SAMADHAN YOUTH EPISODE | B K SURAJ BHAIJI

  • जीवन में लक्ष्य का महत्व |
  • सर्वांगीन विकास किसे कहा जाता है ?
  • दृढ़ता से यूनिवर्स की समस्त शक्तियाँ कोआपरेट करने लगती हैं |

रूपेश भाई ——नमस्कार ! आदाब! “सत् श्री अकाल”! समाधान में एक बार आप सभी का पुनः स्वागत है,मित्रों, ये एक ऐसा कार्यक्रम है जिसमे हम विभिन्न समस्याओं की चर्चा करते है, उन समस्याओं के विभिन्न पहलूओं पर चर्चा करते हुए उसके समाधान तक पहुचने का प्रयास करते हैं | एक पहलू जिसे हम सब शायद भूलते जा रहे थे वो पहलू था अध्यातमिक पहलू और इस कार्यक्रम में विशेष रूप से हम इस अध्यातमिक पहलू को इस कार्यक्रम में जोड़ कर चल रहे हैं |

 

पिछले कई एपिसोड में हम सबने चर्चा की विद्यार्थियों की विभिन्न समस्याओं पर और उनके समाधान तक पहुचने का प्रयास किया | बहुत अच्छी प्रतिक्रिया बहुत अच्छा था रिस्पांस विद्यार्थियों की तरफ से हमे प्राप्त हुआ है और इसके लिए हम आप सब का धन्यवाद अदा करते है कि आपने इतना सुन्दर रिस्पांस दिया | अब आज से हम शुरू करने जा रहे है युवाओं की समस्याओं को | युवा वर्ग जो हमारे देश की बहुत बडी संपत्ति है और युवा किसी भी राष्ट्र की बहुत बड़ी सम्पत्ति होती हैं |

युवा वर्ग यदि सही दिशा में चले, युवा वर्ग यदि अपनी शक्तियों का सही इस्तमाल करे तो निश्चित रूप से कोई भी राष्ट्र बहुत ही सम्पन्न बहुत ही श्रेष्ठ और बहुत ही महान बन सकता है इसमे कोई भी दो राये नहीं है दो मत नहीं है | यदि हम संसार की विभिन्न क्रांतियो की ओर देखें तो सभी क्रांतियो का मूल युवा ही रहा है, उसका आधार रहा है | युवाओं के बिना कोई भी परिवर्तन अब तक संभव नहीं हुआ है | तो क्यों न युवा वर्ग जो अब तक समस्याओं से जूझ रहा है, हमने सोचा उनकी समस्याओं का निदान करते हुए एक सुन्दर समाधान तक उन्हें लेकर के चलें |

इसीलिए हम इस सुन्दर कार्यक्रम में अब युवाओं की समस्याओं पर चर्चा कर रहे हैं और हमेशा की तरह हमें समस्या से समाधान की ओर ले चलने के लिए, हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलने के लिए हमारे साथ है, आदरणीय राजयोगी ब्रह्माकुमार बी.के. सूरज भाई र्या भाई जी, आईये हम सब मिलकर उनका स्वागत करते हैं, भ्राता जी आपका बहुत-बहुत स्वागत है |

बी.के.बी.के. सूरज भाई रज भाई – थैंक यू |

रूपेश भाई – भ्राता जी, युवाओं का देश है, भारत और विभिन्न प्रकार से हम देखते हैं कि युवा वर्ग हर क्षेत्र में आज आगे बढ़ रहा हैं आगे आ रहा है और जो विकास हम देख रहे हैं, समाज की जो स्थिति देख रहे हैं बहुत बड़ा योगदान युवाओं का उसमे हैं लेकिन एक विशेष चीज देखने में आती यदि हम देखें युवाओं को तो कि अधिकाश युवा अपने जीवन में लक्ष्य नही बना पाते, लक्ष्य का निर्धारण नही कर पाते | वो ये समझ नही पाते कि मैं अपने जीवन को किस दिशा में ले जाऊ |

इधर ले जाऊ इधर ले जाऊ कहां ले जाऊ, संभव है कि उन्हें मार्गदर्शन भी प्राप्त नहीं होता, तो आज हम विशेष करके चर्चा करेंगे कि लक्ष्य कितना इम्पोर्टेन्ट है | भ्राता जी, मैं ये जानना चाहूंगा हूं कि सचमुच लक्ष्य बनाना जरूरी है या बिना लक्ष्य के भी किसी का जीवन चल सकता है |

बी.के. बी.के. सूरज भाई रज भाई – देखिए, जैसा आपने कहा, ये सत्य है कि युवक हमारे देश की शान हैं | हमें उनपर गर्व है | उनमें से ही कई युवक महान वैज्ञानिक बन कर संसार को कुछ अद्भुत चीज देंगे | इनमे से ही कुछ महान युवक बडे-बडे इंजिनियरस बन कर कुछ नई चीजें पैदा करेंगे, क्रिएट करेंगे |

