Samadhan Episode – 000916 Health Problems

CONTENTS :

1. अध्यात्म कैसे नर्सिंग में हमारी मदद करता है ?

2. बीमारियाँ लगातार क्यों बढती जा रही हैं ?

3. कैसे हमे पॉजिटिव बनना है ?

 

रुपेश भाई : मित्रों सेवा सब को बहुत प्रिय है, और हम चाहते हैं कि जब भी कभी हम बीमार हों तो

हमारी सेवा के लिए कोई ना कोई हमारे पास हो ही हो, उस समय जब कोई हमारे पास नही होता तो

बहुत अखरता है | नर्सें ऐसी हैं जो हमेशा सेवा के लिए तत्पर रहती हैं इसलिए दिल से उनके लिए

दुआएं निकलती रहती हैं कि वो हमारी सभी चीज़ का ख्याल रखती हैं ऐसे समय पर जब हमे उनकी

आवश्यकता है, वे हमारी मदद करती हैं | कल से आदर्णीय रूपा बहन हमारे साथ बनी हुई हैं, जो

कि ग्लोबल हॉस्पिटल and रिसर्च centre में चीफ ऑफ़ नर्सिंग सर्विसेज हैं | खासकर आप अपने जीवन

में न सिर्फ नर्सिंग के द्वारा सेवा प्रदान कर रही हैं लेकिन अध्यात्म को भी अपने जीवन में गहराई से उतारा

है और अध्यात्म कैसे नर्सिंग में हमारी मदद करता है उसका अनुभव कल भी आपने हमसे शेयर किया और

आज भी जानेंगे कि कैसे नर्सिंग के क्षेत्र में, अपने पेशेंट्स के साथ, साथ ही अपनी अध्यात्मिक उन्नति में

मदद करता है, वो आज हम अवश्य उनसे जानेंगे | आइये अभिनन्दन करते हैं दीदी का और बातचीत का

सिलसिला शुरू करते हैं | दीदी आपका बहुत बहुत स्वागत है, अभिनंदन है, ओम शांति |

 

बी.के. रूपा बहन : ओम शांति

 

रुपेश भाई : कल जो हमारी चर्चा हो रही थी उसमे बात निकल कर आई थी कि अध्यात्म

हमे हर फील्ड में बहुत मदद करता है, नर्सिंग आपका फील्ड है, और बहुत सारे पेशेंट्स से

मुलाकात होती है, बीमारियाँ लगातार बढती जा रही हैं, आज जो जो हम दवा कर रहे हैं मर्ज

भी बढ़ता चला जा रहा है | क्या खास कारण आपको लगता है अध्यात्मिक दृष्टि से कि ये

बीमारियाँ बढती जा रही हैं, ठीक होने का नाम ही नही ले रहीं |

 

बी.के. रूपा बहन : एक तो ये भी कारण है कि जो लाइफ-स्टाइल है लोगों की वो पुर्णतः

change हुई है, जैसे हम कहते हैं कि आज आप देखो कि कोई भी व्यक्ति 5 मिनट मोबाइल

के बिना रह नहीं सकता | जहाँ अगर तीन लोग साथ में भी बैठे हुए हैं, तीनो अलग अलग

बैठे हैं, अपने अपने मोबाइल में लगे हुए हैं, तो इलेक्ट्रॉनिक्स में हम ज्यादा जा रहे हैं | और

जो खान-पान भी है जैसे जो जंक फ़ूड है, फ़ास्ट फ़ूड है, वो खाने-पीने की जो शैली है वो

भी पूरी change हो गई है | हम विदेशों का अनुकरण कर रहे हैं भारत में भी हो रहा है |

पर मैने जैसे देखा कि जैसे जैसे लाइफ-स्टाइल change होती जा रही है, वैसे-वैसे बीमारियाँ

भी हमारी बढती जा रही हैं | अगर हम पुराने ज़माने की बात करें तो ये होता था कि जैसे

नीचे बैठके खाना खाना, वो भी शारीरिक रीती से, स्वास्थ्य के हिसाब से ठीक था लेकिन

आजकल हम कैसे होते हैं टेबल पर बैठकर खाना खाते हैं | ठीक है हम टेबल पर बैठकर

खाते हैं पर कई बार जो पुरानी परंपरा है, मैं एक example दे रही हूँ, जैसे पहले हम जब

घर में आते थे तो हम शूज बाहर ही रखते थे, पहले हम काफ़ी hygenic way (स्वच्छ) में

रहते थे, काफ़ी सारे precaution (सावधानी) लेते थे | लेकिन आजकल के ज़माने में ..

