Samadhan Episode – 000931 Self Confidence
CONTENTS :
1. कैसे व्यक्ति अपने शिखर तक पहुँच सकता है ?
2. अपने अंदर उमंग, उत्साह, हिम्मत जैसे गुणों को कैसे लाया जाये ?
3. जो लोग आध्यात्मिक नहीं होते हैं, वे कैसे शिखर को पा लेते हैं ?
4. आध्यात्मिकता की यथार्थ परिभाषा क्या है ? क्या सिर्फ़ पूजा-पाठ, कर्म-कांड करना अध्यात्म है ?
5. कैसे अपने बॉस, सीनियरस के साथ रहते हुए स्वमान से जियें ?
6. सेल्फ़-रेस्पेक्ट में रह कर के अपना आध्यात्मिक औरा कैसे बढ़ाएं ?
7. क्या हम खुदको दूसरों से कम्पेयर करके लो फ़ील करते हैं ?
8. क्या पढ़ा हुआ याद नहीं रहता ? कैसे अपनी एकाग्रता और स्मरणशक्ति को बढ़ाएं ?
रुपेश काईवर्त : नमस्कार आदाब सतश्रीअकाल ! मित्रों स्वागत है आपका
कर एक नई समस्या का समाधान हमारे साथ हैं एक खास मेहमान कार्यक्रम में
मित्रों कहा जाता है कि आइंस्टीन और थॉमस अल्वा एडिसन, जब छोटे थे तो
उनको मंदबुद्धि कहा जाता था | साथ ही मोहम्मद अली, जोकि इतने मशहूर
मुक्केबाज़ थे, बचपन में इतने गरीब थे कि उन्हें दान में लिया हुआ कपड़ा पहनना
पड़ता था |
जे.के.रोव्लिंग, जोकि इतनी प्रसिद्ध उपन्यासकार हैं, इन्होंने इतने अच्छे-अच्छे
उपन्यास लिखे हैं, फेमस उपन्यासकार हैं | उन्होंने जब अपना पहला उपन्यास
लिखा था तो रद्दी कागजों पर लिखा था | साथ ही धीरुभाई अम्बानी को हम सभी
जानते हैं, वे पहले पेट्रोल पंप पर कार्य किया करते थे | मैं इनकी चर्चा क्यों कर
रहा हूँ ! क्योंकि ये ऐसे महानुभाव हैं, जिन्होंने कभी भी विपरीत परिस्थितियों में
हार नहीं मानी | इन्होंने रास्ते की तलाश की, और साथ ही रास्ते का निर्माण भी
किया | इन्होंने अंधकार को अपनी नियति स्वीकार नहीं किया लेकिन
प्रकाश की ओर देखते रहे और साथ ही प्रकाश की ओर चलते भी रहे | इसीलिए
इन्हें हम आज इतने आदर से याद करते हैं, हम सबके लिए आदर्श बन गये हैं |
जब ये ऐसा कर सकते है, तो हमसब ऐसा क्यों नहीं कर सकते हैं ! हमारी लाइफ में भी
ऐसी सिचुएशन आ जाती हैं, और हम भी ऐसी ही परिस्थितियों में घिर जाते हैं |
जबकि लगता है कि परिस्थितियां हमारे अनुकूल नहीं हैं लेकिन फ़िर भी यदि हम
प्रकाश की ओर देखते हैं तो हमे रास्ता दिखाई देने लगता है, और हम भी एक
आदर्श प्रस्तुत कर पाते हैं | इसी विश्वास के साथ, इसी उमंग के साथ, इसी आस्था
और विश्वास के साथ, आज के समाधान की कड़ी की शुरुआत करते हैं |
आज हमारे साथ हैं आदरणीय राजयोगिनी गीता दीदीजी, जो कल से हमारे साथ
