Samadhan Episode – 00062 Youth Problems

CONTENTS :

१. समस्यायों को वरदान कैसे बनाये ?

२. हमारी जो आंतरिक शक्तियाँ हैं उन्हे कैसे जगाए ?

३. ब्रेन की 100% शक्तियों को use कैसे करे ?

रूपेश भाई :- नमस्कार आदाब सत श्री अकाल, मित्रो स्वागत है आप सभी का कार्यक्रम मे,

समाधान जिसमे हम विभिन समस्यायों की चर्चा कर रहे है मित्रो समस्या एक निगेटिवे वर्ड

है लेकिन कई बार समस्याए वरदान भी बन जाती है क्योंकि ये हमारी आंतरिक शक्तियों को

जागृत कर देती है। एक ऐसी घटना मैं आप लोगो के सामने रख रहा हूँ, 26 जनवरी सन 2001

आपको याद होगा गुजरात में आया विनाशकारी भूकंप, जिसने पूरे देश को हिला कर रख

दिया था लेकिन इसी में एक ऐसी घटना घटी जो हम सबके लिए बहुत प्रेरक है। कच्छ बुछ

के हॉस्पिटल मे एक कंपलीट्लि पैरालाइसिस पेशंट लेटा हुआ था बेड पर ही उसे सारा

खाना-पीना दिया जाता था, सारे उसके कर्म बेड पर ही हुआ करते थे लेकिन जैसे ही

भूकंप आया, दीवारें हिलने लगी, छतें हिलने लगी ओर लोग भागने लगे, किसी ने उसकी

ओर ध्यान नहीं दिया। तो हुआ ये की वो पेशेंट जो की कंपलीटली पैरालाईज था वो भी उठा,

खड़ा हुआ ओर तब तक भागता रहा जब तक की वो एक सुरक्षित स्थान पर ना पहुच गया,

क्या हुआ, एक चमत्कार हो गया जैसे, एक समस्या ने उसकी आंतरिक शक्तियों को जागृत

कर दिया। तो इसी प्रकार समस्या कई बार हमारे लिए वरदान भी बन जाती है इसके इस

पहलू पर भी हम अवश्य विचार करे ओर इस चर्चा को आगे बढाने के लिए हमारे साथ

हमेशा की तरह आदरणीय सूर्य भाई जी है, आइये उनका स्वागत करते हैं भ्राता जी

बहुत-बहुत स्वागत है आपका। भ्राता जी जैसे मैंने कहा की समस्यायों के प्रति एक नजरिया

कई बार उसे हम समस्या समस्या करके एक हिमालय पहाड़ की तरह बना देते है लेकिन

उसका एक पहलू जो इस घटना मे देखने में आया वो ये की कई बार समस्याए हमारी

आंतरिक शक्तियों को भी जागृत कर देती है ओर वाकई ये बात है की हम बहुत ज्यादा

शक्तिशाली है।

 

सूर्य भाई जी :- बिलकुल ठीक मैं यहीं से शुरू करता हूँ की एक छोटी सी बात को भी

समस्या मानना ही बड़ी समस्या है हम इस चीज को समस्या माने ही नहीं, ये तो जीवन

का एक रूटीन है ये चलता आता है ओर चलता ही रहेगा। ओर जैसा आपने कहा सचमुच

जो समस्याए है उनमे अगर मनुष्य अपनी मानसिक स्थिति का बैलेन्स बनाए रखे अर्थात वो

परेशान ना हो, वो घबरा ना जाए तो वो महसूस करेगा की उसकी सोयी हुयी शक्तियाँ जग

गयी, उसका विवेक जो काम नहीं कर रहा था वो काम करने लगा। समस्या आते ही वो

परेशान ना हो ओर शांत मन से ये सोचने लगे की समस्या आई है, इसका क्या अच्छे से

अच्छा, सरल से सरल हल हो सकता है तो वो पाएगा की उसकी बुद्धि में ही उसका हल

समाया हुआ है लेकिन मनुष्य जब परेशान हो जाता है तो बुद्धि अपना काम करना छोड़

देती है ना, तो वो हल भी उसको प्राप्त नहीं होता। तो पहली बात तो हम यही जीवन में

लाएँगे की समस्यायों को समस्या माने ही नहीं, चेलेंजे माने, हमारी शक्तियों को बढ़ाने

वाला माने, हमारे विवेक को जागृत करने वाला माने, तो समस्याए सचमुच वरदान..

