Samadhan Episode – 00072 Health Problems

CONTENTS :

१.समस्याओं के प्रति हमारा दृष्टिकोण कैसा हो?

२.समस्यायों से मुक्त जीवन जीने की कला क्या है?

३.राजयोग मैडिटेशन से बोंन कैंसर को कैसे ठीक करें?

४.निराश होना मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी है, कैसे?

 

रूपेश भाई :- नमस्कार आदाब सत श्री अकाल, मित्रों स्वागत है आप

सभी का समाधान कार्यकर्म में, एक महापुरुष के पास एक युवा पहुंचा

ओर उसने कहा की महाराज मेरे जीवन में बहुत समस्याएं है बहुत

तकलीफ़े है आप मुझे ऐसा स्थान बताए जहां कोई तकलीफ़े न हो,

कोई समस्याएं न हो तो उस महापुरुष ने कहा की तुम कल सुबह आ

जाना। दूसरे दिन सुबह जब वो युवा उनके पास पहुंचा तो वो महापुरुष

उसे ले करके शमशान घाट पहुँच गए ओर कहा की तू यहाँ लेट जा

तो उस युवा ने कहा की महाराज मैं तो ये जानना चाहता था की

समस्याओं का निधान क्या है या कहाँ मैं सब समस्याओं से मुक्त रह

सकता हूं, महापुरुष ने कहा यही वो स्थान है जहां तुम्हारे पास कोई

समस्या नहीं आएगी। कहने का भाव ये है यदि हम जीवन में है संसार

में है तो समस्याएं तो आएंगी ही लेकीन महत्वपूर्ण बात ये है की हम

उनका निधान कैसे करते है, महत्वपूर्ण बात ये है की हम उन्हे हैंडेल

कैसे करते है इसी बात पर हमारा सुख या हमारा दुख निर्भर करता है।

कहते है हार या जीत दो बातों पर निर्भर करती है, मान लो तो हार है ओर

ठान लो तो जीत है इसलिए समस्याओं के प्रति अपने दृष्टिकोण को हम

हमेशा ही श्रेष्ठ बनाए रखे ओर ये श्रेष्ठता हमेशा हमें प्रदान करते है

आदरणीय राजयोगी सूर्य भाई जी, आइये उनका स्वागत करते हैं,

भ्राता जी आपका बहुत-बहुत स्वागत है। भ्राता जी ये जो बात जैसे

मैंने कही मुझे बहुत अच्छी लगी थी समस्याओं के बारे में की समस्याओं

के प्रति हमारा दृष्टिकोण कैसा हो ओर साथ ही जीवन है तो समस्याएं तो

आएंगी ही, क्या कहेंगे आप?

 

