Samadhan Episode 927 | Experience Sharing | B.K. Mrityunjay Bhai

  1. बड़ी-बड़ी दादियों द्वारा समस्याओं को हैंडल करने का एप्रोच |
  2. Value Education का Foundation |
  3. Thought Laboratory क्या है ?
  4. बड़ों का दिल कैसे जीतें ?

रुपेश कईवर्त  :    कोई छोटी सी आदत होती है, चाहे गुस्सा करने की, रूस जाने की, रूठ जाने की, किसीसे इर्ष्या या द्वेष की, परचिन्तन की, ये आदतें हमारे साथ लम्बे समय से रहती है, इनको सहज रूप से परिवर्तन करने की क्या युक्ति आप हमे बतायेंगे?

बी.के. मृत्युंजय भाईजी :                   मुझे एक सौभाग्य प्राप्त हुआ है| इस ईश्वरीय विश्वविद्यालय की वरिष्ठ दादियाँ, सर्वप्रथम, कर्नाटक में south India की मुखिया थी हृदयपुश्पा दादी, उनके चेहरे पर हमेशा ख़ुशी दिखती थी| चाहे कोई भी परिस्थिति आ जाए, बातें आ जाएँ, उनके चेहरे पर सोच की एक लहर भी नहीं दिखती थी| उनके जीवन को देखकर एक मार्गदर्शन मिलता था|

मेरे इस विद्यालय में आने के थोड़े समय बाद ब्रह्मा बाबा अव्यक्त हो गये, फिर इस ईश्वरीय शिक्षा सुनने के साथ-साथ, अव्यक्त बाबा से मिलने के साथ-साथ परमआदर्णीय प्रकाशमणि दादीजी के संग में आने का सुअवसर मिला| उन्होंने कुछ समय के बाद मुझे माउंट आबू बुलाया, और मुझे यहाँ से सेवा करने का मौका मिला| उनके चेहरे पर हमेशा प्रसन्नता दिखती थी|

मैंने देखा उनके सामने भी बहुत समस्या आती थी, उनकी बात ना मानने वाले भी थे, परन्तु संस्था के एक बड़े leader होने के नाते, वो कैसे handle करती थीं, वो बातें मैं देखता था| वो मेरे लिए प्रेरणाश्रोत थीं| अन्य बड़े भाई लोग जैसे जगदीश भाई, निर्वैर भाई, तथा अन्य भाई, इन सभी का भी मुझे संग प्राप्त हुआ है| इसीलिए मुझे रास्ते में कोई कठिनाई नहीं आई| वो चला रहे हैं और मैं चल रहा हूँ|

इर्ष्या, द्वेष, नफ़रत, ये सभी समस्या कभी न कभी आ जाती हैं, परन्तु ये अपनी अज्ञानता का एक कारण है| ये संस्कार खुद को ही कहीं न कहीं धोका देता है| बाबा ने कई बार मुरली में भी कहा, और जीवन में अनुभव भी हुआ है, अगर इर्ष्या करेंगे तो सबसे पहले हमारा मन, मस्तिष्क, संस्कार, सोच ही खराब होता है| ये संस्कार खुद को खराब करने के, खुद को समस्या में डालने के हैं| ये एक मूर्खता है|

ये एक पतित आत्मा का लक्षण है| पावन आत्मा का लक्षण है कि ऐसे लोगों का भी उद्धार करना, उनके प्रति भी शुभ भावना रखना| कोई लोग विरोध करने वाले भी होते हैं, कोई आपकी बात न मानने वाला भी होता है,  आपको सहयोग न देने वाले भी होते हैं, ये तो संसार की जीवन यात्रा में लगा ही रहता है| हमे ये सब नहीं देखना है| हम किसके कार्य में है, किसके संग में हैं, किसकी शिक्षा को जीवन में अनुभव करते हैं, उसको मैं आधार मानता हूँ|

रुपेश कईवर्त  :    आपने बताया कि आप इतनी बड़ी-बड़ी दादियों के साथ रहे हैं, जिन्होंने इस यज्ञ को चलाया है, समस्याओं को handle करने का उनका approach कैसा था? आपने जैसे जगदीश भाई, निर्वैर भाई के बारे में बताया, इतने बड़े संगठन में समस्याएँ तो आती रहती हैं, तो उन सभी का approach क्या रहता है जिससे हलके भी रहते हैं और बातें भी समाप्त हो जाती हैं?