 

रूपेश भाई :- आपने बहुत सुंदर बात कही भ्राता जी, समस्या को समस्या ना मानकर

यदि चुनोती माने दोनों में जमीन-आसमान का अंतर आ जाता है जब हम चुनोती के रूप

में लेते है तो हमारी शक्तियाँ कार्य करने लगती है। मुझे याद आता है भ्राता जी की जो

विंसटन चर्चिल थे, जो ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे सेकंड वर्ल्डवार के समय, जब वो छोटे

थे तो वो बोलने में हकलाया करते थे, इंग्लिश भी ठीक से नहीं बोल पाया करते थे लेकिन

उसे उन्होने एक चुनोती के रूप में लिया क्योंकि उनके सारे साथी उन्हे बहुत चिढ़ाया

करते थे। ओर इतिहास गवाह है की वो उस समय के सबसे प्रख्यात वक्ता थे सारे विश्व में,

तो जो एक कमी थी उनके अंदर चुनोती के रूप में उन्होने स्वीकार किया, यदि समस्या

मानते तो शायद वो कभी भी इस रूप में प्रखयात नहीं हो पाते लेकिन चुनोती शायद उनके

अंदर की शक्ति को जगा गई।

 

सुरय्य भाई जी :- बिलकुल, यही मान लो दो टीम खेल रही है ओर बॉलर गेंद फेक रहा है

ओर उधर बैट्समेन है, अभी बॉलर बड़ा ही खतरनाक है लेकिन बैट्समेन इसको चुनोती

मान लेता है की मुझे इसकी ही गेंदो पर आउट नहीं होना है ओर अधिक से अधिक रन बनाने

है ओर दिखा देना है की हम इसके आगे सरेंडर करने वाले नहीं है तो देखो उसकी सारी

शक्तियाँ जागृत हो जाएगी, उसकी बुद्धि बिलकुल एकाग्र होने लगेगी, उसे बॉल के सिवाय

कुछ नहीं दिखाई देगा ओर वो विजयी होगा।

 

रूपेश भाई :- ओर ये देखा गया है भ्राता जी, बैटसमैन ऐसा सोचकर बॉलर को

डोमिनेट करना शुरू कर देता है तो बॉलर की लाइन-लेंथ बिगड़ जाती है मतलब

हम हावी हो जाते है बॉलर पर, बॉलर हावी नहीं हो पाता।

 

सूर्य भाई जी :- इसलिए हम आज चर्चा करेंगे हमारी जो आंतरिक शक्तियाँ हैं उन्हे हम

जगाए रखे परिस्थितियाँ तो संसार में तूफान की तरह हैं लेकिन हम भी तो कुछ कम

नहीं है। अगर परिस्थितियाँ पावरफुल है तो हम भी तो भगवान के बच्चे हैं हमें भी तो

उनकी शक्तियाँ प्राप्त है, क्या भगवान के बच्चो में भगवान की शक्तियाँ नहीं होगी।

तो हम इनको चेलेंज माने ओर आध्यात्मिक शक्तियों के द्वारा इन्हे सहज पार करके

एक आनंददित, खुशहाल जीवन जीने का अनुभव खुद भी प्राप्त करे ओर दूसरों को भी कराये।

 

रूपेश भाई :- भ्राता जी, मानोवेज्ञानिक भी ये मानते है की हम अपने ब्रेन की पावर का,

हम कई बार चर्चा भी कर आए है की बहुत कम यूज करते है, 8/:, 10/:, कोई 15%

कहता है तो जो सोयी हुई शक्तियाँ है, सचमुच हमारे अंदर समाहित है। उन्हे जागृत

करना एक बहुत बड़ी चुनोती है ओर बहुत बड़ा कार्य है इसे यदि जागृत कर लिया जाए

तो बहुत बड़े-बड़े कार्य हम कर सकते है, मुझे लगता है शायद इसकी सही विधि का

लोगो को ज्ञान नहीं है।

 

सूर्य भाई जी :- बस यही बात है की मनोवेज्ञानिक भी कह तो रहे है लेकिन इसे जगाए

कैसे ओर क्यो मनुष्य अपनी सम्पूर्ण शक्ति का यूज नहीं कर पा रहा है उसका देखिये

इंपोर्टेन्ट कारण है उसके निगेटिव विचार, उसके वेस्ट थोट्स। अब जब ये ब्रेन में जाते

है तो बहुत सारी शक्तियों को नष्ट करते रहते है इसलिए जो शक्तियाँ बचती है वो होती

ही बहुत थोड़ी हैं तो हमें ये जानना चाहिए एक बिलकुल सिम्पल way में की जितने ज्यादा

सुंदर विचार हमारे मन में हैं उतना ही ज्यादा हमारा ब्रेन कार्य कर रहा है। मान लो हमारे