 

रुपेश भाई : अर्थिंग भी मिलती थी |

 

बी.के. रूपा बहन : हाँ अर्थिंग भी मिलती थी, पहले पैर धोकर हम घर में आते थे,

तो काफी सारी चीजें change होती जा रही हैं |

 

रुपेश भाई : क्या लगता है आपको जो चीज़ें पहले ज़माने में थी उनको लाना थोडा कठिन तो है..

 

बी.के. रूपा बहन : हाँ कठिन तो है, लेकिन देखा जा रहा है कि विदेशों में कई सारे लोग

vegeterian की ओर आ रहे हैं, और भारत में हमारे non-vegeterian लोग बढ़ते जा रहे हैं |

आजकल हम देख रहे हैं जो वेगन डाइट है, जिसमे दूध के कोई भी खाद्यपदार्थ इस्तेमाल नहीं करते हैं,

ऐसे भी लोगों का ज़्यादा है जो वेगन डाइट इस्तेमाल कर रहे हैं | मैने देखा कि खान-पान के ऊपर भी

हमारी बहुत सारी बीमारियाँ रहती हैं | दूसरा है नेगेटिव थिंकिंग, हमारे जो थॉट पैटर्न है वो भी हमारी

हेल्थ पर बहुत इफ़ेक्ट करते हैं | जितना-जितना हमारे पॉजिटिव थॉट्स होते हैं हमारी हीलिंग भी होती है |

लेकिन आजकल प्रोब्लेम्स और कम्पटीशन का युग बना हुआ है, छोटे बच्चे से लेकर बड़े तक, जो फर्स्ट

class में है उसको भी टेंशन कि मुझे फर्स्ट आना है, मुझे कल्चरल प्रोग्राम में लेना है, मुझे क्यों नहीं

लिया गया | तो कई सारी negativity बढती जा रही हैं, negativity और खान-पान … खान-पान

भी जैसे लेट नाईट खाना, भर पेट खाना, मनो लोगों को ऐसा लगता है कि morning से लगाकर रात

तक एक वो ही time ऐसा मिलता है, क्योंकि पूरा दिन काम चलता रहता है | तो लाइफ-स्टाइल change

हुई उसके कारण भी बीमारी बढ़ी है, सेकंड जैसाकि मैने कहा कि थिंकिंग पैटर्न भी काफी change हो

गया है, कम्पटीशन का युग आने के कारण |

 

रुपेश भाई : क्या ब्रह्माकुमारिस में इसके लिए कुछ खास suggest करते हैं, कुछ खास लाइफ-स्टाइल

introduce कर रही हैं कि अगर आप ये लाइफ-स्टाइल अपनाएंगे, ये-ये करेंगे तो आप हमेशा स्वस्थ रहेंगे |

 

बी.के. रूपा बहन : जैसाकि मैने कहा कि ब्रह्माकुमारिस में जो राजयोग मैडिटेशन सिखाया जाता है, ये हमे

बहुत हेल्प करता है | दूसरा, पॉजिटिव थिंकिंग, कैसे हमे पॉजिटिव बनना है | लाइफ में problems तो

आनी ही आनी है, ऐसा नहीं कि आप मैडिटेशन कर रहे हैं, या आप ब्रह्माकुमारी बन गये हैं तो problems

नहीं आयेंगी, problems तो आयेंगी और दिन प्रतिदिन बढनी ही हैं | हम उसका क्या इजी solution कर

सकते हैं वो हमे ढूँढना है | उसका answer हमे ब्रह्माकुमारिस में मिलता है | थर्ड, हमारा एक बहुत अच्छा

प्रोग्राम है विहासा, values इन healthcare, a spiritual approach कर के | हमारे जानकी दादीजी