इनमे से ही कुछ बहुत ही श्रेष्ठ तरह के नेता बन सकते है आगे चल कर और अभिनेता भी | तो वास्तव में युवा काल मनुष्य का एक बहुत सुन्दर काल होता है | जिसमे वो अपने भावी जीवन का निर्माण करता है और जैसा आपने कहा लक्ष्य का सचमुच बहुत महत्व है लक्ष्यहीन जीवन तो वैसे ही है जैसे पहले समय में बिना ब्रेक के साइकिल, और आजकल कह  दें बिना ब्रेक के बहुत सारीगाड़ियां जो ढलान पर चल रही हो ओर ब्रेक ना हो, तो एक्सीडेंट भी होगा,गाड़ियां भी टूटेंगी, खुद को भी चोट लगेगी |

इसलिए लक्ष्ययुक्त जीवन जीना, इससे ही हमारा समय हमारी एनर्जी हमारा मन, हमारी बुद्धि, धन सब सफल होता है | अगर जीवन का कोई लक्ष्य ही ना हो और हम चलते जा रहें हो, हमें ये पता ना हो किधर जाना है तो हमारा चलना हमें थकाएगा भी और मंजिल तक हम कभी नहीं पहुच पायेंगे |

रुपेश भाई- ये तो ऐसा हो जायेगा भ्राता जी, जैसे सागर में कोई कश्ती हो और उसके नाविक को ये पता ही ना हो कि उसे किस दिशा में जाना है

बी.के. सूरज भाई  – या फिर उसे तूफ़ान जिधर चाहे ले जाये, लहरें उसे अपनी चपेट में लेकर चाहे उसे नष्ट भी कर दें और जहां उसको पहुचना चाहिए था उसके बिल्कुल विपरीत दिशा में उसको ले जा कर उसके जीवन में हताशा निराशा पूरी तरह से भर दें |

रुपेश भाई– जी जी, मान लीजिए जैसे हम किसी भी बस या ट्रेन में भी तो नहीं बैठते जिसके गंतव्य का हमें पता नही होता है और अगर हम बैठ जाते हैं तो हम कहीं के कहीं पहुच जाते है या ये कह लिया जाये कि कोई बेहताशा भागा जा रहा हो लेकिन उसे ये ही पता ना हो कि वो कहां भागा जा रहा है |

इसलिए एक लक्ष्य का निर्धारण बहुत आवश्यक हो जाता है तो भ्राता जी, कई बार सपने और लक्ष्य दोनों में अंतर करना थोड़ा सा कठिन हो जाता है युवाओं के लिए, बहुत बार सपने तो प्राय सभी देखते हैं सभी युवा देखते है कि मैं ये करूंगा ये करूंगा ये बनूंगा मेरे जीवन में ये होना चाहिए आदि आदि… इत्यादि |

हरेक सचिन तेंदुलकर बनना चाहता है, हरेक धोनी जैसा बनना चाहता है | हरेक जो हमारे स्टार है चाहे वो शारुखान हैं, अमिताब बच्चन हैं, उन जैसा बनना चाहता है लेकिन उन्होंने ऐसा बनने के लिए कितनी मेहनत और परिश्रम की, शायद इसके पीछे वो नही देखना चाहता |

बी.के. सूरज भाई  – हां, इसके पीछे एक्चुअली ड्रीमस के साथ साथ लक्ष्य भी था उनके सामने और यही तो ड्रीम तो हर व्यक्ति अच्छे अच्छे देखता है और विशेषकर युवक, उनके मनपसंद जो भी एक्टर हो या खिलाडी हो या कोई वैज्ञानिक हो या नेता हो, वैसा बनने के स्वप्न तो वो हमेशा ही देखते रहते हैं लेकिन लक्ष्य के साथ एक और चीज भी जुडी होती है,

एक सुन्दर प्लानिंग, वैसी मेंटालिटी बना कर चलना, वैसी ही बुद्धि को लेकर चलना, वैसे ही संसाधन जुटाना इसलिए लक्ष्य कहीं बेहतर है स्वप्नों से, लेकिन पहले मनुष्य ड्रीम अवश्य देखेगा, देखना आवश्यक है, लेकिन ड्रीम को अगर वो एक सुन्दर लक्ष्य में बदल ले तो ये लक्ष्य उसे वही ले जायेगा जहां वो जाना चाहता है |

रुपेश भाई- मतलब, केवल सपने ना देखता रहे, जैसे हमारे यहां कई बार कहते है कि दिवा स्वपन कि तुम तो दिन दिहाडे सपने देख रहे हो और कर कुछ नही रहे हो और किसी ने बहुत अच्छा कहा है कि जो व्यक्ति सपने देखता है वो सो नही पाता क्योंकि वो अपने सपने को पूरा करने में लग जाता है | तो केवल सपने ना देखे, लेकिन लक्ष्य बनाये अर्थात कुछ ठोस उसके पीछे प्लानिंग अवश्य उनकी होनी चाहिए |