बी.के. मृत्युंजय भाईजी :                   सभी विभूतियों के जीवन का अधार मैंने देखा, सबसे पहली बात उनके जीवन में ख़ुशी थी| दूसरा, सभी के प्रति उनके मन में क्षमाभाव, दयाभाव, प्रेमभाव था| किसीकी गलती भी होती है, तो उसको क्षमा कर देना और दया भाव रखकर उनका भी मार्गदर्शन करना| इन अध्यात्मिक विभूतियों की ये एक विशेष शक्ति है और ये शक्ति उनके जीवन में मैंने निरंतर और हर परिस्थिति में देखी|

गाली देने वाले को भी गले लगाना, जीवन में लोग कहते हैं पर कर्म में नहीं लाते| परन्तु ये कार्य दादियों के जीवन में मैंने देखा है| इस प्रगतिपथ पर चलने वाली संस्था में, कई प्रकार के लोग भी जुड़ते हैं अलग-अलग तरह के संस्कार होते हैं उनके| कई आर्थिक समस्याएँ भी आती हैं इनमें| बहुत लोग, लोभवश साधनों की इच्छा में डूब जाते हैं|

साधना में कम मन लगता है और साधनों की विचारधारा में लुप्त हो जाते हैं| ऐसी परिस्थिति में उनको समाधान देना, उनको शिक्षा देना, पर इसके लिए उनके खुद के जीवन में simple living and high thinking की ये जो philosophy है वो होनी चाहिए| ये philosophy वैसे dictionary के शब्द ही लगते हैं, लोगों के जीवन में नहीं दिखाई देते| इन सभी के जीवन में simple living and high thinking का आदर्श मैंने देखा| दादियों और भाइयों में मैंने देखा, इतना बड़ा संगठन चलाते हुए भी हलके रहे|

रुपेश कईवर्त  :    जब आपने अपने आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत की थी तो क्या ये आपके मन में था कि आज आप जिस पोजीशन पर हैं यहाँ तक पहुंचेंगे या मन में कुछ और था?

बी.के. मृत्युंजय भाईजी :                   मैं ऐसा कुछ सोच कर नहीं आया था| मैं स्वपरिवर्तन, स्वचिन्तन के लिए आया था| पर जैसे-जैसे मेरे अंदर ये इच्छा होती थी कि ये शिक्षा समाज के विभिन्न वर्गों तक पहुंचानी है, इस दिशा में मैं नया-नया प्लान बनाता था, नई विधि adopt करता था| बड़ों से भी हमे जो प्रेरणा, श्रीमत मिलती थी जैसे इस कार्य को ऐसे करो, बाबा की इस शिक्षा को ऐसे करो, इस मार्गदर्शन में मैने कोई पोजीशन नहीं देखी, ये सेवा की विधि है|

मैंने विधि समझकर किया इसलिए कोई बड़ी बात नहीं लगी मुझे| इस क्षेत्र में सेवा करने की विधि में जो सबसे बड़ा संकल्प था, जब में इस यूनिवर्सिटी में पढ़ता था तो एक question मेरे मन में उठता था, इतनी महान शिक्षा को क्यों स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी में नहीं दिया जाता है! किसी भी पाठ्यक्रम में नहीं, किताबों में नहीं है| इसे कैसे दिया जाए इसके लिए मैं सोचता था| मुझे ख़ुशी होती है कि मुझे इस क्षेत्र में सफ़लता मिली|

सर्वप्रथम मैंने moral और spiritual education को टीचर्स को पढ़ाने के लिए एक कोर्स बनाया| इसके बाद कर्नाटका और अन्य सरकारों ने उसको मान्यता दे करके, उन टीचर्स को इस ईश्वरीय शिक्षा में जोड़ने की आज्ञा देकर के, उन्हें ईश्वरीय विश्वविद्यालय के प्रांगण में भेज करके value education को पढ़ाने की अनुमति दी| उस समय सर्वप्रथम मुझे सफ़लता मिली| उसके बाद में चन्द्रबाबू नायडू ने भी अपने शिक्षकों को इस ईश्वरीय शिक्षा लेने के लिए माउंट आबू जाने का आदेश दिया था|