पास 1घंटा है ओर 1घंटे में हम 95% अच्छे विचार करते है बाकी 5% केवल हमारे पास

थोड़े हल्के-सल्के विचार आते हैं तो हमें जान लेना चाहिए 1घंटा हमारा ब्रेन 95% काम करेगा,

5% नहीं करेगा ओर यदि कोई सेंट-परसेंट अच्छे विचारो में रहना सीख ले, 1घंटा नहीं लेकिन

पूरा जीवन तो ब्रेन की सम्पूर्ण शक्तियाँ निरंतर काम करेगी ओर सच तो ये है की उसके

सामने समस्याए आएंगी ही नहीं क्योंकि वो किसी बात को समस्या मानेगा ही नहीं।

 

रूपेश भाई :- लेकिन भ्राता जी, इससे पहले की मैं mails पर आऊँ, आप जो चर्चा कर

रहे हैं वो बहुत ही इंपोर्टेंट है, ये है की चारो तरफ जब निगेटिव एट मोस्ट फेयर है,

समस्याए क्रिएट कर रहे है लोग, बहुत ज्यादा अपमानित कर रहे है, लेग पुलिंग कर

रहे हैं ओर दस प्रकार की बाते हैं उसके पास। ओर साथ ही साथ उन्हे ये पता ही

नहीं है की समस्याए है ही क्या तो सत प्रतिशत अच्छे विचारो मे रहना ये भी तो एक चुनोती है।

 

सूर्य भाई जी :- बिलकुल सबसे बड़ी चुनोती है ओर यही राजयोग ओर आध्यात्मिक

साधना से पूर्ण कर ली जाती है, समाप्त कर ली जाती है तो हम अपनी साधनाओ में

देखते हैं की हम भी अपने समय को अनेक बार ऐसा व्यतीत करते है की लंबा समय

तक हमारे पास ऐसे वैसे कुछ विचार होते ही नहीं तो हमारा ब्रेन बिलकुल काम एंड

कूल ओर ऐसा लगता है की पेरफेक्टली काम कर रहा है जितना उसे करना चाहिए

वो कर रहा है ओर उसकी शक्तियाँ इतनी बढ़ी हुई है की लंबे चोड़े काम फटाफट

पूर्ण हो रहे है। विघनमुक्त होकर सब काम पूर्ण हो रहे हैं तो वास्तव में इसके लिए ही

आध्यात्मिक ज्ञान की जरूरत है, सत्य ज्ञान की जरूरत है, जब तक मनुष्य को ज्ञान

प्राप्त नहीं हो रहा तब तक मनुष्य को क्या पता की वो पास्ट का अगर व्यर्थ चिंतन

कर रहा है तो वो उससे कैसे बचे, यदि वो दूसरे के बारे में बुरा सोच रहा है तो वो

उससे कैसे बचे।

 

रूपेश भाई :-वास्तव में आज व्यक्ति सोचता है ये सब तो नैचुरल है यदि हुआ है तो

हम तो सोचेंगे ही, यदि बाते हो रही है तो हम सोचेंगे ही। तो वो उसे नैचुरल मान कर

चल रहा है लेकिन ये नहीं समझ पा रहा है, शायद की ये सोच उसकी शक्तियों को

नष्ट कर रही है ओर वो अपनी शक्तियों को यूज भी नहीं कर पा रहा है।

 

सूर्य भाई जी :- ये ही मान लो किसी ने चार वचन बुरे बोल दिये, इनसलटिंन्ग भाषा बोल

दी तो मनुष्य सोचेगा मुझे गुस्सा तो आएगा ही, मेरे मन में विचार चलेंगे ही, नहीं चलेंगे

मैं कायर हूँ क्या, मेरे पास बुद्धि है ना, तो जिसके पास बुद्धि है वो सोचेगा क्यों नहीं लेकिन

जिसके पास बुद्धि है वो क्या सोचे ! जिससे समस्या तुरंत हल हो जाए। यही तो वास्तव में

विवेकशीलता है तो इसी को ईश्वरीय ज्ञान कहते हैं ईश्वरीय ज्ञान लेने के बाद मनुष्य क्या

सोचे, क्या ना सोचे इसके विवेक को प्राप्त कर लेता है ओर तब वो अपने मन को उस दिशा

में ले जाता है की उसका ब्रेन, उसकी 100% जो शक्ति है उसको वो यूज कर सके।

 

रूपेश भाई :- बिलकुल तो इसकी बहुत ज्यादा आवश्यकता हो जाती है की एक सही

ओर यथार्थ ज्ञान हमे प्राप्त हो जिसके माध्यम से हम हंस बन सके। जैसे हंस नीर-क्षीर

विवेक उसके पास होता है, पानी को ओर दूध को अलग कर देता है, कंकड़ ओर मोती

को अलग कर देता है शायद ये सद्ज्ञान व्यक्ति को बुद्धि प्रदान करता है सदविवेक

प्रदान करता है जिससे वो इन चीजो को अलग कर देता है।

 

