Samadhan Episode – 934

  1. पाप और पुण्य कर्म की पहचान हम कैसे करें ?
  2. पास्ट का हमारे प्रेजेंट से क्या कनेक्शन है ?
  3. क्या हम सिस्टम में रह करके सद्गुणों से युक्त जीवन जी सकते हैं ?
  4. ईश्वर अच्छे लोगों को ही क्यों जल्दी बुला लेता है ?
  5. समाज के परिदृश्य को सम्पूर्ण रूप से परिवर्तित करने में आध्यात्मिकता का क्या योगदान है ?
  6. क्या ये मान्यता सही है कि हम भाग्य लेकर के आए हैं, अब हम चाहें तो कुछ करें या चाहें तो ना करें ? भाग्य को कैसे बढ़ाया जाए ?

 

रुपेश कईवर्त  :     एक गीत बना दिया है लोगों ने कि हे प्रभु काहे को तुमने ये दुनिया बनाई ! कितनी तकलीफ़ है, दुःख है, तो शायद ऐसे ही दुखी होकर ये गीत बनाया गया होगा |

बी.के. ऊषा दीदी  :    अब वो भी आता है, इसीलिए जो है उसने कहा है.. यदा यदा ही.. वो भी आता है, चलो सब.. सब चलो.. बहुत खेल लिए अब दूसरे दिन खेलना | तब ब्रह्मा का दिन और रात्रि की बात आती है, तो अभी रात्रि हो गई है | तो वो कहता है कि चलो.. रेस्ट करो.. जब ब्रह्मा का दिन होगा तब फ़िर आना खेलने के लिए |

रुपेश कईवर्त  :     ये जो दौड़ चल रहा है.. चलिए परमात्मा हमे फ़िरसे एक नए युग की ओर ले चल रहे हैं | या चलो अब पूरा हुआ खेल, अब वापिस चलो ये वक्त आ गया है | पाप पुण्य की हमारी बात हो रही है दीदी, तो ऐसे में तो पुण्य कर्म ही व्यक्ति को करने चाहिए |

लेकिन क्या ये ज्ञान है व्यक्ति को कि ये पाप है, ये पुण्य है.. मुझे पुण्य ही करना चाहिए.. मैं थोड़ा संछेप में जानना चाहूँगा ! कि ये कर्म पाप कर्म है जो हम कर रहे हैं जिसका दुःख हमे भोगना पड़ेगा और ये पुण्य कर्म है… यदि आप हमे संछेप में बताएं तो क्या कहेंगे !

बी.के. ऊषा दीदी  :    ऐसा है कि एक छोटा बच्चा होता है ना, आप उस बच्चे के सामने झूठ बोलकर के देखो, वो बच्चा छोटा सा कहेगा.. आपने झूठ बोला ना ! तुरंत कहता है | यानि ये समझ उसमे भी है | और ये डाली गई है | ईश्वर ने जब हमको भेजा था, हमे सबसे बड़ी गिफ्ट दिया था, बुद्धि |

जो बुद्धि सही गलत को पहचान सकती है, और ये बुद्धि ईश्वर ने हमको ये जन्म की गिफ्ट के रूप में दिया था | ताकि जीवन में हम अच्छी तरह समझकर फ़ेसला कर सकें | इसलिए जब वो बच्चा कहता है कि आपने झूठ बोला माना उसके अंदर ये पहचान है, ये समझ है कि ये गलत है, ये खराब है, ये बुरा कर्म है.. वो कई बार माँ-बाप को आकर सुनाता भी है कि टीचर ने आज इतना गलत किया.. इतना गलत किया..

रुपेश कईवर्त  :     छोटे बच्चे से..

बी.के. ऊषा दीदी  :    हाँ छोटे बच्चे सुनाते हैं ये.. माना उसके अंदर भी ये बात है, लेकिन जब वो बच्चा सुनाता है तो कई बार बड़े क्या कहते हैं कि.. चुप बेठो, कुछ समझता है नहीं, करना पड़ता है उनको और जब हम ऐसा कहते हैं तो उसके अंदर एक द्वंद्व चलता है कि मेरी बुद्धि तो कहती है कि ये गलत कर रहा है और ये कहते हैं कि मैं समझता नहीं हूँ !