उस समय करीब 65 टीचर्स ने यहाँ आकर के अपने जीवन में जो परिवर्तन किया, उस परिवर्तन के परिणामस्वरूप उन्होंने कहा कि आंध्र-प्रदेश से माउंट आबू भेजना मुश्किल है इसके लिए यहीं ट्रेनिंग center होना चाहिए| हमने उनसे अनुरोध किया कि अगर वे कोई अच्छा स्थान देंगे तो हम वहीं ट्रेनिंग center बनाएँगे| फ़लस्वरूप उन्होंने हैदराबाद की कुलदीप बहन व अन्य भाई-बहनों के सहयोग से शांति सरोवर नाम से एक अच्छा ट्रेनिंग सेंटर खोला| वहाँ न सिर्फ शिक्षकों को अपितु अन्य सभी को भी ट्रेनिंग दी जाती है| मेरा संकल्प था कि इसे यूनिवर्सिटी में भी पढ़ाना चाहिए|

यूनिवर्सिटी में किसी भी किताब में आध्यात्मिकता के बारे में धर्म को समझ करके लोग एक materialistic world में जोड़ना मुश्किल था| value education में ये values कहाँ से आये हैं, मैने courses की कुछ किताबें बनवाई, इसके बाद मुझे एक मौका मिला conference आयोजन करवाने का Annamalai University में| मैंने vice-chancellor, तत्कालीन अधिकारियों को इसके बारे में जानकारी दी| उन्होंने मुझे सहयोग दिया|

उन्होंने कहा जो पाठ्यक्रम मैने बनाया है उसे किताब में अवलोकन कर के value education and spirituality, post graduated डिप्लोमा की शुरुआत करने के लिए सुझाया| उन्होंने कहा कि इसे value education तक ही रखिये, spirituality छोड़ दीजिये| मैने कहा यही विडम्बना है समाज में, जब साइंस, आर्ट्स या मेडिकल साइंस पढ़ाते हैं, तो ये नहीं कहते कि हिन्दू मेडिकल साइंस है या क्रिस्चियन मेडिकल साइंस है| फिजिक्स को हम ये नहीं कह सकते कि ये इंडियन फिजिक्स, अमेरिकन फिजिक्स या यूरोपियन फिजिक्स है| वैसे ही spirituality भी एक universal truth है, इसे universal रीती से एक्सेप्ट करना चाहिए|

values का जो foundation है वो spirituality है| जबतक spirituality की परिभाषा ही नहीं जानते तबतक values को विकसित नहीं कर सकते| मैंने कहा values and spirituality साथ में होना चाहिए| spirituality में योग समाया हुआ है| उसके बाद उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया| उसके बाद डिप्लोमा से लेकर के post ग्रेजुएशन, डिग्री, मास्टर डिग्री तक का कोर्स और उसके साथ में values in healthcare की जो चर्चा की थी, वो भी एक कोर्स के रूप में हमने बना लिया है|

आजकल मैनेजमेंट के भी बहुत से topics पढ़ाते हैं परन्तु मैंने crisis management का एक पाठ्यक्रम बनाया| उस पाठ्यक्रम में डिप्लोमा, post-graduation के साथ-साथ MBA in self-management and crisis management भी add किया है| जो मन जीते जगतजीत कहा जाता है, मन जीतने की विधि भी होना चाहिए तब तो जगत जीत सकता है| प्रकृति को भी सही दिशा में हम use कर सकते हैं| नहीं तो आजकल प्रकृति का शोषण हो रहा है| हर प्रकार का exploitation है| इसलिए मैंने self-management and crisis management का पाठ्यक्रम रखा| इसका मुझे अच्छा response मिल रहा है|

रुपेश कईवर्त  :    13 यूनिवर्सिटीज के साथ MOU sign किया है आपने, ब्रह्माकुमारिस के तरफ से, और ये एक बहुत बड़ी उपलब्धी है, value education के बारे में हम जानेंगे और समझेंगे|