सूर्य भाई जी :- हाँ , विषय तो बहुत बड़ा है पर मैं संक्षेप में इतना ही कहूँगा की

जो मनोवेज्ञानिक और मेडिकल साइन्टिस्ट ये जानते ओर मानते हैं की मनुष्य

अपनी शक्तियों का बहुत बड़ा हिस्सा अगर यूज करे तो बहुत बड़े काम कर

सकता है। तो उनके लिए हमारा आह्वान है वो आए, ज्ञान ओर योग सीखे ओर

अपनी ब्रेन की सम्पूर्ण शक्तियों को एक्टिवेट करे ताकि एक वेज्ञानिक अपने

कार्य में अपनी शक्ति का सम्पूर्ण हिस्सा यूज कर सके जैसे आईन्सटाइन के लिए

भी कहते है ना की उसने 30% 40% यूज किया लेकिन हम 100% भी यूज कर

सकते हैं उसके लिये राजयोग मेडिटेसन की विद्या और ईश्वरीय ज्ञान परम आवश्यक है।

 

रूपेश भाई :- जी, मेडिटेसन मतलब सीखना आवश्यक है और मेडीटेसन के लिए

ज्ञान की आवश्यकता है, ये दो चीज़े अभ्यास करते करते हम सम्पूर्ण रूप से अपनी

जो ब्रेन की पावर्स है उनको यूज कर पाएंगे। भ्राता जी अब मैं mails पर आ रहा हूँ,

ये पहला मेल हमारे पास जो आया है ये बीके अनुराधा जी लिख रही है की मैं कर्नाटक

के एक सेवकेन्द्र पर सेवा दे रही हूँ, मैं सेवा में बहुत मेहनत करती हूँ लेकिन स्टूडेंट्स

की वृद्धि नहीं हो रही है, मैं क्या करू?

 

सूर्य भाई जी :- हाँ, देखिये बहुत अच्छी बात है क्योंकि इन ब्रहमाकुमारी बहनो ने

अपना सम्पूर्ण जीवन ईश्वरीय सेवाओ मे अर्पित कर लिया है, अपने लिए इन्होने

कुछ नहीं किया, केवल समाज को देने के लिए अपनी कुर्बानी कर दी है। उसके

लिए इन्होंने पवित्र जीवन अपना लिया ओर साधनाओ का पथ अपना लिया तो ये

बिलकुल नैचुरल है की ऐसा करने के बाद भी सेवाओ मे वृद्धि नहीं होती तो मनुष्य

को अच्छा नहीं लगता है। चारों ओर सेवाओ की रिमझिम हो, सभी लोगो को सुख

मिल रहा हो, इनके त्याग भरे जीवन से सबको प्रेरणा मिल रही हो तो उनको बहुत

आनंद होता है तो ऐसे में मैं इनको एक विधि बताऊंगा, केवल एक विधि। अपने सेंटर

के माहोल को पावरफुल बनाए उसके लिए 21दिन तक 1घंटा रोज फिक्स करके बहुत

अच्छी तरह से विद फुल कंसंट्रेशन राजयोग मेडीटेसन का अभ्यास करे और उसमे दो

तीन स्वमान की बातें लेंगे, स्वमान माना जिससे हमारी शक्तियाँ जागृत हो जाती हैं। जैसे

मैं एक महान आत्मा हूँ, बिलकुल हम भगवान के बच्चे हैं तो हम महान हैं उसने हमे

विश्व-कल्याण का काम दिया है तो दूसरा संकल्प रखेंगे मैं विश्व-कल्याणकारी हूँ,

तीसरा संकल्प रखेंगे जो स्वयं भगवान ने हमे याद दिलाया है- तुम पूर्वज हो, तुम वही

हो जिनकी मंदिरों में पूजा हो रही है तो तीसरा संकल्प रखेंगे मैं पूर्वज हूँ ओर चोथा

संकल्प मैं इष्टदेवी हूँ। ये चार स्वमान हैं, इनको बहुत अच्छी फिलिंग में लाकर 1घंटा