अब दूसरी बार जब मौका आता है ना तब वो गलत करेगा | कहेगा यही समझदारी है ! अब जब गलत करता है तब फ़िर उसको डांट पड़ती है..! झूठ बोलता है.. गलत बात ! आपने जब झूठ बोला तब मैने कुछ कहा.. तबतो आपने कहा समझता नहीं है … होता है कि नहीं, ये द्वंद्व की स्थिति | और उस वक़्त जो व्यक्ति को प्रकृति और माहौल मिलता है, अगर उस वक़्त उसको तामसिक माहौल और प्रकृति मिली, तो वो उस दिशा में आगे बढ़ जाता है |

अगर उस वक़्त उसे सात्विक माहौल मिलता है, सात्विक प्रकृति के लोग मिलते हैं तो फ़िर वो उस दिशा की ओर आगे बढ़ जाता है | तो बुद्धि भगवान ने हर एक को दी है, सही गलत को समझने की | जो वातावरण और प्रकृति हमारी, पिछले जन्मों के हिसाब से, प्रकृति.. सात्विक, राजसिक, तामसिक… तो पिछले जन्मों का कर्म जिस तरह का है उस अनुसार की प्रकृति हमारी विकसित होती है | इस जन्म में जैसे प्रश्ठुतित होती है और जैसे वह प्रस्ठुतित होती है उस समय उसको यह गलत बातें मिली, फ़िर उस दिशा में आगे बढना ही है उसको | और अगर उस समय उसके कुछ पुण्य कर्म, श्रेष्ठ कर्म उसको साथ देते हैं, और उसकी सात्विक प्रवृति प्रस्ठुतित होती है तो वो उस दिशा में आगे बढ़ता है |

रुपेश कईवर्त  :     मतलब पास्ट भी, कहीं ना कहीं, हमारे प्रेजेंट के साथ पूरी तरह से जुड़ा हुआ रहता है | वैसा अवसर अनुकूलता हमे प्राप्त होता है | आज के दौर में, हमारी यद्यपि चर्चा हुई है, कोई व्यापारी है उसका व्यापार बिना झूठ बोले तो नहीं चल सकता, बिना ऊपर-नीचे किये तो चल नहीं सकता ! तो क्या वो जो कर्म कर रहा है वो पाप कर्म है ?

बी.के. ऊषा दीदी  :    मनुष्य अति लोभ-लालच में है, बिज़नस करना है वो बात ज़रुरी है..

रुपेश कईवर्त  :     तो उसे जितनी आवश्यकता है, उतना वो फ़िक्स कर ले..

बी.के. ऊषा दीदी  :    आवश्यकता के हिसाब से, किसीको निचोड़कर के… कई बार कई बिजनेसमैन को देखा कि जो अफ़्फोर्ड कर सकते हैं उनको बहुत ज़्यादा भी डिस्काउंट दे देंगे, और फ़िर वो भरने के लिए वापिस वो अपना … गरीबों को या साधारण को.. भई जितना निकाल सकते हो निकाल लो ! आपको अगर डिस्काउंट देना है तो साधारण को दो, जो भर सकता है उसे तो फुल अमाउंट में भी दे सकते हैं ! और अगर कम से कम साधारण या गरीब है उसे हमने डिस्काउंट दिया.. लेकिन कभी कभी अपनी इम्प्रैशन जमाने के लिए, ताकि उनका फ़ायदा हम ले सकें |

तो उस वक़्त वो व्यक्ति, बड़े लोगों को तो फ़्री में दे देता है, बहुत ज़्यादा डिस्काउंट.. और जो साधारण है, जो बेचारा दोनों ends को meet करने के लिए पुरुषार्थ कर रहा है, आखिर जब आप उनको लूटने के हिसाब से कहेंगे, तो वो उस ऑप्शन को कहेंगे.. छोड़ दो, कोई बात नहीं | वो फ़िर दूसरी ओर जा रहे हैं | तो इसलिए ऐसा ना हो.. जो गरीब साधारण है उसको डिस्काउंट भी मिल गया तो कहीं ना कहीं उसका विश्वास तो जीत लेते ही हैं | दुनिया के अंदर जितना मनुष्य का विश्वास जीतते हैं ना, ये सबसे बड़ी पूंजी है | क्योंकि ये कहाँ आपको काम आने वाली है, ये आपको पता नहीं है |