बी.के. मृत्युंजय भाईजी :                  Recently, हम एक नयी सोच लेकर के शिक्षा क्षेत्र में एक नयी क्रांति लाने का विचार कर रहे हैं- Thought Laboratory| जैसे स्कूल, colleges में साइंस, फिजिक्स, केमिस्ट्री की laboratory होती है, पर हम इन लैबोरेट्रीज में प्रयोग किसके ऊपर करते हैं! आउटसाइड world के ऊपर करते हैं|

परन्तु जो इनसाइड world की बातें हैं उसके बारे में नहीं सोचते हैं| सभी समस्या और समाधान मन की सोच है| जो waste थॉट्स, नेगेटिव थॉट्स, unnecessary थॉट्स हैं, इन सभी को कैसे divinize किया जाए, इसमें कैसे शुद्धिकरण, आन्तरिक परिवर्तन करें, इसके लिए self-realization की आवश्यकता है| और इसके साथ-साथ हमे सत्यता और प्रेम के साथ भी जुड़ने की आवश्यकता है| इसके लिए मैंने थॉट laboratory नाम से एक नया concept शुरू किया है| इसके सम्बन्ध में counselling, visualization किया है| बहुत सारे यूनिवर्सिटी आगे आ रहे हैं इसके सम्बन्ध में|

रुपेश कईवर्त  :    इसकी शुरुआत किसी यूनिवर्सिटी से हो चुकी है जहाँ थॉट laboratory स्थापन किया गया हो?

बी.के. मृत्युंजय भाईजी :                गुडगाँव की एक यूनिवर्सिटी से इसकी शुरुआत कर दी गई है| जयपुर के एक कॉलेज में शुरुआत किया है| बहुत यूनिवर्सिटी से हमको ऑफर आये हैं| अभी लखनऊ यूनिवर्सिटी से भी आमंत्रण मिला है|

रुपेश कईवर्त  :    इसमें आपको response कैसा मिल रहा है? क्या लोग थॉट लैबोरेट्रीज की तरफ आकर्षित हो रहे हैं?

बी.के. मृत्युंजय भाईजी :                इसकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि न सिर्फ़ students, बल्की स्टाफ भी अपनेआपको इसमें जोड़ रहे हैं| एक नयी ऊर्जा महसूस कर रहे हैं| व्यर्थ चिंतन से दूर हो रहे हैं| यूनिवर्सिटी का वायुमंडल सकारात्मक बनता जा रहा है|

रुपेश कईवर्त  :    आपके पास ये जो नए-नए थॉट्स आते हैं इन थॉट्स का सोर्स क्या है? कैसे आपको इतने सुंदर विचार आते हैं कि मैं समाज के लिए ये भी करूं, इसका secret क्या है?

बी.के. मृत्युंजय भाईजी :                ईश्वरीय विश्वविद्यालय की भाषा में हम इसे मुरली या ईश्वरीय महावाक्य कहते हैं| इनमें हम रोज़ सुनते हैं कि बाबा बोल रहे हैं कि मैं इन साधू-संत आदि का उद्धार करने के लिए आता हूँ| परन्तु सारी सृष्टि को अगर हम देखें तो कहीं न कहीं मनुष्यों की बुद्धि भ्रष्ट होती जा रही है| इतना स्ट्रेस, टेंशन है, ये सारी बातें बताती हैं कि बुद्धि अब तमोप्रधान है|

अब बुद्धि को सतोप्रधान, दिव्य, श्रेष्ठ बनाना, सोच को एक नयी दिशा में ले जाना, हम सबका कर्तव्य है| इन सब बातों को शिक्षा से ही परिवर्तन किया जा सकता है| इस संस्था से जुड़ेंगे, यहाँ का वायुमंडल देखेंगे, संगठन को देखेंगे, जीवनशैली और व्यवहार को देखेंगे, निस्वार्थ सेवा को देखेंगे| इतने बुद्धिजीवी व्यक्ति हैं, उनकी बुद्धि automatically ये ग्रहण कर लेगी, उनको अनुभव होगा, वायुमंडल का प्रभाव पड़ेगा| साथ-साथ उनको भी प्रयोग करने में एक प्रेरणा मिलेगी| और दूसरों को भी पहुँचाना हमारे जीवन का एक लक्ष्य हो जाता है| इसलिए इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए नयी-नयी विधि हम जोड़ देते हैं|