UK में जब हॉस्पिटल में एडमिट थे, तब उन्होंने देखा कि जो हॉस्पिटल के डॉक्टर्स हैं, पैरामेडिकल नर्सेज हैं,

पैरामेडिकल स्टाफ है, वो बहुत स्ट्रेस में थे | तो दादीजी ने, जितने भी मेडिकल के भाई-बहनें हैं उनको कहा

कि आप ऐसे कुछ प्रोग्राम क्रिएट करो कि खेल-खेल में उनकी value लोगों को पता पड़े, और कैसे हम स्ट्रेस

फ्री जियें | कई सारे कार्यक्रम ब्रह्माकुमारिस संस्था के द्वारा सिखाये जाते हैं | और de-addiction के ऊपर

भी हमारा विशेष कार्य चलता है, ब्रह्माकुमारिस की ओर से |

 

रुपेश भाई : तो क्या इससे इफ़ेक्ट देखने में आ रहा है, जो ब्रह्माकुमारिस सिखा रही हैं, उससे क्या बीमारियाँ

जो बाहर वालों की लाइफ-स्टाइल में लग रही हैं, और जो लोग यहाँ की लाइफ-स्टाइल जी रहे हैं, तो क्या

ऐसा लगता है कि यहाँ पर थोड़ी कम हो रही हैं !

 

बी.के. रूपा बहन : कम हम नहीं कहेंगे, माना परसेंटेज वाइज कम हैं, लेकिन बीमारियाँ तो सभी को आनी हैं

क्योंकि सबका अपना-अपना शरीर है | और शरीर को बीमारी तो आयेगी ही, लेकिन उस बीमारी को भी हम

कैसे फेस करते हैं, ये हमारी टोलेरेंस power (सहनशक्ति) है | जितना हम मैडिटेशन करते हैं हमारी सहनशक्ति

भी बढती है | तो हमने देखा कि बाहर के व्यक्ति इतना सहन नहीं कर सकते हैं जितना कि हमारे भाई-बहन कई

बार सहन कर लेते हैं, मैडिटेशन और लाइफ-स्टाइल change होने के कारण |

 

रुपेश भाई : मैडिटेशन को कई बार इस रूप में भी देखा जाता है कि इससे हम अपनी शारीरिक तकलीफों को

भी दूर सकते हैं ! तो क्या खास योग के माध्यम से, आध्यात्म और योग से, शरीर की बीमारियों को, तकलीफों

को दूर करने में मदद प्राप्त होती है !

 

बी.के. रूपा बहन : बिलकुल दूर होती हैं, आजकल हम देखते हैं काफी मानसिक रोग बढ़ते जा रहे हैं | हमारे

पास एक spirituality और काउंसलिंग का department है, जहाँ spirituality से काउंसलिंग करते हैं

ऐसे पेशेंट्स की | तो हमने देखा कि काफी improvements उनमे आ जाती है | तो मैने जैसा कहा कि हमारी

थिंकिंग प्रोसेस जो है, जितना हम मैडिटेशन करते हैं, थिंकिंग प्रोसेस में change आता जाता है | वो हमे हीलिंग

में बहुत हेल्प करता है |

 

रुपेश भाई : आपने जो एक लम्बी यात्रा की इसमें आपको राष्ट्रपति के द्वारा अवार्ड प्राप्त हुआ है, भारत सरकार ने

आपको सम्मानित किया है, really हम बहुत प्रसन्न हैं, और आपको मुबारक हमारे सभी दर्शकों की ओर से भी

कि आपको इतना सुंदर अवार्ड मिला | तो क्या कभी मन में था कि यहाँ तक मैं पहुंचूंगी, और इस रूप में मुझे

अवार्ड मिलेगा, किसे श्रेय देना चाहती हैं आप |

 

बी.के. रूपा बहन : कभी सोचा ही नहीं था कि इस प्रकार से अवार्ड मिल सकता है, कभी प्रेसिडेंट हाउस से

हमे बुलवा आयेगा, और वहां अवार्ड लेने जाना पड़ेगा | अपने बचपन को देखती हूँ मैं कि 4th class तक तो

मैं बहुत ही लाड़-प्यार से बड़ी हुई, और फिर अचानक से हमारे घर की परिस्थिति change हो गयी | मेरे