पावरफुल राजयोग मेडीटेसन करे जब हम पावरफुल मेडीटेसन कहते हैं तो उसका

अर्थ होता है की मन- बुद्धि ओर कहीं भटके नहीं, 21दिन ऐसा करेंगे ओर योग के बाद

देवकुल की आत्माओ का आव्हान करेंगे की हमारे आसपास, मान लो हमारा शहर है

तो 10-20 किलोमीटर के एरिया में जो भी देवकूल की आत्माए है वो सब शिवबाबा के

पास आ जाओ। जैसे हम उन्हे बुलाएँगे, जैसे कोई आवाज़ देकर बुलाता है, हम मन की

आवाज़ से देवकूल की आत्माओ का आव्हान करेंगे, निश्चित रूप से इससे सेवा में वृद्धि होगी।

ऐसे बहुत सारे सफल प्रयोग बहनो ने किए हैं, मुझे बहुत अच्छा एक अनुभव एक बहन का

याद आ रहा है, उसने मुझे बताया वो मुझसे मिलने आई थी ओर उसने कहा था की अभी

वो एक नई ब्रह्माकुमारी बहन है केवल पाँच साल उसे हुये हैं सेवाकेंद्र पर रहते ओर अभी

अभी दिल्ली में एक जगह उसको किसी सेवा स्थान पर भेजा है, वहाँ कुछ सेवा नहीं थी ओर

वो बहुत खुश हुई की यहाँ सेवा नहीं है ओर मैं यहाँ की सेवा को बढ़ाऊ, उसने मुझे कहा की

मैं ग्यारह-सो स्टूडेंट बनाना चाहती हूँ, मैंने पुछा की ग्यारह-सो क्यों तो कहा की बस मुझे

संकल्प आया है की मैं ग्यारह-सो बनाऊ तो मैंने कहा ठीक है, दो साल में तुम्हें ग्यारह-सो

स्टूडेंट तैयार करने है ओर ऐसा करना एक साल में कम से कम 6बार 21-21दिन की

योगभट्ठी करना। जैसे मैंने अभी बताया वही चार स्वमान लेकर तो दो मास हो गए हैं उसने

मुझे बताया की देखो ये गुड न्यूज़ है की दो मास में हमारे स्टूडेंट्स की संख्या 128 हो गई है।

तो मैंने उसको बहुत अभिनंदन दिया ओर मैंने कहा तुम तो निश्चित रूप से दो साल में 1100 स्टूडेंट

तैयार कर लोगी। 1100 लोगो को पवित्र बना देना, राजयोग की ओर मोड देना, उनकी जीवन

धारा को बदल देना, उनको व्यसनों से मुक्त करना, हिसाब निकाला उसने 1100 में से 128 हुए

तो लगभग 12% काम पूरा। मुझे बहुत खुशी हुयी ओर सचमुच अगर सेवा करने वाले हमारे

सभी भाई-बहने योग के प्रयोग द्वारा अपनी सेवा में वृद्धि करे तो सेवाओ मे जो भागदोड़ होती है,

जो तन-मन-धन की एनर्जी यूज की जाती है वो सब बच जाएगी ओर तीव्र गति से सेवा में

सफलता प्राप्त होगी।

 

रूपेश भाई :- तो अनुराधा जी भी इस ही तरह का अभ्यास करे तो इनकी भी जो ये

समस्या है की स्टूडेंट्स नहीं बढ़ रहे है निश्चित रूप से इन्हे भी बहुत अच्छी रिजल्ट

मिलेगी ओर इनके पास भी बहुत सारे स्टूडेंट्स हो जाएंगे। ये एक अनाम मेल है भ्राता जी,

किसी ने अपना नाम नहीं लिखा है इसमे लेकिन ये मेल समस्या के रूप में इनहोने

हमे भेजा है ओर ये कहती है की मेरे पति वा मेरी सास मुझे शुरू से ही पसंद नहीं करते थे,

वो मुझसे बात-बात पर झगड़ा किया करते थे, उन्होने मुझे घर से निकाल दिया है ओर

कुछ समय से मैं अपने भाई के साथ रह रही हूँ लेकिन भाई के घर में मेरा मन नहीं लग

रहा है। कुछ लोग मुझे वापिस ससुराल जाने की सलाह दे रहे हैं ओर मुझे भी लग रहा है

की मुझे अपने ससुराल चले जाना चाहिए लेकिन मैं कन्फ्यूजड हूँ की मुझे क्या करना

चाहिए, यहाँ रहूँ या वहाँ जाऊँ, कृपया मेरा मार्गदर्शन करे।

 