सूर्य भाई जी :- बिल्कुल ठान ले तो सचमुच चैलेंज है वो हमें शक्तिशाली

बनाएंगे, ठान ले तो हम हर बड़ी खाई को भी पार कर सकते है, ठान ले

तो समस्याएं हम से डरकर भाग जाएंगी तो वास्तव में हमे अपनी आंतरिक

पावर को बहुत बढ़ा देना चाहिए। सच तो यही है की समस्याओं से अधिक

पावरफुल हम है लेकिन मनुष्य जब निगेटिव होकर बहुत ज्यादा तनाव में

रहकर या जब उसके अटिटयुटस दूसरे के लिए बहुत ज्यादा निगेटिव हो

जाते हैं, जब उसके चित में शुभभावनाओं का अभाव हो जाता है तब

उसकी जो आंतरिक एनेर्जी है, इनर पावर है वो वीक पड़ जाती है ओर

ये जो वीक पावर है हमारी, जो निगेटिव थोट्स के रूप में वाइब्रेट आउट

होती है ये समस्यायों को जन्म देती है इसलिए हमे समस्यायों से मुक्त

जीवन जीने के लिए अपने चित को बिल्कुल पॉज़िटिव कर देना चाहिए।

ओर सभी के लिए एक बहुत अच्छी चीज यहां सीखने योग्य है की हर

व्यक्ति में गुण हैं ही, हमे दूसरे के गुणो को, उनकी योग्यताओ को

पहचानकर उनके लिए अपने मन में सम्मान की फिलिंग पैदा करनी

चाहिए ओर शुभभवनाए रखनी चाहिए की ये बहुत आगे बढ़े। मान लो

एक स्टूडेंट है ओर वो क्रोध बहुत करता है लेकिन काम करने में बड़ा

एक्सपर्ट है, हर कार्य जो उसे दिया जाता है वो उसे बड़ी ज़िम्मेदारी से

करता है जो उसे पढ़ाया जाता है वो ज़िम्मेदारी से, लेकिन लड़ाई-झगड़ा

बहुत करता है। अब देखिये दो स्थिति हो गयी की व्यक्ति उसके इस

व्यवहार को देखकर उसके प्रति निगेटिव हो जाए.. बड़ा क्रोधी लड़का है,

ये बिल्कुल सफल नहीं होगा, ये आगे चलकर बहुत परेशान रहेगा, इसके

साथ कोई रहने नहीं चाहेगा, इसके मुंह से तो सदैव बदबू निकलती है

गंदी बाते निकलती है, ये तो न जाने क्या-क्या बोलता है। दूसरी चीज, दूसरा

व्यक्ति जो समझदार है वो ये सोच रहा है की बच्चे में क्रोध तो है लेकिन

कितनी योग्यताएं साथ लिए हुए है, क्रोध तो शायद इसकी सच्चाई के

कारण है क्योंकि ये खुद सच्चा है तो चाहता है दूसरे भी सच्चे हो, ये उसकी

गल्ती है लेकिन वो उसके टैलेंट को सम्मान देता है। उसके लिए उसके

मन में प्रेम पैदा होता है ओर जब उसके लिए मन में प्रेम पैदा होगा तो

इस प्रेम की फिलिंग से यदि उसे कहा जाए की बेटा जरा क्रोध भी कम

कर लिया करो तो वो जरूर मुस्कुराएगा ओर कहेगा बिल्कुल आपकी

बात ठीक है क्रोध बहुत बुरा है। ओर अगर यदि उसके प्रति निगेटिव

फिलिंग्स है तुम बहुत क्रोधी हो, तुम बेकार आदमी हो, तुम कभी इस

क्रोध से मुक्त नहीं हो पाओगे, छोड़ दो तो बहुत अच्छा है तो वो कहेगा

तुम छोड़ो पहले मैं क्यूँ छोड़ूँ !

 

रूपेश भाई :- ये बहुत गहरी बात आपने कही है भ्राता जी जिस पर सचमुच

चिंतन करना चाहिए की हमारी मनोभावनाए भी सामने वाले पर बहुत प्रभाव

डालती है यदि मैं अच्छी भावना से, प्रेम की भावना से, उसके कल्याण की

भावना से कह रहा हूं तो जरूर अक्सेप्ट करेग लेकिन घृणा का भाव लेकर

यदि मैं कह रहा हूं तो शायद उसे रिजैक्ट कर देगा।

 

सूर्य भाई जी :- घृणा भी ओर रोब भी ओर अधिकार भी, जैसे बाप है उसका

बच्चा क्रोध कर रहा है तो वो अधिकार से कहेगा तू बड़ा क्रोधी है तूने घर में

अशांति की हुई है तू पता नहीं इसे कब छोड़ेगा तेरी तकदीर पता नहीं कैसी

है तू सदा ही अशांत रहेगा, वो ऐसे कहेगा। ओर अगर प्यार से कहा जाए की

बेटा क्रोध बहुत बुरी चीज है, एक सेकंड का क्रोध मनुष्य के सुंदर भविष्य को

नष्ट कर देता है, देखो क्रोध तो अग्नि है तुम भी अशांत होते हो दूसरे भी अशांत

होते हैं, अच्छा नहीं है क्रोध करना तो वो कहेगा पापा बिल्कुल अच्छा नहीं है मैं

भी छोड़ूँगा इसे। तो हम दूसरों के लिए शुभभावनाए रखे दूसरे के गुणो पर हम

ध्यान दे गुण ग्राहक बने ओर दूसरों के टैलेंट्स ओर गुणो का हम सम्मान करे।

ये यदि करते है तो हमारा चित बहुत शुद्ध रहेगा शांत रहेगा एनेर्जेटिक रहेगा

ओर यही एनेर्जी समस्याओं को फेस करने में हमे काम आएगी।

 

रूपेश भाई :- बिल्कुल ये बहुत सुंदर बात है भ्राता जी की सामने वाले के अवगुण

न देख करके जो की आमतौर पर होता है सामने वाले में हजार गुण हो लेकिन

एक भी अवगुण है तो वो दिखाई दे जाता है जैसा कहते है न की सफ़ेद कपड़े

पर यदि छोटा सा भी दाग हो तो वो दाग पहले दिखाई देता है तो शायद अब

एक मनोवृति ऐसी हो गयी है मनुष्य की कि पहले उसके अवगुण पर ही ध्यान

चला जाता है ओर उसी को देख करके वो अपनी मानसिकता बना लेता है

कि ये व्यक्ति कैसा है।

 

सूर्य भाई जी :- बिल्कुल इसमे हमे ये जानना चाहिए कि जब हमारा ध्यान

दूसरे कि बुराई पर जा रहा है तो उसकी बुराई से हम जुड़ गए, हमने देखा

कि ये व्यक्ति बड़ा अहंकारी है ये व्यक्ति झूठ बोलता है तो उसकी बुराई से

हम जुड़ गए तो उसकी बुराई कि निगेटिव एनेर्जी हमारी ओर आने लगी तो

हम दुसरो से निगेटिव एनेर्जी ग्रहण करने लगे जो हमारा नुकसान हो गया।

तो बुराई उसकी थी दोष उसके थे ओर नुकसान होने लगा हमे इसलिए दूसरों

कि बुराई से हम अपना नाता ना जोड़ें। हरेक व्यक्ति में बहुत योग्यताए है,

एक नहीं दस योग्यताए ढूँढी जा सकती है बहुत अच्छी अच्छी जो सचमुच

प्रसंशनीय हो लेकिन वही कि किसी एक क्रोध जैसी बुराई के दबाव में सारी

दफना दी जाती है, सब दिखाई नहीं देती। तो मेरा कहने का तात्पर्य ये है कि

जिसको समस्यायों से मुक्त जीवन जीना है उसे अपनी भावनाओ को बहुत

सुंदर करना चाहिए उसे दूसरों के गुणो का सम्मान करना चाहिए।

 