रुपेश कईवर्त  :     जी.. जी.. पुण्यों की आपने बात कही है सचमुच वो बहुत महत्वपूर्ण है, और विश्वास उसमे एक गुण है जो मुझे लगता है | कई लोग सिस्टम की बात कहते हैं, कि सिस्टम ऐसा हो गया है यहाँ कि हम सद्गुणों से युक्त जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते |

बी.के. ऊषा दीदी  :    सिस्टम बनाया किसने ?

रुपेश कईवर्त  :     बनाया तो खैर हमने ही है, उस सिस्टम में हम हैं.. अब उसको चेंज करने की ताकत हममे नहीं है | तो मैं क्या करूँ !

बी.के. ऊषा दीदी  :    कहीं ना कहीं शुरुआत तो करनी ही होगी एंड एवरीथिंग बिगिन्स विथ अ स्पार्क | थोड़ी सी जब हमारी चेतना की स्पार्क जब होगी और उसी से ही शुरू होता है ! हो सकता है कि आज हम अकेले हैं, पर अकेले चलते चलते धीरे-धीरे कारवा जुड़ता जाता है | बुराइयों के लिए भी जब जुड़ गया, तो अच्छाइयों के लिए भी जुड़ जाएगा |

सिस्टम बना देंगे हम ! और अब समय की पुकार ही यह है, क्योंकि कलियुग बदल रहा है और सतयुग की ओर जाना है | जैसे रात के बाद पुनः सुबह आनी ही है, तो कलियुग की भी अभी घोर रात्रि हो गई है अब सतयुग की ओर जाना ही है | जब सुबह की ओर ही जाना है तो लेट अस बिगिन !

रुपेश कईवर्त  :     शुरुआत मैं करूं !

बी.के. ऊषा दीदी  :    मैं करूँ.. एक छोटा सा कदम ही क्यों ना लूँ !

रुपेश कईवर्त  :     लेकिन जैसे आपने कहा था दीदी कि अच्छे लोगों को ज़्यादा तकलीफ़ सहनी पड़ती है, वो देखने में आता है | जब हम सिस्टम से हट कर के कोई कार्य करना शुरू करते हैं तो बहुत तकलीफ़, बहुत समस्या आने शुरू हो जाती है और वही लोग जो सिस्टम में दिखते हैं वो बहुत आनंदित लगते हैं |

बी.के. ऊषा दीदी  :    ऐसा है कि कहीं ना कहीं जब हम अच्छाई की ओर कदम आगे बढ़ाएंगे तो ईश्वर भी उसको साथ देना शुरू कर देता है | इसलिए कहा जाता है गॉड हेल्प दोज़ हू हेल्प देमसेल्वस ! ईश्वर भी उनको मदद करता है जो पहले खुद की मदद करते हैं | तो खुद जब एक कदम उठाने की मेहनत करता है, कदम उठाता है तो ईश्वर की मदद मिलेगी उसको |

रुपेश कईवर्त  :     कई बार जो अच्छे कदम बढ़ाते हैं दीदी, उनको रास्ते से साफ़ ही कर दिया जाता है ! फ़िर लोग ये प्रश्न उठाते हैं कि बेचारा अच्छा कर्म करने गया था पर भगवान ने भी उसकी मदद नहीं की, और उसको जान से हाथ धोना पड़ा |