बनी हुई हैं | और साथ ही आप प्रजापिता ब्रह्माकुमारीस ईश्वरीय विश्वविद्यालय की
वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका हैं | दीदीजी आपका बहुत बहुत स्वागत है, अभिनन्दन है …
गीता दीदीजी : बहुत बहुत शुक्रिया |
रुपेश काईवर्त : दीदी ये जो हमारे सामने, जिनकी मैंने चर्चा की, आदर्श रूप में हैं,
व्यक्ति चाहता तो है कि इस शिखर तक पहुंचे, लेकिन परिस्थितियों में रास्ता तलाश
करना, या अपनी धैर्यता को बनाए रखना, कई बार कठिन सा लगता है या लगता है कि
इस स्थिति में क्या किया जाए ! क्या अध्यात्मिक सुझाव देना चाहेंगी ऐसे में |
गीता दीदीजी : आध्यात्मिकता तो ये ही सारे गुण और शक्तियां हमारे अंदर भरते हैं |
आज ये जो आपने बातें कही हैं, वर्तमान में नरेन्द्र मोदीजी का भी उदहारण हम ले
सकते हैं | कि वो कैसी स्थिति से आज कहाँ तक पहुंचे हैं ! तो उनकी अपनी
एक तीव्र इच्छाशक्ति और एक अथक परिश्रम और हर परिस्थिति में हारना नहीं बल्कि
और रास्ता निकालना | तो इस प्रकार की अंदर में एक लगन और जिज्ञासा बनी रहती
है और इससे व्यक्ति सफ़लता को पता है और आगे बढ़ता है | बेशक लम्बे समय तक परीक्षाएं
आती हैं और सफ़लता पाने के बाद भी तो बातें उनके सामने आती ही हैं | तो ये एक जिगरी
हमारे अंदर लगन, जिज्ञासा, उमंग, उत्साह हमेशा बना रहना चाहिए | तो आध्यात्मिकता
हमे इन सब सत्यों से वाकिब करती है कि आपका अपना असली रूप ही शक्ति स्वरूप है |
और आपके अंदर, आपके विचारों में, आपकी वृत्ति में बहुत शक्ति है | अपना स्वरूप ही
सत्य है, शुद्ध है | अपना basically ही आनंद स्वरूप है | और जब वो आनंद स्वरुप हम
अपना पक्का कर लेते हैं तो फ़िर हमारे में उमंग, उत्साह, हिम्मत ये सारे जो गुण हैं ना
आनंद से रिलेटेड हैं | वो अपनेआप हमारे अंदर जागते हैं और इस प्रकार की योग्यता
कि हम हर परिस्थिति में बने रहें, हमारा उमंग उत्साह बना रहे, प्रयास हमारा जारी रहे,
ये क्षमताएं हमारे में आती हैं |
रुपेश काईवर्त : जी बिलकुल | दीदी अध्यात्म से ये सारी चीज़े जागृत होती हैं, ये तो
सभी मानते भी हैं, लेकिन ऐसे भी कुछ लोग हैं जो ये कहते हैं कि क्या इसकी भी
हमे अध्यात्मिक आवश्यकता होगी, जिन लोगों की हमने चर्चा की यदि वो आध्यात्मिक
नही भी थे, तो भी उन्होंने शिखर को पाया | क्या कुछ ऐसे भी फैक्टर हैं जो व्यक्ति
को शिखर पर पहुंचाते हैं ? क्या आध्यात्मिकता उसका एक ज़रुरी अंग है ?