रूपेश भाई :- बिल्कुल ओर अच्छाइयों को देख करके अपरिसीएट भी करना

चाहिए जो हम कई बार नहीं कर पाते। किसी ने बहुत खूब कहा था भ्राता जी

जो बात आपने कही कि अपनी हज़ार गलतियों के बाद भी हम अपने आप

से प्रेम करते हैं तो दूसरे कि एक गल्ती के कारण उससे घृणा क्यों करते हैं।

 

सूर्य भाई जी :- बहुत सुंदर बात है, यही बात है कि वास्तव में हमे तो जैसे

महात्मा गांधी जी कहते थे घृणा तो बुराई से करनी चाहिए मनुष्य से नहीं

क्योंकि मनुष्य तो एक आत्मा है ओर वो मूल रूप से पवित्र है वो भगवान की

संतान है। किसी कारण किसी में कोई बुराई आ गई है तो वो जैसे आई है वैसे

जाएगी भी, ये भी निश्चित है इसलिए हमे सचमुच जैसे अपनी अनेक बुराइयों

को देखकर भी अपने को बहुत अच्छा समझते है प्यार करने से भी ये हम कहेंगे

हम अपने को बहुत अच्छा समझते है तो दूसरे में एक दो बुराई है तो वो बुरे क्यों

हो गए भला, वो भी तो बहुत अच्छे हैं।

 

रूपेश भाई :- जी तो पाप से भले घृणा करे लेकिन पापी से नहीं, उसके गुणो को

देखे ओर एपरिसीयट करे, अपने जीवन में भी उसे लाने का प्रयास करे। भ्राता

जी मैं मेल्स की ओर आता हूँ ये आज जो हमारे पास पहला मेल आया है ये

सिरसा से आया है ओर रेणु जी लिख रही है की मेरा जो बेटा है बहुत ही अग्रेसिव

है बहुत ही सॉर्ट टेम्पर्ड है ओर इस कारण कई बार बहुत सारी समस्याएँ हमारे घर

में ओर आस-पास क्रिएट हो जाती है तो कैसे मैं अपने इस बच्चे को हैंडल करू

उसके इस अग्रेसिव नेचर को ओर जो वो सॉर्ट टेम्पर्ड है बहुत जल्दी रियक्ट करता है।

 

सूर्य भाई जी :- आजकल कई बच्चे बड़े हाई-फाई जैसे जन्म से ही पैदाइस हाई

पर-एक्टिव हो रहे है तो वो किसी की सुनते नहीं है ओर उन्हे क्रोध भी बहुत आता

है ओर वो सोचते है की माँ पर तो मेरा पूरा अधिकार है, चाहे मैं इसे मारू चाहे

कुछ भी करू, इसे तंग करता रहूँ ये तो मेरा अधिकार बनता है। लेकिन इन सब

समस्याओं का समाधान बच्चे को समझाकर तो नहीं किया जा सकता, ना बच्चे को

मारपीट के किया जा सकता है। क्योंकि बहुत सारी जो गृहणी है माताएँ है वो

बच्चो से इस तरह दुखी होकर उन्हे मारपीट करेंगी या उन्हे बुरा बोलेंगी, अपनी

मानसिक स्थिति बिगाड़ देंगी गुस्सा आएगा बहुत ज्यादा, गुस्सा उनको आ रहा

था गड़बड़ बच्चे कर रहे थे लेकिन मनोस्थिति माँ ने बिगाड़ ली तो इससे वातावरण

बिलकुल दूषित हो जाता है। तो सच तो ये है मैं इस बहन को कहूँगा की वातावरण

बच्चे के अग्रेसिव होने से नहीं बिगड़ रहा है, आपके परेशान होने से बिगड़ रहा है

इसलिए उसको सुधारने से पहले अपनी मानसिक स्थिति को सुधारना बहुत

आवश्यक होगा। तो इसमे कुछ चीज़ें अपना लेनी है, एक तो इस बात को बहुत

सहज भाव से ले की बच्चे तो चंचल अग्रेसिव होते ही हैं, इमोशनल भी होते है।

समय बदलता है उनका स्टडि पर ध्यान जाता है वो किसी फील्ड में मेच्योर

होने लगते है ओर उनकी ये सारी ये निगेटिव एनेर्जी उस पॉज़िटिव एनेर्जी

में टर्न होने लगती है।

 

रूपेश भाई :- मतलब एक ऐज़ होता है जबकि ये जो चंचलता है या अग्रेसिन है,

इस प्रकार की जो भी चीजें दिखाई देती है वो होती है।

 

सूर्य भाई जी :- बिल्कुल तो एक तो इसे वो स्वीकार कर ले इसको बहुत सीरियसली

ना ले, इसने तो मुझे तंग कर दिया इसने तो हमारे घर का माहोल सारा जो खुशी का

था वो अशांति का कर दिया, पता नहीं इसका भविष्य कैसा होगा, बड़ा होकर ये क्या

करेगा। लोग बीस साल आगे की सोचने लगते है की अब ये ऐसा है तो बड़ा होकर

ये क्या तूफान करेगा। अरे नहीं, हर दिन सबकुछ बदल रहा है “सबे दिन होत न

एक समान” तो सबकुछ बदल रहा है ये संसार का खेल बहुत परिवर्तनशील है।

तो माताओ को चाहिए ऐसे केसीज में की अपने बच्चो के लिए शुभभावनाए रखे।

अब मैं कुछ स्प्रिच्यूल प्रेक्टिस बताता हूँ इस बहन को भी राजयोग सीख लेना

चाहिए सहज 7दिन का कोर्स करके ओर ये सब स्प्रिच्यूल स्टडि कर लेनी चाहिए।

तो एक काम ये करेंगी की भोजन जब बनाए तो बहुत अच्छी तरह याद करते

रहे- मैं पवित्र आत्मा हूं मैं तो परमपवित्र हूं मैं तो एक शुद्ध आत्मा हूं मैं तो एक