बी.के. सूरज भाई  – इसमे ये बात हम पहले से ही शुरू कर देते हैं कि जब मनुष्य एक लक्ष्य बनाता है सुन्दर और वो लक्ष्य भी बहुत दृढ़ता से बनाये, सुन-सुन कर नहीं, उसने कहा तो ये लक्ष्य बना लिया, कल उसने दूसरा कह दिया तो लक्ष्य बदल दिया |

अगर एक निश्चित लक्ष्य मनुष्य बना ले चाहे वो एक साल के लिए बनाये चाहे पांच साल के लिए बनाये या पूरे जीवन के लिए बनाये | वैसे छोटे-छोटे लक्ष्य बनाना अति उत्तम होता है तो क्या होगा ब्रेन की समस्त शक्तियां, बल्कि अगर वो स्पिरिचुअल भी है तो ब्रह्माण्ड की समस्त शक्तियां उसको मदद करने लगेंगी, उस लक्ष्य तक पहुचाने के लिए, उसके पास पैसा नही है तो ये सब शक्तियां पैसा जुटाने लगेंगी |

मान लो उसके कोई साथी नहीं है, उसको साथी तैयार कराने लगेंगी | जैसी opportunity उन्हें चाहिए जैसे खुले द्वार उसे चाहिए उस लक्ष्य तक पहुचने के लिए, ये ब्रह्माण्ड की समस्त शक्तियां वो द्वार खोलने लगेंगी | इसलिए लक्ष्य का दृढ़तापूर्वक निर्धारण करना परम आवश्यक है |

रुपेश भाई- जैसे किसी महापुरुष ने कहा भी है कि जितना हम सोचते है पाने का या जो हमारा लक्ष्य होता है पाने का, उतना ही हमें मिलता है | यदि हमने छोटा सोचा होगा तो हमें छोटा ही मिलेगा | यदि हम बड़ा सोचेंगे कि हां ये मेरा लक्ष्य हैं तो हमें वो मिलेगा तो किसी ने ये भी बहुत खूब कहा है कि अपना लक्ष्य हमेशा सितारों पर चढ़ना बनाओ ताकि वहां तक यदि नही भी पहुच पाए तो कम से कम चाँद तक तो पहुच ही जाओगे |

बी.के. सूरज भाई  – बिल्कुल, ये ठीक बात है | लक्ष्य हमारा बहुत ऊँचा हो, लेकिन जैसा मैं कह रहा हूं कि कई युवक लक्ष्य बना लेते हैं और सोचते हैं जो प्राचीन काल में लोगो ने कहा है, philosophers ने कहा है, चिंतको ने कहा है, वो तो कुछ हो नही रहा है | तो इसमें कहीं न कहीं उस लक्ष्य को निर्धारण करने में, उस तक पहुचने में जो मनुष्य को दृढ़ता होनी चाहिए, उसमे मनुष्य कमी रख देता है |

देखिए, दोनों तीनों चीजें हैं | लक्ष्य निर्धारित करना, वो भी दृढ़ता के साथ, एक ही लक्ष्य और दूसरी चीज है, उसकी सुन्दर प्लानिंग बनाना और तीसरी इम्पोर्टेन्ट चीज है उस प्लानिंग को फॉलो करना यानि हार्डवर्क करना, उस लक्ष्य तक पहुचने के लिए |

रुपेश भाई– बहुत सुन्दर, यदि स्वपन और लक्ष्य को हम यदि थोडासा इनमे हम भेद करना चाहें तो यही होगा कि स्वपन के साथ कोई भी प्लानिंग नही होती, हार्डवर्क नही होता, डेडीकेशन नही है लेकिन यदि हमने लक्ष्य बनाया, तो ये सभी चीजें उसमे शामिल होंगी | डिसिप्लिन भी होगा, डेडीकेशन भी होगा और डिटरमीनेशन भी होगा और साथ ही एक डेडलाइन भी बनायेगे कि हमें इस समय तक अपने लक्ष्य को हासिल कर लेना है |

भ्राता जी, एक चीज ओर, कहीं न कहीं जो युवाओं में कहलें या किसी भी वर्ग में कहलें, जो आता है, एक आपने शास्त्रों की बात कही, तो वो बात मेरे ध्यान में आ गई | किसी ने कहा है कि अजगर करे ना चाकरी, पंछी करे ना काम, दास मलूका कह गये, सबके दाता राम | तो जब दाता राम देने वाला बैठा हुआ है तो क्यों न हम मस्ती से जीवन जीये |

बी.के. सूरज भाई  – अब देखिए, ये तो जिसने कहा वो खुद दास था | इसलिए जिन्हें दास बनना हो वो भाग्य के भरोसे अपने जीवन को छोड दें | लेकिन जिन्हें राजा बनना है, माना कुछ करना है जिनका भावी लक्ष्य बहुत सुन्दर है उनको तो एक सुन्दर लक्ष्य बनाना ही पडेगा और उसके लिए दृढ प्रतग्य हो कर कठिन परिश्रम करना ही पडेगा |

रुपेश भाई– तो एक kpm कल्चर जो ज्यादातर भ्राता जी आजकल चला आ रहा है कि खाओ, पीओ, मौज करो बाकी कल कौन देखता है और कल क्या होगा वो देखा जायेगा वाली बात है, गीत भी है, सोचना क्या जो भी होगा देखा जायेगा तो यदि इस सिद्धांत पर चलते है तो कहीं न कहीं भविष्य में थोड़ी उदासी निराशा या फिर….