गीता दीदीजी : कई बार हम डायरेक्टली आध्यात्मिकता को नहीं मानते हैं | मानलो,
इनके मूल सत्य ज्ञान को नहीं मानते हैं, पर हम नैतिकता को मानते हैं, गुणों को
मानते हैं, वैल्यूज को मानते हैं | कुछ सिद्धान्तों को लेकर हम चलते हैं, तो एक प्रकार
से ये भी आध्यात्मिकता का रूप है ही | आध्यात्मिकता इस प्रकार के और भी
अनेकानेक गुणों की धारणा कराती है | चलो, इसके अंदर ये गुण है, उमंग-उत्साह
है, सहनशीलता है, अथक परिश्रम है, विजयी बनने की लगन है | परन्तु आध्यात्मिकता
तो टोटल सभी गुणों का ज्ञान और उसकी धारणा हमारे अंदर कराता है |
रुपेश काईवर्त : मतलब जिन मूल्यों की हम चर्चा करते हैं उनके लिए
आध्यात्मिकता एक अंग है |
गीता दीदीजी : बिलकुल, क्योंकि ये जो गुण है ये बिना आध्यात्मिकता के…
क्योंकि ये है तो आत्मा से ही रिलेटेड | वैल्यूज जो हैं वो आत्मा से कनेक्टेड हैं,
पावर्स जो हैं वो आध्यात्मिकता से कनेक्टेड हैं |
रुपेश काईवर्त : लोग ये मान लेते हैं कि ये जो पूजा-पाठ, कर्म-कांड तो कर ही
लेते हैं, फ़िर भी ये सफ़ल हैं तो हम ये क्यों करें ? तो शायद ये पूजा-पाठ, कर्म-कांड
की आवश्यकता नहीं है | लेकिन ये अध्यात्म हमे कुछ और भी सिखाता है |
गीता दीदीजी : बिलकुल ! माना जो आध्यात्मिकता है वो हमे बेसिक मूल सत्यों
का ज्ञान देता है | जिसके आधार पर जबतक हमारे अंदर मूल सत्यों का ज्ञान
नहीं होगा, व्यावहारिक जीवन में हमको क्या करना चाहिए वो विवेक हमारा
काम नहीं करेगा, हम सही निर्णय नहीं ले सकेंगे, खुदको समर्थ नहीं रख सकेंगे |
जितनी यथार्थ स्मृति रहती है उतनी समर्थी बनी रहती है | indirectly, आध्यात्मिकता
तो है ही है भले हम उन्हें स्वीकार ना भी करें |
रुपेश काईवर्त : जी..जी.. लेकिन उसके मूल में वही आ जाता है |
गीता दीदीजी : जी.. उसके मूल में वही आ जाता है |
रुपेश काईवर्त : चलिए दीदी, आजके जो प्रश्न आये हुए हैं मैं उनकी ओर लिए
चलता हूँ आपको, इस सुंदर कामना के साथ कि हमारे सभी दर्शक भी अपनी
सभी परिस्थितियों से लड़ते हुए आगे बढ़ें और सम्पूर्ण सफ़लता अर्जित करें |
पहला प्रश्न हमारे पास आया है तान्या जी का | ये कहती हैं कि मेरा छोटा भाई
बहुत ही गलत रास्ते पर चल रहा है, घर पर किसीका कहना नहीं मानता, पैसे
कमाता है और गलत कार्यों में उड़ा देता है | मम्मी-पापा ने उसे सभी चीजों से
बेदखल कर दिया है, मैं क्या करूं कि मेरा भाई बहुत अच्छा बन जाए और अपने
जीवन को नए तरीके से वापिस से जीना शुरू कर दे |
गीता दीदीजी : तान्या जी की ये बहुत अच्छी शुभ भावना है अपने भाई के लिए कि
इनका भाई भी सही मार्ग पर चले और उसके लिए वो कुछ करना भी चाहती हैं |
बेशक, माँ-बाप ने बहुत बार समझाया है, और अभी तो उनकी समझ में नहीं आ
रहा है, इसके कारण practically, माँ-बाप को ये कदम उठाना पड़ा कि उन्हें सभी
कारोबार से बेदखल कर दिया है | पर आप बहन हैं आप भी अपनी तरफ़ से ट्राई
करिये और उनके लिए शुभ भावना रखिये मन में कि इन्सान कभी संग-दोष में आकर,
कभी परिस्थितियों के वश होकर के गलत मार्ग पर चल पड़ता है, पर आपकी ये शुभ