पिताजी का ट्रान्सफर इंदौर मध्य-प्रदेश में हो गया,  और हम लोग मुंबई में रहते थे, तो मुंबई-पूना बोर्ड का

हमारा education था | तो मेरी माँ की ये इच्छा थी कि education तो लेनी ही है, चाहे बेटा हो या बेटी

उनको graduate होकर अपने पैरों पर खड़ा होना ही है | तो ये उस ज़माने की बात कर रही हूँ मैं | तो मैने

देखा कि हमारे पिताजी इंदौर में रहते थे और हम तीन भाई-बहन, बड़ी बहन की तो शादी हो गयी थी, हम तीन

भाई-बहन और माताजी एक छोटे से कमरे में रहते थे और पढाई करते थे | और उसमे भी ऐसा था कि

financially भी कई problems आईं, माताजी ने भी job करना स्टार्ट किया | तो ऐसा होता था कि सभी

लोग सुबह से निकल जाते थे, मेरा स्कूल आफ्टरनून में रहता था, तो मैं घर में अकेली होती थी | जिनके घर में

हम पेन गेस्ट थे वो दादी मुझे बहुत प्यार से रखती थीं | तो मैं अपनी माँ से कहती थी कि मेरी शादी किसी बड़े

परिवार में करना, और उसमे भी मैं सबसे बड़ी होनी चाहिए | मुझे इतना लगता था क्योंकि मैं बचपन में काफी

अकेली रही | तो मैने देखा कि नॉलेज का माताजी ने एक संस्कार डाला, इसको बहुत importance दिया | यहाँ

आने के बाद भी मैने अध्यात्म के साथ, अपने प्रोफेशन, नॉलेज, education को भी importance दिया है, और

उसका फ़लस्वरूप ही मुझे लग रहा है, कि जैसे उन्होंने पॉइंट्स काउंट किये थे, उसमे उन्होंने बॉम्बे जैसे

हॉस्पिटल को छोड़कर, गवर्नमेंट job को छोड़ कर रिमोट एरिया में सेवा दे रहे हैं …

 

रुपेश भाई : लोगों को जो माइनस पॉइंट लगा करती थी वो आपके लिए प्लस पॉइंट रही..

 

बी.के. रूपा बहन : जो हमे सर्टिफिकेट दिया जाता है उसमे ये फर्स्ट नंबर पर ही लिखा है | मुझे नहीं लगा

पर लोगों को लग रहा था, फिर मैने देखा की जैसे प्रोफेशनल एजुकेशन को इम्पोर्टेंस देने के कारण भी..

एजुकेशन को हमेशा कहते हैं, एजुकेशन इस द सोर्स ऑफ़ इनकम | तो ये भी एक प्रकार से हम इनकम ही

कहेंगे | कभी मैंने सोचा नहीं था पर जैसे मैने ऑपरेशन थिएटर के लिए कोर्सेज किये माना जहां जहां मुझे लगता

है कि हॉस्पिटल के बेनेफिट के लिए हमे ट्रेनिंग लेने की जरूरत है तो इस ऐज में भी हम लेते हैं | और साथ ही

साथ मैडिटेशन का अभ्यास भी हम रेगुलर करते हैं | तो मैंने देखा कि काफ़ी इसका प्रभाव रहा |

 

रुपेश भाई : आपको ये जो अवार्ड मिला, काफ़ी महत्वपूर्ण है ये अवार्ड, राष्ट्रपति के द्वारा, भारत सरकार के द्वारा |

तो क्या आपको ऐसा लगता है कि मैंने इसके लिए कोई मेहनत नहीं की, ईश्वर ने सचमुच मुझे प्रदान किया या

फ़िर ईश्वर की बहुत मदद रही, क्या ऐसी अंदर से कुछ फ़ीलिंग रही?