बहुत अच्छी आत्मा हूं.. तो इससे क्या होगा की इनके नैनो से ओर हाथो से निकलने

वाले वाइब्रेसन्स भोजन में समाने लगेंगे ओर फिर ये संकल्प करे जब बच्चे को

भोजन खिलाये तो ये पवित्र भोजन खाकर इस बच्चे का चित शान्त हो जाये ये

बहुत स्वीट हो जाये ये बहुत हार्मोनियस हो जाये इसके चित में सबके लिए प्रेम

पैदा हो जाये। जो भी वो विचार देना चाहती है भोजन के समय अपने बच्चे के

लिए करे तो भोजन में जो वाइब्रेशनस है वो उसी रूप में टर्न होकर वैसा ही

काम करेंगे, एक चीज ये। बच्चा छोटा है जब दूध पिलाते हैं या पानी जब

उसको देते हैं तो पानी में दृष्टि डालकर 7बार एक साथ संकल्प कर दें

मैं पवित्र आत्मा हूँ मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ मैं परमपवित्र हूँ तो पानी भी चार्ज हो

गया और फिर जब पिलाये तो पुनः संकल्प दे दे की इस पानी को पीने से

इसका चित शांत हो जाये ये प्रसन्न हो जाये और इसकी जो प्योरटी है वो

बहुत बढ़ जाये। इसकी जो नेचर है इमोशनल नेचर अग्रेसिव नेचर, ये

बिलकुल नार्मल हो जाये, दो काम तो ये करे। एक ऐसी चीज जो मैंने पहले

भी सिखाई है जो बहुत अच्छा रहता है ये तब भी की जा सकती है जब

बच्चा सोया हो। मान लो सवेरे 5बजे या 6बजे बच्चा सोया है तो उसे

राजयोग के द्वारा 1-2मिनट गुड वाईब्रेसन दिए जाये क्योंकि जब वो सोया

है तो सब-कांसियस माइंड एक्टिव है जाग्रित है फिर उसे कुछ अच्छे

थोट्स दिए जाये तुम बहुत अच्छे हो तुम तो देवकुल के हो तुम भगवान

के बच्चे हो तुम बहुत अच्छे हो, अब शांत हो जाओ प्रसन्न हो जाओ।

तुम तो अपनी माँ को बहुत प्यार करते हो तुम्हारी माँ तुम्हे बहुत प्यार

करती है (मतलब जैसा हम उसे देखना चाहते हैं वैसे ही संकल्प करे)

तो वो उसमे डवलप होने लगेगा और जब वो उठेगा तो धीरे धीरे 2-4दिन

के बाद ही आप देखेंगे उसके बिहेविअर में चेंज आ गई, तो ये एक बहुत

अच्छी स्प्रिचुअल प्रैक्टिस है एक्सपेरिमेंट है जिसको करने से बहुत कुछ

बदल जाता है|

 

रुपेश भाई :- बिलकुल, मतलब परेशान होने के बजाय आपने बहुत सुंदर

जो ये स्प्रिचुअल प्रैक्टिस बताई है वो या तो भोजन बनाते समय भी इसे करे,

पानी जब वो देती है बच्चे को तब करे ओर साथ ही जब वो सोया हुआ है तब,

जैसा हम उसे देखना चाहते है वैसा ही संकल्प करे ओर देखे की वो वैसा हो गया है।

 

सूर्य भाई जी :- बिलकुल बच्चे तो क्योंकि उनका माइंड अभी बहुत भटका नहीं है

इधर उधर तो “देयर माइंड इज वैरि सेंसिटिव” ओर जो हमारे थोट्स जा रहे है

उनको सब-कोंसियस माइंड पर पावरफुली रिसिव करेगा ओर बिलकुल चेंज

लाएगा उनके जीवन में। मैं समझता हूँ सात दिन में ही बहुत बड़ी चेंज दिखाई

देगी ओर 21दिन तक अवशय कर ले।

 

रूपेश भाई :- पिछली बार कॉन्फ्रेंस में एक महिला आई थी भ्राता जी, वो लगभग

इसी प्रकार का अपना अनुभव शेयर कर रही थी की उनके दो छोटे छोटे बच्चे हैं,

एक 6साल का ओर एक 8साल का ओर दोनों इतना ज्यादा मतलब बहुत लड़ते

हैं हर चीज को लेकर की घर का पूरा माहोल अशांत करके रख देते हैं। तो जो

तीसरी बात कही उन्होने भी कहा की मैंने भी सब-कोंसियस माइंड की प्रैक्टिस की,

मैंने ये देखा की कैसे मैं उन्हे देखना चाहती हूँ की ये कैसे है ओर मैंने वैसे थोट्स

दिये ओर सचमुच मैंने पाया की जैसा-जैसा मैंने विचार किया था ठीक वैसा ही

उन्होने किया तो ये एक बहुत सुंदर प्रैक्टिस हो सकती है। परेशान होने की

वजह जैसा हम उन्हे देखना चाहते हैं वैसा विजन बनाए।

 

सूर्य भाई जी :- ओर ये इस तरह के वाइब्रेशन दे तो विजन प्लस वाइब्रेसन

विल ब्रिंग ए वंडरफुल चेंज इन द …..