भावना आज नहीं तो कल उसे सही मार्ग पर लाएगी | और जब वो आते हैं आपसे
मिलते हैं, तो आप अपने तरफ़ से बार-बार उन्हें रोकें नहीं, टोके नहीं | क्योंकि बार-बार
उन्हें समझाने से उनका अपना मन भी रिएक्टिव हो जाता है, कि वो फ़िर सुनना ही
नहीं चाहते हैं कि ये वही बात हमसे करेंगे | परन्तु हम उनके साथ नॉर्मली प्यार से
चलें और अच्छी बातें उनसे करें | हम अपनी तरफ़ से उन्हें सलाह शिक्षा ना दें |
हमारा अपना अच्छा जीवन, हमारे मन की शुभ भावनाएं, सदा उनके लिए रहेगी
तो आज नहीं तो कल ये बात उनको ज़रूर असर करेगी | और अगर कभी मौका
मिलता है कोई ना कोई कार्यक्रम के बहाने, कोई अच्छे लोगों से मिलाएं, कोई अच्छे
स्थानों पर ले जाएँ, कोई अच्छे प्रवचनों में ले जाएँ | तो कभी भी आत्मा जाग जाती है |
रुपेश काईवर्त : अपना शुभ प्रयास करते रहें..! चलिए हमारी यही शुभ कामना रहेगी
कि इनके छोटे भाई जल्द से जल्द अच्छे मार्ग पर चलने लगें | और साथ ही माता-पिता
का भी नाम रोशन करें | राजेश जी का अगला मेल है ये कहते हैं कि जिस ऑफिस में
मैं काम करता हूँ वहाँ के जो बॉस हैं वो मुझे peon की तरह ट्रीट करते हैं, मेरे लिए
ये एक बहुत ही नुकसानदायक स्थिति भी है और अच्छा भी नहीं लगता है | ये देखकर
मेरे सभी जो दोस्त हैं वो मेरा मज़ाक भी बनाते हैं | कृपया मुझे इस समस्या का समाधान
भी बताएं कि ऐसे insulting माहौल में रहते हुए भी मैं अपना कार्य कैसे करूं और ये
जॉब मैं छोड़ भी नहीं सकता |
गीता दीदीजी : थोड़ा अपने भी स्वमान से हम जियें, चलें | कई बार किसी लाभ
की इच्छा से या सामने वाले व्यक्ति के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर हम ही अपने
आप में इतने दब जाते हैं कि वो फ़िर हमारा मिसयूज करते हैं | बेशक, जो हमारे
बड़े हैं, हमारे बॉस हैं, departmental हेड हैं, या हमसे जो भी सीनियर है या
परिवार के अंदर हमसे बड़े हैं तो हमे उनको रेस्पेक्ट ज़रूर देना है पर हमे
कोई गुलाम या सर्वेंट जैसा तो नहीं बनना है | वो जो कहते हैं जो कारोबार हमे
वहाँ मिला हुआ है सबकुछ आपको ही करना है, ऐसा तो आपकी नौकरी नहीं
बनी हुई है | जो आपका कार्य है वो आप करिए | और उसके लिए अपनेआप में
भी अपना व्यक्तित्व कुछ बनाइए | मैंने देखा है कि जो स्वयं में प्रभाव में आ जाते
हैं ना, फ़िर वो अपनेआप को उनके सामने ताकत से खड़े नहीं रह पाते हैं | तो
रेस्पेक्ट तो दें पर हम इतना झुक भी ना जाएँ, इतने प्रभाव में भी ना आ जाये कि
हमारे अपने व्यक्तित्व में कुछ खास रहे ही नहीं | अब फ़िर आप युक्ति से एक-दो
बार कह भी सकते हैं कि आज मैं बिजी हूँ ! और किसीको दे दिया जाये, आप
टाल भी सकते हैं काम को | आप अपनी ड्यूटी अच्छे से कीजिये बाकी चीजों
के लिए थोड़ा स्वमान में रह करके अपना … अपनी वैल्यू खुद रखेंगे तो और भी रखेंगे |
रुपेश काईवर्त : जी..जी.. दीदी क्या अध्यात्म में या योग में, कुछ ऐसे साधन हैं
जिनके माध्यम से जैसे आप बात कर रही हैं कि सेल्फ़ रेस्पेक्ट में रहें, हमारा
अध्यात्मिक औरा बढ़ता जाये ताकि सामने वाला व्यक्ति है वो हमसे ऐसे ट्रीट ना करे !