बी.के. ऊषा दीदी  :    नहीं नहीं ! ऐसा नहीं है कि भगवान ने उसकी मदद नहीं की | भगवान ने उसको प्रमोशन दे दिया | इस जीवन से जहाँ चारों ओर बुराइयाँ थीं, उसके बदले और अच्छे वातावरण में और अच्छे माहौल में जाकर ले गया | क्योंकि अच्छे लोगों की कदर ईश्वर ही करता है | और इसलिए देखा जाता है.. अच्छा था व्यक्ति फ़िर भी ईश्वर ने उसे ही चुना ! लेकिन ईश्वर उसी को चुनता है | अभी जो नई दुनिया बनानी है, उसमे उसको अच्छे लोग ही चाहिए | तो वो बुरे लोगों को नहीं चुनेगा, माना ईश्वर के उस कार्य में जाने के लिए आगे |

रुपेश कईवर्त  :     दीदी, कभी ईश्वर को प्रमोशन देनी ही थी तो यहाँ उसे रखते हुए, दिया जाता तो क्या इन लोगों का विश्वास नहीं होता कि इसने अच्छाई के लिए कदम उठाया तो भगवान ने भी इसकी मदद की | सच्चाई की जीत हुई |

बी.के. ऊषा दीदी  :    चारों ओर नेगेटिविटी है ना ! वो करने नहीं देते थे उसको | इसिलिए दुनिया में कहावत है कि अच्छे थे ना इसीलिए भगवान ने अच्छे को ही ले लिया | तो ज़रूर अच्छे को तो लेना ही है क्योंकि उसकी चॉइस अच्छी है | उसकी चॉइस तो सबसे अच्छी ही है | इसलिए जहाँ नई दुनिया को बनाने की उसने शुरुआत की तो वहाँ उन लोगों की ही ज़रूरत है, बुरे लोगों की तो ज़रूरत ही नहीं है वहाँ |

रुपेश कईवर्त  :     लेकिन क्या इससे लोगों का विश्वास भगवान से कम नहीं हो जाता ! अच्छाई से, अच्छे कर्म से, कम नहीं हो जाता कि अच्छा कर्म करने से, अच्छाई के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति सर्वाइव नहीं कर पाता, आगे नहीं बढ़ पाता और ये बुरे लोग ही जीत जाते हैं इसिलए हम जहाँ हैं वैसे ही ठीक हैं | बुरे कर्म करते चलो और जितना हो सके ईश्वर का ध्यान करो |

बी.के. ऊषा दीदी  :    ईश्वर का ध्यान होगा ही नहीं ! बुरे कर्म करने के बाद, ईश्वर के ध्यान में मन लगेगा ही नहीं | इसिलए ये विश्वास रखना ही पड़ेगा आज नहीं तो कल | अगर मुझे अच्छाई की ओर जाना है तो ! अगर मुझे ईश्वर का ध्यान करना है तो कुछ न कुछ अच्छाई की शुरुआत करनी ही होगी! बहुत जल्दी ही वो मुझे भी प्रमोशन दे सकेगा |

और उस प्रमोशन में वैसे भी जाना ही है, इस दुनिया में से जाना ही है | जाना ही है जब, तो ये व्यक्ति सोच ले कि क्यों न मैं ऐसा कुछ कर्म कर के जाऊ, जो बाद में भी लोग याद करते रहें कि था तो बहुत अच्छा ना व्यक्ति ! तो यदि यहाँ भी मैं अपना नाम रख लूँ और वहाँ भी मेरा नाम हो जाए | दोनों जहान में है तो इसीलिए जो व्यक्ति यदि बुरा कर्म करने के बाद ध्यान करने में लगेगा तो उसका ध्यान लगेगा ही नहीं |

क्योंकि उसका मन इतना विचलित होता रहेगा, वो कंसंट्रेशन करना चाहेगा भी तो भी कर नहीं सकेगा | इससे तो अच्छा है कि अच्छा कर्म करके कंसंट्रेशन तो होगा ! अंदर में अच्छाई जैसे पनपनी शुरू हो जाती है, वो ब्लॉसम (खिलना) होना तो शुरू हो जाती है | तो वो मेरे हृदय को बहुत अच्छा निर्मल बनाना शुरू करता है कि कम से कम उन बुरे लोगों के बीच में भी मुझे ऐसा लगेगा कि जैसे मैं कीचड़ में कमल हूँ, ये महसूसता आएगी |