 

रूपेश भाई :- बिलकुल, इस सीन की जो समस्या है ये समस्या दूर हो जाएगी।

भ्राता जी अगला जो हमारे पास आया है मेल, ये आया है गुजरात जामनगर से

पल्लवी जोशी जी लिख रही है की मेरे पिता को बोन कैंसर हो गया है ओर

उनका इलाज तो हम करा रहे हैं लेकिन वो बहुत तकलीफ में है हम सब

उनकी तकलीफ को देखकर बहुत दुखी हो जाते हैं, मम्मी तो रोती ही रहती है।

क्या दवाइयों के अलावा कुछ ऐसी आध्यात्मिक साधना या कुछ प्रैक्टिस, जैसा

की आप बताते है अपने कार्यकर्म में, की जा सकती है जिससे की उनकी

तकलीफ दूर की जा सके?

 

सूर्य भाई जी :- बिलकुल, की जा सकती है ओर मेरे पास रिसेंट का ही एक

बहुत अच्छा अनुभव है जो मैंने पहले भी थोड़ा शेयर किया था लेकिन अब

उस अनुभव में ओर आगे बाते बढ गयी है। पंजाब के एक व्यक्ति को बोन

कैंसर ओर बिल्कुल हड्डियाँ गलकर गिरने लगी थी ओर वो इतना पीड़ित

रहता था बस उसे देख नहीं सकते थे लोग, तो जब हमने उनको कुछ स्प्रिच्यूल

प्रैक्टिस सिखायी तो पहला काम ये हुआ उनका पेन खत्म हो गया दूसरा काम

क्या हुआ हड्डियाँ जो गल गलकर गिर रही थी वो ठीक हो गई। ओर पीछे कुछ

दिन पहले ही मुझे फोन आया था उसकी बहन का की वो अब बहुत नॉर्मल हो

गए  है खूब घूम फिर रहे है अपन काम खुद कर लेते हैं जो बेड पर सोये रहते

थे ओर ऐसे तड़फते थे की सारे परिवार को तड़फा देते थे वो अब बिलकुल

अच्छे हो गए है। तो अब वही प्रैक्टिस ये भी अपने फादर के लिए कर सकती

है ओर इनको राजयोग सीख ही लेना चाहिए। राजयोग का अर्थ, हम क्यों राजयोग

सीखने के लिए कह रहे हैं ताकि हमारी इनर पावर्स बढ़ जाए, हम जो वाइब्रेसन्स

उनको देना चाहते है वो उनको मिल सके। वो ये ना सोचे की हम राजयोग का

प्रचार कर रहे है लेकिन राजयोग ही एक ऐसा माध्यम है जिसमे हम परमात्मा से

जुडते हैं ओर इससे हमारी इनर पावर्स बहुत बढ़ जाती है हम बहुत पॉज़िटिव हो

जाते है, हमारा सेल्फ कोन्फ़िडेंस बहुत बढ़ जाता है ओर जो कुछ हम कर रहे हैं

हमे लगता है की इससे सबकुछ ठीक हो जाएगा। तो एक तो पहली प्रैक्टिस ये

करेंगी की अपने पापा को पानी को चार्ज करके पिलाएंगी ओर इसमे पानी को

चार्ज करने का तरीका होगा की पानी पर दृष्टि डाले, पानी ले गिलास में उसमे दृष्टि

डाले, 7बार संकल्प करेंगे की मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ इसकी हम चर्चा करते ही

आ रहे हैं हमारे दर्शक इसको जान गए होंगे ये शब्द की हम भगवान के बच्चे

सर्वशक्तिमान के बच्चे हैं तो उसकी शक्तियाँ हम में भी है इसको हम नाम देते

हैं मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ तो 7बार संकल्प करने से पानी में शक्तियों के