सूर्य भाई जी :- देखिये, इससे पहले की ये निर्णय ले, नजदीक के किसी ब्रहमाकुमारी

आश्रम पर जाकर थोड़ा ईश्वरीय ज्ञान ले, राजयोग मेडिटेशन करे, अपने बारे में बहुत

कुछ जाने, कर्मो की गुहय गति के बारे में जाने तो इनका चित शांत हो क्योंकि इनके

मन में पति ओर सास के लिए डेफ़िनेटली नेगेटिव फिलिंग्स भर गई होंगी की उन्होने

शुरू से ही इनसे दुरव्यवहार किया है। कभी-कभी ऐसा होता है की बच्चे का झुकाव

माँ की ओर ज्यादा होता है ओर अपनी पत्नी व बच्चो की ओर बिलकुल नहीं होता ऐसे

भी केस सामने आए हैं तो पहले तो ये अपने चित को शांत करे और उन दोनों को क्षमा

कर दे। बहुत अच्छा होगा ताकि जो इसके मन में कटुता भर गई है और इसके मन की

कटुता पहले इसे कड़ुवा बना रही है, इसे जहरीला बना रही है, इसकी शांति को भंग

कर रही है। इसके जीवन में जो सुख होना चाहिए था पारिवारिक उसको नष्ट कर रही

है वो समाप्त हो जाए और उन दोनों के प्रति क्षमा भाव के साथ दोनों के साथ शुभभावना

ले आए। और जब ज्ञान-योग ये सीखेंगी तो इन्हे एक चीज़ सिखायी जाएगी की ये सभी

आत्माए हैं और ये संसार एक विशाल नाटक है सभी आत्माए इसमे देह रूपी वस्त्र पहनकर

अपना-अपना पार्ट प्ले कर रहे है तो पति और सास दोनों भी आत्माए है और अपना-अपना

पार्ट प्ले कर रही है तो इस दृष्टि से इनके मन की कटुता समाप्त होगी ओर मेरी तो राय ये है

भाई के पास तो ये कब तक रहेगी, किसी भी नारी को अपने घर में ही रहना शोभा देता है।

समस्याएं तो है लेकिन ये अपनी शुभभावनाओ से ये उनका हल कर सकती है, इसे वहीं

जाना चाहिए ओर इंपोर्टेन्ट बात यही है की उन्हे बदलने की बजाए अपने को बदलना

चाहिए क्योंकि जब मनुष्य के साथ ऐसा व्यवहार होता है तो मनुष्य अपने को नहीं देख पाता,

उसे लगता है की ये दोनो मेरे शत्रु है, ये दोनों मुझे कष्ट पहुंचा रहे है, मेरे जीवन के साथ

खेल रहे हैं, मुझे बिलकुल नष्ट कर देना चाहते है तो इनकी अपनी निगेटिव भावनाए उनको

पहुँचती है और उनका गलत व्यवहार भी बढ्ने लगता है इसलिए मैं इस बहन को कहूँगा

की अपने को चेंज करे| अगर कोई इनका संस्कार ऐसा हो जो दूसरों को बुरा लगता हो,

इनका बात करने का तरीका ऐसा हो जो दूसरों को भाता ना हो, इनका कर्म करने का

तरीका ढीला-ढाला हो कई लोग बहुत ठंडा काम करते हैं कुछ करते, कुछ नहीं करते

उसको भी ये ठीक करे तो वो इन्हे पसंद करेंगे| देखिये स्प्रिच्यूलिटी का मैं एक बहुत अच्छा

सिद्धांत इस बहन के लिए मैं सुना देता हूँ। सभी दर्शक भी सुन ले, संसार में लोग कहते है

की हमें कोई प्यार नहीं करता, कई जगह ये समस्याए दिखाई देती है लेकिन पहले तो मनुष्य

को ये कारण ढूँढना चाहिए की मुझे प्यार कोई क्यू नहीं करता? प्यार तो हर मनुष्य के पास है,

प्यार मनुष्य प्यार दूसरे को देना भी चाहता है पर यदि मुझे प्यार दूसरे नहीं दे रहे तो कहीं

मेरी भी कुछ न कुछ गड़बड़ है लेकिन मैं इसका एक सुंदर समाधान कहूँगा जो आत्मा स्वयम

को देह से न्यारा अनुभव करती है उसे सबका प्यार स्वत: ही मिलता है। बहुत सुंदर ये स्प्रिच्यूल

फिलोसपी है इसलिए इस बहन के लिए राय है की वो राजयोग मेडीटेसन सीखकर, मैं आत्मा हूँ

ये देह अलग है मैं आत्मा बिलकुल अलग हूँ, मैं तो बिलकुल पवित्र आत्मा हूँ, मैं तो शुद्ध हूँ,

मैं शक्तिशाली हूँ, मैं भी इस देह रूपी चोले को धारण करके इस विश्व नाटक में पार्ट प्ले कर

रही हूँ, बिलकुल मैं अलग, ये देह अलग| कुछ दिन ये अभ्यास करेगी तो इसको अनुभव होगा

जो लोग इससे घृणा करते थे वो इससे प्यार करने लगे हैं।

 

रूपेश भाई :- इन्होने लिखा है भ्राता जी की उन्होने घर से निकाल दिया है ओर

अब यदि वो स्वीकार ही ना करना चाहते हो तो ?