रुपेश कईवर्त  :    1977 से लगातार आप headquarters में नेशनल और इंटरनेशनल conferences को सफलतापुर्वक organize करते रहे हैं, मैंने ये देखा है कि जिस काम को आप हाथ लगाते हैं उसमे 100 % सफ़लता होती है, इस सफ़लता का राज़ क्या है, आप कैसे ये कार्य कर लेते हैं?

बी.के. मृत्युंजय भाईजी :                 मेरे मन में यही रहता है कि हम निमित्त मात्र हैं| भगवान की जो शिक्षा है वो हमे निमित्त बनाती है| किसी कार्य में किसी और को निमित्त बनाया किसी में मुझे बनाया| 1978 में कर्नाटक में एक बहुत बड़ा conference किया था, उस समय मैं बहुत छोटा था| फिर दादी प्रकाशमणिजी, निर्वैर भाई, जगदीश भाई आये, उन्होंने देखा कि एक छोटे से बालक ने इतना बड़ा conference किया है|

उस समय गवर्नर आये, सुप्रीम कोर्ट के जज एवं अन्य बड़े-बड़े लोग आये| ये विद्यालय के लिए बहुत बड़ी बात थी| उस वक़्त दादी को देखकर बहुत ख़ुशी भी हुई, और उन्होंने अनेक वरदान भी दिए| उसके बाद माउंट आबू में एक मीटिंग हुई, उसमें मैंने बड़े-बड़े conference करने की योजना बनाई| फिर मुझे निर्वैरजी के साथ कार्य करने को प्रेरित किया|

उस समय मैं कुछ दिनों के लिए यहाँ आया था, नहीं तो मैं कर्नाटक में ही खुश था| परन्तु मुझे यहाँ दादीजी, निर्वैर भाई, जगदीश भाई व अन्य सभी का संग मिला| पहली बार universal peace conference आयोजन हुआ था| उस समय ओम शांति भवन का निर्माण हुआ था, उसका भी inauguration था| उस समय भी VIP लोगों ने बहुत सहयोग दिया| मैं दिल से उनका शुक्रिया करता हूँ| विश्वास सबसे बड़ी चीज़ है, सबने मुझ पर विश्वास किया|

किसी भी संगठन में चलने के लिए विश्वास और कम्युनिकेशन बहुत important है| बड़ों को respect करना, छोटों को प्यार करना| छोटों को भी सहयोगी बनाना| बड़ों की श्रीमत लेना| ये सभी बातें मैंने बड़ों से सीखीं और उसका परिणाम मैंने सभी का दिल जीत लिया| conference करना तो एक माध्यम है, पर इससे मैंने बहुतों का दिल जीत लिया|

हम सभी निस्वार्थ कार्य करना चाहते हैं, क्योंकि इसमें किसी व्यक्ति के promotion की बात नहीं है| परन्तु ये ईश्वरीय शिक्षा समाज में फैलाना है जब ये सोच कर चलते हैं, तो बाबा वरदानों की वर्षा करते हैं| बड़ों का आशीर्वाद स्वाभाविक रूप से मिलता है| “सर्व का सहयोग एक सुखमय संसार का” जो ये गीत है इसमें उसको सर्व का सहयोग भी मिलता है| और उस सहयोग के कारण जो भी बाबा का कार्य चला है, वो निरंतर सफल हुए हैं|

बाबा ने हमे वरदान दिया हुआ है, बच्चे, सफलता आपका जन्मसिद्ध अधिकार है| अधिकार को कैसे use करना है, वो भी आना चाहिए| क्योंकि अधिकार को हम अधिकार की तरह नहीं चला सकते, विनम्रता, पवित्रता, शुभ भावना के साथ और एक तरह से हम सच्चाई को समाज में फैलाने के दृष्टिकोण से करते हैं| इसीलिए हम अभिमान और अपमान के चक्कर ने नहीं आते हैं|

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