वाइब्रेशन्स भर जाएंगे। तो ये पानी एक पावरफुल मेडिसन बन गया, अब उस

व्यक्ति को पिलाये ओर ये संकल्प करे की इससे इसका बोन कैंसर ठीक हो

जाए तो वो पावरफुल दवाई उनके बोन कैंसर को ठीक करेगी, उनको जो बहुत

पेन हो रहा है उसमे बहुत रिलीफ़ मिलेगा। दूसरी चीज क्योंकि पेन मन को होता है,

बॉडी में तो जो कुछ है वो तो है ही लेकिन फिलिंग जो है पेन की वो मन को जा

रही है। तो इसके लिए जो भी राजयोग का अभ्यास करते हो वो उन्हे रोज 15मिनट

सवेरे, 15मिनट शाम को ओर अगर ज्यादा करना है तो 15मिनट दिन में भी राजयोग

मेडिटेशन करके उनको गुड वाईब्रेसन दे की इनका चित शांत हो जाए एनेर्जेटिक

हो जाए ये पेनफ्री हो जाए। ओर इसका तरीका है की हम परमात्मा से अपना

कनैक्शन जोड़े ओर फील करे उसकी एनेर्जी मुझे आ रही है कुछ देर तक ओर

फिर मुझ आत्मा से उनको जा रही है ओर उनको एनेर्जेटिक बना रही है, इतना

एनेर्जेटिक बना रही है उनको कि पेन फील होता ही नहीं। ओर तीसरी चीज करेंगे

क्योंकि बहुत कुछ ये जो कुछ हो रहा है बीमारी आदि आ रही है या ओर भी कोई

समस्या आती है इनमे पूर्व जन्मो के कर्मों के हिसाब-किताब का भी गहरा नाता है

इसलिए एक संकल्प के साथ 1घंटा रोज पावरफुल मेडिटेसन करेंगे ताकि इनके

वो कार्मिक अकाउंट सेटिल हो जाए जिनके कारण ये शरीर कि स्थिति बनी है

यानि विकर्मों को नष्ट करने के लिए 1घंटा कम से कम 21दिन योग ओर अगर

जरूरत पड़े तो तीन मास तक। तो इन तीनों चीजों के प्रभाव से कैंसर हमे

विश्वास है बिलकुल ठीक हो जाएगा ओर ये पुनः अपने जीवन का आनंद लेंगे।

 

रूपेश भाई :- बिलकुल पहले भी आपने जैसे अनुभव सुनाया भ्राता जी की एक

बोन कैंसर के पेसंट पर ये प्रयोग हुआ ओर निश्चित रूप से वो अब एक अच्छा

जीवन अब जीने लगे हैं। तो जैसे पल्लवी जी ने लिखा है की इनके पिता जी को

इतनी तकलीफ है तो ये भी अवशय जैसे आपने राजयोग के अभ्यास की बात

कही है भ्राता जी, तो जरूर जामनगर से ये हैं, जामनगर में भी सेवाकेन्द्र होंगे

ब्रह्माकुमारिज के तो वहाँ पर जाकर वो पहले राजयोग का सुंदर अभ्यास कर

ले पहले सीख ले उसके पश्चात ये घर में आकर के, जैसे आपने पानी चार्ज करने

की बात कही है 1घंटा योग करने की बात कही है तो जरूर उनके स्वास्थ्य के

लिए ये करती हैं तो हमें उम्मीद है की जल्दी से जल्दी इनके पिता को भी बहुत

अच्छी राहत मिलेगी।

 

सूर्य भाई जी :- बिना खर्च बहुत क्विक ओर इसमे अपने को बहुत आनंद आएगा

ओर एक बहुत सुंदर चीज हमारे पास हो जाएगी की मेडिकल साइन्स का सहयोग

लेते हुए, स्प्रिच्यूल साइन्स को भी यदि साथ जोड़ दिया जाए तो कैसे सोने पर

सुहागा होता है ओर बड़ी-बड़ी कठिन जो असाध्य रोग हो सकते हैं वो भी ठीक हो सकते हैं।

 

रूपेश भाई :- वैसे भी कहा जाता है भ्राता जी की दवा के साथ यदि दुआ जुड़

जाए तो असर दुगना हो जाता है ओर डॉक्टर्स भी अपना काम करने के बाद

यही कहते है की हमने अपना काम तो कर दिया है अब आप ईश्वर से दुआ

करे प्रार्थना करे की वो ठीक हो जाए तो अल्टिमेटली वो भी याद करते है

तो ये यदि स्प्रीच्यूल प्रैक्टिस को जोड़ ले तो निश्चित रूप से इनके पिता को

राहत मिलेगी। भ्राता जी अगला जो प्रशन हमारे पास आया है ये आया है

इलाहाबाद से राम मंजोर जी लिख रहे है की मुझे ब्रहमाकुमारी विश्व-विद्यालय

से जुड़े तीन वर्ष हो गए है लेकिन अब तक कोई गहरा आध्यात्मिक अनुभव

नहीं हुआ है कृपया बताए की मैं अपनी आध्यात्मिक अनुभूति को कैसे बढ़ाऊँ

ताकि इस मार्ग में ओर आगे बढ्ने के लिए मेरा उमंग उत्साह बढ़े।

 