बी.के. सूरज भाई  – हां, kpm में क्या है कि खाओ पीओ तक तो ठीक है लेकिन जो मौज है वो थोड़े दिन की है | कई खाने पीने वाले लोग बिस्तरों पर पडे है कई हॉस्पिटलस में पडे हैं और कईओं की मौज पूरी तरह नष्ट हो गई है जो उनके मन को नेगेटिविटी ने घेर लिया है |

इसलिए इसका एक यथार्थ अर्थ हमें ले लेना चाहिए और निश्चित रूप से कठिन परिश्रम करने के लिए तैयार रहना चाहिए | इस संसार में हम कुछ ऐसे लोगो को भी देखते हैं जिनको थोड़े परिश्रम से ज्यादा सफ़लता मिलती है | कुछ ऐसे भी दिखाई देते हैं जो भाग्य के धनी होते हैं और बिल्कुल टच करेंगे और सोना प्राप्त हो जायेगा |

लेकिन बहुत लोग ऐसे होते हैं जिन्होंने मेहनत से अपने महान लक्ष्य अपने चर्म लक्ष्य को पाया होता है तो  न  हम भाग्य के भरोसे रहें और न हम ये इंतजार करे कि थोड़ी मेहनत से हमें बहुत कुछ मिल जायेगा हम दृढ़तापूर्वक बिल्कुल इमानदारी से अपने लक्ष्य को सामने रख कर मेहनत करें तो निश्चित रूप से भाग्य भी हमारा साथ देगा और हम मंजिल पर अवश्य पहुचेंगे |

रुपेश भाई– कई लोग, भ्राता जी, कंफ्यूज रहते हैं कि आखिर लक्ष्य का निर्धारण किया कब जाये ? जैसे कि कुछ सोचते हैं कि भई हम इस समय तक बना लें इस समय तक बना लें और जैसे बात हमारी चल रही है कि युवा काल ज्यादातर ये सोचते हैं कि ये तो समय है खेलने का कूदने का, नाचने का,गाने का, बाद में देखा जायेगा तो आपके हिसाब से क्या लगता है कि कब अपने जीवन का एक लक्ष्य निर्धारित कर लेना चाहिए ताकि हमारी पूरी शक्तियां उसे प्राप्त करने में लग जाये ?

बी.के. सूरज भाई  – देखिए, बात ये थोड़ी Complicated है, क्योंकि जब बच्चे छोटे हैं, हम तो ये कहेंगे कि दसवी तक पहुचतें पहुचतें उनके सामने एक सुन्दर लक्ष्य होना चाहिए | परन्तु जब हम अपने सम्पूर्ण समाज की रचना देखतें हैं, उसमे कई बातें देखने में आ रही हैं |

कुछ बच्चे गाँव से आते हैं जिनके माँ-बाप पढ़े लिखें नही होते | जिनका जो आस-पास का परिवेश है उसमें उन्हें कोई ये बताने वाला नही होता कि तुम्हारा लक्ष्य ये होना चाहिए | वो ग्यारवी में गये, उनके साथी जो सब्जेक्ट लें रहें हैं उन्होंने भी वो ही ले लिया, भले ही वो आगे चल कर सोचते रहें कि तुम्हे तो इंजिनियर बनना था, तुमने कॉमर्स ले ली |

कोई फिर ऐसा करते है कि साइंस सब्जेक्ट ले लेते हैं फिर देखतें हैं कि कॉमर्स वालों का स्कोप बहुत अच्छा है, उन्हें अच्छी-अच्छी नौकरियां मिल रहीं है, तो वो फिर पछताते रहते है | इसलिए चेंज करते रहते हैं | इसलिए एक तो ये चीज देखने में आती है कि जहां पढ़े लिखें माँ-बाप हैं और परिवेश ऐसा है जो पहले से ही लक्ष्य के बारे में बच्चों को जानकारी देतें हैं ये भी है, लेकिन इसमे एक बात ये कभी-कभी contradiction हो जाता है कि माँ-बाप अपने बच्चों को कुछ बनाना चाहते हैं और बच्चों की रूचि कुछ ओर बनने की होती हैं |