गीता दीदीजी : बहुत अच्छे थॉट्स हमे आध्यात्मिकता से प्राप्त होते हैं, जैसे हम
महान आत्मा हैं, हम श्रेष्ठ आत्मा हैं, हम इस वर्ल्ड ड्रामा में हीरो एक्टर हैं | इस
प्रकार से यदि हम अपनेआप में अच्छे स्वमान लेते हैं, इस प्रकार की स्मृति का
हम अभ्यास करते हैं और वो सदा हमारे में रहना भी चाहिए कि आखिर हम किसी
के पास नौकरी करते हैं तो वो किसी गुलामी की बात नहीं है | उनको भी हमारे
कोऑपरेशन की ज़रूरत होती है | तो बेशक, हम अपना कार्य बहुत ख़ुशी से,
बहुत अच्छी रीति करें, पर इसका अर्थ ये नहीं है कि हम समझें कि हम तो वहाँ
से कमाई कर रहे हैं, नौकरी कर रहे हैं या पेमेंट प्राप्त कर रहे हैं तो हम टोटल
कोई गुलाम या ऐसा तो नहीं हैं | तो खुद अपनी ऊँची स्मृति में रहिये कि हम
भी विशेष आत्मा हैं | हमारा अपना भी महत्व है इस वर्ल्ड ड्रामा में, सर्व के सहयोग
से ही सुखमय कारोबार चलता है | इसकी एक कड़ी हम भी हैं, हर कड़ी महत्त्वपूर्ण
है | हर एक ईंट महत्वपूर्ण है मकान बनाने में | तो इस प्रकार से, हर एक पुर्जा मशीन
का महत्त्वपूर्ण है भल कितना भी छोटा सा पुर्जा है पर उसका अपना कोऑपरेशन है |
तो इस प्रकार आप अपनी श्रेष्ठ स्मृति में रहें, अपनी वैल्यू अपना महत्व खुद रखेंगे.. |
रुपेश काईवर्त : जी..जी.. खुदका महत्व रखेंगे हम तो दूसरों का भी सम्मान हम
अर्जित कर पाएंगे |
गीता दीदीजी : हाँ |
रुपेश काईवर्त : एंजेल, उदयपुर से हैं दीदी, नाम बड़ा प्यारा सा है इनका, ये कहती
हैं कि मैं कक्षा दसवीं में पढ़ती हूँ, बहुत अच्छे नम्बर भी पहले मेरे आते थे, पर अब ना
ही मेरा पढ़ने में मन लगता है और ना ही कुछ और ही करने की इच्छा ही होती है |
मैं अपनेआप को हमेशा दूसरों से कम्पेयर करती रहती हूँ और बहुत लो फ़ील करती
हूँ | मेरे जीवन में जैसे कि अंधकार छा रहा है, मैं क्या करूं, कैसे अपनेआप को
मोटीवेट करूं ? ये भी बच्चों में एक स्थिति बन जाती है कि बहुत अच्छे से चल रहे
होते हैं फ़िर अचानक ना जाने क्या हो जाता है, कुछ तो हो जाता है पर क्या होता
है ये समझ में नहीं आता !