 

बी.के. रूपा बहन : हाँ ये फ़ीलिंग मुझे आती है | मेरा इसमें पर्सनल योगदान कहूँ तो 10% रहा होगा, बाकी 90%

ईश्वर की ही मदद रही है कि हर कार्य इतनी सहज रीती से पूरे होते गये हैं, जो पॉइंट्स उन्होंने मेरे काउंट किये हैं|

मुझे नहीं पता था कि इन पॉइंट्स के वजह से मैं अवार्ड के लिए nominate हो जाउंगी | और इतना सहज ये कार्य

हुआ क्योंकि ये जो अवार्ड मिलता है, ऐसे नहीं होता, डिस्ट्रिक्ट में हम होते हैं डिस्ट्रिक्ट से ये स्टेट लेवल तक जाता

है, स्टेट लेवल की committee decide करती है | उसके बाद फिर वहा से सेंट्रल लेवल तक जाता है फिर वहां

ये decide होता है कि किसको देना है | और हर स्टेट से एक नर्स होती है मेल या फीमेल | और राजस्थान से मेरा

हुआ |

 

रुपेश भाई : इससे पहले भी 2017 में बेस्ट नर्स का अवार्ड प्राप्त हुआ था, तो ये जो लगातार आपको जो ये

सफ़लता प्राप्त हो रही है, तो आप अगर हमारे दर्शकों को तीन सूत्र बताना चाहें, सभी अलग-अलग फील्ड के हैं,

ऐसे कि अगर ये तीन सूत्र आप अपनाओ तो हमेशा सफ़ल होते जाओगे ..

 

बी.के. रूपा बहन : सबसे पहले तो मैने अपने जीवन का ये सूत्र रखा हुआ है कि जो भी मुझे काम या सेवा मिलती

है, जो बड़ों ने हमको दी है, जो निम्मित आत्मा ने दी है, उस कार्य को मैं हाँ जी करके आगे बढती हूँ | तो मैने देखा

कि अगर हम हाँ जी करके कोई कार्य करते हैं तो उसकी 101% सफ़लता है ही है | ये सीख मुझे हमारी

ब्रह्मकुमारिस की दादी प्रकाशमणिजी, जो पहले चीफ़ ऑफ़ ब्रह्माकुमारिस रहे 2007 तक, उन्होंने मुझे ये सीख

दी थी कि जीवन में कोई भी कार्य हो भले से वो कार्य छोटा हो या बड़ा हो, अगर हम सच्ची भावना से करते हैं तो

उसमे हमे 101% सफ़लता मिलती है | दूसरा है, मेहनत, हमे मेहनत से कभी डरना नहीं चाहिए, हमेशा मेहनत

करते रहना चाहिए, जितनी आप मेहनत करते हो उससे जो सफ़लता मिलती है उसका आनंद बहुत ही अलग

होता है | तीसरा है, हमारे मेडिकल प्रोफेशन में हमे जो दुआ मिलती है, वो और किसी प्रोफेशन में नहीं मिलती

है | लेकिन मैं ये सोचती हूँ चाहे कोई भी हो गरीब हो या अमीर हो, सबकी हमे दिल से सेवा करनी चाहिए | कहते

हैं दिल से सेवा करो तो दुआओं का दरवाज़ा खुल जाता है | तो जो भी कार्य हमे करना है दिल से करना है | तो

जब भी हमारे नर्सिंग स्टूडेंट्स आते हैं तो मै उनसे कहती हूँ कि हमे हमेशा 3 H याद रखने हैं | जैसे हम हैंड्स से

काम करते हैं, हेड से सोचना ही है, लेकिन जबतक आप हैण्ड और हेड के साथ अपना हार्ट use नहीं करोगे तो

आपको सफ़लता नहीं मिल सकती | कोई भी चीज़ जब हम दिल से करते हैं तो उसमे हमे सफ़लता मिलती है |

 

रुपेश भाई : ये तो अच्छा है आपने तीन सूत्र के साथ तीन H का भी गिफ्ट हमको दिया | आप नर्सिंग स्टूडेंट्स को

भी पढ़ाती हैं, उन लोगों को भी वैल्यूज के बारे में कुछ खास दिया जाता है ! क्यूँकि एक अच्छी नर्स बनना तो

अच्छी बातहै पर साथ ही साथ एक अच्छा इन्सान बनना, मुझे लगता है कि अध्यात्म की खूबसूरती हमे एक अच्छा

इन्सान बनाती है | तो क्या आप उन्हें ट्रेन भी करती हैं कि जो उनकी academic नॉलेज है उसके साथ साथ उन्हें

अध्यात्मिक ज्ञान और मैडिटेशन भी सिखाती हैं !