यहां जो कंट्राडिकशन होता है एक विरोधाभास हो जाता है | अब मान लो बच्चे अपने माँ-बाप के आज्ञानुसार, वो अपने माँ-बाप को खुश करना चाहते हैं, कि भई माँ-बाप  पैसा खर्च कर रहें हैं, वो हमसे बहुत प्यार करते हैं तो उनकी ये इच्छा है मेरा ये लड़का डॉक्टर ही बने और वो बिल्कुल उसके लिए जोर लगा रहें हैं, लेकिन बच्चे की रूचि कुछ ओर है अब वो कुछ ओर सब्जेक्ट लेना चाहता हैं मान लो वो CA बनना चाहता है, मान लो वो एक बहुत अच्छा स्पोर्ट्समैन बनना चाहता है, तो यहां भी एक संघर्ष होता है लक्ष्य के निर्धारण में |

रुपेश भाई– तो ज्यादातर ऐसी स्थिति में क्या करें, भ्राता जी, और मैं समझता हूं आम तौर पर दस में से यदि आठ परिवार को देखा जाये तो ये सिचुएशन तो आती ही होगी कि पेरेंट्स, जो उनकी इच्छा रही हो और वो ना कर पाये हो तो वो ये चाहते हो कि उनके बच्चे वे पूरा करें लेकिन बच्चों की इच्छा रूचि योग्यता, इन सब चीजों को वो शायद नही देख पाते या नही समझ पाते, तो क्या किया जाये ?

बी.के. सूरज भाई  – हां, दूसरी तरफ से भी ये होता है, कि मान लो बच्चा डॉक्टर बनना चाहता है, उसने देखा है कि डॉक्टरों की बहुत कमाई है, डॉक्टरों का बडा मान है या डॉक्टर दूसरों को सुख भी बडा दे रहें हैं, उसकी इच्छा है मैं भी दूसरों की पीड़ा समाप्त करके सबको सुख दूं, समाज में मेरा नाम हो |

वो अपनी ये इच्छा रखता है, ये लक्ष्य बनाना चाहता है लेकिन माँ-बाप आर्थिक दृष्टि से उतने सक्षम नहीं हैं | अभी आजकल मेडिकल के लिए बहुत पैसा चाहिए | पहले डोनेशन 25-25 लाख चाहिए | वो ये भी सोचता है कि क्या मैं अपने माँ-बाप को गरीबी में छोड़ कर डॉक्टर बन जाऊ या मैं आयुर्वेद की ओर चला जाऊ अगर डॉक्टर ही बनना है तो, होमियोपैथी ले लूं|

अब यहां भी उनके मन में संघर्ष रहता है | आखिर इन सब में एक मिलन एक हार्मनी लानी ही पड़ेगी और इसका तरीका ये है कि दोनों मिल बैठ कर इस पर चर्चा करें | जहां माँ-बाप को भी कठिनाई ना हो आर्थिक दृष्टि से और जो माँ-बाप की इच्छाए हैं वो बच्चों पर थोपी भी ना जाये और बच्चों के जो स्वतंत्र विचार हैं जो उनकी रुचि है जो कुछ वो बनना चाहते हैं उसका भी कहीं ना कहीं दमन ना हो और वो एक स्वतंत्र परिवेश प्राप्त कर सकें, तो दोनों को आपस में बैठ कर इस पर चर्चा करनी चाहिए |

रुपेश भाई– ये बहुत सुन्दर बात भ्राता जी आपने कही, जब तक ये जो एक गैप है वो दूर नहीं होगा तो बच्चा भी परेशान होता रहता है और पेरेंट्स भी कहीं ना कहीं परेशान होते रहते हैं |

यदि ये तो एक सुन्दर लक्ष्य और वैसे भी लक्ष्य का निर्धारण यदि बच्चे करते हैं तो अपने पेरेंट्स के साथ बैठ कर जरूर इस विषय को चर्चा करनी चाहिए कि किस प्रकार से मैं आगे बढ़ सकता हूं या क्या क्या मेरे लिए स्कोप हो सकता है तो बहुत अच्छी बात होगी |

भ्राता जी एक चीज इसके साथ मैं पूछ्ना चाहता था कई बार ये होता है कि युवा वर्ग या पेरेंट्स अपने बच्चों के लिए एक लक्ष्य तो निर्धारण कर देतें हैं लेकिन जैसे लक्ष्य के पथ पर चलने की बात आती है तो बहुत सारी समस्याए आनी शुरू हो जाती हैं तो ये भी एक कारण बन जाता हैं कि व्यक्ति बार-बार लक्ष्य बनाने से भय खाने लगता हैं कि मैं लक्ष्य बनाता हूं और मुझे वो प्राप्त नही होता है |

बी.के. सूरज भाई  – इसलिए मैंने कहा कि बच्चे की रूचि का ध्यान रखना परम आवश्यक हैं | मान लो वो कॉमर्स में बहुत होशयार है | उसकी रूचि उधर जा रही है और मान लो माँ-बाप उसे एक अच्छा इंजिनियर बनाना चाहते हैं, उसके ओर लोग भी बहुत इंजिनियर हैं और पहले से ही उन्होंने भी ड्रीम्स देखें हैं