गीता दीदीजी : यही होता है जो दूसरों से कम्पेरिज़न करते हैं, इसी के कारण वो
अपनेआप को लो फ़ील करते हैं | और फ़िर वो थॉट्स आने लगते हैं | तो वास्तव में
हमे कम्पेरिज़न क्यों करना चाहिए ! वो अपनेआप में विशेष है, ड्रामा का हर एक्टर
महत्वपूर्ण है | अगर आज एक हीरो एक्टर का महत्व है तो विलन का भी महत्व है |
एक कोअक्टोर जो होते हैं साथ में पार्ट प्ले करने वाले.. अगर हर कोई हीरो बनेगा तो
कौन किसका मानेगा ! और कैसे प्ले चलेगा !
रुपेश काईवर्त : खेल का मज़ा ही..
गीता दीदीजी : खेल का मज़ा ही नहीं आयेगा | आज इस संसार में देखो, इन्सान का अपना
महत्व है, पशु का अपना महत्व है, पक्षी का अपना महत्व है, पेड़-पौधों का, फ़ल-फूलों का
अपना महत्व है | आज एक जो सुंदर पक्षी को देखकर ख़ुशी मिलती है कई बार एक इन्सान
को देखकर भी नहीं मिलती ! तो ऐसे ही हम खुद की कम्पेरिजन दूसरों से क्यों करते हैं ?
जबकि इस वर्ल्ड ड्रामा का एक basic.. ये scientifically भी ये प्रूव है कि ये मूल बात है
कि हर आत्मा अपनेआप में यूनिक है | फिजिकली भी हरेक अलग है, एक का चेहरा दूसरे
से नहीं मिलता है, हरेक के स्वभाव-संस्कार भी अलग-अलग हैं,कम्पेरिज़न करना ही है तो
महान आत्माओं से करिए, और ऐसे बनने की प्रेरणा लीजिये | किसीसे जब compare करते हैं
तो उनकी अच्छाई सीखिए, सिर्फ़ कम्पेरिज़न करके कि वो बहुत आगे हैं हम बहुत पीछे हैं !
पीछे हैं तो और पुरुषार्थ कीजिए, सीखिए उनसे अच्छी बातें | पर अपनेआप ही अंदर मन से
भारी हो जाना, फ़िर डिप्रेशन में चले जाना, फ़िर पढाई में या जो भी काम कर रहे हैं उसमे रूचि
ना रखने से खुद ही खुद को नुकसान करेंगे | जो है उससे भी गिर जायेंगे | और भी कमज़ोर
हो जायेंगे, जो आपकी विशेषता हैं वो भी खत्म हो जाएँगी | तो ऐसा नहीं करना चाहिए |
रुपेश काईवर्त : दीदी जो ये कह रही हैं कि अच्छे नंबर नहीं आ रहे हैं, ना पढाई में ठीक
से ध्यान लग पा रहा है, और कुछ रीज़न हो सकता है ! कैसे सही से फोकस करें |
गीता दीदीजी : क्योंकि माइंड ही डिस्टर्ब है तो कहीं भी लगाओ तो अच्छी रीति से नहीं
लगेगा | आपने दूसरों से अपना कम्पेरिज़न किया इससे आपको … अपनेआप में ही ..
आप कुछ नहीं है, फ़ालतू है, बेकार है, इतना नहीं है ..
रुपेश काईवर्त : इसलिए माइंड डिस्टर्ब हो रहा है..