रुपेश कईवर्त  :     ये प्रकाश हो, ये ज्ञान हो, ये लक्ष्य हो तो सचमुच समाज का परिदृश्य सम्पूर्ण रूप से परिवर्तित हो जाएगा लेकिन ज़्यादातर ये देखा जाता है कि व्यक्ति सिचुएशन, अपने आसपास की स्थिति, अपने मित्रगण या जिस प्रकार का डायरेक्शन उसको मिल रहा है उसको ही फॉलो करते हुए आगे बढ़ता है और ज़्यादातर वो गलत ही होता है, वो उन चीज़ों से समझौता कर लेता है | क्या यहाँ पर कोई सुधार की गुंजाईश आपको लगती है कि व्यक्ति इन सब चीज़ों को जीत कर भी अच्छाई की ओर बढ़ सकता है ?

बी.के. ऊषा दीदी  :    उसी के लिए ही तो आध्यात्मिकता है | आध्यात्मिकता की तरफ़ आना ही पड़ेगा | वही एक रास्ता है | उस द्वार तक उसको जाना ही पड़ेगा | उस द्वार के बाद वो देखे कि आनंद क्या होता है | तो उस द्वार तक उसको जाना ही पड़ेगा | अगर नहीं जाएगा तो बस उस सिस्टम का हिस्सा बनकर के… बस उस सिस्टम को जिया और उसी में मर गया | ऐसा ही हुआ जैसे वो कीड़े बरसात के दिनों में आते हैं, और बस थोड़ी देर उड़े, प्रकाश की ओर उड़े और बस ख़त्म हो गई ज़िन्दगी | उनके existence(अस्तित्व) का कोई मतलब ही नहीं है |

रुपेश कईवर्त  :     एक ऐसी विचारधारा, एक ऐसी विशालता, ऐसी विशाल सोच के पीछे लगता है कि इसकी कितनी आवश्यकता है | आजकल लोग, जो अध्यात्मिक लोग से प्रश्न करते हैं कि चारों तरफ़ देख रहे हैं कि बुरा ही वातावरण है, कहीं बलात्कार के केसेस हो रहे हैं.. छोटे बच्चों के साथ भी ये हो रहें हैं | और भी कई ऐसी चीज़ें हैं जो नहीं होनी चाहिए | तो एक व्यक्ति के मन में प्रश्न उठता है, जो कर्म सिद्धांत को मानने वाला है.. क्या आज जिसके साथ जैसा हुआ, छोटे बच्चे के साथ गलत हुआ, तो ऐसा क्यों हुआ ? क्या उसने भी पहले कभी ऐसा किया हुआ था ?

बी.के. ऊषा दीदी  :    ये कुछ पूर्व कर्म का हिस्सा है, अन्यथा नहीं हो सकता है |

रुपेश कईवर्त  :     तब तो फ़िर ये बैलेंस हो जाना चाहिए तो फ़िर उसको कानून की तरफ़ से सज़ा क्यों ?

बी.के. ऊषा दीदी  :    ऐसा है क्योंकि हमे पता नहीं है | अगर ये पहली बार ही हुआ है तो आगे उसको कानून जो देगा वो देगा.. कानून जो उसको सज़ा दे रहा है वो उसके तन को दे रहा है परन्तु उसके मन को, आत्मा को नहीं दे सकता है ! लेकिन आगे चल करके भले से कानून उसको यहाँ सज़ा दे, तो भी जो कर्मों का हिसाब है ये कम नहीं हो जाएगा ! कर्मों का हिसाब तो उसे चुकाना ही पड़ेगा |

तो ये हमे पता नहीं है कि उसके पास्ट कर्मों के कारण ऐसा हुआ या ये फर्स्ट कर्म ही हुआ है.. तो आगे उसकी भोगना तो भोगनी ही पड़ेगी | इसीलिए हम इंटरफेयर नहीं कर सकते | कानून ने जो किया वो तो किया, वो समाज को शिक्षा देने के लिए दे रहा है, ताकि आगे ऐसे कर्म की वृद्धि ना हो इसलिए उसको सज़ा देते हैं ताकि उसको देखकर के ये लगे कि मुझे ये नहीं करना चाहिए | क्योंकि अगर कानून ना हो तो इसके ऊपर कोई कंट्रोल ही नहीं रहेगा | बाकी, कर्म उसके बाद भी देगा, कर्म किसीको छोड़ता नहीं है |