कि हम अपने बच्चे को इंजिनियर बनायेगे लेकिन बच्चा बहुत रूचि ले रहा है कॉमर्स के सब्जेक्ट मे, तो यहां माँ-बाप को समझदारी का एक परिचय देना चाहिए कि वो फील्ड भी बहुत सुन्दर है अभी क्योंकि जीवन बच्चे का है माँ-बाप का नही | जो लक्ष्य बनायेगा बच्चा उसका बुरा इफ़ेक्ट या अच्छा इफ़ेक्ट उसके भावी जीवन पर आने वाला है | इसलिए बच्चे की हर क्षमता को समझते हुए, उसकी रूचि को समझते हुए, उसकी चॉइस को प्रथम स्थान देना चाहिए |

रुपेश भाई– जी, भ्राता जी ये तो हो गई, उनके एक परीक्षा से जुडी हुई बात कह लीजिए या फिर सब्जेक्ट से जुडी हुई बात कह लीजिए लेकिन लक्ष्य की जहां तक बात आती हैं युवा वर्ग को यदि हम लेते है तो ये ही तो केवल एक लक्ष्य नही है कि हमें पढ़ाई ही पढ़नी हैं पढ़ाई में ही एक लक्ष्य बनाना है, इसके इलावा क्या भय पूरे जीवन के लिए होना चाहिए ताकि उनका सर्वांगीन विकास हो सके |

बी.के. सूरज भाई  – बिल्कुल ये एक बहुत सुन्दर बात है हमारे समाज को हमारे युवकों को, हमारे बच्चों को बहुत अच्छी तरह जाननी चाहिए और इसकी अवेयरनेस होनी चाहिए मतलब इसको इग्नोर नही करना चाहिए |

क्योंकि हम देखते है बहुत बच्चे अच्छे डॉक्टर बन गये लेकिन थोड़े दिनों में टेशन रहने लगी और वो अपने मेडिकल प्रोफेशन को एन्जॉय नही कर पाए | हमारे सामने ऐसे भी बच्चे आते हैं, इंजिनियर बन गये, बहुत हाई परसेंटेज उनकी आ गई DRDO में साइंटिस्ट वो बन गये लेकिन अपने साथियों के साथ कोप नहीं कर पा रहें है, मिलन हो ही नहीं रहा है तो टेशन में रहने लगें हैं और भी, कईयों के साथ ऐसा हुआ है कि अभी आयु तीस साल की हुई है और रोगी रहने लगे हैं |

उनको इस चीज का पता ही नही है, कईयों को कदम कदम पर जब असफलता होने लगी वहां, कॉम्पीटिशन का एक युग आ गया उनके सामने, उनके बीच साथी हैं, बहुत जबरदस्त कॉम्पीटिशन उनके सामने है, अच्छा, उनके बॉस जो है उनके ओर से कहीं अच्छा कहीं बुरा व्यवहार होने लगा, लोग कह देते हैं हमारे बॉस हमे टोर्चेर कर रहें हैं |

इन सबको फेस करने के लिए, इन सब में जीवन को एन्जॉय करने के लिए, जैसा आपने कहा एजुकेशन डेस्टिनेशन है एम ऑब्जेक्ट है उसके साथ साथ मनुष्य को हेल्थ का ध्यान रखना, उसकी एक जनरल नॉलेज रखना, उसके बारे में केयर रखना पहले से ही ये भी बहुत आवश्यक है सोशल लाइफ जिसमे उसको रहना है आगे चल कर,

उसे लोगों के संपर्क में आना उसके बहुत सारे रिलेटिवस होंगे उनको भी उन्हें प्रसन्न रखना है उन पर भी इसकी बहुत अच्छी छाप हो इसके साथ साथ जिसकी एक बहुत आवश्यकता महसूस हो रही है स्प्रिचुअलटी | उसको ये भी पता होना चाहिए तू है कौन, कहां से संसार में आया है आखिर तेरी इनर पॉवर कैसे बढ़ेगी तो ये सर्वांगीन विकास के लिए हेल्थ वाइज,

सोशल वाइज, स्प्रिचुअलटी के तौर पर, मन का विकास, बुद्दि का विकास और एक श्रेष्ठ व्यवहार सीखना, व्यवहारिक होना, कई लोग बहुत अच्छे साइंटिस्ट बन गये लेकिन व्यवहारिक बिल्कुल नही हैं, वो जानते ही नही कि अपने फ्रेंड्स से हमें कैसा व्यवहार करना चाहिए |

रुपेश भाई- मतलब ये हम समझे कि लक्ष्य केवल एजुकेशन के फील्ड की बात नही है कि आपको केवल एक चूज़ करना है कि आपको डॉक्टर या इंजिनियर बनना है बल्कि लक्ष्य ये होना चाहिए कि मुझे एक सम्पूर्ण मानव बनना है मुझे सर्वांगीन विकास अपना करना है चाहे वो मेंटल फील्ड हो चाहे स्पिरिचुअल फील्ड हो, सोशल फील्ड हो या फिर अन्य क्षेत्र हों तो सर्वांगीन विकास को इसमे हम लक्ष्य के रूप में सामने करें |