 

बी.के. रूपा बहन : जी हाँ, हम उनको मैडिटेशन भी सिखाते हैं और जैसा कि मैने कहा कि जो वैल्यूज इन

healthcare है हमारा जो कि स्पिरिचुअल एप्रोच है, उसका भी कोर्स करवाते हैं | कई बार लोगों को पता ही नहीं

होता है कि हमारे अंदर क्या वैल्यूज हैं | हम बातें तो कर लेते हैं कि ये वैल्यूज होनी चाहिए पर हमारे अंदर कौन-

कौनसी वैल्यूज छिपी हुई हैं उसको भी हमे बाहर निकालना चाहिए | तो हम हमारे नर्सिंग स्टूडेंट्स को VIHASA

का भी कोर्स, साथ साथ राजयोग मैडिटेशन का भी कोर्स करवाते हैं |

 

रुपेश भाई : जी.. इससे उनका जीवन आगे बढ़ता होगा | हमारे दर्शक हमेशा ये चाहते हैं, और सभी लोग भी यही

चाहते हैं कि जीवन पूरी तरह से समस्याओं से मुक्त हो, और जैसे आप सफ़लता की ओर बढ़ रहे हैं वैसे बाकी

सब भी बढ़ें | तो जीवन में समस्या ना आयें, अगर आयें भी तो हमारा क्या एप्रोच हो, जिससे हम उनसे सहज रूप

से पार हो जाएँ, आपके अनुभव से हम जानना चाहेंगे |

 

बी.के. रूपा बहन : मैने जैसे कहा कि समस्या तो आनी ही आनी है, समस्या मुक्त जीवन तो हमारा बन नहीं

सकता | हमे स्वयं को समस्याओं से मुक्त बनाना है | समस्या हमारे पास आयेगी लेकिन मैने जैसे कहा कि मुझे

कभी कोई समस्या आती है .. अभी जैसे कि all over world में shortage ऑफ़ नर्सिंग स्टाफ़ है, हमेशा चलती

रहती है, हर जगह है | और जब जाते हैं स्टाफ़ नर्स छोड़कर तो ऐसे ही shortage आ जाती है, तो ऐसे समय पर

भी हमे किस प्रकार से मैनेज करना है | और मैने देखा है कि कई बार अपने आप ऐसी आत्माएं सेवा के लिए

सामने आ जाती हैं | हालाँकि वो होती तो किसी और कार्य के लिए हैं पर उनसे मुलाकात हो जाती है, हमे जब

पता पड़ता है कि ये भी नर्सिंग से हैं तो हम उन्हें सेवा के लिए ले लेते हैं | समस्या हमे आएगी, ऐसा नहीं कि नहीं

आयेगी पर जब हम समस्या को परमात्मा को अर्पण कर देते हैं तो अपनेआप हमे उस समस्या का solution टच

हो जाता है | और उस प्रकार से कोई ना कोई आत्मा हमारे लिए निम्मित बन जाती है हेल्प के लिए |

 

रुपेश भाई : ये कैसे होता है जैसा कि आपने कहा कि परमात्मा को हम अर्पण करते हैं तो हमें परमात्मा की

टचिंग प्राप्त होती है, ये तो बहुत ही अलग सा तरीका है | अबतक तो हम अपनी समस्या के निदान के लिए चारों

तरफ़ घूमते थे, लेकिन परमात्मा की मदद लेना, उन्हें अर्पित करना, इसका क्या तरीका है, क्या राजयोग में इसकी

कोई विधि है ?