रुपेश कईवर्त  :     तो क्या हम ये माने की जो चीज़ें हो रही हैं, जैसा कि आपने कहा हमारे ही पास्ट कर्मों के कारण ये सारी चीज़ें दिखाई दे रही हैं | तो अब हमे सम्भल जाना चाहिए, सुधर जाना चाहिए, और अपने वर्तमान कर्मों को सुंदर बनाना चाहिए |

बी.के. ऊषा दीदी  :    ये तो है ही, उसमे से ये भी प्रेरणा हमे लेनी ही चाहिए, जिसने नही लिया तो नेचुरल है कि वो अपने भविष्य को और भी नीचे गिरा रहा है | ये ही कहेंगे |

रुपेश कईवर्त  :     मतलब ये ही कि मैंने किसीको दो मारा, वो मुझे चार मारेगा, चार मारा.. आठ मारा.. तो ये मल्टीप्लाई होता होता..

बी.के. ऊषा दीदी  :    होता रहेगा…

रुपेश कईवर्त  :     तो क्या दीदी अध्यात्म ये कहता है कि आज जो इतनी विकट स्थिति दिखाई दे रही है शायद इसका कारण यही है कि दो, चार, आठ, सोलह.. ऐसे ही होता होता शायद ऐसी विकट स्थिति आ गई |

बी.के. ऊषा दीदी  :    बिलकुल बिलकुल..

रुपेश कईवर्त  :     मतलब आज सुधार की आवश्यकता है |

बी.के. ऊषा दीदी  :    बिलकुल आवश्यकता है |

रुपेश कईवर्त  :     जी..जी.. एक प्रश्न और ध्यान में उभर कर आ रहा है कि कुछ लोग ये मानते हैं कि हम भाग्य लेकर के आए हैं, हम कुछ करें या ना करें ! अजगर करे ना चाकरी, पंछी करे ना काम, दास मलूका कह गए, सबके दाता राम | तो इस बात को किस ढंग से हम समझें, यदि भाग्य लेकर के आए हैं तो क्या कुछ ना करें, सबकुछ मिलता रहेगा ! तो यहाँ पर फ़िर कर्म की महत्वता रह ही नहीं जाती है, जिसकी हम चर्चा कर रहे हैं |

बी.के. ऊषा दीदी  :    भाग्य तो है, लेकिन भाग्य के आधार पर फ़िर ये जनम तो मिला है | और जनम मिला उसके आधार पर जो कुछ भी मिला है, वो भाग्य है | लेकिन, बहुत सुंदर गीता में कहा कि बुद्धिमान व्यक्ति कौन ? जो कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देखता है | वो बुद्धिमान है | माना मैंने कर्म किया, उसका भाग्य प्राप्त किया, ये नार्मल लोगों की सोच है | ये नार्मल लोग हैं |

लेकिन बुद्धिमान लोग अकर्म में कर्म.. जो कर्म किया उसका फ़ल भाग्य मिला, लेकिन उस भाग्य को पुनः रोपित करके श्रेष्ठ कर्म करना.. तो वो मल्टीप्लाई कर देता है | जैसे एक बीज बोया, उसका फ़ल निकला.. भई मैंने बोया है, कर्म मैंने किया है, इसलिए ये फ़ल खाने का मेरा अधिकार है | और मैंने खाया, पूरा हुआ | कर्म और भाग्य प्राप्त हुआ | और मैंने उसे स्वीकार भी कर लिया और समाप्त भी हो गया | लेकिन बुद्धिमान व्यक्ति, वो फ़ल खाने के बाद, जो बीज निकला है उसे फ़िर से रोपित करेगा | भले मेरे जाने के बाद दूसरे उसका फ़ल खाएंगे..