बी.के. सूरज भाई  – बिल्कुल, इसी की बहुत ही आवश्यकता है | कई बार मनुष्य केवल धन कमाने को अपना एक लक्ष्य बना लेता है धन के पीछे वो कोई गलत काम करने लगता है और उससे से दूसरी ओर उसका कैरिएर नष्ट होने के कगार पर पहुच जाता है | तो सर्वांगीन विकास सर्वांगीन बौधिक विकास सर्वांगीन अवेयरनेस उसकी नोलेज रखना ये सम्पूर्ण उन्नति के लिए, जीवन को एन्जॉय करने के लिए बहुत आवश्यक है |

रुपेश भाई- ये सर्वांगीन विकास की जब बात आती है भ्राता जी, अब ज्यादातर यूथ अपने कैरिएर पर ही फोकस्ड होते है कि पहले अपना कैरिएर बना लिया जाये जिस भी फील्ड में वो बनाना चाहते है | तो ये सब चीजें कहीं न कहीं सेकेंडरी हो जाती हैं या नगण्य हो जाती हैं | इन सब चीजों को वो साथ में ले कर कैसे आगे बढें ?

बी.के. सूरज भाई  – हां देखिए, इन सब को साथ ले कर चला जा सकता है | हेल्थ अच्छी होगी तो पढ़ाई में भी वो बहुत अच्छे हो सकते हैं | मान लो बीमार ही रहने लगे, उनको सर्दी जुकाम रहने लगी, बुखार होने लगा, छोटी छोटी बातों पर हम ध्यान देंगे या आज कल जो एक बहुत बुरी बीमारी चल रही है, पेट ख़राब रहने लगा बच्चों का तो इससे उनकी मेमोरी पॉवर पर, उनकी इंटेलेक्चुअल कैपिबिलिटी पर बहुत बुरा असर पड़ता रहेगा |

तो एक छोटी छोटी अवेयरनेस, एक जनरल नोलेज, हम ये नही कह रहे कि उनको डॉक्टर बन जाना चाहिए पर अपनी हेल्थ को कैसे ठीक रखें क्या खाए क्या ना खाए, पानी कितना पिए कब पिए कब ना पिए, इसकी अवेयरनेस उनको होनी चाहिए, रही बात स्प्रिचुअलटी की, ये तो एक ऐसा सब्जेक्ट है एक एजुकेशन है और उसी एजुकेशन के साथ इसको भी जोड़ दिया जाये इसको भी, इसमे समय नहीं लगता, इसमे अलग से टाइम देने की जरूरत नही होती |

ये तो अपनी अवारेनेस है ये तो अपने मन के विचारो को शुद्ध रखने की बात है, अपने को एनर्जेटिक रखने की बात है और तीसरी बात जो है जो बहुत काम आती है मनुष्य के जीवन में – व्यवहार, मनुष्य को रमणीक भी होना चाहिए तो कहीं गंभीर भी होना चाहिए, उसकी वाणी दूसरों को सुख देने वाली भी होनी चाहिए, जो व्यवहारिक लेवल है मनुष्य का, उसमे भी उसको ज्यादा समय देने की जरूरत नही, छोटी छोटी बातें जीवन में सीखती रहनी चाहिए तो ये सब एक साथ आगे बढ़ सकता है |

रुपेश भाई- मतलब, कम्पलीटली यदि वो फोकस्ड है भी अपनी पढाई पर तो अच्छी बात है लेकिन इन सब पहलुओं पर विचार कर के इनको भी विकसित अवश्य करे | भ्राता जी, जब कभी एक लक्ष्य की बात आती है, ये निर्धारण की बात आती है तो बहुत सारे जो युवा है बड़े लक्ष्यों को बनाने में कई बार हिचकते है |

तो क्या कारण हो सकता है, ज्यादातर लोग लक्ष्य निर्धारण नही करते, तो मैं आपके सामने आंकड़ा रखना चाहूंगा कि पश्चमी देशों में ये सर्वे किया गया तो ये पाया गया कि वो लोग अपने जीवन में सबसे ज्यादा सफल रहें जिन्होंने अपने लक्ष्य का निर्धारण किया था और लिखित में जिनके पास उनका लक्ष्य था और उन्होंने ये पाया

कि 3% लोग ही थे उन्होंने एक गेदरिंग (gathering) ली थी जिसमे सिर्फ 3% लोगों के पास ही उनका लिखित में लक्ष्य था और 10 साल बाद उन्होंने देखा कि यही 3% लोग संसार में समाज में सफल है बाकी के लोग सफल नहीं है | ये आंकडे ये बताते है फिर भी ज्यादातर युवा अपने पास एक लक्ष्य का लिखित स्वरुप नही रखता लक्ष्य बनाने में हिचकता क्यों है ?