 

सूर्य भाई जी :- हाँ ये समस्या भी संभव है लेकिन कोई भी पति अपनी पत्नी को

निकाल देता है तो वो क्रोध वश या किसी अहंकार वश निकाल तो देता है लेकिन

उसे कठिनाई बहुत होती है तो वो फिर से उसे भुलाना तो चाहता है लेकिन वो अहंकार

वश भुलाना नहीं चाहता की मैं नीचा ना हो जाऊ, मेरा सिर ना झुक जाये, आना हो आपे

आ जाए, इगो प्रॉबलम लेकिन ये अगर मेडीटेसन की प्रेक्टिस करेगी तो उनका भी विचार

बदल जाएगा ओर वो इन्हे सम्मान सहित स्वीकार करेगे।

 

रूपेश भाई :- और भ्राता जी तीसरा ऑप्शन भी हो सकता है मान लीजिये वहाँ पर

स्वीकार नहीं किया जा रहा है तो क्या इन्हे स्वतंत्र रूप से भी अपने जीवन को आगे

बढ़ाने के बारे में सोचना चाहिए?

 

सूर्य भाई जी :- हाँ देखिये, वो तीसरी बात है अगर वो इन्हे किसी भी तरह का सहयोग

नहीं देते क्योंकि कभी-कभी ऐसा होता है पूर्व जन्मो के कर्मो के खेल के अनुसार इनका

कार्मिक अकाउंट सेटील हो रहा हो, इनको ये कष्ट पाना ही हो ओर इनका उनके साथ

जो कार्मिक अकाउंट था वो पूर्ण हो गया हो। इन्हे अलग रहना ही हो तो उसे भी इन्हे

स्वीकार कर लेना चाहिए ओर इसी में इनको अपनी लाइफ को एंजॉय करना चाहिए

अगर बच्चे है तो एक बच्चा भी इन्हे मिल सकता है अगर दो है तो, कुछ भी वो तो

समाधान हो सकता है ओर ये कोई छोटी-मोटी जॉब भी कर सकती हैं ओर दूसरी

बात ये हमारे सेवा केन्द्रो में थोड़ा सेवा में सहयोग भी दे सकती है तो लाइफ को एंजॉय

करने के तो अनेक साधन हैं लेकिन मन को शांत करे, पोजिटिव करे और फिर एक

नया रास्ता निकाल ले।

 

रूपेश भाई :- भ्राता जी, हमारे पास जो अगला प्रश्न आया है, ये है सारधा कश्यप जी का,

जींद से लिख रही है ओर ये कहती है की मेरा बेटा एंजीयनरींग का विद्यार्थी है, उसका

दो पेपर में बैक आ गया है ओर अब वो सारा दिन घर में उदास बैठा रहता है, बहुत परेशान

है की मैं अपना पेपर कैसे क्लियर करूंगा, कर पाऊँगा या नहीं कर पाऊँगा, मेरा भविष्य

क्या होगा| मैं बहुत समझाती हूँ की सब ठीक हो जाएगा पर वो समझ नहीं पा रहा है,

मुझे उसके लिए क्या करना चाहिए?

 

सूर्य भाई जी :- हाँ, निश्चित रूप से ऐसे केसेज कई बच्चो के साथ होते हैं ओर वो बच्चा

उदास हो जाता है, कुछ बच्चे तो ऐसे है खुशमिजाज़ नेचर के होते है, जो कुछ भी हुआ,

ठीक है होना होगा तो हो जाएगा छोड़ो कोई बात नहीं लेकीन कुछ बच्चे सिरियस होते

हैं जो हर बात को सीरियसली देखते है की उनका एक साल बेकार जा रहा है, या क्या

हो गया है तो उनके मन में उदासी आ जाती है तो माँ-बाप भी परेशान हो जाते हैं ओर

चाहते है हमारा बच्चा इससे निकल जाए। आखिर मनुष्य का जीवन इंपोर्टेन्ट है, एक पेपर

ही तो इंपोर्टेन्ट नहीं है ना तो मैं इस युवक को कहूँगा की जीवन में ऐसे खेल चलते रहते हैं,