 

बी.के. रूपा बहन : राजयोग में जो मैडिटेशन सिखाया जाता है, इसमें पहले self-realisation सिखाया जाता है,

god-realisation, और कार्मिक philosophy, ये basically सिखाया जाता है | तो इसमें हमे इनके आंसर मिल

जाते हैं | इससे हमे पता पड़ता है कि हम कौन हैं, परमात्मा कौन है, उनसे जब हम लिंक जोड़ते हैं तो उनसे हमे

बहुत easily प्राप्तियां होती हैं, एनर्जी मिलती है | तो उससे हमारे problems … मैं ये नहीं कहूँगी कि सभी

problems पर हमे हमारी समस्याओं का समाधान मिलता है | कई बार हमे धीरज भी रखना पड़ता है, कई बार

हमे लगता है कि हमारे सामने ये समस्या है इसका जल्दी से समाधान हो पर .. कई बार हमे धीरज भी रखना

पड़ता है कुछ समस्याओं के लिए और धीरे-धीरे समय उसको हील कर देता है |

 

रुपेश भाई : मतलब पेशेंस भी रखना है और परमात्मा से बात भी करना है | कई बार ऐसा भी होता है कि हम

जब परमात्मा से बात करते हैं लेकिन हमे उधर से रेस्पोंसे मिल रहा है, नहीं मिल रहा है पता भी नहीं चलता, हमे

ऐसा लगता है कि परमात्मा हमारी बात सुन रहे हैं या नहीं सुन रहे हैं | यहाँ क्या करना है क्योंकि व्यक्ति कंफ्यूज

हो जाता है कि मैं बात तो करता हूँ पर परमात्मा से मुझे कुछ आवाज़ नहीं आ रही, कुछ intutions नहीं मिल रहे

हैं, ऐसे में क्या करें ?

 

बी.के. रूपा बहन : हम परमात्मा से बात तभी करते हैं इस समय जब हमे कोई जरूरत होती है या हम किसी

प्रॉब्लम में फंसे हुए हैं, कहते भी हैं कि दुःख में ही सिमरण करते हैं सुख में नहीं | हम सिर्फ़ गाते आये हैं उसको

हमने अपने प्रैक्टिकल जीवन में अनुभव नहीं किया है | जब हम practically उसे जीवन में लाते हैं तो हमारी कई

समस्याओं का समाधान हमे मिलता है |

 

रुपेश भाई : इसका मतलब है कि सभी लोग परमात्मा से जुड़कर समस्याओं के समाधान ले सकते हैं |

 

बी.के. रूपा बहन : ऐसा नहीं कि जब हमारा स्वार्थ है तभी हम परमात्मा को याद करें, ऐसा नहीं होना चाहिए |

 

रुपेश भाई : चलते चलते आप हमारे दर्शकों को खास क्या कहना चाहेंगी क्योंकि आपका जो प्रोफेशन है वो तो है

ही ऐसा जिसमें सभी लोग जुड़े हुए हैं और चाहते हैं कि जीवन में हम कुछ प्रेरणा प्राप्त करें | नर्सिंग प्रोफेशन तो है

ही प्रेरणा देने वाला फ़िर भी चलते-चलते आप क्या कहना चाहेंगी हमारे दर्शकों को |

 

बी.के. रूपा बहन : ये ही कहना चाहूंगी कि जब भी हम सवेरे उठते हैं तो सर्वप्रथम हम ईश्वर को धन्यवाद दें कि

हमे नया दिन दिया है कर्म करने के लिए और रात को सोते समय … क्योंकि आजकल जो हमारी रात है वो भी

मोबाइल के संग हो जाती है, मोबाइल के साथ ही हमारा दिन एंड होता है | हम बीच में जग जाते हैं तो पहले

हमारा ध्यान इस पर ही जाता है कि क्या मेसेज आये हैं !! इन बातों पर हम थोडा कंट्रोल करें, सुबह उठें सर्वप्रथम

परमात्मा को याद करें | कई बार हम उठते से ही मीडिया की ओर से, क्या न्यूज़ चल रही है… उसके बदले स्वयं

को थोडा टाइम दें | फिजिकल एक्सरसाइज के लिए भी, स्वयं के लिए भी और रात को भी ईश्वर को धन्यवाद

करके सोयें कि आज का दिन बहुत अच्छा गया | हमारा दिन अगर problems से भरा हुआ भी है, किसी के साथ

कुछ बात भी हुई है फ़िर भी ईश्वर को बता कर हमे सो जाना चाहिए … तो हमारा जीवन इजी बन सकता है |

 

ओम शांति ||

 

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