बी.के. सूरज भाई  – देखीए, मैं 2-3 फील्ड लूं आईएस करना, आईपीएस करना, जो एडमिनस्ट्रेटीव (adminstrative) सर्विसेज हैं हमारे देश में, दूसरा एक इंजीनियरिंग का फील्ड है बहुत अच्छा, एक मेडिकल का फील्ड है CA, कॉमर्स, एकाउंट्स ये फील्ड हैं, बिज़नस का फील्ड है, MBA कई लोग करते हैं |

कई लोगों के पास क्या है कि उनका फ्रेंड सर्किल ऐसा होता है जो उन्हें कहता रहता है कि अरे तुम इंजीनियरिंग करोगे तो नौकरी तो मिलनी नही है, कहां से इतना मेहनत करोगे इतना पैसा खर्च करोगे, छोड़ो इस फील्ड को, आईएस, अरे, लाखों कैंडिडेट्स बैठते है हर साल एग्जाम में, उनमे से थोड़े से 200-250 का सिलेक्शन होगा, तुम्हारा कहां नंबर आने वाला है, क्यों टाइम वेस्ट कर रहे हो |

ऐसे-ऐसे जो नेगेटिव अप्प्रोच जो बच्चों को मिलती है, उससे कहीं न कहीं बच्चें अपना लक्ष्य ठीक से निर्धारित करते नही है, लेकिन मैं उनको राय दूंगा, कि बच्चे इस तरह सोचें कि इंजीनियरिंग कर रहें है बुहतों को तो सुन्दर नौकरी मिल रही है उनमे से मैं भी एक होऊंगा, मेडिकल कर रहें है सफल हो रहे हैं सफल डॉक्टर बन रहें हैं मैं भी सफल डॉक्टर बनूंगा | आईएस, आईपीएस  के लिए कैंडिडेट्स जा रहे हैं मैं उस फील्ड में भी सम्पूर्ण सफ़लता को प्राप्त करूंगा | ठीक है पैसा नही है उसका भी इंतजाम कहीं न कहीं से अवश्य हो जायेगा तो ऐसी दृढ़ता के साथ अगर वो चलेंगे तो निश्चित रूप से अपना लक्ष्य लिखेंगे, उसको निर्धारित करेंगे |

रुपेश भाई– अपने अन्दर मतलब नेगेटिविटी नही आने दे, ज्यादातर ये हो रहा है कि लोगों ने कुछ कह दिया कोई बात उनके अन्दर डाल दी कि इतनी कॉम्पीटिशन है इतने सारे लोग दे रहे है तुम्हारे पास वो योग्यता या क्षमता नही है, तुम कॉम्पीटिशन में खड़े नही हो पाओगे तो अपने अन्दर कहीं न कहीं नेगेटिविटी ले आता है और पीछे हट जाता है तो अपने अन्दर पॉजिटिविटी लाये, ये एक इम्पोर्टेन्ट चीज है | ये बात आपने कही |

बी.के. सूरज भाई  – बस ये ही है, लाखों लोग यदि आईएस, आईपीएस के लिए बैठ रहें हैं और 250 चुन रहें हैं तो उसको पहला विचार ये होना चाहिए कि उसमे से एक नंबर मेरा भी होगा | इसी दृढ़ता जब होगी तो जैसा मैंने कहा, ब्रेन की, subconscious mind की, यूनिवर्स की समस्त शक्तियां, उसको कोपरेट करने लगेंगी और अगर पहले ही नेगेटिव हो गये हैं तो नेगेटिव एनर्जी उसके पास आने लगेगी, उसके मन में निराशा भरने लगेगी और वो ये ही सोचेगा कि नौकरी तो मिलेंगी ही नही |

रुपेश भाई- भ्राता जी, एक बहुत सुन्दर बात आपने कही है कि नेगटिविटी ना आने दें क्योंकि यदि ये हैं तो सफ़लता उनसे बहुत दूर चली जायेगी | भ्राता जी, आज बहुत अच्छी चर्चा रही है, युवाओं के बारे में और उनके लक्ष्य के निर्धारण के बारे में | ये चर्चा हम आगे भी जारी रखेंगे | आज आपने जो सुन्दर बाते हमारे सामने रखीं है, युवाओं के सामने, उनके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद |

युवा मित्रों आपने देखा कि जीवन में लक्ष्य कितना इम्पोर्टेन्ट है महत्वपूर्ण है | जब तक लक्ष्य नही होगा हमारे जीवन में तब तक सफलता का स्वाद हम नही चख सकेंगे | सफलता हमसे कोसो दूर रहेगी | इसीलिए आप ठान लें कि मैं अपने जीवन में लक्ष्य अवश्य निर्धारित करूंगा और उस लक्ष्य को पाने के लिए कठोर परिश्रम करूंगा | एक निश्चित रूप से अपने पास एक लक्ष्य बना करके उस लक्ष्य पर मैं तेजी से आगे बढूगा |

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