रुपेश कईवर्त  :     उसका पुण्य फ़ल मिलता रहेगा…

बी.के. ऊषा दीदी  :    मिलता रहेगा | तो बुद्धिमान व्यक्ति पुनः रोपित करता है | और उसका सुख, आने वाली जनरेशन को भी मिलता रहे | ये रिकरिंग(recurring), बुद्धिमानता है |

रुपेश कईवर्त  :     तो दीदी, चलते चलते बहुत गहन हमारी चर्चा हुई है | लगता है कि इस पर और भी चर्चा की जा सकती है | आप दर्शकों को क्या कहेंगे, क्योंकि आप जानती हैं कि वर्तमान स्थिति कलिकाल भी है, पास्ट भी है, प्रेजेंट में भी इतनी सिचुएशन हैं | कैसे अपने कर्मो को सुंदर बनाएं ? या क्या आप सुंदर सन्देश देना चाहेंगी आज के विषय पर !

बी.के. ऊषा दीदी  :    मैं तो यही कहना चाहूंगी, कि जैसे बुद्धिमान बन जाओ.. जो मिला है भाग्य, चलो बहुत अच्छी बात है कि आपको भाग्य मिला | लेकिन उस भाग्य को भी श्रेष्ठ कर्म में और रोपित कर दिया जाए, तो आने वाले कई जन्मों तक उसका भाग्य खाते रहो ! सदा अच्छे कर्म की ओर आगे बढो, बुरे कर्म आपको रसातल में भी ले जाएगा, अच्छाई की ओर नहीं ले जाएगा |

जो दिखाई देता है आपको कि ये व्यक्ति मौज कर रहा है, आनंद कर रहा है, ये मौज नहीं है लेकिन सदा काल की दुःख की प्राप्ति की ओर आगे जा रहा है | आज जो भौतिकता के अंदर व्यक्ति देख रहा है चकाचौंध, ये वैसे ही है जैसे रेत के पानी मिसल है | उसमे जाते तो हैं लेकिन कहीं ना कहीं पछतावा होता है | तो इसीलिए अच्छे जीवन की ओर आगे बढो, अच्छी बातों की ओर आगे बढो और इस जीवन को भी संवार लें और आने वाले अनेक जन्मों को भी संवारते जाएँ | यही सन्देश देना चाहूंगी |

रुपेश कईवर्त  :     बहुत बहुत शुक्रिया दीदी, एक सुंदर प्रकाश हमे प्राप्त हुआ है | निश्चित तौर पर हम सच्चाई की ओर, पुण्य कर्म की ओर अग्रसर होंगे | यहाँ आने के लिए, सुंदर प्रकाश देने के लिए, दिल से आपका बहुत बहुत शुक्रिया |

बी.के. ऊषा दीदी  :    ओम शांति !

रुपेश कईवर्त  :     ओम शांति | मित्रों कर्मों पर कितनी हमारी गहन चर्चा हुई है, जिसपर सचमुच विचार करने की आवश्यकता है कि हम वर्तमान में कैसे कर्म कर रहे हैं और कैसे किये जाने चाहिए ! बचपन से ही हम सुनते आ रहे हैं और ना केवल बचपन से, सदियों से ये बात चली आ रही है कि जैसा कर्म करेंगे वैसा ही फ़ल मिलेगा | जैसे बीज बोयेंगे, वैसा ही फ़ल प्राप्त होगा | यदि आप बबूल के बीज बोयेंगे तो आपको आम प्राप्त नहीं होगा, अमरुद प्राप्त नहीं हो सकते |

लेकिन वो बबूल का कांटा ही निकलेगा जो आपको चुभेगा | सदियों से जो बात कही जा रही है, विद्वानों के द्वारा भी और हमारे पूर्वजों के द्वारा भी, उस बात में दम तो है | और यदि हम वर्तमान में भी इस चीज़ को देखना चाहें, हमारी चर्चा में भी ये बात आई थी कि यदि आप किसीको सुख देते हैं, अच्छे कर्म करते हैं, किसीकी मदद करते हैं, महसूस करके देखें कितना सुकून प्राप्त होता है, सुख प्राप्त होता है | वहीँ किसीको तकलीफ़ दें, गुस्सा करके देखें किसीपर, किसीको डांट कर देखें, आप खुद ही irritate हो जाते हैं, मन की शांति भंग हो जाती है |

