी — — — गुणों से बच्चों की एकाग्रता भी
बहुत ज्यादा रिलेटेड है! क्योंकि जब जीवन में मूल्यों की कमी
होती है तो मन बहुत भटकता है! और मन जब भटकता है तो
बुद्धि की एकाग्रता नष्ट होने लगती है! अब वो बैठे तो होंगे
क्लास में, टीचर उन्हें कुछ पढ़ा रहा होगा, लेकिन उनके मन में
कुछ ओर चल रही होगी शरारत ईधर की ऊधर की! तो एकाग्रता
पूरी तरह भंग होती नजर आयेगी! टीचर को महसूस होगा की
यह यहाँ नहीं है, यह कहीं ओर कुछ सोच रहे हैं! इसलिए निर्मल
प्रेम, एकदूसरे में सदभावना, एकदूसरे की बात को सन्मान देना
और विशेष रूप से अच्छे बोल बोलना! लड़ाई झगड़ा से मुक्त
रहना! अपनी बात पे अड़े न रहना! क्रोध और अहंकार से बचना!
यह मूल्य हमेशा ही मनुष्य शक्ति का विकास करेंगे! उसकी
एकाग्रता को बढ़ायेंगे! और तब उसकी मेमरी पावर भी इतनी
स्ट्रोंग रहेगी कि उसे बहुत महेनत नहीं करनी पड़ेगी!
एक बहुत अच्छी चीज आपने जोड़ी है भ्राता जी जिससे हमारे
बहुत सारे श्रोताओ तक और दर्शको तक हम पहुँचाना ही चाहेंगे
कि मूल्यों का संबंध कहीं न कहीं हमारी एकाग्रता के साथ भी
है! यह सारे मूल्य तो अपने जीवन में वो लाये ही जो उसके
जीवन को मूल्यवान बनायेंगे लेकीन यह सभी चीजे उसके जीवन
की सफलता के लिए उसकी एकाग्रता के लिए बहुत बहुत
इम्पोर्टन्ट है! आज की चर्चा बहुत ही सुंदर रही भ्राता जी! और
आपने बहुत सुंदर सुंदर बातों पर, सूक्ष्म बातों पर प्रकाश डाला
है! आपका बहुत बहुत धन्यवाद!
मित्रो, आपने देखा विद्यार्थी वर्ग जिसका जीवन वास्तव में आगे
आनेवाले समाज के लिए, देश के लिए बहुत ही मूल्यवान है!
उसके जीवन में यदि मूल्य होंगे तो निश्चित रूप से देश का
भविष्य भी बहुत बहुत मूल्यवान होगा! और मूल्यों का कहीं न
कहीं संबंध हमारी एकाग्रता के साथ भी है! और जितनी एकाग्रता
होगी, जितनी जीवन में मूल्य होंगे उतना ही हमारा जीवन
सफल होगा! तो हम आगे अपनी चर्चा को इस पर जारी रखेंगे
कि कैसे मूल्यों से हमारे जीवन में एकाग्रता आती है! और कैसे
हमें एकाग्रता सफलता की ओर ले चलती है! आज के लिए बस
इतना ही दीजिये इजाजत अपने मित्र को ! नमस्कार !