इसको खेल माने, बैक आई है तो कल को सफलता हो जाएगी, पेपर क्लियर हो जाएंगे।

अपने मन पर उदासी की चादर जो इनहोने डाल ली है इसको ये उतार फेके और बिलकुल

उमंग-उत्साह, खुशी अपने मन में लाये ओर फिर से तैयारी करे बिलकुल उमंग-उत्साह के

साथ तो बिलकुल सफलता होगी ओर मैं तो राय दूंगा की थोड़ा मेडीटेसन भी किया करे,

आस-पास जो भी सेवाकेंद्र है वहा जाकर थोड़ा-थोड़ा भी सीखे ताकि कंसंट्रेशन भी बढ़े ओर

जीवन में खुशी लोटे। देखिये मेडीटेशन का सबसे अच्छा फायदा यही होता है की एक मुर्दे

समान बने व्यक्ति में भी नवजीवन का संचार होने लगता है ओर वहाँ हमारे सेवाकेन्द्रो में

जब बहुत सारे भाई बहन आते हैं तो खुशी का माहोल इतना ज्यादा होता है की उदास

व्यक्ति भी वहां आकर खुश हो जाता है तो इस युवक को हर समय घर में नहीं रहना

चाहिए, घर से थोड़ा बाहर भी आए।

 

रूपेश भाई :- और प्रॉबलम तो यही है भ्राता जी, वो अपनी माँ की बात नहीं सुन रहा है,

वो समझा रही हैं शायद ये सारे समाधान भी वो दे रही हों लेकिन वो सुनने को तैयार नहीं है,

कई बार ऐसा होता है की निराशा के बहुत गर्त में चले जाते है या मेरे फ़्रेंड्स क्या कहेंगे,

लोग क्या कहेंगे शायद ये सोच-सोच कर वो बहुत ज्यादा परेशान हो जाते है।

 

सूर्य भाई जी :- यही, यही हो रहा है इसके साथ भी तो इसको बाहर तो निकलना ही है,

आखिर घर में कब तक रहेगा, फ्रेंड्स से तो मिलेगा ही कभी न कभी और फ्रेंड्स भी

जानते हैं बहुतों की बैक आती है कोई बात नहीं, ये खुलेगा तो फ्रेंड्स भी इसके साथ

अच्छी तरह मिले-जुलेंगे तो। और नहीं तो हमारे आश्रम पर जाये वहाँ की खुशी का

माहोल इसमे खुशी पैदा करेगा और ये उदासीनता समाप्त हो जाएगी क्योंकि ये

उदासीनता तो इसके ब्रेन की शक्तियों को नष्ट करती जाएगी इसलिए इस युवक को

उदासी से तो बाहर आना ही है इसलिए मैं कहूँगा माँ को भी उसको साथ देती रहे,

उसको बिलकुल encourage करती रहे और कोई बात नहीं उसको अपने साथ

घूमने-फिरने पिकनिक पर ले जाया करे, बाज़ार में ले जाया करे और आश्रम में भी

उसको अपने साथ ले जाये तो वो बिलकुल इससे बाहर आ जाएगा।

 

रूपेश भाई :- बिलकुल तो वो अपनी तरफ से पूरा प्रयास करे की वो इस माहोल

से बाहर आए और उसको कुछ पोजिटिव बाते देते रहे ताकि वो इस परेशानी से,

इस निराशा के गर्त में जो डूबता जा रहा है इससे बाहर आए। भ्राता जी आज जीतने

भी हमने प्रश्न लिए, लोगो को बहुत अच्छे समाधान आपने दिये है, लोगो की जो भी

समस्या रही है, मुझे पूर्ण विश्वास है की लोगो को इन बातो का बहुत अच्छा असर हुआ

होगा ओर इसका अभ्यास भी वो करेंगे और निश्चित रूप से उनकी समस्याए समाप्त होंगी,

आज की तमाम बातों के लिए भ्राता जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ! मित्रों, जीवन जीत

और हार का खेल है, कहा जाता है यदि अंधेरी रात है तो सुबह अवश्य आएगी। ये नहीं

मानना चाहिए की हमेशा रात ही रहेगी, रात के बाद स्वर्णिम प्रभात अवश्य आता है

इसलिए यदि हमारी हार भी हो रही है और असफलता भी हो रही है, समस्याए आ भी

रही है हम निराश ना हो लेकिन अपने उत्साह को बनाए रखे, अपनी शांति ओर धैर्य को

बनाए रखे। निश्चित रूप से आपकी जीत होगी, निश्चित रूप से आप जीवन में सफल होंगे तो

अपनी सफलता को, अपने विश्वास को, अपने धैर्य को अपने साथ बनाए रखे, हम सबकी

शुभभावना आपके साथ है की आपका जीवन सफलता से परिपूर्ण हो, समाधान से

परिपूर्ण हो ओर आपका जीवन आनंद से भरा रहे। नमस्कार !

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