तो ये भी तो एक प्रत्यक्ष प्रमाण है कि जैसा आप कर रहे हैं, उसका परिणाम आपको प्राप्त हो रहा है | न्यूटनजी भी कह गए हैं कि जो क्रिया की जाएगी वैसी ही प्रतिक्रिया, उसी प्रमाण प्राप्त होगी | तो हम उसी से समझ लें कि यदि हम अपने कर्मों को सुंदर और श्रेष्ठ बनाते हैं तो हमारा भविष्य भी श्रेष्ठ होगा ही होगा, अन्यथा कर्म किसीका भी पीछा नहीं छोड़ते | एक बहुत ही पौराणिक कथा है मित्रों, एक डाकू था वो रास्ते चलते लोगों को लूट लिया करता था जंगल में | एक व्यापारी उधर से गुज़र रहा था, बहुत वर्षोँ के बाद, बहुत कमा कर आ रहा था | डाकू ने उसे लूटने की कोशिश की | वो उसके सामने आ गया | लेकिन इसे संजोग ही कहें कि वो उसके गाँव के पास का ही व्यापारी था उसने उसे पहचान लिया |

उसने कहा कि अरे तुम तो फ़लाने हो, तुम मुझे क्यों लूट रहे हो.. तुमतो मुझे जानते हो कि मेरे बीवी बच्चे मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे ! बेचारे भूखे मर जायेंगे अगर तुम मेरा धन लूट लोगे तो ! लेकिन ये तो लुटेरा, लुटेरा ही था ! डाकू, डाकू ही था ! उसने उसे लूट लिया और उसकी पहचान प्रत्यक्ष ना करदे इसलिए उसने उसको मार भी दिया | अब ये बहुत सारा धन लेकर घर आया | क्योंकि धन बहुत ज़्यादा था उसने सोचा कि अब मैं ये डकैती का काम छोड़ देता हूँ, व्यापार शुरू करता हूँ | व्यापार शुरू किया, व्यापार फ़लफूलने लगा, साथ ही उसकी शादी भी हुई, बच्चा भी हुआ | बच्चा बड़ा भी हुआ |

बड़े होने के बाद वो बहुत बीमार हो गया | इतना बीमार पड़ा कि उसे बहुत सारा धन व्यय करना पड़ा उस डाकू को, जोकि अब व्यापारी बन गया था | लगभग सारा का सारा धन व्यय हो गया | अब वो बच्चा, जोकि पिछले जन्म में व्यापारी था, अपने पिताजी को बुलाया कि पिताजी आइये | उसने कहा कि पिताजी आपको याद है कि पहले आप एक डाकू थे और आपने एक व्यापारी की हत्या की थी.. मैं वही व्यापारी हूँ जिसकी आपने हत्या की थी, जो जन्म लेकर आपके पास आया हूँ | और आपका सारा धन जो आपने लूटा था, वो मेरी इस बीमारी में व्यय हो गया है ब्याज सहित, और अब मैं जा रहा हूँ | जैसे आपने मेरे पिछले जनम के परिवार को रुलाया, वैसे आप भी रोएं, आप भी तकलीफ़ भोगें | ऐसा कह कर उसने प्राण त्याग दिए |

मित्रों, जो कर्म किया गया है, उसका परिणाम हमे अवश्य ही प्राप्त होता है, ये बात बिल्कुल सत प्रतिशत सही है | तो क्यों ना अपने वर्तमान कर्मों को श्रेष्ठ बनाएं, दूसरों को सुख प्रदान करें, सहयोग प्रदान करें ताकि हमारा जीवन, हमारा वर्तमान भी, भविष्य भी, सुंदर और श्रेष्ठ बनता जाए| और समाज में भी हम अच्छे कर्मों की क्रांति ला सकें, चहुँ ओर मुस्कान ही मुस्कान हो | दुःख का नाम-निशान न हो | अपना ख्याल रखियेगा | कल इसी वक़्त पुनः मुलाकात होगी.. नमस्कार !!

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