सूर्य भाई जी :- कुछ लोगो के साथ ऐसा होता है की 3-5साल चलने तक

भी बड़े ढीले ढाले रहते है अब इनको अनुभव नहीं हो रहा तो निश्चित रूप

से ये रेगुलर नहीं है निश्चित रूप से ये सवेरे नहीं उठते है अगर इनसे पूछा

जाए तो ये भी उत्तर देंगे मैं 7-8बजे उठता हूँ ओर कभी कभी क्लास में चला

जाता हूँ। तो देखिये एक तो ये हमारी स्टडि है इसको रेगुलर करना चाहिए

ताकि ज्ञान बहुत डेप्थ से हमारे पास आ जाए हमारी बुद्धि रिफाइन हो जाती है

राजयोग मेडिटेसन द्वारा ओर जब बुद्धि रिफ़ाइन हो जाती है तो ये डिवाइन

बनने लगती है ओर इसमे इंटयूसन स्वत: ही आने लगते है ओर वो इंटयूसन्स

ही बहुत बड़े अनुभव होने लगते है। मान लो हम कहीं जा रहे है ओर हमारा

जाना उचित नहीं तो हमे इंटयूसन आने लगेगे की नहीं, अभी नहीं जाओ ठहर

जाओ या कोई बाधा पड जाएगी जो हमे रोक लेगी 5-7 मिनट के लिए ओर वो

बाधा टल जाएगी। तो एक तो ये, लेकिन इन्हे बहुत ध्यान देना पड़ेगा सवेरे

उठने पर तो सचमुच इन्हे बहुत अच्छे अनुभव करने है तो 4बजे उठकर बहुत

अच्छा ईश्वरीय चिंतन ईश्वरीय नशे का अभ्यास करेंगे ओर उसमे पहली राय मैं

इन्हे दूंगा की पाँच स्वरूपों का अभ्यास ये करे। उसमे हमारा एक अनादि

स्वरूप है आत्मिक स्वरूप, दूसरा हमारा आदि स्वरूप है देव स्वरूप, तीसरा

हमारा पूज्य स्वरूप जो मंदिरो में हमारी पूजा हो रही है, चोथा वर्तमान समय

हम सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण है ओर हमारा लक्ष्य फरिश्ता बनना है, ये पांचों स्वरूप है

हमारे। इनको विजूव्लाइज करना है इन्हे चिंतन करना है ओर विजूव्लाइजेसन

के लिए आवशयक है की बुद्धि बिलकुल स्वच्छ हो क्योंकि विसूव्लाइजेसन

यानि उन स्वरूपो को देखना। ये काम होगा बुद्धि के तीसरे नेत्र से इसलिए ये

बहुत आवश्यक होगा की ये सवेरे पाँच स्वरूपो का अभ्यास करे पाँच बार कर ले,

रात को भी करे सोने से पहले पाँच बार लेकिन इसके लिए अपनी बुद्धि को सारा

दिन व्यर्थ से मुक्त रखना आवश्यक है क्योंकि मनुष्य के पास व्यर्थ बहुत है। कई

लोग कहते है न की हम बहुत बीजी है ओर मैं उनको कोंविन्स कर देता हूँ की

तुम बीजी नहीं हो ओर तब उनकी समझ में आ जाता है जब वो ये जान लेते हैं

की बीजी तो हमे व्यर्थ ने किया हुआ है (कई बार कहते है ना विदाउट वर्क बीजी)

हां बहुत लोग बीजी है उन्हे कुछ काम नहीं, कहते हैं हम तो बहुत बीजी है मिलने

के टाइम.. हम ये काम कर रहे है, घर के काम में ही बीजी हैं सारा दिन। तो व्यर्थ

से इन्हे बचना पड़ेगा ऐसा हम समझ ले की “वेस्ट थोट्स ऑर द एनिमिज ऑफ द

पार्ट ऑफ स्परिच्यूलिटी” ये जो हमारा ज्ञान योग का मार्ग है व्यर्थ संकल्प तो उसमे

मनुष्य के सबसे बड़े शत्रु है इसलिए उससे बचना पड़ेगा। ओर तीसरी चीज अभ्यास

पर ध्यान देना पड़ेगा बार-बार अभ्यास क्योंकि कोई भी कठिन चीज भी अभ्यास

करने पर सरल हो जाती है इसलिए पुनः पुनः अभ्यास। इसके लिए मैं एक सिमपुल

राय दूंगा पहले की वो हर घंटे में कोई भी अभ्यास दो बार कर ले, बहुत सारे अभ्यास

है हम सीखाते है जो लोगो को, दो बार कर लेंगे तो व्यर्थ से बचना भी सहज हो जाएगा

क्योंकि मन उनमे लगा रहेगा। लेकिन लास्टली मैं ये जोड़ना चाहूँगा की प्योरटी बहुत

आवश्यक है आध्यातम के गहरे अनुभवो के लिए, अगर इन्होने अब तक प्योरटी नहीं

अपनाई है तो बिना प्योरटी के तो राजयोग के गहन अनुभव होंगे नहीं इसलिए प्योरटी

की प्रतिज्ञा करे उस पर ध्यान दें। भगवान को वचन दे दें हम तुम्हारे बच्चे हैं, तुम परम

पवित्र हो पवित्रता के सागर हो, हमे भी पवित्रता से अपने जीवन का श्रंगार करना है तो

देखिये पहले दिन से अनुभव शुरू हो जाएंगे।

 

रूपेश भाई :- बिलकुल, तो सुबह उठना प्रारंभ करे यदि नहीं उठ रहे हैं तो ओर सारे

दिन व्यर्थ से मुक्त रहे इसके लिए आपने कहा की कुछ ना कुछ आध्यात्मिक प्रैक्टिसीज

करते रहे, कम से कम घंटे में एक बार या दो बार, इस प्रकार से निश्चित कर ले।

ओर प्योरिटी की बात आपने बहुत महत्वपूर्ण बात कही भ्राता जी की प्योरिटी बहुत

इंपोर्टेन्ट है, आधार है आध्यात्मिक अनुभव का। मुझे लगता है भ्राता जी कई लोग

अनुभूति को इस रूप में लेते है की हमे साक्षात्कार हो कि जैसे मुझे आत्मा का

साक्षात्कार हो या परमात्मा का साक्षात्कार हो इसे वो अनुभूति मानते है तो क्या ये

अनुभूति है या ये कुछ अलग चीज है?