गीता दीदीजी : तो आपका माइंड डिस्टर्ब हो रहा है | निराशा में जा रहा है, टूट रहा है,
वो माइंड कैसे फोकस होगा | आज आपका कहीं पांव की हड्डी टूट गई है, दर्द हो रहा
है, तो पांव आपका स्थिर कैसे रहेगा | same आपका मन भी टूटा है, निराशा से भरा
है, तो वो एकाग्र कैसे रहेगा | उनमे शक्ति कहाँ से आएगी ! इसलिए बेस्ट है हम जो हैं,
जैसे हैं, बहुत अच्छे हैं, और अच्छे हम बन सकते हैं सबसे अच्छाइयां सीख कर | ना
कि सिर्फ़ कम्पेरिज़न कर के |
रुपेश काईवर्त : जी..जी.. बच्चों में आजकल ये समस्या बहुत है.. चलो इन्होंने
अपना तो रीज़न बता दिया है, लेकिन हम पढ़ते हैं पर हमे याद नहीं होती हैं चीज़ें |
हम एकाग्र नहीं हो पाते हैं, क्या कारण लगता है दीदी आपको | बहुत सारे बच्चे
इस शो को भी देखते हैं, पेरेंट्स भी देखते हैं | क्या सलाह आप उन्हें देंगी ! क्या करें,
क्या ना करें, ताकि एकाग्रता बढ़े | और इस कारण शक्ति अच्छी हो उनकी, परफॉरमेंस
अच्छी हो उनकी |
गीता दीदीजी : एक तो जीवन में अभ्यास ही नहीं है अबतो मन को अंतर्मुखी बनाने का,
मन को फोकस करने का | कौन आज बताओ कितना मिनट साइलेंस में बैठते हैं !
प्रेयर करते हैं, आज भक्ति भी करते हैं तो कितना आवाज़ करते हैं, गाते हैं,
क्रिया-कांड करते हैं | तो मन फ़िर उधर के बजाय यहाँ लग जाता है, फ़िर भी
परमात्मा में तो एकाग्र नहीं होता है ना ! तो हमे कुछ क्षण सभी बातो से डिटेच होकर
स्वचिन्तन करने का अभ्यास हो, उसे परमात्मा के प्रति मन लगाने का, एकाग्र करने
का अभ्यास हो | तो वो शक्ति हमारे में भरती जाएगी | और दूसरी बात कि आज
इच्छाएं इतनी बढ़ गई हैं, बॉडी-कौन्शियसनेस इतना बढ़ गया है कि बच्चों का
ड्रेसअप होने में फ़िज़ूल का जो साधन use करते हैं, हर चीज़ में वो फैशन, इच्छाएं,
शौक बढ़ गए हैं | और उनमे भी इतना कम्पेरिज़न है कि इनके पास ऐसा मोबाइल
है मेरे पास भी हो, इनकी माँ इतनी अच्छी गाड़ी में इनको छोड़ने आती है तो मेरे
घर में तो छोटी सी कार है, वो भी ऐसी होनी चाहिए | तो हम अभी बाह्य चीज़ों के
आधार पर अपनेआप को प्रभावी समझ रहे हैं, मान रहे हैं | ना कि व्यक्ति अपनी
योग्यता और शक्ति के आधार पर | तो ये इतनी बहिर्मुखता जीवन में आ गई है कि
एकाग्रता कैसे आएगी जीवन में ! क्यों पहले प्राचीन शिक्षाप्रणाली में विद्यार्थी गुरुकुल
में रहते थे, बाहरी संसार से दूर रहते थे, और ब्रह्मचर्य की स्थिति में विद्या अध्ययन
करते थे ! गुरुकुल में हर प्रकार के कार्य उनको सिखाए जाते थे | ताकि फ़िर आयु
होने पर जब वे संसार में प्रवेश करें तो सफ़ल हो सकें | और वहाँ वो परिस्थितियों
का सामना कर सकें | इस प्रकार की शिक्षा दी जाती थी और उन्हें तैयार किया जाता
था | आज विद्या अध्ययन के बजाय, अच्छी तरह ड्रेसअप होना, अच्छे कपड़े पहनना,