 

सूर्य भाई जी :- नहीं, ये भी एक तरह कि अनुभूति है, दूसरी एक अनुभूति ये भी

होती है की हम शिवबाबा से बात कर रहे हैं, भगवान से बात कर रहे हैं ओर हमे

फील हो रहा है की वो क्या उतर दे रहा है, ये भी एक सुंदर अनुभूति होती है।

तीसरी अनुभूति का स्वरूप होता है की हम बॉडीलेस हो जाए ओर हमे डीप

साइलेंस की अनुभूति होने लगे, ये भी एक बहुत अच्छा अनुभव होता है। अनुभवों

का तो एक विशाल स्वरूप है, जीवन में कोई समस्या सामने खड़ी है उसमे हम

उलझे हुये है उसके तुरंत हल होने के भी अनुभव होते है मेडिटेसन में। तो अनुभव

तो एक ऐसी चीज है जिसकी जैसी इच्छा, जिसकी जैसी भावना, जिसकी जैसी

प्रैक्टिस उस तरह के अनुभव होते है लेकिन बहुत अनुभूति होगी जब हम भगवान

से बाते करके परम आनंद में पहुंच जाएंगे, जब हमारी खुशी एकदम अनलिमिटेड

हो जाएगी। ओर इसके बाद आ जाती है मन की वो स्थिति जो सर्वोच स्थिति है जिसे

हम परमानंद कहते है ओर ये तब आती है जब हमारा मन ओर बुद्धि परमात्म स्वरूप

पर लंबे समय के लिए स्थिर हो जाए यानि एकाग्रता फ़र्स्टक्लास, तो जब योग में एकाग्रता

होगी तो ये परम आनंद की स्थिति होगी ओर वो अनुभव सुपर है।

 

रूपेश भाई :- मतलब हम अपने आपको आध्यात्म के पथ पर आगे बढ़ाते रहे,

योगाभ्यास करते रहे जैसा की आपने कहा योगाभ्यास करते करते ही एक अनुभूति

की ओर हम बढ़ेंगे। निराश भी ना हो, कई लोग निराश हो जाते है की इतना कुछ

करने के बाद भी हमे अनुभव नहीं हो रहे है तो जो नियम है, मर्यादाएं है उनपर

चलते हुये अभ्यास बनाए रखे ताकि अनुभूति उन्हे हो।

 

सूर्य भाई जी :- बिलकुल, निराश होना ये सबसे बड़ी कमजोरी है मनुष्य की क्योंकि

कभी-कभी जैसे बीमारियों के फील्ड में भी देखा जाता है की दवाई खिलाई जा रही-

खिलाई जा रही एक मास तक, तो कुछ भी नहीं हो रहा है लेकिन बनता जा रहा है

फील्ड बनता जा रहा है। ओर तीस दिन के बाद जब हम एकतीसवें दिन गोली

खाएँगे तो हमे बहुत रिलीफ़ फिल होगा लेकिन तीस दिन तो धैर्य रखना पड़ेगा

ऐसे ही ये है। योगाभ्यास कईयों के लिए थोड़ा कठिन इसलिए होता है की कईयों

ने बचपन से ही अपने मन को बहुत भटकाया है कईयों के बचपन से ही दृष्टिकोण

बहुत निगेटिव रहे है, कुछ ऐसे विकार उनके मन में रहे है जिन्होने उनकी अंतर

की शुद्धि को नष्ट किया हुआ है ऐसे लोगो को अनुभूति देर से होती है। ओर ऐसे

भी लोग होते हैं बहुत सुंदर विचार हैं उनके पास मन में काफी शुद्धि है उनके

पास, सबके लिए उनके मन में प्रेम बसा हुआ है, वो नेचुरली खुश रहते है ऐसे लोग

जल्दी अनुभूति कर लेते हैं।

 

रूपेश भाई :- बिलकुल तो हमे उम्मीद है की राम मंजोर जी भी इन तमाम बातों

को अपनायेंगे ओर एक अच्छे अनुभव की ओर बढ़ेंगे, भ्राता जी आज की तमाम

सुंदर बातों के लिए सुंदर अनुभवों के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया। मित्रों

कहा जाता है की “प्रैक्टिस मेकस पर्सन पर्फेक्ट जितना-जितना हम अभ्यास

करते है उतना ही पेर्फेक्सन की ओर बढ़ते है, अनुभूति की ओर बढ़ते है।

“करत-करत अभ्यास के” ये हमारे यहाँ बहुत प्रचलित मान्यता है इसलिए अपने

अभ्यास को ना छोड़े, निराश ना हो क्योंकि किसी ने कहा है की मान लीजिये

आप किसी दीवार को गिराना चाहते है ओर वो दीवार 100वे हथोड़े पर गिरता

है तो क्या पहले हथोड़े का महत्व नहीं था 10वे हथोड़े का महत्व नहीं था 50वे

हथोड़े का महत्व नहीं था ! हर हथोड़े का महत्व था हर अभ्यास का महत्व था,

परिश्रम कभी निरर्थक नहीं जाती इसलिए परिश्रम करते रहे निश्चित रूप से

आपको सुंदर अनुभूति होगी। समस्याओं के लिए भी यही बात है आप धैर्य बनाए

रखे ओर सतत प्रयास करते रहे तो समस्या निश्चित रूप से दूर होती ही है, आज के

समाधान के लिए इतना ही दीजिये इजाजत, नमस्कार !

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