मेकअप करना, मोबाइल.. गाने सुनना, बातें करना.. बहिर्मुखता ज़्यादा है | इसलिए
एकाग्रता नहीं हो पाती | और फ़िर कहेंगे याद नहीं रहता है | और फ़िर सहनशक्ति भी
नहीं है, कम मार्क्स आए तो डिप्रेशन में चले जाएंगे, कई लोग तो आपघात भी कर लेते हैं |
रुपेश काईवर्त : तो क्या करें दीदी आपके विचार से …
गीता दीदीजी : बेटर है कि अभी आपके जीवन की नींव पड़ रही है, स्टूडेंट लाइफ
इज़ दि बेस्ट लाइफ मानी जाती है, क्योंकि अभी आप सारा प्रिपरेशन कर रहे हैं,
अभी आप अच्छी एकाग्रता से.. अभी आप और इच्छाएं छोड़िये | अभी आप अपनी
पढाई में फोकस हो जाइये, अच्छी चीज़ सीखिए, जानिए | अभी आप जो पढ़ रहे हैं
वो भी आप अच्छी रीति नहीं सीख रहे हैं, किसी भी रीति से डिग्री ले लेते हैं, फ़िर
आप जब जॉब के लिए जाओगे, तो वो नॉलेज तो आपके पास है ही नहीं क्योंकि
आपने ढंग से पढ़ा नहीं, सीखा नहीं |
रुपेश काईवर्त : वहाँ दिक्कत होगी |
गीता दीदीजी : बेटर ये है कि पूरा जीवन हमे सांसारिक जीवन में रहना ही है, फ़िर
हमे एन्जॉय करना ही है, पर पहले हम अपनी नींव तो मजबूत बना लें | ताकि हम
अपना जीवन अच्छी रीति जी सकें, कमा सकें, परिस्थितियों को समझ सकें, लोगों के
स्वभाव को हम फेस कर सकें | अगर वो क्षमता अभी अपने अंदर नहीं लायेंगे तो फील्ड
वर्क में तो और ही फ़ेल हो जाएंगे | चलिए, सुंदर सीख, शिक्षा आपने दी है विद्यार्थियों
को भी और साथ ही पेरेंट्स भी इसका ध्यान रखेंगे |
रुपेश काईवर्त : आज के सुंदर चर्चा और प्रकाश के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया |
गीता दीदीजी : वेलकम
रुपेश काईवर्त : मित्रों, बात विद्यार्थियों की हो रही थी परन्तु समस्या तो सभी के जीवन में हैं,
और उन समस्याओं को समस्या के रूप में हम लेते हैं तब तो फ़िर और भी ज़्यादा परेशानी
बढ़ जाती है | जैसे कि हमने बात की थी, उनमे भी हमे यह तलाशने की आवश्यकता है |
और उस रह की ओर बढने की आवश्यकता है | प्रकाश की ओर ना केवल देखना पर
प्रकाश की ओर बढ़ने की भी आवश्यकता है | यदि आज मुझे लगता है कि मेरी एकाग्रता
कम हो रही है, स्मरणशक्ति कम हो रही है, या मुझे असफ़लता प्राप्त हो रही है, तो ज़रूर
थोड़ी देर बेठें, और विचार करें कि आखिर उसका बीज क्या है ! यदि हम बीज तक पहुँच
जायेंगे तो हमे सहज रूप से अपने आपको निखारने में मदद प्राप्त होगी और अध्यात्म ये
ही काम तो करता है | अपने को एकान्त की ओर ले चलता है, अपने को अन्तर्मुखी करता है,
अपने को निखारने का काम करता है | तो क्यों ना हम भी थोड़ी देर बेठें, अपनेआपको देखें,
और जहाँ भी कमी है, उनको सुधारते चलें | तो निश्चित रूप से जीवन निखरता चलेगा,
सफ़लता की ओर कदम बढ़ते चलेंगे | तो ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ आपसे इजाज़त
ले रहा हूँ, कल पुनः इसी वक़्त आपसे मुलाकात होगी | नमस्कार !!